2010 को भारत के लिए घोटालों का साल माना जाता है. इसी साल कई बड़े घोटाले उजागर हुए. चाहे वह 2जी स्पेक्ट्रम की नीलामी का मामला हो या फिर आदर्श सोसायटी का मामला. इसी साल काले धन के मसले ने भी काफी जोर पकड़ा. 2010 में जब एक पर एक घोटाले सामने आ रहे थे तभी खेलों से जुड़े दो घोटालों ने भी लोगों को सन्न कर दिया. इनमें एक था आईपीएल और दूसरा राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में अरबों रुपये के हेरफेर का मामला. आईपीएल में आम लोगों की गाढ़ी कमाई सीधे तौर पर नहीं लगी थी शायद इसलिए यह मामला अपने ढंग से उठकर दब गया. लेकिन राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में धांधली का मामला शांत होता नहीं दिख रहा है. इसमें सीधे तौर पर सरकारी पैसा यानी आम आदमी की गाढ़ी कमाई में से कर के तौर पर वसूला जाने वाला पैसा लगा था. आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी समेत उनके कई सहयोगी इस मामले में दिल्ली के तिहाड़ जेल में बंद हैं.
जब ये दोनों मामले सामने आए तो हर ओर से कहा गया कि देश में खेलों के संचालन में पारदर्शिता का घोर अभाव है. आरोप लगे कि ज्यादातर खेल संगठनों में आंतरिक लोकतंत्र नहीं है और सालों से एक ही व्यक्ति या एक ही कुनबा खेल संगठनों पर काबिज है. ये ऐेसेे लोग हैं जिन्हें संबंधित खेलों का कोई अनुभव नहीं है. यह बात भी सामने आई कि कई लोग एक से ज्यादा खेल संगठनों के कर्ताधर्ता बने हुए हैं. हर तरफ से मांग उठी कि यदि खेलों के संचालन में पारदर्शिता बढ़ेगी तो ऐसे घोटालों पर अंकुश लग सकेगा और खेलों का भी विकास होगा. एक मजबूत कानून की जरूरत पर जोर दिया गया. अब जबकि केंद्रीय खेल राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अजय माकन एक ऐसा मजबूत कानून लाने की कोशिश कर रहे हैं तो उन्हें न सिर्फ विपक्षियों के बल्कि अपने दल के और सहयोगी नेताओं के भी भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है.
हालांकि, ऐसा नहीं है कि खेल संगठनों के काम-काज पर पहली बार 2010 में ही सवाल उठे. इन संगठनों पर तरह-तरह के आरोप तो लंबे समय से लगते रहे हैं. 2008 में एक खबरिया चैनल के स्टिंग ऑपरेशन से यह बात सामने आई थी कि भारतीय हॉकी महासंघ (आईएचएफ) के महासचिव के ज्योति कुमारन ने राष्ट्रीय टीम में एक खिलाड़ी के चयन के लिए पैसे लिए हैं. अजलान शाह हॉकी टूर्नामेंट के लिए जा रही टीम में चयन के लिए कुमारन ने पांच लाख रुपये की रिश्वत की मांग की थी. कुमारन को दो किश्तों में तीन लाख रुपये लेते हुए दिखाया गया था. इस विवाद में कुमारन की कुर्सी तो गई ही साथ ही भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) ने आईएचएफ की मान्यता भी रद्द कर दी. इसके साथ ही लंबे समय से हॉकी पर कब्जा जमाकर बैठे पूर्व पुलिस अधिकारी केपीएस गिल की भी छुट्टी हो गई. गिल पर भारतीय हॉकी पर अपनी दादागीरी चलाने का आरोप लगता रहा है. भारतीय हॉकी से जुड़े लोग तहलका से कहते हैं कि गिल ने राज्य हॉकी संघों में पुलिस अधिकारियों को पदाधिकारी बनवा दिया था और इसके एवज में ये पदाधिकारी गिल को आईएचएफ का अध्यक्ष बनाए रखते थे. इन लोगों का दावा है कि आईएचएफ में चुनाव नाममात्र को होता था क्योंकि सदस्य गिल को हाथ उठाकर अध्यक्ष चुन लेते थे.
