दिल्ली सेवा क़ानून: सत्ता बनाम शक्ति प्रदर्शन

शैलेंद्र कुमार ‘इंसान’

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बड़ा झटका लगा है। संसद के दोनों सदनों में दिल्ली सेवा अध्यादेश पारित होकर क़ानून बन गया। दिल्ली सरकार को शक्तिहीन बनाने के लिए अपनी केंद्रीय शक़्ति का उपयोग भाजपा ने किया है। सन् 2015 में दिल्ली में सरकार बनाते ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अधिकारियों को नकेल डालनी शुरू कर दी थी। उन्होंने अधिकारियों को आदेश दिया था कि वे ज़मीन, पुलिस तथा क़ानून व्यवस्था से जुड़ी सभी फाइलें उप राज्यपाल से पहले उनके पास भेजें।

उस समय के दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग ने इस आदेश को लागू नहीं होने दिया तथा दिल्ली सरकार की ओर से सभी अधिकारियों की नियुक्ति रद्द कर दी। तब उप राज्यपाल ने कहा था कि नियुक्ति का अधिकार उन्हें ही है। इस मामले को लेकर दिल्ली सरकार दिल्ली उच्च न्यायालय पहुँची। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अगस्त, 2016 में इस पर फ़ैसला सुनाया। उच्च न्यायालय ने कहा कि उप राज्यपाल ही दिल्ली के असली बॉस हैं। इस फ़ैसले का अर्थ यह था कि दिल्ली सरकार को कोई निर्णय लेने से पहले उप राज्यपाल की अनुमति लेनी होगी। दिल्ली सरकार ने उच्च न्यायालय के इस फ़ैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी।

सन् 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाया। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि चुनी हुई सरकार ही दिल्ली की असली बॉस है। परन्तु साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि ज़मीन, पुलिस तथा क़ानून-व्यवस्था को छोडक़र बाकी सभी अधिकार दिल्ली सरकार के पास रहेंगे।

न्यायालय का फ़ैसला

सर्वोच्च न्यायालय के इसी फ़ैसले को पलटने के लिए केंद्र सरकार संसद में दिल्ली सेवा विधेयक लेकर आयी, जिसे राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्‍ली सरकार अध्‍यादेश-2021 कहा गया। इस विधेयक में उप राज्यपाल तथा दिल्ली सरकार की शक्तियों को परिभाषित किया गया है। विधेयक में लिखा गया है कि दिल्ली में सरकार का मतलब उप राज्यपाल है। केंद्र सरकार के इस फ़ैसले को चुनौती देने के लिए दिल्ली सरकार दोबारा सर्वोच्च न्यायालय पहुँची। सर्वोच्च न्यायालय ने 11 मई, 2023 को दोबारा दिल्ली सरकार को सेवा क्षेत्र में अधिकार दे दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अधिकारियों की नियुक्ति तथा स्थानांतरण (पोस्टिंग तथा ट्रांसफर) को लेकर दिल्ली सरकार के मंत्रालय फ़ैसला ले सकते हैं। आपात स्थिति में या किसी बड़े मामले को लेकर उप राज्यपाल फ़ैसला ले सकते हैं या फिर उसे राष्ट्रपति को भेजा जा सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय का फ़ैसला आने के बाद मुख्यमंत्री केजरीवाल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि ‘कुछ ऐसे अधिकारी हैं, जिन्होंने पिछले एक-डेढ़ साल में दिल्ली की जनता के काम रोके। मोहल्ला क्लीनिक और अस्पतालों में दवाइयाँ बन्द करा दीं। जल बोर्ड की पेमेंट रोककर कई जगह पानी बन्द करा दिया। बुजुर्गों की पेंशन तक रोक दी। ऐसे सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को अब अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ेगा। ऐसे एक-एक अधिकारी और कर्मचारी को चिह्नित करके उन्हें साइड किया जाएगा और उनकी जगह पर ऐसे लोगों को मौक़ा दिया जाएगा, जो मेहनत और ईमानदारी से काम करना चाह रहे थे; लेकिन उन्हें काम नहीं करने दिया जा रहा था। जो अभी तक घुटन महसूस कर रहे थे, अब उनकी अच्छे पदों पर नियुक्ति करके उन्हें जनता के लिए काम करने का अवसर दिया जाएगा। कई ऐसे पद हैं, जिनकी कोई ज़रूरत नहीं है। उन पर बैठे अधिकारी कामों में चार और अड़चनें ही लगाते हैं। हम ऐसे पदों को चिह्नित करके या तो उनको ख़त्म करेंगे या खाली छोड़ेंगे। वहीं जिन विभागों में ज़्यादा पदों की ज़रूरत है, वहाँ नये पद तैयार करेंगे। एंटी करप्शन ब्रांच अभी भी दिल्ली सरकार के पास नहीं है; लेकिन अब विजिलेंस विभाग सरकार के पास आ गया है। तो जो लोग भ्रष्टाचार में लिप्त होंगे या ग़लत काम करेंगे, उनके ख़िलाफ़ विजिलेंस प्रोसिडिंग शुरू की जा सकती है।’

