स्वच्छ भारत अभियान में भ्रष्टाचार!

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपात्रों को मिला शौचालयों का पैसा, मामला खुलने पर नहीं हो पायी पूरी वसूली

के.पी. मलिक

सन् 2014 में ‘न खाऊँगा, न खाने दूँगा’ के वादे के साथ नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता सँभाली। लेकिन उनकी सरकार भी दूसरी सरकारों की तरह कई योजनाओं में भ्रष्टाचार रोकने में नाकाम साबित रही है। दरअसल हिन्दुस्तान में भ्रष्टाचार किसी एक व्यक्ति के संकल्प से नहीं रुकेगा। इसके लिए ऊपर से नीचे तक सबको ईमानदार होना पड़ेगा।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी कुछ भ्रष्टाचारी अधिकारियों के चलते कई तरह के घोटाले सामने आते रहते हैं। समाजसेवी, आरटीआई एक्टिविस्ट और पेशे से किसान सुमित मलिक ने कड़ी मेहनत करके स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय योजना में इसी तरह का भ्रष्टाचार उजागर किया है।

दरअसल, स्वच्छ भारत अभियान केंद्र सरकार का वो राष्ट्रीय अभियान है, जिसका मक़सद देश को हर तरह से साफ़-सुथरा बनाना है। 2 अक्टूबर, 2014 को ख़ुद प्रधानमंत्री ने झाड़ू लगाकर दिल्ली से इस अभियान की शुरुआत की थी।

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का आज़ादी का सपना तो पूरे देश ने मिलकर पूरा किया। लेकिन उनका स्वच्छ भारत का सपना पूरा नहीं हो सका है, जिसकी शुरुआत पूर्व सरकारों से हटकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की। प्रधानमत्री मोदी के इसी स्वच्छ भारत अभियान की एक योजना है- ‘खुले में शौच मुक्त भारत’; जिसके तहत केंद्र की मोदी सरकार ने घर-घर शौचालय होने का संकल्प लिया। इस योजना के तहत जिस व्यक्ति के यहाँ शौचालय बनना था, उसके पात्र होने पर, उसके खाते में केंद्र की मोदी सरकार की तरफ़ से 12,000 रुपये भेजे गये।

पूरे देश के साथ-साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले में भी इस योजना के अंतर्गत स्वच्छ भारत मिशन के तहत लाखों लोगों को शौचालय बनाने के लिए पैसा दिया गया। घरों में शौचालय बनाने के लिए व्यक्ति की पात्रता ग़रीबी रेखा के नीचे आने वाले व्यक्तियों की थी, और उन्हें ही शौचालय के लिए 12,000 रुपये की धनराशि मिलनी थी। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, इस योजना के तहत मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के ग्रामीण इलाक़ों में 53,183 शौचालय बनाये गये। मुज़फ़्फ़रनगर में कुल 498 गाँव हैं, जो कि नौ ब्लॉकों के अंतर्गत आते हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता सुमित मलिक के मुताबिक, उन्होंने गाँव-गाँव जाकर पहले शौचालयों के बनने और अपात्रों को पैसा मिलने की जानकारी इकट्ठी की और फिर आरटीआई के ज़रिये भ्रष्टाचार को उजागर किया। सुमित मलिक ने आरटीआई और ख़ुद के सर्वे में पाया कि फ़र्ज़ी तरीक़े से हज़ारों अपात्र लोगों को शौचालय का पैसा मुहैया कराया गया है।

सुमित मलिक के मुताबिक, ज़िला राज पंचायत अधिकारी और कर्मचारियों की मिली भगत से फ़र्ज़ी तरीक़े से कई कर्मचारियों के ही परिवार वालों के बैंक खातों में ही पहली क़िस्त के 6,000 रुपये भेजे गये। सुमित मलिक बताते हैं कि उन्होंने मुख्यमंत्री योगी से भी इस भ्रष्टाचार की शिकायत 25 जून, 2018 में की थी। मुख्यमंत्री योगी के संज्ञान में शौचालय भ्रष्टाचार का मामला आते ही, इसकी जाँच के लिए उत्तर प्रदेश शासन ने एक जाँच दल का गठन करके जाँच के आदेश दिये। जाँच दल ने पाया कि सिर्फ़ मुज़फ़्फ़रनगर के ग्रामीण इलाक़ों में 2,130 अपात्र लोगों को शौचालय का पैसा मिला। जाँच के बात इन अपात्र लोगों के ख़िलाफ़ प्रशासनिक कार्रवाई की गयी और मुज़फ़्फ़रनगर के कई ब्लॉकों में अधिकारियों ने रिकवरी अभियान चलाया गया।