मान्यता रद्द होने पर आईएचएफ के अधिकारी अदालत गए और दूसरी तरफ हॉकी इंडिया के नाम से एक नया संगठन बना. इसे आईओए और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) से मान्यता मिल गई. लगा अब हॉकी के दिन बदलेंगे. लेकिन यहां भी चुनाव में वही पुराना ढर्रा अपनाया गया और ओलंपिक खिलाड़ी रह चुके 45 साल के परगट सिंह को 83 साल की कांग्रेसी नेता विद्या स्टोक्स ने हरा दिया. एक बार फिर राष्ट्रीय खेल के दिन बदलने का हॉकी खिलाडि़यों का मंसूबा धरा का धरा रह गया. हॉकी इतिहासकार और स्टिकटूहॉकी डॉट कॉम के संपादक के अरुमुगम तहलका को बताते हैं, ‘यह एक अच्छा अवसर था कि भारतीय हॉकी को चलाने का काम किसी हॉकी खिलाड़ी के हाथ में जाता. लेकिन ऐसा हो नहीं सका और हॉकी फिर सियासत की शिकार बन गई. इससे उन पुराने खिलाडि़यों को भी झटका लगा जो हिम्मत करके हॉकी की सेहत सुधारने के लिए खेल प्रशासन की ओर रुख कर रहे थे.’ बाद में अदालत ने आईएचएफ के मामले में आईओए को यह निर्देश दिया कि आप किसी व्यक्ति पर तो कार्रवाई कर सकते हैं लेकिन संगठन को बेदखल नहीं कर सकते. अभी यह मामला अदालत में है.
यदि मेरे थोड़ा समझौता कर लेने से देश का भला हो तो ऐसा करने में हर्ज ही क्या? कपिल देव,पूर्व क्रिकेट कप्तान
2010 के शुरुआती दिनों में हॉकी विश्व कप के ठीक पहले खिलाड़ियों ने बोर्ड पर बाकी 4.5 लाख रुपये मेहनताने को लेकर विद्रोह कर दिया था और तैयारी में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था. इससे पता चला कि हॉकी पर राज करने वाला संगठन हॉकी इंडिया खिलाड़ियों के प्रति कितना असंवेदनशील है. इसी तरह महिला हॉकी टीम के कोच एमके कौशिक और आधिकारिक वीडियोग्राफर बसवराज पर यौन उत्पीड़न का आरोप टीम की खिलाड़ी ने ही लगाया. इसके बाद दोनों की छुट्टी कर दी गई.
जनवरी, 2011 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उस समय के खेल मंत्री एमएस गिल को सांख्यिकी एवं क्रियान्वयन मंत्रालय में भेजा और गृह राज्य मंत्री अजय माकन को खेल मंत्रालय में ले आए. माकन के आते ही मंत्रालय ने राष्ट्रीय खेल विकास विधेयक लाने की कोशिश की और इसका पहला मसौदा फरवरी में जारी हुआ. जब यह विधेयक अगस्त में केंद्रीय कैबिनेट में पहुंचा तो इसे यह कहते हुए वापस लौटा दिया गया कि इसमें काफी सुधार करने की जरूरत है. हालांकि, विधेयक का मसौदा पढ़ने के बाद यह साफ हो जाता है कि आखिर कैबिनेट ने इस विधेयक को वापस क्यों लौटा दिया. इसमें खेल संगठनों को पारदर्शी बनाने के लिए इन्हें सूचना का अधिकार कानून के दायरे में लाने और पदाधिकारियों के लिए उम्र और कार्यकाल की सीमा निर्धारित करने की बात थी. कैबिनेट में जिन मंत्रियों ने इस विधेयक का सबसे ज्यादा विरोध किया वे थे – शरद पवार, विलासराव देशमुख, प्रफुल्ल पटेल, फारुख अब्दुल्ला और सीपी जोशी. ये सभी केंद्रीय मंत्री किसी न किसी खेल संगठन से भी जुड़े हुए हैं.
