लार्सन एंड टुब्रो ने हाल ही में दावा किया है कि भारतीय मज़दूरों में कौशल की कमी है
आज के भारत में हर 10 में से सात युवाओं के पास काम की कमी है और इनमें से तीन युवा पुरी तरह बेरोज़गार हैं। बेरोज़गारों में सबसे ज़्यादा संख्या पढ़े-लिखे युवाओं की है, जिनके पास कोई अच्छा कौशल यानी हुनर (स्किल) नहीं है। वहीं मज़दूरों के पास भी अच्छा कौशल नहीं होने के कारण वे परम्परागत काम करने तक ही सीमित रह जाते हैं। बेरोज़गारी के इस दौर में भारतीय बहुराष्ट्रीय समूह लार्सन एंड टुब्रो ने हाल ही में 30,000 कुशल मज़दूरों की ज़रूरत को दर्शाते हुए कहा है कि उसके पास काम पर रखने लायक मज़दूर भारत में नहीं हैं।
कम्पनी के सीईओ और एमडी एस.एन. सुब्रमण्यन ने एक टीवी चैनल से बातचीत में कहा है कि भारतीय मज़दूरों में कौशल की बहुत कमी है। उन्होंने कहा है कि लार्सन एंड टुब्रो में कुशल मज़दूरों की कमी है, पर उन्हें भारतीयों में अधिक संख्या में कुशल मज़दूर नहीं मिलते। इसलिए उन्हें कुशल बनाने की आज बहुत ज़रूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि लार्सन एंड टुब्रो को मॉड्यूलरिटी और ऑटोमेशन का उपयोग करके भारतीय मज़दूरों को प्रशिक्षित करना पड़ता है। लेकिन काम पर रखने की इस प्रक्रिया में कम्पनी को बहुत संघर्ष करना पड़ता है। ट्रेनिंग देने के बाद भी लार्सन एंड टुब्रो में कुशल मज़दूरों की कमी है। एस.एन. सुब्रमण्यन ने कहा है कि मज़दूरों की कमी के कारण कम्पनी की बैलेंस शीट में 50 अरब डॉलर से अधिक का बैकलॉग है। चूँकि बैकलॉग ईपीसी व्यवसाय से है, इसलिए कम्पनी को प्रशिक्षित श्रमिकों की ज़रूरत है।
लार्सन एंड टुब्रो के के सीईओ और एमडी एसएन सुब्रमण्यन के बयान के मद्देनज़र सरकारों को यह समझने की ज़रूरत है कि भारत में कुशल मज़दूरों की कमी के कारण क्या हैं? कहते हैं कि भारत में युवा प्रतिभाओं की कमी नहीं है। पर यहाँ बात योग्य और कुशल मज़दूरों की हो रही है। इसलिए देखना होगा कि भारत में कुशल मज़दूरों की कमी के पीछे क्या कारण हैं? क्या कभी केंद्र या किसी राज्य की सरकार ने इसे लेकर कोई चिन्ता जतायी है? क्या कभी इसे लेकर कोई अध्ययन किया गया है?
बुद्धिजीवी कहते हैं कि सरकारों ने मज़दूरों और किसानों को उनके हाल पर ऐसे ही छोड़ दिया है, जैसे कोई ग़ैर किसी को याद नहीं रखता। होना यह चाहिए था कि अनपढ़ों और कम पढ़े-लिखे मज़दूरों के लिए सरकार कोई ट्रेनिंग अभियान चलाती और उन्हें मज़दूरी वर्ग के सभी कौशल सिखाने में सहयोग करती। अगर किसी सरकार ने ऐसा किया होता, तो लार्सन एंड टुब्रो के एमडी और सीईओ को आज यह नहीं कहना पड़ता कि भारत में कुशल मज़दूरों की कमी है। हाल के एक अध्ययन की रिपोर्ट में कहा गया कि 82 प्रतिशत भारतीय पेशेवरों को लगता है कि प्रासंगिक कार्य अनुभव की कमी वाले काम में उन पेशेवरों को नियुक्त करना अधिक सहज है, जिनके पास प्रासंगिक काम के अनुभव की कमी है। उनके पास सही कौशल है, जिसके परिणामस्वरूप उद्योगों में अपस्किलिंग और रीस्किलिंग पर ज़ोर बढ़ रहा है। 84 प्रतिशत भारतीय पेशेवरों का यह भी मानना है कि आने वाले समय में नियोक्ता ऐसे पेशेवरों की तुलना में विविध कौशल और अनुभव वाले पेशेवरों को महत्त्व देंगे, जो किसी विशिष्ट क्षेत्र में विशेषज्ञता रखते हैं।