इस रिकवरी अभियान के तहत अभी तक सरकार को तक़रीबन 23,00,00 रुपये वापस मिल चुके हैं, जबकि अभी भी तक़रीबन 1,82,10,000 रुपये की रिकवरी बाक़ी है। रिकवरी राशि तक़रीबन 2,05,10,000 रुपये की है, जो अभी तक अफ़सरों द्वारा अपात्र लोगों से वापस नहीं ली जा सकी है। इस रिकवरी के लिए प्रदेश सरकार का आदेश तो है ही, सुमित मलिक भी अफ़सरों को प्रार्थना-पत्र दे चुके हैं। सुमित ने सन् 2016 से ही इस भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हुए सम्बन्धित अफ़सरों को प्रार्थना-पत्र लिखा; लेकिन इस पर कोई उचित कार्रवाही नहीं हुई।

हैरत की बात है कि प्रदेश सरकार के आदेश के बावजूद क़रीब पाँच साल से अधिक समय में अगस्त, 2023 तक भी 2,05,10,000 रुपये की रिकवरी नहीं हो पायी है, जिससे ज़िला प्रशासन, ख़ासतौर पर ज़िला राज पंचायत अधिकारी की लापरवाही साफ़ झलकती है। ग़लत लोगों से भी इस सरकारी धन की रिकवरी न कर पाने से अफ़सरों के इस भ्रष्टाचार में लिप्त होने की आशंका होती है।

सुमित के मुताबिक, वह कई लगातार इस सरकारी धन की रिकवरी के संदर्भ में बार-बार सम्बन्धित अफ़सरों को प्रार्थना-पत्र देते हैं; लेकिन बक़ाया धन की रिकवरी अपात्र लोगों से नहीं हो पा रही है। ग्रामीण इलाक़ों में बड़े-बड़े घरों में फ़र्ज़ी तरीक़े से एक ही घर दिखाकर छ: शौचालय तक दिये गये। इतना ही नहीं, ज़िला राज पंचायत अधिकारी के कुछ कर्मचारियों के खाते से भी 3,00,000 रुपये की धनराशि बरामद की गयी। यह भ्रष्टाचार संविदा पर रखे हुए कुछ कर्मचारियों को इस्तेमाल करके किया गया। ग़लत खातों में गये पैले की रिकवरी में अड़चन यह भी है कि लगातार नये-नये ज़िला राज पंचायत अधिकारी आते हैं और जब तक कुछ औपचारिकताएँ करते हैं, इतने में उनका ट्रांसफर हो जाता है। मुज़फ़्फ़रनगर के मौज़ूदा ज़िला राज पंचायत अधिकारी ने बताया कि यह पुराना मामला है। मेरे संज्ञान में है। इसकी जाँच चल रही है और रिकवरी भी हो रही है।

बहरहाल, हमने तो सिर्फ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के ग्रामीण इलाक़ों के शौचालयों के भ्रष्टाचार की पोल खोली है। ज़ाहिर है कि उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे देश में इस प्रकार के कितने ही भ्रष्टाचार हुए होंगे। क्योंकि भले ही देश में सभी अफ़सर भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं होते; लेकिन भ्रष्ट अफ़सरों की देश में कमी भी नहीं है।

सन् 1985 में देश के तत्कालीन युवा प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने सूखा प्रभावित उड़ीसा के कालाहांडी ज़िले के दौरे के दौरान कहा था कि केंद्र सरकार जब किसी योजना के तहत एक रुपया भेजती है, तो लोगों तक सिर्फ़ 15 पैसे ही पहुँच पाते हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री के इस बयान को प्रधानमंत्री मोदी ने भले ही राजनीतिक इस्तेमाल के लिए प्रयोग किया हो; लेकिन उन्होंने इस बयान को भ्रष्टाचार के एक उदाहरण के तौर पर बयान किया है। इसीलिए मेरा मानना है कि दूसरी सरकारों की तरह ही केंद्र की मोदी सरकार भी अपने नौ साल से अधिक के शासन-काल में भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के अपने वादे को पूरा करने में असफल ही दिख रही है।

