क्या यह दोबारा नोटबंदी है?

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के 2,000 के नोट बंद करने के ऐलान ने देश भर में खलबली मचा दी है। हालाँकि 2,000 का नोट मध्यम वर्ग के पास न के बराबर ही होगा और निम्न वर्ग ने तो महीनों से इसकी शक्ल भी नहीं देखी होगी, बल्कि कितनों ने तो 2,000 का नोट हाथ में लेकर भी शायद न देखा हो। फिर भी देश के इस सबसे बड़े नोट के बंद होने की चर्चा क्यों? क्यों ज़्यादातर लोग इसे ग़लत फ़ैसला बता रहे हैं? क्या यह दोबारा की गयी नोटबंदी है?

दरअसल, महज़ 6.5 साल में 2,000 के नोट को वापस लेने का ऐलान सरकार की नीयत पर सवाल उठा रहा है। 8 नवंबर, 2016 को अचानक नोटबंदी का ऐलान करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को कई आश्वासन दिये थे, जिसमें प्रमुख थे- कालाधन ख़त्म होगा, आतंकवाद की कमर टूट जाएगी और ग़रीबों को राहत मिलेगी; लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बल्कि जिन लोगों ने अपनी तिजौरी में 1,000 रुपये के नोट जमा कर रखे थे, उन्होंने उसकी जगह 2,000 के नोट जमा कर लिये। नतीजा यह हुआ कि 2022 आते-आते 2,000 का नोट बाज़ार से ग़ायब हो गया। बाज़ार से ही नहीं, बैंकों और एटीएम से भी यह 2,000 नोट अचानक ग़ायब हो गया। तो क्या सरकार ने पहले ही मन बना लिया था कि 2,000 रुपये का नोट बंद कर देना है? क्या सरकार से मिलकर चलने वाले पूँजीपतियों के 2,000 रुपये के नोट पहले ही बदले जा चुके हैं? इन सवालों के जवाब तो नहीं हैं; लेकिन यह संदेह बरक़रार है कि दोबारा नोटबंदी जैसा यह ऐलान कहीं-न-कहीं किसी गड़बड़ी की ओर इशारा कर रहा है।

कुछ लोग तो यहाँ तक दावा कर रहे हैं कि ये नोटबंदी में हुए घोटाले और नोटबंदी की नाकामी को छिपाने का एक तरीक़ा है, जिसे इस बार प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ऊपर न लेकर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के सिर पर थोप दिया है, ताकि लोग उन पर उँगली न उठा सकें। लेकिन उँगलियाँ प्रधानमंत्री पर ही उठ रही हैं।

अर्थशास्त्रियों का सवाल है कि आख़िर 2,000 के नोट में क्या कमी है? अगर कोई कमी है, तो सरकार को पहले बताना चाहिए, इस तरह अचानक ऐलान का क्या मतलब है? बिना वजह बताये नोटबंद कर देना सवालिया निशान खड़े करता है। तो वहीं कुछ अर्थ शास्त्री यह तर्क दे रहे हैं कि 2,000 के नोट लोगों ने छिपा लिये थे, इसलिए उनकी वापसी एक अच्छा क़दम है। दूसरा फ़र्ज़ी नोटों की जानकारियों के चलते इसे बंद किया गया, ताकि फ़र्ज़ी नोट चलन से बाहर हो सकें। हालाँकि इन दोनों ही तर्कों में कोई दम नहीं दिखता, क्योंकि अगर 2,000 के नोटों को लोगों ने अपनी-अपनी तिजौरियों में भर लिया था, तो क्या वो 500 रुपये के नोट से तिजौरियाँ नहीं भरेंगे। अगर लोगों की तिजौरी से बाहर 2,000 रुपये के नोट निकालने थे, तो एक सीमा तय करनी चाहिए कि इससे ज़्यादा नोट नहीं बदले जाएँगे। हालाँकि इसका भी कोई फ़ायदा तो नहीं होना था, क्योंकि 2016 में जब 500 और 1,000 रुपये के नोट बंद हुए थे, तो भी पूँजीपतियों के अरबों-ख़रबों रुपये बिना उनके लाइन में लगे बदल दिये गये थे। दूसरा तर्क फ़र्ज़ी नोटों का भी कुछ हज़म नहीं होता, क्योंकि अगर सरकार को फ़र्ज़ी नोटों पर रोक लगानी होती, तो वो हिन्दुस्तान में सभी नोटों को और बेहतरीन काग़ज़ पर मज़बूत और टिफिकल टाइप के नोट छापती; लेकिन सरकार ने तो पुराने नोटों से भी हल्के नोट इस बार छापे, जिनका काग़ज़ भी बहुत हल्का है।

