भारत में गौवध विरोध और आंदोलन आज का मसला नहीं है. देश की आजादी के समय कांग्रेस पार्टी के कई सदस्यों सहित सभी हिंदूवादी संगठनों का मानना था कि गौवध पर संसद प्रतिबंध लागू करे. संविधान के तहत यह राज्यों के अधिकार क्षेत्र का विषय है, इसलिए बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं का खयाल रखते हुए आजादी के बाद कुछ राज्यों ने गौवध पर प्रतिबंध लागू किया था. उस समय न सिर्फ नेता और धार्मिक संगठनों से जुड़े व्यक्ति बल्कि सेठ रामकृष्ण डालमिया जैसे भारत के शीर्ष उद्योगपति भी गौवध पर राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंध लगवाने की मुहिम में जुटे हुए थे.
हालांकि 1947 के बाद युद्ध, अकाल और गरीबी से जुड़ी चुनौतियों से पार पाने की कोशिश के चलते यह आंदोलन उतनी तेजी से आगे नहीं बढ़ पाया. इसकी एक वजह यह भी थी कि इस पर फैसला धार्मिक रूप से संवेदनशील था. 60 के दशक में गौवध प्रतिबंध से जुड़ा आंदोलन अचानक तेजी से फैलने लगा. यह 1966 की बात है जब आंदोलन अपने चरम पर पहुंचा. तब तक इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बन चुकी थीं और कांग्रेस में अपनी स्थिति मजबूत करने की जद्दोजहद में जुटी थीं. गौरक्षा समिति के नेतृत्व में कुछ साधुओं ने उस साल नवंबर में संसद का घेराव करने और प्रधानमंत्री से राष्ट्रीय स्तर पर गौवध पर प्रतिबंध लगाने की मांग की. इस मांग को जनसंघ का व्यापक समर्थन तो था ही साथ में कांग्रेस के कई भीतरी लोग इंदिरा गांधी की मुश्किलें बढ़ाने के लिए इसका समर्थन कर रहे थे. केंद्र सरकार में तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा भी इस आंदोलन के प्रबल समर्थक थे. उस समय केंद्र सरकार समिति की घोषणा को हल्के में ले रही थी क्योंकि पहले भी कई बार इस तरह की घोषणाएं हो चुकी थीं. लेकिन जैसे-जैसे नवंबर की सात तारीख नजदीक आने लगी, आंदोलन जोर पकड़ने लगा. इस दिन देश भर से लगभग एक लाख कार्यकर्ता और साधु-संत संसद के आसपास इकट्ठे हो गए. संसद की ओर उमड़ी इस भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस की पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी. इसी बीच कुछ आंदोलनकारियों ने तोड़फोड़ शुरू कर दी. इसके बाद लोगों को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को गोली चलानी पड़ी. इसमें कुछ साधुओं की मौत हो गई.
इस घटना का तात्कालिक परिणाम यह हुआ कि इंदिरा गांधी के लिए सरकार के बाहर और भीतर काफी मुश्किलें खड़ी हो गईं. लेकिन तब कांग्रेस में अपनी पकड़ साबित नहीं कर पाईं इंदिरा ने इस घटना के लिए जिम्मेदार मानते हुए गुलजारी लाल नंदा को गृहमंत्री के पद से हटा दिया. इसके अलावा उन्होंने पहली बार अपने मंत्रिमंडल में बड़े पैमाने पर फेरबदल कर दिए. यह पहली बार हुआ था जब इंदिरा गांधी ने अपने स्तर से इतने बड़े फैसले लिए थे. अपने इन फैसलों से उन्होंने पार्टी में अपनी राजनीतिक शक्ति का प्रदर्शन तो किया लेकिन वे इस धार्मिक आंदोलन को अपने विरोध में हवा बनाने से नहीं रोक पाईं. कहा जाता है कि अगले ही साल हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को कई सीटों पर हार का सामना करना पड़ा और इसकी बड़ी वजह इंदिरा गांधी का गौवध विरोधी आंदोलन से सफलतापूर्वक न निपट पाना था.
– पवन वर्मा