सूत्रों के अनुसार, एलएंडटी एनर्जी हाइड्रोकार्बन को पेर्डमैन केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स प्राइवेट लिमिटेड के लिए 2.3 एमएमटीपीए यूरिया संयंत्र के लिए प्रक्रिया और पाइप रैक मॉड्यूल बनाने और उनकी आपूर्ति करने के लिए सैपेम एंड क्लॉ जेवी (एससीजेवी) ने क़रार किया है। भविष्य में जब संयंत्र पूरा हो जाएगा, तब यह दुनिया का सबसे बड़ा यूरिया संयंत्र होगा। आस्ट्रेलिया में उच्च गुणवत्ता वाले यूरिया का एक सुरक्षित और विश्वसनीय स्रोत होने के कारण यह संयंत्र पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के कर्राथा से लगभग 20 किमी उत्तर में बुरुप प्रायद्वीप पर स्थित होगा। लार्सन एंड टुब्रो के एमडी और सीईओ सुब्रमण्यन ने कहा कि श्रमिकों की कमी के कारण कम्पनी की बैलेंस शीट में 50 अरब डॉलर से अधिक का बैकलॉग है। बैकलॉग ईपीसी व्यवसाय से है, इसलिए कम्पनी को बढ़ईगीरी, चिनाई और भारी मिट्टी के काम के वाले प्रशिक्षित श्रमिकों की ज़रूरत है। कम्पनी मज़दूरों की तकनीकी विशेषज्ञता, गुणवत्ता, स्वास्थ्य, सुरक्षा और पर्यावरण (एचएसई) व परिचालन उत्कृष्टता के आधार पर पैकेज तय करेगी।
हज़ारों कम्पनियों ने छोड़ा भारत
केंद्र सरकार के अपने आँकड़े बताते हैं कि सन् 2014 में मोदी सरकार के केंद्र में आने के बाद से 30 नबंवर, 2021 तक लगभग 2,783 विदेशी कम्पनियाँ भारत से अपना कारोबार समेटकर जा चुकी थीं। ये बात एक सवाल के जबाव में सन् 2021 में केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने दी थी। उन्होंने सन् 2021 में संसद में कहा था कि सात वर्षों में 2,783 विदेशी कम्पनियों ने भारत में अपना काम बन्द किया है, पर अभी भारत में क़रीब 12,500 विदेशी कम्पनियाँ सब्सिडियरी (मददगार) के माध्यम से काम कर रही हैं।
हालाँकि केंद्रीय मंत्री ने भारत से बड़ी तादाद में जाने वाली कम्पनियों के जाने के पीछे उनका मक़सद पूरा होना बताते हुए कहा कि ये कम्पनियाँ सम्पर्क ऑफिस, ब्रांच ऑफिस, सब्सिडियरी, प्रोजेक्ट ऑफिस के माध्यम से रजिस्टर्ड थीं और उनका कारोबारी लक्ष्य या परियोजना पूरी होने के चलते उन्होंने भारत में अपना कामकाज बन्द किया या कुछ कम्पनियाँ अपनी पैरेंट कम्पनी में विलय कर दी गयीं। केंद्रीय मंत्री ने यह भी बताया था कि इन सात वर्षों में 10,756 विदेशी कम्पनियों ने भारत में कारोबार शुरू भी किया है।
उल्लेखनीय है कि वल्र्ड बैंक की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग-2020 में भारत 63वें पायदान पर था, जबकि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग-2019 में भारत 79 पायदान पर था। सन् 2021 में वल्र्ड बैंक ने कथित अनियमितताओं के आरोपों के बाद इस सर्वे रिपोर्ट का प्रकाशन बन्द कर दिया था।
