कोरोना के बलिदानी पत्रकार

प्रख्यात लेखक विलियम शेक्सपियर ने अपनी कृति हैमलेट में लिखा है- ‘जब दु:ख आते हैं, तो वे अकेले नहीं, बल्कि बहुतायात में आते हैं।’ यह बात पूरी तरह सही है। क्योंकि जब कुछ बुरा घटित होता है, तो उसके साथ काफ़ी कुछ और भी बुरा घटता है यानी एक बुरी घटना अपने साथ कई अन्य बुरी घटनाएँ लेकर आती है। महामारी कोरोना वायरस और उसके बाद के आर्थिक प्रभावों के परिणामस्वरूप हाल के दिनों में समाचार उद्योग ने नौकरियों में कटौती की है; कर्मचारियों को छुट्टी पर भेजा है या उनके वेतन कटौती की है। कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए सरकार द्वारा लगाये गये लॉकडाउन के कारण मीडिया क्षेत्र को मुख्य रूप से बड़ा झटका लगा है। संकट के कारण वित्तीय परेशानी और अन्य कारणों से बहुत छोटे-छोटे समाचार पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशकों को प्रकाशन बन्द करने के लिए मज़बूर होना पड़ा है।

रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने 78 कम्पनियों का एक विश्लेषण करके अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा है कि कोरोना वायरस की महामारी से उपजी आर्थिक मंदी के चलते चालू वित्तीय वर्ष में भारतीय मीडिया उद्योग के राजस्व को 16 फीसदी या करीब 25 हज़ार करोड़ रुपये से 1.3 लाख करोड़ रुपये तक घटा सकता है। इस महामारी में भी यही हुआ है। प्रेस एम्ब्लेम कैम्पेन की एक रिपोर्ट के अनुसार, 23 दिसंबर, 2020 तक कोविड-19 के कारण दुनिया भर में 571 पत्रकारों की मौत हो चुकी थी। इस समय तक सबसे प्रभावित देशों, पेरू में 93, भारत में 53, ब्राज़ील में 50, इक्वाडोर में 41, बांग्लादेश में 41, मेक्सिको में 41, इटली में 34, अमेरिका में 29, तुर्की में 16, पाकिस्तान में 13 और यूके में 12 पत्रकारों की मौत हुई है। रिपोर्ट से पता चलता है कि इस महामारी से भारत दुनिया भर में दूसरा सबसे ज़्यादा प्रभावित देश है।

यह इतना गम्भीर परिदृश्य है कि भारतीय प्रेस परिषद् (पीसीआई) ने केंद्र और राज्य सरकारों को कहा है कि उन पत्रकारों की स्वास्थ्य योद्धाओं की तरह पहचान की जाए, जिनकी जान कोविड-19 के कारण गयी है; ताकि उनके परिजनों को समान रूप से सहायता प्रदान करायी जा सके। केंद्र सरकार डॉक्टरों और अन्य अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं के परिजनों के लिए 50 लाख रुपये के मुआवज़े की घोषणा कर चुकी है, जो कोरोना वायरस से लड़ते हुए जान गँवा बैठे। पीसीआई ने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से हरियाणा सरकार द्वारा पहले से ही बनायी गयी एक योजना की तर्ज पर पत्रकारों के लिए समूह बीमा योजना तैयार करने को कहा है। विभिन्न पत्रकारों के निकायों ने भी प्रधानमंत्री से इन कोरोना-योद्धाओं के सम्मान के रूप में मीडिया हाउसों और पीडि़त परिवारों के लिए एक वित्तीय पैकेज की घोषणा करने के लिए कहा है।

इस खतरनाक वायरस के खिलाफ लड़ाई में मीडिया की भूमिका बहुत महत्तवपूर्ण रही है; क्योंकि इसके प्रसार और कीमती जीवन को बचाने के बारे में लोगों को जानकारी देने का दायित्व उसने बखूबी निभाया है। ऐसे में मीडिया हाउसों की कार्य क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ पत्रकारों की सुरक्षा महत्तवपूर्ण है। क्योंकि सभी जि़म्मेदार पत्रकारों ने अपनी जान की परवाह किये बिना जनता की सुरक्षा को आज भी प्राथमिकता पर रखा है। ऐसे कठिन समय में पत्रकारों ने किस तरह से अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया है यह पत्रकार गुरविंदर कौर की रिपोटिंग से स्पष्ट हो जाता है, जिन्होंने ‘तहलका’ के लिए किसान आंदोलन की ग्राउंड रिपोर्ट करते हुए जब राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का दौरा किया, तो वह मुफ़्त में वितरित की जाने वाली दवाओं को अपनी कार में ले गयीं, ताकि उन्हें ज़रूरतमंदों को वितरित किया जा सके।