दिल्ली सरकार ने दोबारा सर्वोच्च न्यायालय से हरी झंडी मिलते ही अधिकारियों के स्थानांतरण शुरू भी कर दिये थे। उप राज्यपाल तथा केंद्र सरकार में इसे अहमियत नहीं दी तथा न ही इस पर अमल किया। इसे न्यायालय की अवमानना कहते हुए दिल्ली सरकार तीसरी बार सर्वोच्च न्यायालय पहुँची। परन्तु मामले पर सुनवाई होती, इससे पहले ही केंद्र सरकार 19 मई को केंद्र सरकार ने 19 मई को राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्‍ली सरकार (संशोधन) अध्‍यादेश-2023 ले आयी तथा इस मानसून सत्र में दिल्ली सेवा विधेयक को पारित कराने का प्रस्ताव रख दिया। दिल्ली सेवा विधेयक को लेकर संसद के लोकसभा सदन तथा राज्यसभा सदन में भारी हंगामा हुआ। परन्तु केंद्र सरकार ने केंद्र सरकार ने 19 मई को राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्‍ली सरकार (संशोधन) अध्‍यादेश-2023 जारी किया था; दोनों सदनों से पास करा लिया, जो कि अब राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधित) विधेयक-2023 हो गया।

संसद में बहस

विधेयक प्रस्ताव पटल पर रखते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि केंद्र को क़ानून बनाने का अधिकार है। यह अध्यादेश पूरी तरह से संवैधानिक है। इसके पास होते ही विपक्षी पार्टियों का गठबंधन टूट जाएगा। दोनों सदनों में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विधेयक पटल पर रखा। इस विधेयक में केंद्र सरकार ने फिर से अधिकारियों के स्थानांतरण तथा नियुक्ति का अधिकार उप राज्यपाल को ही दिया। विपक्षी गठबंधन की मदद से दिल्ली सरकार के लोकसभा तथा राज्यसभा सांसदों ने इस विधेयक को गिराने के काफी प्रयास किये, परन्तु सफलता नहीं मिली।

गृहमंत्री ने कहा कि मैं जो बिल लेकर आज उपस्थित हुआ हूँ, वो महामहिम राष्ट्रपति जी के 19 मई 2023 को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में सेवाओं के प्रशासन और प्रबंधन से जुड़े अध्यादेश, जो उन्होंने प्रख्यापित किया था, उस अध्यादेश से बनी हुई व्यवस्था के स्थान पर विधि द्वारा बनी हुई व्यवस्था को प्रस्थापित करने के लिए बिल लाया हूँ। यह इसका मूल उद्देश्य है। कई लोग ये कह रहे हैं कि केंद्र सरकार सरकार दिल्ली की पॉवर को अपने हाथ में लेना चाहती है। लेकिन मैं सा$फ करना चाहता हूँ कि केंद्र के पास पहले से ही बहुत पॉवर है। दिल्ली सेवा विधेयक को केवल और केवल शहर में भ्रष्टाचारमुक्त शासन के लिए लाया गया है। वर्ष 2015 में एक आन्दोलन के ज़रिये अस्तित्व में आई एक पार्टी इस बिल का विरोध कर रही है; लेकिन उसे पता नहीं है कि दिल्ली के मामले में केंद्र को यह संवैधानिक अधिकार वर्षों से मिला हुआ है। बिल के लाने से सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन नहीं हुआ है।

