15 साल बाद महाराजा अग्रसेन अस्पताल में जन्मे बच्चे के अंधेपन में बरती गई लापरवाही पर देश की शीर्ष अदालत ने परिवार को 76 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है। मामले में चिकित्सीय लापरवाही की भी पुष्टि की।
जस्टिस यू यू ललित और इंदु मल्होत्रा की पीठ ने अस्पताल के साथ-साथ बाल रोग विशेषज्ञ और नेत्र रोग विशेषज्ञ को चिकित्सा लापरवाही का दोषी ठहराया। इस मामले में डॉक्टरों ने जिम्मेदारी नहीं निभाई। वे प्री-टर्म बेबी की रेटिनोपैथी ऑफ प्रीटैरिटी (आरओपी) की जाँच करने में विफल रहे, जिसके कारण उनका नवजात पूरी तरह से अंधा पैदा हुआ।
अदालत ने 2005 में पैदा हुए बच्चे के मेडिकल रिकॉर्ड को साझा नहीं करने के लिए अस्पताल को भी फटकार लगाई, जबकि उसके माता-पिता ने दो साल बाद तक इलाज के लिए अन्य डॉक्टरों से संपर्क किया और चक्कर लगाए।
तीन महीने से अधिक समय तक नवजात को चिकित्सीय परीक्षण के लिए अस्पताल ले गए, लेकिन डॉक्टरों ने जांच तक नहीं की।
पीठ ने 76 लाख रुपये का मुआवजा दिया, जिसमें से 60 लाख रुपये बच्चे की शिक्षा, कल्याण और जीविका के लिए दिए जाएंगे। मां को उनकी देखभाल करने वाले के लिए 15 लाख रुपये और मुकदमेबाजी में खर्च 1 लाख रुपये दिए।
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के उस आदेश को बरकरार रखा कि यह चिकित्सकीय लापरवाही का मामला था।