ख़तरे में मांसाहारी जानवर

बिग बिल्ली कैटेगरी के जीवों की रक्षा की पहल के बीच मांसाहारी जानवरों की मौतों में बढ़ोतरी हो रही है। हाल ही में गुज़रात के अमरेली ज़िले में पीपावाव पोर्ट के निकट उचैया गाँव में मालगाड़ी की चपेट में आने से एक एशियाई शेर की मौत हो गयी, जबकि एक शेर बुरी तरह घायल हो गया। दोनों की उम्र तीन वर्ष बतायी गयी है। यह घटना तडक़े तब घटी जब चार शेर, जिसमें दो शेर और दो शेरनी थीं, शेत्रुजी वन्य जीव डिवीजन के राजुला रेंज से चार किलोमीटर दूर उत्तर की ओर बंदरगाह के पास रेलवे ट्रैक से गुज़र रहे थे। इसी दौरान अचानक मालगाड़ी आ गयी, जिसकी चपेट में दो शेर आ गये। घायल शेर का इलाज जूनागढ़ के शक्करबाग़ चिडिय़ाघर में चल रहा है। वन अधिकारियों के मुताबिक, बारिश की वजह से मौसम में धुँधलापन था। लोको पायलट में शेरों को ट्रैक पार करते देख इमरजेंसी ब्रेक लगाये; लेकिन फिर शेर इसकी चपेट में आ गये।

बता दें कि गिर शेर जूनागढ़, अमरेली, गिर सोमनाथ और भावनगर ज़िले के संरक्षित इलाक़े दुनिया में एशियाई शेरों के एकमात्र शरणगाह माने जाते हैं। राजुला के तटीय इलाक़े भी शेरों के मुफ़ीद माने जाते हैं, जहाँ कई शेर रहते हैं। यहीं से पीपावाव पोर्ट के इलाक़े में शेर आते-जाते रहते हैं, जहाँ जाने के दौरान दो शेर मालगाड़ी की चपेट में आ गये। रिपोट्र्स की मानें, तो पिछले पाँच दशकों में क़रीब डेढ़ दर्ज़न शेर मालगाडिय़ों की चपेट में आ चुके हैं। एक शेर की मौत पर नथवाणी राज्यसभा सांसद और गिर के शेरों के संरक्षण के लिए काम करने वाले परिमल नथवाणी कहते हैं कि बिपरजॉय के चलते इस कॉरिडोर के ट्रैक के पास का नेट सम्पर्क की समस्या है। यहाँ शेर और दूसरे जंगली जानवर अक्सर घूमते रहते हैं। इस इलाक़े में मालगाडिय़ों की गति को कंट्रोल में रखने की सख़्त ज़रूरत है। हमें दु:ख है कि मूल्यवान शेर गँवा रहे हैं। सरकार व रेल प्रशासन प्रयास कर रही है; लेकिन इसमें और भी काम करने की ज़रूरत है।

पिछले साल प्रधानमंत्री ने नामीबिया से 8 चीते लाकर मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क के जंगल में उनके पुनर्वास की कोशिश की; लेकिन उनमें भी कुछ चीतों की मौत हो गई। लेकिन इस दौरान शेर, तेंदुआ, बाघ जैसे मांसाहारी जंगली जीवों के कम होने की चिन्ता भी सरकार को करनी चाहिए। भारत में इन बिग कैट प्रजातियों में एशियाई शेर, रॉयल बंगाल टाइगर, इंडियन लेपर्ड, क्लाउडेड लेपर्ड और स्नो लेपर्ड को रखा गया है।

जंगल के राजा शेर की कहानी किसने नहीं सुनी होगी। लेकिन आपको दु:ख होगा कि जंगल के राजा शेरों की संख्या लगातार घट रही है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट में शेरों को लुप्तप्राय वन्य जीवों में वर्गीकृत किया गया है। एशियाई शेरों का जहाँ तक सवाल है, तो ये सिर्फ़ भारत में पाये जाते हैं।

