कोरोना के खिलाफ व्हाट्स एप बना हथियार

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले में एक व्हाट्स एप ग्रुप जनता और प्रशासन के बीच पुल बन गया। सभी पंचायत प्रधानों से लेकर महिला और युवा मण्डल को इससे जोड़ा गया और यह बन गया कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई का एक बड़ा ज़रिया। ज़िले में ऐसे दुर्गम स्थान हैं, जहाँ पहुँचाने में ही हफ्तों लग जाते हैं। कोरोना वायरस जैसी महामारी के इस संकटकाल में इस प्रयोग ने बड़ी भूमिका निभायी। इसी बेहतरीन पहल पर प्रस्तुत है रिपोर्ट :-

संभवता कोरोना महामारी के खतरे को समझते हुए देश भर में यह पहला प्रयास था, जिसमें प्रशासन को महज़ एक व्हाट्स एप ग्रुप से घर बैठे जानकारी मिलनी शुरू हो गयी।

पहाड़ी सूबे हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले में इसकी शुरुआत भी तब हो गयी थी, जब अभी लॉकडाउन लगा भी नहीं था। इसका असर यह हुआ कि जल्द सूचना उपलब्ध होने से वायरस का संक्रमण फैलने से रोकने में ही मदद नहीं मिली, लॉकडाउन से पैदा होने वाली दिक्कतों से जनता को राहत पहुँचाने, जिसमें मास्क और राशन देना भी शामिल हैं; में इसने बड़ी भूमिका निभायी। हिमाचल के कांगड़ा ज़िले में इसकी शुरुआत की जानी मानी सामाजिक कार्यकर्ता सारिका कटोच ने। सारिका ने 21 मार्च को प्रशासनिक अधिकारियों से मिलकर यह ज़िम्मा उठाया और जल्दी ही बड़े स्तर पर ज़िले भर से पंचायत प्रधानों, महिला मण्डलों, युवा मण्डलों, स्वयं सहायता समूहों, एनजीओ और युवा क्लबों के प्रतिनिधियों के अलावा डीसी, एसपी, एसडीएम, चिकित्सा अधिकारियों को एक व्हाट्स एप ग्रुप ‘कांगड़ा अगेंस्ट कोविड-19’ से जोड़ दिया।

ग्रुप गठित होने के तीन दिन बाद ही लॉकडाउन लागू हो गया। ऐसे में यह व्हाट्स एप ग्रुप जमीनी स्तर से कोविड-19 से जुड़ी जानकारी जुटाने, ज़रूरतमंद लोगों को मास्क और खाने की चीज़ों की ज़रूरत बताने वाला बड़ा ज़रिया बन गया। यही नहीं, ये चीज़ें मिलने भी लगीं। यह इसलिए भी अहम था, क्योंकि कांगड़ा ज़िले में ही कोविड-19 के शुरू में सबसे ज़्यादा मामले आये और महामारी से पहली मौत भी वहीं हुई।

इस गो-एनजीओ एक्शन ग्रुप ‘कांगड़ा अगेंस्ट कोविड-19’ से जुड़े व्हाट्स एप ग्रुप के सदस्यों ने जानकारियाँ देने का सिलसिला शुरू कर दिया। बहुत बार ऐसा हुआ कि इसमें कई जानकारियाँ प्रशासनिक स्तर से भी पहले मिलने लगीं।

एड्स के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिनिधि रह चुकीं सारिका का कहना है कि यह प्रयास (व्हाट्स एप ग्रुप) प्रशासन और जनता के बीच पुल बन गया, खासकर लॉकडाउन शुरू होते ही; क्योंकि इसमें आवाजाही बन्द हो गयी थी।

‘तहलका’ से बातचीत में सारिका ने कहा कि हमें डीसी, एसपी और अन्य अधिकारियों से तो ज़बरदस्त सहयोग मिला ही है, पंचायतों, महिला और युवा मण्डलों से भी खूब सहयोग मिल रहा है। चूँकि वहाँ से मिलने वाली सूचना भरोसेमंद भी होती है, उस पर अमल करने में समय की भी बचत हुई। जब हमने इसे शुरू किया, तब सरकारी स्तर पर हैंड सेनेटाइजर और मास्क की बहुत कमी थी। महिला मण्डलों ने मास्क बनाने शुरू किये और फिर घर-घर पहुँचाया गया।