मेरा मानना है कि बड़े लोगों के लिए नोट बदलना कोई मुश्किल काम नहीं है, क्योंकि अभी तो रिजर्व बैंक ने 2,000 रुपये एक दिन में बदलने को कहा भी है; लेकिन जब एक व्यक्ति के महज़ 4,000 रुपये ही बदले जा रहे थे, तब वही लोग लाइन में लगे, जो मध्यम वर्गीय या ग़रीब थे; और उन्हीं में सैकड़ों लोगों की मौत भी हुई। देख लेना, अब भी अमीरों को न तो बैंक जाने की ज़रूरत पड़ेगी और न ही उन्हें 2,000 रुपये के नोट बदलने के लिए किसी लिमिट का पालन करना पड़ेगा; लेकिन फिर मरेगा कौन? मुसीबत किसके गले पड़ेगी?

दरअसल मुसीबत उन लोगों के गले पड़ेगी, जिन्होंने नवंबर, 2016 के बाद अपनी ज़मीन बेची, अपना घर बेचा, अपना वाहन बेचा या अपनी कोई अन्य अचल सम्पत्ति बेची और बदले में कालेधन की तरह 2,000 के नोट ले लिए और उन्हें घर में रख लिया। या फिर वो व्यापारी वर्ग दिक़्क़त में फँसेगा, जो हर रोज़ या दूसरे-तीसरे दिन अपने गल्ले से एक या दो नोट 2,000 के निकालकर घर में रखता गया। वो फँसेगा, जिसने अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए या उनकी शादी के लिए घरों में 2,000 रुपये के कुछ नोट जोडक़र रखे थे। क्योंकि एक बार फिर इन लोगों को बैंकों में दौडऩा पड़ रहा है। आप सोच रहे होंगे कि इसमें दिक़्क़त की क्या बात है? रिजर्व बैंक ने कह दिया कि 20,000 रुपये रोज़ के हिसाब से कोई भी पैसे बदल सकता है। लेकिन इसमें भी दिक़्क़त है। क्योंकि आपको याद होगा कि केंद्र की मोदी सरकार पहले ही यह नियम बना चुकी है कि कोई भी नक़द लेन-देन 2,00,000 रुपये से ज़्यादा का नहीं हो सकेगा। इसका मतलब यह हुआ कि अगर किसी के पास 2,00,000 रुपये से ज़्यादा कैश है, तो वह ऐसे फँसेगा कि उसके पास इतना कैश कहाँ से आया? अगर किसी के पास 2,00,000 या उससे ज़्यादा है, तो फिर उसके स्रोत बताने होंगे।

बहरहाल फ़िलहाल जो लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कोसने में लगे हैं, वो यह भी जानते होंगे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रिजर्व बैंक की 2,000 के नोट की बंदी की घोषणा से ऐन पहले विदेश यात्रा पर निकल गये और वो भी जापान। आप सोच रहे होंगे कि जापान गये, तो इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है? फ़र्क़ तो नहीं पड़ता; लेकिन आपको याद होगा कि जब उन्होंने 2016 में नोटबंदी का ऐलान किया था, तब भी वह जापान ही गये थे। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने प्रधानमंत्री मोदी को इसी पर घेरा है।

बहरहाल रिजर्व बैंक ने ‘क्लीन नोट पॉलिसी’ के तहत 2,000 रुपये के नोट को बंद करने का फ़ैसला लिया है। और रिजर्व बैंक ने आरबीआई एक्ट-1934 की धारा-24(1) के तहत इस नोट को 2016 में छापना शुरू किया था, जिसमें शुरू में चिप होने तक के कथित दावे किये गये थे। कुछ ही वर्षों में यह नोट बाज़ार में बैंक में और लोगों के पास से दिखना बंद हो गया।

कुछ लोग निश्चिंत हैं कि उन्हें क्या फ़र्क़ पड़ता है, उनके पास तो 2,000 रुपये का एक भी नोट नहीं है। लेकिन वो लोग शायद भूल रहे हैं कि तब भी उन्हें नुक़सान है। क्योंकि जब देश में कोई नोट छपता है, तो उसकी छपाई में एक निश्चित लागत आती है। सरकार ने जब नये नोट छापे, तो इसके बदले में करोड़ों रुपये की लागत नये नोटों को छापने में लगी, और अब जब 2,000 का नोट बंद हो रहा है, तो ज़ाहिर सी बात है कि वह लागत वसूल होने से पहले ही नुक़सान में चली गयी। क्योंकि यह लागत निकालने के लिए इस 2,000 रुपये के नोट को बाज़ार में कम-से-कम 10-15 साल रहना चाहिए था। और अब ज़ाहिर है कि रिजर्व बैंक 2,000 के इस नोट के बदले 500 रुपये के नोट देने के लिए 500 रुपये के नोटों की छपाई बढ़ाएगा। कहने का मतलब यह है कि जितनी क़ीमत के 2,000 रुपये के नोट बैंकों में वापस आएँगे, उतनी क़ीमत के 500, 200, 100 तक के नोट तो रिजर्व बैंक को छापने ही होंगे, वरना नोटों की पूर्ति कैसे होगी? एक शंका यह भी उठ रही है कि कहीं ऐसा तो नहीं रिजर्व बैंक ने पुराने नोटों की क़ीमत से ज़्यादा 2,000 के नोट छाप दिये? और उसे जब इसका एहसास हुआ, तो उसने इन 2,000 के नोटों को वापस लेने का इरादा बना लिया।