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि स्वतंत्रता पूर्व भी दिल्ली कई वर्षों से किसी न किसी प्रकार से देश की सत्ता का केंद्र रहा, राजधानी रहा। 1911 में दिल्ली तहसील और महरौली थाना इन दोनों को अलग करके राजधानी बनाया गया। बाद में वर्ष 1919 और 1935 के अधिनियमों में उस व$क्त की ब्रिटिश सरकार ने दिल्ली को चीफ कमिश्नर प्रोविंस माना। स्वतंत्रता के समय जब संविधान बनने की प्रक्रिया हुई, उस वक्त दिल्ली के स्टेटस के बारे में पट्टाभि सीता रमैया और बाबा साहेब अंबेडकर की एक कमेटी बनी और ड्राफ्टिंग कमेटी ने दिल्ली की स्थिति को लेकर विस्तृत विचार-विमर्श किया।

अमित शाह ने कहा कि पट्टाभि सीतारमैया समिति ने दिल्ली को लगभग राज्य स्तर का दर्जा देने की सिफारिश की थी, उसी कमेटी की चर्चा के वक्त पंडित नेहरू, सरदार पटेल, सी. राजगोपालाचारी, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और स्वयं डॉक्टर आंबेडकर जैसे नेताओं ने इसका अलग-अलग तर्क देकर विरोध किया था। उन्होंने कहा कि आंबेडकर की रिपोर्ट कहती है किसी विशेष क्षेत्र के मामले में क्या दिया जाना है? यह राष्ट्रपति अपने आदेश द्वारा निर्धारित करेंगे।

हालाँकि गृहमंत्री ने सदन में विधेयक पेश करते समय दिल्ली सरकार की शक्ति भी छीन लेने की नहीं, बल्कि इस ओर ध्यान भटकाया कि दिल्ली सरकार दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने की ज़िद कर रही है। जबकि यह ग़लत है, क्योंकि यह लड़ाई दिल्ली सरकार के अधिकारों की है। फिर अगर पूर्ण राज्य की बात है, तो गृह मंत्री को यह भी याद रखना चाहिए कि खुद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तथा लालकृष्ण आडवाणी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के पक्ष में थे। आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा ने इस ओर ध्यान भी दिलाया, जिसका उत्तर सरकार ने नहीं दिया। राज्यसभा में केंद्र की ओर से प्रस्तावित दिल्ली सेवा विधेयक पर चर्चा के समय विपक्षी सांसदों ने बहुत प्रयास किया कि इसे रोका जाए, परन्तु दोनों सदनों में सत्ता पक्ष के सदस्य अधिक होने के चलते यह विधेयक दोनों सदनों में पारित हो गया। यह विधेयक कुछ विपक्षी सदस्यों के सभा में उपस्थित न होने, कुछ के वोट न डालने के चलते भी आसानी से पारित हो गया। सत्तापक्ष की ओर से विधेयक पर 34 सदस्यों ने विचार रखे। वहीं सदनों में उपस्थित अधिकतर विपक्षी सदस्यों ने अपने विचार रखे। सदस्यता जाने के कारण आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह अपना मत प्रस्तुत नहीं कर पाये।

राष्ट्रपति ने दी मंज़ूरी

इस विधेयक पर दोनों सदनों में तीखी बहस हुई। परन्तु लोकसभा में इस विधेयक पास होने के बाद राज्यसभा में भी पास हो गया। सरकार विधेयक को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू के पास मंज़ूरी के लिए भेज दिया था। इस राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधित) विधेयक-2023 को राष्ट्रपति ने मंज़ूरी दे दी है, जिससे यह क़ानून बन गया है। अब अधिकारियों का स्थानांतरण तथ नियुक्ति का अधिकार दिल्ली की चुनी हुई सरकार के बजाय केंद्र सरकार से नियुक्त उप राज्यपाल को मिल गया है।

क्या है दिल्ली सेवा विधेयक?

राजनीति के कुछ जानकारों का कहना है कि वास्तव में दिल्ली सेवा विधेयक दिल्ली सरकार के होते हुए उस पर भी केंद्र सरकार का दबाव बनाये रखने को लेकर लाया गया है, ताकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के विरोधी सुरों को दबाया जा सके। दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के कार्यकाल में मंत्री रहे कांग्रेस नेता अजय माकन ने भी यही माना है कि नियुक्ति तथा स्थानांतरण का अधिकार दिल्ली सरकार का ही है।

इस विधेयक में कुछ विपक्षी सांसदों ने संशोधन का सुझाव दिया, परन्तु केंद्र सरकार ने उन्हें नहीं माना। इस विधेयक के क़ानून बनने से दिल्ली सरकार के पास बची अन्तिम बड़ी शक्ति भी $खत्म हो गयी है, जिसके तहत वह ग्रुप-ए अधिकारियों की नियुक्ति तथा उनका स्थानांतरण कर सकती थी।