ज़िले में अभाव का सामना कर रहे प्रवासी मज़दूरों को खाना उपलब्ध करवाने में भी एक्शन ग्रुप ने बड़ी भूमिका निभायी है। एक चेन बनायी गयी है, ताकि ज़रूरत की चीज़ें सही व्यक्ति को मिल सकें।

सारिका कहती हैं कि बहुत से लोग, खासकर प्रवासी मज़दूर भोजन के मामले में भी संकट की हालत में थे। ग्रुप के सदस्यों ने ज़मीनी स्तर से इसकी जानकारी साझा की और इन मज़दूरों और अन्य ज़रूरतमंदों की मदद की गयी।

सारिका बताती हैं कि खाद्य सामग्री सम्बन्धित उप मण्डल के एसडीएम के ज़रिये की वितरित की जा रही है, ताकि वह ज़रूरतमंदों तक पहुँच सके। ग्रुप के वालंटियर्स के अलावा अन्य तमाम लोगों ने अब तक क्विंटलों खाद्य सामग्री ग्रुप के पास उपलब्ध करवायी है।

ग्रुप से जुड़े सभी महिला मण्डलों ने कपड़ों से मास्क बनाने का काम किया है। यह मास्क बड़ा भंगाल सरीखे अति दुर्गम इलाकों में भी लोगों को पहुँचाये गये हैं, जहाँ जागरूकता का बहुत अभाव रहा है। ग्रुप के कार्यकर्ताओं ने वहाँ भी लोगों को कोविड-19 महामारी के खतरे से अवगत करवाया है। बड़ा भंगाल में बड़ा इलाका ऐसा है, जहाँ साधनों की ज़बरदस्त कमी है और अखबार और टीवी जैसी सुविधाएँ वहाँ नहीं हैं। कई इलाके तो ऐसे हैं, जहाँ पहुँचने में ही हफ्तों लग जाते हैं।

कांगड़ा के डीसी राकेश कुमार प्रजापति और एसपी विमुक्त रंजन के नेतृत्व में सभी सरकारी टीमों ने ज़िले में कोविड-19 को लेकर जागरूकता बनाने के लिए बहुत तेज़ी से काम किया, जिसका नतीजा बहुत सकारात्मक रहा है। दोनों ही स्वीकार करते हैं कि ग्रुप बनने से प्रशासन को बहुत मदद मिली। बड़ी संख्या में संदेश आने से मुश्किल भी आयी, लेकिन तमाम ज़रूरतमंदों की मदद भी की गयी। एक ही प्लेटफॉर्म पर पूरे ज़िले की जानकारी उपलब्ध होने से महामारी से निपटने में बड़ी मदद मिली। ग्रुप के कार्यकर्ता भी बहुत सक्रिय हैं और तमाम मुश्किलों के बावजूद ज़मीनी स्तर पर काम कर रहे हैं। दूर-दराज़ के इलाकों में भी उन्होंने आपसी दूरी के महत्त्व के प्रति लोगों को समझाया है, जिसका लोग पालन कर रहे हैं। इंसानों के साथ-साथ ग्रुप ने पालतू पशुओं का भी ध्यान रखा है। चंगर जैसे पिछड़े इलाकों में पशुओं के चारे का इंतज़ाम किया गया है। जमानाबाद इलाके के एक पंचायत प्रधान ने कहा कि कांगड़ा ज़िले में पालतू पशु एक तरह से जीवन रेखा हैं। खेतों से लेकर दूध तक उनका बड़ा रोल है। उन्होंने कहा कि लिहाज़ा ऐसे संकट काल में ग्रुप के वालंटियर्स की तरफ से चारे का इंतज़ाम बहुत बड़ी सहायता है।

ग्रुप के सदस्यों ने स्कूलों को खाली करके उन्हें क्वारंटीन वार्ड बनाने में बड़ा रोल अदा किया। जो लोग बाहर से आये, उनके खाने का इंतज़ाम भी ग्रुप सदस्यों ने घर से किया। ये लोग नियमों के मुताबिक 14 दिन के बाद ही घर जा रहे हैं।