मंत्रालय के कम्पनी क्षेत्र पर जारी आँकड़ों की मानें, तो जून, 2020 में कारोबारी सेवाओं के तहत 3,399 कम्पनियाँ भारत में पंजीकृत हुईं। विनिर्माण के क्षेत्र की 2,360 कम्पनियाँ पंजीकृत हुईं। व्यापार के लिए 1,499 कम्पनियाँ पंजीकृत हुईं। सामुदायिक, व्यैक्तिक और सामाजिक सेवाओं वाली 1,411 कम्पनियाँ पंजीकृत हुईं; और निर्माण के क्षेत्र में काम करने के लिए 644 कम्पनियाँ पंजीकृत हुईं। इस दौरान कुल 20,14,969 कम्पनियाँ पंजीकृत थीं, जिनमें से 7,46,278 कम्पनियाँ बन्द हो चुकी थीं। वहीं 2,242 कम्पनियों को कम्पनी $कानून-2013 के तहत निष्क्रिय बताया गया था। मोदी सरकार पर आरोप लगा कि उसने अपने शुरू के पाँच वर्षों के कार्यकाल में ही लाखों कम्पनियों को सरकारी रिकॉर्ड से हटा दिया था। इसके जवाब में केंद्र सरकार ने संसद में कहा था कि अनुपालन में कमी के चलते इन कम्पनियों को बन्द कर दिया गया।
प्रतिभाओं की कमी नहीं
ऐसा कहा जाता है कि भारत में प्रतिभाओं की नहीं, केवल मौकों की कमी है। लार्सन एंड टुब्रो ने कहा है कि भारत में उसे कुशल मज़दूर नहीं मिल रहे हैं। पर वहीं व्हीबॉक्स इंडिया स्किल्स रिपोर्ट-2023 के मुताबिक, भारत में 22 से 25 साल के आयुवर्ग वाले 56 प्रतिशत युवा नौकरी पाने की योग्यता रखते हैं। यह रिपोर्ट भारत के 3.75 लाख उम्मीदवारों के वीबॉक्स नेशनल एम्प्लॉयबिलिटी टेस्ट (डब्ल्यूनेट) और 15 से ज़्यादा इंडस्ट्रीज की 150 कम्पनियों पर किये गये इंडिया हायरिंग इंटेंट सर्वे के नतीजों के आधार पर पेश की गयी है। इसमें कहा गया है कि भारत के 50.3 प्रतिशत लोग नौकरी पाने के योग्य हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, सन् 2022 के मुकाबले इस साल यानी 2023 में रोज़गार पाने की योग्यता रखने वाले युवाओं में 4.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सन् 2022 में भारत में नौकरी पाने की योग्यता रखने वाले युवा 46.2 प्रतिशत थे। भारत में उत्तर प्रदेश में नौकरी पाने की योग्यता रखने वाले युवाओं की संख्या सबसे अधिक 72.7 प्रतिशत है। इसके बाद महाराष्ट्र में 69.8 प्रतिशत युवा नौकरी पाने के योग्य हैं। दिल्ली के युवा नौकरी पाने की योग्यता में तीसरे स्थान पर हैं। वहीं आंध्र प्रदेश के युवा चौथे, राजस्थान के युवा पाँचवें, कर्नाटक के युवा छठवें, तेलंगाना के युवा सातवें, पंजाब के युवा आठवें, ओडिशा के युवा नौवें और हरियाणा के युवा 10वें स्तर पर नौकरी पाने के योग्य हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 52.8 प्रतिशत महिलाएँ नौकरी पाने के योग्य हैं। वहीं 47.2 प्रतिशत पुरुष नौकरी पाने की योग्यता रखते हैं। पर वर्तमान में कार्यरत महिलाओं की हिस्सेदारी 33 प्रतिशत है। वहीं कार्यरत पुरुष 67 प्रतिशत हैं। योग्य महिलाओं को नौकरी देने में राजस्थान सबसे ऊपर है, जहाँ 53.5 प्रतिशत महिलाएँ रोज़गार से जुड़ी हैं। दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश हैं, जहाँ 46.5 प्रतिशत महिलाएँ रोज़गार पर हैं। भारत में कुशल श्रम की उच्च माँग वाले क्षेत्र फार्मास्युटिकल, बीएफएसआई, आईटी और ई-कॉमर्स जैसे क्षेत्र हैं, जिनमें सन् 2022 की तुलना में 2023 में 20 प्रतिशत का भर्ती उछाल देखा गया है। उल्लेखनीय है कि व्हीबॉक्स इंडिया स्किल्स युवाओं की योग्यता एवं प्रतिभा की जाँच करके यह रिपोर्ट जारी करती है। ऐसे में लार्सन एंड टुबो का यह कहना कि भारत में कुशल मज़दूरों की कमी हैं; सीधे-सीधे स्वीकार नहीं किया जा सकता। लेकिन इसे हल्के में लेना भी ठी नहीं है।