इसके बाद मंत्रालय ने विधेयक के मसौदे में कुछ बदलाव किए और अब माकन एक बार फिर इसे कैबिनेट में ले जाने की तैयारी कर रहे हैं. तहलका के साथ बातचीत में वे इस विधेयक को संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र में पारित करवाने की इच्छा जताते हुए कहते हैं, ‘हमने पुराने मसौदे में से उन चीजों को हटाया है जिससे लोगों को यह लग रहा था कि हम खेलों पर सरकारी नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं.’ आरटीआई के तहत भी खेल संगठनों को चयन आधार और खिलाडि़यों की फिटनेस से संबंधित सूचनाओं को उजागर नहीं करने की छूट इस नए बिल में दी गई है.
इसके बावजूद इस विधेयक के पारित होने का रास्ता आसान नहीं है. विरोध करने वालों में वििभन्न खेल संगठनों के पदाधिकारी और सिर्फ कैबिनेट के लोग नहीं हैं बल्कि खेल संगठनों पर काबिज सभी दलों के नेता शामिल हैं. इनमें कैबिनेट के पांच नेताओं के अलावा प्रमुख हैं- राजीव शुक्ला, ज्योतिरादित्य सिंधिया, गोवा के मुख्यमंत्री दिगंबर कामत, पूर्व केंद्रीय मंत्री जगदीश टायटलर, भाजपा नेता और राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता अरुण जेटली, भाजपा नेता यशवंत सिन्हा, दिल्ली विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता विजय कुमार मल्होत्रा, भाजपा सांसद अनुराग ठाकुर, अकाली दल के सुखदेव सिंह ढींढसा, इंडियन नैशनल लोकदल के अभय चौटाला और अजय चौटाला आदि.
माकन के लिए विधेयक पारित करवाना बेहद चुनौतीपूर्ण है क्योंकि उनका विरोध न सिर्फ विपक्षी दलों के लोग कर रहे हैं बल्कि खुद माकन की पार्टी के तमाम प्रभावशाली नेता खुलेआम नए कानून का विरोध कर रहे हैं. भारतीय तीरंदाजी संघ के अध्यक्ष और आईओए के कार्यकारी अध्यक्ष विजय कुमार मल्होत्रा तहलका के साथ बातचीत में विधेयक पर कड़ा एतराज जताते हुए इसे दमनकारी और असंवैधानिक करार देते हैं, ‘आखिर क्यों माकन देश में खेल को बर्बाद करने पर आमादा हैं. जिस तरह से वे खेलों पर सरकारी कब्जा जमाना चाहते हैं उससे तो देश में खेल चौपट हो जाएंगे. क्योंकि आईओसी ने कहा है कि हम ऐसे सरकारी नियंत्रण को नहीं मानेंगे और अगर ऐसा किया गया तो हम भारत की मान्यता रद्द कर देंगे.’ मल्होत्रा कहते हैं.
आरटीआई के सवाल पर वे कहते हैं, ‘आईओए पर तो अब भी आरटीआई लागू होता है और इसके आर्थिक मामले सीएजी की जांच के दायरे में हैं. इसलिए नए सिरे से कुछ करने की जरूरत ही क्या है. सभी खेल संगठन सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन ऐक्ट के तहत पंजीकृत होते हैं. अगर सरकार खेल संगठनों को आरटीआई के दायरे में लाना चाहती है तो आरटीआई कानून में संशोधन करके सोसाइटीज ऐक्ट के तहत पंजीकृत सभी संगठनों को आरटीआई के दायरे में ला सकती है. जहां तक सवाल चुनाव में धांधली का है तो ऐसा कहीं-कहीं है हर जगह नहीं…खेल संगठन निर्णय प्रक्रिया में खिलाडि़यों की हिस्सेदारी खुद ही बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं.’