दिल्ली सरकार, आम आदमी पार्टी एवं विपक्षी पार्टियाँ सरकार के इस क़दम को सर्वोच्च न्यायाय की अवमानना बता रहे हैं। वहीं सरकार एवं उसके समर्थक इस विधेयक को दिल्ली के हित में बता रहे हैं। प्रश्न है कि क्या अब सर्वोच्च न्यायालय सरकार के इस फ़ैसले में दख़ल दे सकता है? क्या वह केंद्र सरकार के इस विधेयक पर अंकुश लगाएगा?

इस विधेयक में धारा-3(ए) को हटा दिया गया है, जो पहले इस अध्यादेश में थी। इस धारा में दिल्ली सरकार तथा उप राज्यपाल को नियुक्ति एवं स्थानांतरण का अधिकार था, जो अब केवल उप राज्यपाल को रह जाएगा। इस विधेयक में कहा गया है कि अगर किसी अधिकारी के विरुद्ध कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी हो, तो उसकी सि$फारिश भी प्राधिकरण करेगा, जिसकी सि$फारिश पर आख़िरी फ़ैसला उप राज्यपाल का होगा। उप राज्यपाल तथा प्राधिकरण में अगर कोई मतभेद होता है, तो भी अन्तिम फ़ैसला उपराज्यपाल का ही माना जाएगा। इस हिसाब से दिल्ली सरकार से अधिक शक्ति उप राज्यपाल को मिलेगी तथा केंद्र सरकार को मिलेगी।

इस विधेयक में अध्यादेश की धारा-45(डी) को संशोधित किया गया है। ये धारा राजधानी दिल्ली की अलग-अलग संस्थाओं के अध्यक्ष तथा उनके सदस्यों की नियुक्ति से जुड़ी है। अगर यह विधेयक क़ानून बना तथा उसके माध्यम से किसी प्राधिकरण के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति के हाथ में होगी। अगर दिल्ली विधानसभा से अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति की सि$फारिश होती है, तो उसकी सिफारिश राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण करेगा, जिसके आधार पर उप राज्यपाल उन नियुक्तियों को करेंगे। जानकारों का कहना है कि इस विधेयक के क़ानून बनने से दिल्ली सरकार पूरी तरह तो अपाहिज नहीं हुई है; परन्तु बहुत हद तक शक्तिहीन हो चुकी है। भाजपा, जिसका मतलब अब मोदी हो गया है; दिल्ली में हारने के बाद भी दिल्ली पर शासन करने पर आमादा है। अन्त में प्रश्न यही है कि क्या राज्यों में सत्ता न मिलने पर भी प्रधानमंत्री मोदी सत्ता में रहने की ज़िद पर अड़े हुए हैं?

“संसद में अमित शाह ने कहा कि हमारे पास क़ानून पारित करने की शक्ति है। आपको लोगों के लिए काम करने की शक्ति दी गयी है, उनके अधिकार छीनने की नहीं। सा$फ ज़ाहिर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि मैं सुप्रीम कोर्ट को नहीं मानता। दिल्ली की जनता ने आम आदमी पार्टी को जिताकर सा$फ कहा है कि दिल्ली में दख़लंदाज़ी मत करना; लेकिन मोदी जी जनता की बात नहीं सुनना चाहते हैं। मैं जो भी करता हूँ दिल्ली की जनता उसमें मेरा समर्थन करती है और उन्होंने मुझे चुनाव में जीत दिलाकर अपना समर्थन दिखाया है। बीजेपी सिर्फ हमारे अच्छे काम को रोकने की कोशिश कर रही है। इस बार जनता उन्हें कोई भी सीट नहीं जीतने देगी। हमने चार चुनाव बीजेपी को हराये हैं। जब इन्हें लगा कि आम आदमी पार्टी को हराना मुश्किल है, तो चोर दरवाज़े से इन्होंने ऐसा किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली की आज़ादी चुरा ली है। दिल्ली के लोगों के वोट का कोई मूल्य नहीं बचा है और पीएम मोदी और उप राज्यपाल वी.के. सक्सेना दिल्ली की सरकार चलाएँगे।’’

अरविंद केजरीवाल

मुख्यमंत्री, दिल्ली