पूरी दुनिया में दुर्लभ यह प्रजाति भारत में पायी जाने वाली पाँच बड़ी बिल्लियों की प्रजाति में से एक मानी जाती है। सन् 2021 की रिपोट्र्स के मुताबिक, शेरों की संख्या घटकर क़रीब 20,000 रह गयी है। पिछले तीन-चार दशक में क़रीब 10,000 शेर कम हुए हैं। दुनिया में इतनी तेज़ी से घटती शेरों की संख्या चिन्ताजनक है। रिपोट्र्स के मुताबिक, भारत में फिर भी शेर संरक्षित हैं और इनकी संख्या में बढ़ोतरी भी हुई है; लेकिन दुनिया के कई देशों में शेर लुप्त होने के कगार पर हैं। पिछले साल की रिपोट्र्स के मुताबिक, भारत में एशियाई शेरों की संख्या क़रीब 674 हो गयी थी।

10 अगस्त को विश्व शेर दिवस है। लेकिन शेरों की संख्या लगातार घट रही है। इसलिए इन्हें बचाने के लिए प्रयास किये जाने चाहिए। पिछली बार शेरों की भारत में बढ़ोतरी पर प्रधानमंत्री मोदी ने ख़ुशी जताते हुए ट्वीट किया था कि ‘विश्व शेर दिवस पर मैं उन सभी की सराहना करता हूँ, जो राजसी शेरों की रक्षा के लिए काम कर रहे हैं। भारत हमेशा भव्य एशियाई शेर के लिए एक जीवंत घर रहेगा।’

शेरों की संख्या बढऩे पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी देशवासियों की इसकी शुभकामनाएँ दी थीं और शेरों का संरक्षण करने वालों की सराहना की थी। पूर्व राष्ट्रपति ने कामना की थी कि शेरों की दहाड़ भारत के जंगलों में गूँजती रहे।

रिपोट्र्स के मुताबिक, काफ़ी कोशिशों की वजह से ही शेरों की संख्या 180 से बढक़र 674 हुई थी; लेकिन अब इसमें कमी चिन्ता का विषय है। अफ्रीका महाद्वीप में सन् 1950 में 1,00,000 शेर थे, जो अब घटकर 20,000 रह गये हैं। शिकार और जंगलों के कटान के चलते पिछले दो दशकों में वैश्विक स्तर पर शेरों की आबादी 40 प्रतिशत घटी है। भारत में साल 1974 में 180 शेर थे, जो साल 2010 में 400 हो गये थे। दूसरी बिग कैट प्रजाति में से एक बाघ (टाइगर) की भी प्रजाति ख़तरे में है। भारत में पायी जाने वाली ये प्रजाति लम्बे समय से सुरक्षा जोन में है। भारत के रॉयल बंगाल टाइगर की दुनिया भर में एक ख़ास पहचान है। हालाँकि पूरी दुनिया के 75 प्रतिशत बाघ भारत में पाये जाते हैं। लेकिन 2018-19 की बाघ जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में सिर्फ़ 2,967 बाघ हैं, जो कि पिछले छ: दशक की अपेक्षा 60 प्रतिशत से भी कम हैं।

रिपोट्र्स के मुताबिक, 19वीं सदी की शुरुआत में बाघों की संख्या पूरी दुनिया में 10,000 से ज़्यादा थी, जो कि अब 4,000 से भी कम है। सन् 2021 में सरकार ने ख़ुद राज्यसभा में कहा कि सन् 2021 में भारत में 127 बाघों की मौत हुई थी। इसके अलावा सन् 2020 में 106 और सन् 2019 में 96 बाघों की मौत हुई थी। इन रिपोट्र्स के मुताबिक, बाघों की सबसे ज़्यादा मौतें मध्य प्रदेश में हुईं। पिछले साल मध्य प्रदेश में हुईं, उसके बाद कर्नाटक और उसके बाद क्रमश: महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश में सबसे ज़्यादा बाघ मरे। बता दें कि भारत में सन् 1970 से बाघों के शिकार पर पूरी तरह से रोक लगा दी गयी थी। इसके बाद भी बाघों का शिकार पूरी तरह रुका नहीं। इससे तंग सरकार ने सन् 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत बाघों की सुरक्षा के लिए की। इसके बाद से बाघों की संख्या में बढ़ोतरी हुई और अब बाघों की मौज़ूदा जनसंख्या के सरक्षण के अलावा इनकी संख्या बढ़ाने की चिन्ता है।