केंद्र की मोदी सरकार ने 2 अक्टूबर, 2019 तक खुले में शौच मुक्त भारत करने का लक्ष्य रखा था, जिसके तहत हिन्दुस्तान के ग्रामीण इलाक़ों में 1.96 लाख करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से 1.2 करोड़ शौचालय बनाये जाने थे। लेकिन सवाल यह है कि क्या ऐसा हो पाया? अगर इस परियोजना की सही से जाँच हो जाए, तो मुझे नहीं लगता कि सरकार अपने इस लक्ष्य को अभी भी हक़ीक़त में छू सकी होगी।

केंद्र की मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान को पूरा करने के लिए सचिन तेंडुलकर, प्रियंका चोपड़ा, बाबा रामदेव, सलमान ख़ान, शशि थरूर, महेंद्र सिंह धोनी, विराट कोहली, मृदुला सिन्हा और कमल हसन जैसे दिग्गजों को इसका ब्रांड एंबेसडर बनाया। लेकिन क्या इतने ब्रांड एंबेसडरों में से किसी ने इस अभियान को सही तरीक़े से ईमानदारी से आगे बढ़ाया?

क्या हर देशवासी को यह मालूम है कि किसी कम्पनी या चीज़ या योजना के एक ब्रांड एंबेसडर को करोड़ों रुपये दिये जाते हैं?

इसके अलावा विज्ञापनों में करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाये जाते हैं। इसका मतलब यह है कि जितना पैसा केंद्र सरकार स्वच्छ भारत अभियान के तहत लोगों पर ख़र्च करती है, तक़रीबन उतना ही पैसा विज्ञापनों और ब्रांड एंबेसडरों पर ख़र्च हो जाता होगा। इसके अलावा राज्य सरकारें ख़र्च करती हैं, सो अलग। आज भी गाँवों से लेकर शहरों तक में खुले में शौच को जाते हैं। शहरों की अगर हम बात करें, तो वहाँ तो पहले भी वही लोग खुले में शौच को जाते थे, जो रेलवे की पटरियों के किनारे बसे हुए हैं या खुले आसमान के नीचे रहते हैं। आज भी उन्हीं में से काफ़ी लोग खुले में शौच को जाते हैं।

हालाँकि गाँवों में खुले में शौच जाने वालों की संख्या पहले से काफ़ी कम हुई है; लेकिन शून्य नहीं हुई है। अभी भी कई गाँव ऐसे हैं, जहाँ कई लोगों को स्वच्छ भारत अभियान की इस योजना का लाभ नहीं मिल सका है।

हालाँकि केंद्र की मोदी सरकार के स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) चरण-ढ्ढढ्ढ क्रियान्यवयन के दिशा-निर्देश 2020 में कहा गया है कि स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण), जिसे दुनिया का सबसे बड़ा व्यवहार परिवर्तन कार्यक्रम कहा गया है; के तहत ज़मीनी स्तर पर जन-आन्दोलन पैदा करके इस असम्भव से लगने वाले कार्य को पूरा किया गया। इसके परिणाम स्वरूप ग्रामीण स्वच्छता कवरेज जो सन् 2014 में 39 फ़ीसदी था, सन् 2019 में बढक़र 100 फ़ीसदी हो गया और 36 राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में 10.28 करोड़ से अधिक शौचालय बनाये गये। स्वच्छ भारत का उद्देश्य व्यक्ति, क्लस्टर और सामुदायिक शौचालयों के निर्माण के माध्यम से खुले में शौच की समस्या को कम करना या समाप्त करना है।

यहाँ बताना ज़रूरी है कि केंद्र की मोदी सरकार के पहले सन् 1999 से सन् 2012 तक केंद्र की सरकारों ने हिन्दुस्तान को साफ़-सुथरा बनाने के लिए निर्मल भारत अभियान चलाया था, जिसका मक़सद भी पूर्ण स्वच्छता अभियान था। लेकिन उस योजना के तहत भी हिन्दुस्तान कितना साफ़-सुथरा हो सका, आकलन करने की ज़रूरत है।

आगामी 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को मज़बूत बनाने के लिए अभी से अपने तीसरे कार्यकाल के वादे कर रहे हैं। उनका कहना है कि वह तीसरे कार्यकाल में देश के हर सपने को पूरा करेंगे। अब यह निर्णय जनता पर है कि वह प्रधानमंत्री मोदी के इस वादे को कितनी गम्भीरता से लेती है। 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)