कांगड़ा के मुख्य चिकित्सा अधिकारी गुरदर्शन गुप्ता ने कहा कि ग्रुप के ज़रिये सदस्यों को यह जनता को समझाने को कहा गया कि कोरोना एक महामारी है, लिहाज़ा इससे पीडि़त होने वाले व्यक्ति से उचित व्यवहार किया जाए।

‘तहलका’ से बातचीत में गुरदर्शन गुप्ता ने कहा कि सबको समझना होगा कि कोविड-19 भी अन्य बीमारियों की भाँति एक संक्रमण है और कोई भी इसका शिकार हो सकता है। यह आवश्यक है कि हम सब समाज का नज़रिया इसके बारे में बदलें। रोगियों और उनके परिवार के  साथ कोई भेदभाव न हो, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए। यह एक बीमारी है, कोई सामाजिक कलंक नहीं।

ग्रुप ने खाद्य सामग्री, मास्क पर ही फोकस नहीं किया सारिका ने प्रशासन के दिशा-निर्देशों और नियमों का पालन करते हुए सदस्यों की मदद से स्थानीय इकोनॉमी पर भी काम किया। सारिका के मुताबिक, लोगों को घर में सब्ज़ी उगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। इससे लोकल सप्लाई चेन को बरकरार रखने में बहुत मदद मिली है। किचन गार्डनिंग से लेकर खेतों में सब्ज़ी का काम जब शुरू हुआ, तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक महीने के बाद यही सप्लाई चेन बनाये रखने में रामबाण साबित होगी।

ग्रुप वेबिनार का भी लगातार आयोजन कर रहा है, जिससे देश की नामी हस्तियों से लाइव चर्चा करवायी जा रही है। इसका भी बहुत सकारात्मक असर हुआ है। इसके अलावा प्रशासन की तरफ से समय-समय पर खाद्य पदार्थों की जो रेट लिस्ट जारी की जाती है, उससे ग्रुप में साझा किया जा रहा है, ताकि सम्बन्धित पंचायत प्रधान यह सुनिश्चित कर सकें कि कोई दुकानदार ज़्यादा मूल्य न वसूल सके।

अफवाहों को फैलने से रोका

सारिका बताती हैं कि दिल्ली में जब तबलीगी वाला मामला हुआ, तो अफवाहों का दौर शुरू हो गया। हमने तुरन्त हरकत में आकर सदस्यों को सक्रिय किया। सारिका ने बताया कि हमें चढियार से कोई सूचना मिली, जिस पर सदस्यों ने तुरन्त छानबीन कर उसे अफवाह पाया और लोगों को इसके बारे में बताया। हमारी पूरी कोशिश रही कि आसामजिक तत्त्व तबलीग के नाम पर समुदाय विशेष के भाइयों को परेशान न कर सकें। हमने एसपी से लेकर सभी लोकल पुलिस अधिकारियों से इस मामले में लगातार सम्पर्क साधकर रखा। चम्बा के सिंहुता में भी ऐसा ही हुआ, जिसे तुरन्त पुलिस की मदद से रोका गया। वैसे कुल मिलाकर ज़िले में सामजिक सद्भाव बना रहा, जिसमें पुलिस/प्रशासन के साथ-साथ हमारे सदस्यों का बड़ा सहयोग रहा।

जनसेवा भी एक आदत है : सारिका

36 वर्षीय सारिका कटोच एक जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता हैं। कॉमनवेल्थ यूथ प्रोग्राम के रीजनल यूथ कॉक्स में सारिका भारतीय प्रतिनिधि रह चुकी हैं। साथ ही राष्ट्रमण्डल युवा कार्यक्रम में वह एशिया क्षेत्र के लिए उपाध्यक्ष (डिप्टी चेयर) भी रही हैं।

इस दौरान उनके ग्रामीण युवाओं और महिलाओं में एचआईवी और एड्स के प्रति जागरूकता को बहुत सराहना मिली है। साल 2008 में सारिका को दक्षिण अफ्रीकी देश घाना में राष्ट्रपति चुनाव के लिए एक ‘चुनाव पर्यवेक्षक’ के रूप में नामित किया गया था। इसके अलावा उन्हें बीबीसी वल्र्ड सर्विस ट्रस्ट उनके काम के लिए देश के ‘यूथ स्टार’ पुरस्कार से सम्मानित कर चुका है। उन्होंने 2006 में चीन के एक आयोजन में युवा प्रतिनिधि के रूप में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया था। सारिका हिमाचल प्रदेश चिल्ड्रन डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन की चेयरपर्सन भी हैं। सारिका कई बड़े सामाजिक आयोजनों का हिस्सा रह चुकी हैं।