बाघों की तुलना में भारत में शेरों की और दूसरे मांसाहारी जंगली जानवरों की स्थिति बेहतर है। अगर भारत में तेंदुओं की बात करें, तो इनकी संख्या सबसे ज़्यादा है। रिपोट्र्स के मुताबिक, भारत में सन् 2018 में तेंदुओं की संख्या 12,852 थी, जबकि सन् 2014 में भारत में क़रीब 8,000 तेंदुए थे। यानी चार वर्षों में तेंदुओं की संख्या में 60 प्रतिशत से ज़्यादा बढ़ोतरी हुई। तेंदुओं की संख्या की बात करें, तो भारत के मध्य प्रदेश में सबसे ज़्यादा 3,421 तेंदुए हैं। इसके अलावा कर्नाटक में 1,783, महाराष्ट्र में 1,690 तेंदुए हैं। यानी मध्य भारत और पूर्वी घाटों में सबसे ज़्यादा 8,071 तेंदुए पाये जाते हैं। वहीं पश्चिमी घाट यानी कर्नाटक, तमिलनाडु, गोवा और केरल में 3,387 तेंदुए हैं। जबकि शिवालिक एवं गंगा के मैदानी इलाक़ों यानी उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश और बिहार में 1,253 तेंदुए और पूर्वोत्तर के पहाड़ी इलाक़ों में सिर्फ़ 141 तेंदुए हैं। तेंदुओं की भरपूर जनसंख्या के बीच ब्लैक पैंथर्स यानी काले तेंदुओं की संख्या चिन्ताजनक है। कुछ महीने पहले मध्य प्रदेश के पेंच टाइगर रिजर्व में भी दुर्लभ काला तेंदुआ नज़र आया था। इस तेंदुए को देखना अब बहुत दुर्लभ है।

हालाँकि रिपोट्र्स के मुताबिक, काले तेंदुए समुद्र तट से 2,700 मीटर से ज़्यादा की ऊँचाई वाले हिमालय और ट्रांस हिमालय इलाक़ों में पाये जाते हैं। काले तेंदुओं का शिकार बहुत जल्दी होता है, क्योंकि ये दुर्लभ हैं। इसलिए काले तेंदुओं का शिकार रोकना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। कई वर्षों से लगातार होते अवैध शिकार के चलते काले तेंदुओं की संख्या में तेज़ी से कमी आयी है। जंगली मांसाहारी जानवरों में काला तेंदुआ सबसे दुर्लभ हो चुका है, उसके बाद बाघों की कम संख्या भी चिन्ताजनक है।

काले तेंदुओं की खाल पर बादल की तरह पैटर्न बने होने के कारण इसका नाम क्लाउडेड लेपर्ड रखा गया है। वहीं इनकी घटती संख्या के चलते इन्हें इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट में लुप्तप्राय जीव के रूप में रखा गया है। क्लाउडेड लेपर्ड यानी ब्लैक पैंथर की इस दुर्लभ प्रजाति को केवल सिक्कम, पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा राज्यों में पहाड़ी वर्षा वनों में कभी-कभी देखा जाता है। यह मेघालय का राजकीय पशु है। मिजोरम के दम्पा बाघ अभयारण्य को क्लाउडेड लेपर्ड के अध्ययन और संरक्षण स्थल के रूप में चुना गया है। इसलिए इस दम्पा टाइगर रिजर्व में ब्लैक पैंथर्स की संख्या सबसे ज़्यादा है।

सरकार को चाहिए कि देश में घटते मांसाहारी जीवों की सुरक्षा के लिए अभी और सार्थक प्रयास करे, ताकि इन्हें बचाया जा सके। आज दिखावे से ज़्यादा ज़रूरत ज़मीनी स्तर पर इन जीवों के संरक्षण की है। वन विभाग और सम्बन्धित मंत्रालय को भी इस दिशा में ठोस क़दम उठाने की ज़रूरत है।