क्या तमाशा बन जायेंगे जम्मू कश्मीर के चुनाव !

दलों का बॉयकाट, तो क्या सिर्फ भाजपा ही रहेगी मैदान में ?

जम्मू कश्मीर में जिन पंचायत, शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव इसी साल नवंबर और दिसंबर के बीच आठ चरणों में करवाने की घोषणा सरकार ने की है, वे संकट में पड़ते दिख रहे हैं। अलगाववादियों और कुछ मुख्य धारा की पार्टियों के इन चुनावों के बॉयकाट के ऐलान के बाद अब सवाल उठने लगा है कि क्या आखिर में सिर्फ भाजपा ही चुनाव मैदान में रह जाएगी ?
घाटी में आम तौर पर यह माना जाता है कि हुर्रियत की चुनावों के बहिष्कार की घोषणा के बाद जनता चुनावों में वोट डालने से कतराती है। उसे हिंसा का डर रहता है। अब तो मुख्य धारा की नैशनल कांफ्रेंस (एनसी) ने भी चुनावों के बहिष्कार का ऐलान कर दिया है। ऊपर से जम्मू कश्मीर में पीडीपी-भाजपा सरकार टूटने के बाद आतंकवादी घटनाओं में पिछले दो महीने में बहुत ज्यादा बढ़ौतरी हुई है। ऐसे में नए राज्यपाल सत्यपाल मलिक के सामने यह बड़ी चुनौती है कि इन चुनावों को कैसे सबकी भागीदारी से सफलता और शांति से करवाया जाये।
पीडीपी की सोमवार को चुनाव के फैसले को लेकर बैठक है। अभी कहना मुश्किल है कि पीडीपी का क्या फैसला होगा। गठबंधन से अलग होने के बाद पीडीपी पर कुछ हलकों में यह आरोप लगा था कि बीजीपी और पीडीपी ने ऐसा मिलीभगत से किया है ताकि चुनाव तक अपने वोट बैंक की नाराजगी दूर कर अपनी हालत सुधारी जा सके। यह अलग बात है कि दो महीने में कश्मीर में हालात ज्यादा खराब हो गए हैं।
नैशनल कांफ्रेंस अपनी कोर ग्रुप की बैठक के बाद पहले ही इन चुनावों के बॉयकाट की घोषणा कर चुकी है। पार्टी के नेता फारूक अब्दुल्लाह ३५-ए को लेकर भाजपा-केंद्र के रुख का भी विरोध कर चुकी है। उसने विधानसभा के चुनाव के बॉयकाट तक का ऐलान किया है। ऐसे में चुनाव को लेकर सवाल उठने लाजिमी हैं।
शनिवार को हुर्रियत ने श्रीनगर में पंचायत और स्थानीय शहरी निकाय के चुनावों के बॉयकाट की काल के साथ बड़ा जुलूस निकाला। सूबे में राज्यपाल का शासन है लेकिन कहीं भी हुर्रियत की इस बॉयकाट काल वाले जुलूस को रोकने की कोशिश प्रशासन ने नहीं की। इस पर राजनीतिक दल हैरानी जाता रहे हैं। उनमें से कुछ को लग रहा है नई दिल्ली चुनाव के बॉयकाट की काल को ताकत देकर चाल चल रही है। इन नेताओं को लगता है कि भाजपा की चाल है कि वह खुद आखिर में चुनाव में रहकर अपनी जीत का ढिंढोरा देश में पीटेगी।
कांग्रेस ने अभी चुनाव को लेकर कोइ फैसला नहीं किया है। कश्मीर के अलावा जम्मू में उसका बड़ा वोट बैंक रहा है जिसपर  पिछले चुनाव में भाजपा ने कब्ज़ा कर लिया था। इस बार भाजपा की हालत पतली दिख रही है। यदि कांग्रेस भी चुनाव में नहीं उतरती है तो भाजपा का रास्ता खुद-व-खुद साफ़ हो  जाएगा। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रविंद्र शर्मा ने कहा कि कांग्रेस हमेशा लोक तांत्रिक प्रक्रिया के सक्रिय रहने की पक्षधर रही है। ”भाजपा को न तो लोक तंत्र की चिंता है न जनता की। वो तो बस चुनाव जीतना चाहती है चाहे लोगों और लोक तंत्र को इसकी कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़े।”
मुख्य धारा की पार्टियां आरोप लगा रही हैं कि गवर्नर का ”इस्तेमाल” कर नई दिल्ली (भाजपा) सूबे में अपनी मनमर्जी करना चाहती है। सरकार पहले ही ८ नवम्बर से लेकर ४ दिसंबर के बीच आठ चरणों में पंचयता और शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव करवाने की घोषणा कर चुकी है। गौरतलब है कि २०११ में यह चुनाव १६ चरणों में हुए थे।
लोगों को लगता है कि भाजपा कोशिश कर रही है कि मुख्य दलों के बाहर रहने और कम मतदाम वाले चुनाव में वह अपनी जीत दिखा सके ताकि देश में इसका प्रचार कर अपने पक्ष में माहौल किया जा सके। पिछले चुनाव के वक्त सूबे में सूबे में ४०९८ पंचायतें थीं जबकि डीलिमिटेशन के बाद इनमें २८० नई पंचायतें जुड़ जाने से इनकी कुल संख्या अब ४३७८ हो गयी है। इसी तरह ४००० नए पंच पद जुड़ने से इनकी तादाद भी बढ़कर ३३,४०२ हो गयी है।
कुछ रोज पहले ही लद्दाख की ऑटोनोमस हिल डेवलपमेंट कौंसिल (एलएएचडीसी) के चुनाव में भी भाजपा और तीन साल तक उसकी साथी रही पीडीपी को तगड़ा झटका लगा था। इन चुनावों में एनसी और कांग्रेस को बड़ी जीत मिली है। चार साल पहले ही लद्दाख से लोगों ने बड़ी उम्मीद से भाजपा को अपनी संसद की सीट दी थी लेकिन अब उनका मोह भांग हो गया जो नतीजों से साफ़ जाहिर हो जाता है।
कुलमिलाकर जम्मू कश्मीर के पंचायत और शहरी स्थानीय निकाय चुनाव सवालों के घेरें में आ रहे हैं। यह सम्भावना बन रही है कि वर्तमान हालात में यह चुनाव हों ही नहीं जबकि भाजपा हर हालत में यह चुनाव करवाना चाहती है।