खेलों पर सरकारी कब्जा जमाने की कोशिश से तो देश में खेल चौपट हो जाएंगे. वीके मल्होत्रा,कार्यकारी अध्यक्ष, आईओए
खेल प्रशासकों के लिए उम्र की सीमा तय करने के मसले पर 32 साल से तीरंदाजी संघ के अघ्यक्ष रहे 80 वर्षीय मल्होत्रा कहते हैं, ‘यह कहां का न्याय है कि सांसदों और मंत्रियों के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं लेकिन खेल प्रशासकों की उम्र सीमा तय हो. प्रधानमंत्री 80 साल के होने वाले हैं. केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की उम्र 76 साल है. विदेश मंत्री एसएम कृष्णा 79 साल के हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्यादातर खेल संगठनों के प्रमुख 70 साल से अधिक उम्र के हैं.’ इसका जवाब माकन यह कहते हुए देते हैं कि सांसदों या किसी भी जनप्रतिनिधि का चुनाव सीधे जनता करती है जबकि खेल संगठनों के पदाधिकारियों का चुनाव इस ढंग से नहीं होता इसलिए यह तुलना ठीक नहीं है.
हालांकि, खेल संगठनों और खेल प्रशासकों के विरोध के बावजूद खिलाड़ी, खेलों के जानकार और खेलप्रेमियों की तरफ से माकन की कोशिशों को भारी समर्थन मिल रहा है. भारत को पहली दफा क्रिकेट विश्व कप दिलाने वाले कपिल देव तहलका को बताते हैं, ‘यह विधेयक देश में खेलों का भला करेगा. इसे लागू करवाया जाना चाहिए.’ यह पूछे जाने पर कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने इस विधेयक को खारिज कर दिया है, कपिल देव कहते हैं, ‘नए कानून से बीसीसीआई सीधे तौर पर प्रभावित होगी इसलिए वे विरोध कर रहे हैं. मेरी समझ में यह नहीं आता कि अगर मेरे थोड़ा-सा समझौता कर लेने से देश का भला होता है तो ऐसा करने में आखिर किसी को दिक्कत क्यों हो रही है.’
माकन कहते हैं कि जिस तरह का कानून हम लाने जा रहे हैं अगर वैसा कानून पहले होता तो राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में जो गड़बड़ियां हुईं वे नहीं होतीं. इस बात से सहमति जताते हुए अरुमुगम कहते हैं कि अगर ऐसा कानून होता तो हाॅकी में भी जो गड़बडि़यां हुईं उसकी नौबत ही नहीं आती. यही बात क्रिकेट पर भी लागू होती है. अगर बीसीसीआई के आर्थिक मामलों में पारदर्शिता होती तो संभवतः आईपीएल के नाम पर अरबों रुपये का हेरफेर नहीं होता.
खेल विकास विधेयक के दूरगामी असर के बारे में अरुमुगम कहते हैं, ‘इससे हर खेल को फायदा होगा. मुझे लगता है कि नए कानून से सबसे ज्यादा फायदा हॉकी को मिलने वाला है क्योंकि अभी देश में खेलों की जो स्थिति है उसके लिए अगर सबसे अधिक कोई चीज जिम्मेदार है तो वह है खेलों का प्रशासन गलत हाथों में होना. अगर खेलों को चलाने का काम खिलाडि़यों के हाथों में आता है और हर स्तर पर पारदर्शिता आती है तो इसका फायदा निश्चित तौर पर खेलों को मिलेगा और इसका असर कुछ ही सालों में अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में भारत के अच्छे प्रदर्शन के तौर पर दिखेगा.’