वे सर्वश्रष्ठ युवा पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ कैडेट पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ सांस्कृतिक कार्यकर्ता सहित राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी हैं। ग्रामीण विकास में पोस्ट ग्रेजुएट सारिका कांगड़ा के छोटे से गाँव से निकलकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में सफल रही हैं। अपने सामजिक कार्यों को लेकर सारिका ने ‘तहलका’ से कहा- ‘मेरा मानना है कि यदि आप खुद को प्रेरित करने में सक्षम हैं, तो आप कुछ भी बदल सकते हैं।

जनसेवा एक आदत की तरह है।’ राष्ट्रमण्डल की 60वीं वर्षगाँठ पर एक युवा कार्यकर्ता के रूप में 9 मार्च, 2009 को वह विशेष रूप से लंदन के मार्लबोरो हाउस स्थित राष्ट्रमण्डल के मुख्यालय में आमंत्रित किये गये विशिष्ट अतिथियों में से एक थीं और वहाँ उन्हें महारानी एलिजाबेथ द्वितीय (राष्ट्रमण्डल की प्रमुख) से भी मिलने का अवसर मिला था। उनके पति अरविंद पंवर भी सामजिक कार्यकर्ता हैं। छोटी आयु से ही सामाजिक कार्यों में जुट गयीं सारिका के पिता सेना में थे, जबकि माँ गृहिणी।

कोरोना को लेकर चलाये अभियान को लेकर सारिका कहती हैं कि हिमाचल में बहुत दूर-दराज़ के इलाके हैं। कांगड़ा में भी बड़े भंगाल जैसे दुर्गम क्षेत्र हैं, जहाँ पहुँचना ही बहुत मशक्कत का काम है। सारिका ने बताया कि हमने जब इस ग्रुप की शुरुआत की, तब लॉकडाउन नहीं लगा था। कांगड़ा ज़िला में कोविड-19 के मामले सामने आने लगे थे। लिहाज़ा हमें लोगों की चिन्ता हुई और यह ग्रुप बनाने का फैसला किया, जिसके नतीजे बहुत ही सकारात्मक रहे।

हम लोगों तक उस समय हमारे महिला मण्डलों के बनाये फेस मास्क पहुँचाने में सफल रहे, जब अभी सरकारी स्तर पर इनकी उपलब्धता न के बराबर थी। इससे वायरस को रोकने में मदद मिली।

जब लॉकडाउन लगा, तो हमें गरीबों/प्रवासियों की रोटी की चिन्ता हुई। तब हमने अपने सदस्यों के ज़रिये ज़रूरत समझी और इसका प्रबन्ध किया, जिसमें हमें सरकारी अधिकारियों से लेकर तमाम संगठनों/अन्य का पूरा सहयोग मिला। यह एक ऐसी चेन बन गयी, जिसमें सूचना की उपलब्धता भी थी और सहयोग का एक बड़ा नेटवर्क भी।

कश्मीरी मज़दूरों की मदद

इस ग्रुप ने कांगड़ा ज़िले में कटान का काम करने वाले करीब 2,900 कश्मीरी मुस्लिम मज़दूरों के लिए न केवल क्वारंटीन करने का इंतज़ाम किया, बल्कि उनके प्रारम्भिक टेस्ट में भी मदद की; ताकि कोई संक्रमित न हो। ये मज़दूर बड़ी संख्या में यहाँ आते हैं। इनमें से ज़्यादातर कटान (चरान) का काम करते हैं। कुछ बस अड्डों पर सामान ढोने का भी काम करते हैं। जब लॉकडाउन लागू हुआ, तो इन लोगों को बाहर जाने का अवसर नहीं मिला। लिहाज़ा इनकी दिक्कत को देखते हुए ग्रुप के ज़रिये ज़िले भर में उनका इंतज़ाम किया गया। उन्हें मास्क से लेकर खाने तक का सामान अब तक उपलब्ध करवाया जा रहा है।