साल 2021 में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने लोकसभा में कहा था कि पिछले दो साल से यानी 2019 से 2,000 रुपये के एक भी नोट नहीं छपे हैं। ऐसे में रिजर्व बैंक द्वारा ज़्यादा नोट छापने का संदेह भी बेबुनियाद ही लगता है। लेकिन इससे यह ज़रूर लगता है कि सरकार ने 2,000 रुपये का नोट बंद करने का मन काफ़ी पहले ही शायद बना लिया था। कुछ लोगों ने इस प्रकार का संदेह काफ़ी पहले ज़ाहिर किया था। कोई छ:-सात महीने पहले 2,000 रुपये के नोट के बाज़ार से अचानक ग़ायब होने की ख़बरें भी ख़ूब छपी हुई थीं; लेकिन तब किसी ने इस ओर $गौर नहीं किया। क्या बैंकों द्वारा 2,000 के नोट न के बराबर देना या बिलकुल न देना, एटीएम और बाज़ार तक से 2,000 के ये नये नोट ग़ायब होना और बीच-बीच में 2,000 रुपये के नोट को लेकर ख़बरें आना इस बात का संकेत थे कि आने वाले समय में इन 2,000 रुपये के नोटों को भी बंद कर दिया जाएगा?

आरबीआई अधिनियम-1934 की धारा-22 के मुताबिक, हिन्दुस्तान में नोट जारी करने का एकमात्र अधिकार रिजर्व बैंक के पास होगा, केंद्र सरकार के पास नहीं। वह एक अवधि के लिए केंद्र सरकार के मुद्रा नोट जारी कर सकता है और नोटों पर नियंत्रण भी कर सकता है। आरबीआई अधिनियम-1934 की धारा-24 रिजर्व बैंक को यह शक्ति प्रदान करता है कि वह दो रुपये से लेकर 10,000 रुपये तक की क़ीमत के नोट छाप सकता है। लेकिन इसमें कहीं 2,000 रुपये के नोट को छापने का उल्लेख नहीं है। हालाँकि केंद्र सरकार केंद्रीय बोर्ड की सिफ़ारिश पर इसे निर्दिष्ट कर सकती है।

यहाँ सवाल यह है कि अगर इस आधार पर 2,000 रुपये के नोटों को बंद किया जा रहा है, तो फिर पहले इन्हें छापा ही क्यों गया? और अगर इस नोट को छापने की इतनी ही आवश्यकता थी, तो फिर उस क़ानून में इसे छापने के लिए प्रस्ताव पारित क्यों नहीं किया गया? कुछ जानकार कह रहे हैं कि विपक्ष की कमर तोडऩे के लिए एक बार फिर 2,000 के नोट को बंद किया गया है, ताकि 2024 के लोकसभा चुनाव और उससे पहले राज्यों के विधानसभा चुनावों में विपक्ष पैसे से मज़बूत न रह सके। इसके पीछे इस बात को कहने वालों का तर्क है कि भाजपा, ख़ासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा के अन्य शीर्ष नेतृत्व वाले नेता कर्नाटक हार से बौखलाये हुए हैं।

हालाँकि कुछ लोग इस बात से इत्तिफ़ाक़ नहीं रखते। उनका कहना है कि दाल में कुछ काला तो है; लेकिन 2,000 के नोट को बंद कर देने से विपक्ष की कमर नहीं टूटेगी, बल्कि मोदी सरकार के ख़िलाफ़ और माहौल बनेगा। बहरहाल रिजर्व बैंक ने कहा है कि 01 अक्टूबर, 2023 से 2,000 रुपये का नोट चलन से बाहर हो जाएगा। इसलिए रिजर्व बैंक ने लोगों से कहा है कि वे अपने पास जमा 2,000 के नोटों को 30 सितंबर, 2023 तक बदल लें, तब तक यह नोट देश में वैध मुद्रा माना जाएगा। लेकिन यहाँ भी दिक़्क़त यह आ गयी है कि अब व्यापारी वर्ग 2,000 रुपये का नोट लेने से कतरा रहा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।)