महाराष्ट्र के पुणे जिले में दलितों और मराठा संगठन के लोगों के बीच सोमवार को हुई झड़प ने बड़ी हिंसा का रूप धारण कर लिया है। राज्य के कई कस्बों और शहरों में आंदोलनकारियों ने कई बसों को नुकसान पहुंचाया और सड़क और रेल यातायात में बाधा पहुंचाई। कई जगह आगजनी की घटना भी देखने को मिली।
याद रहे पुणे में भीम-कोरेगांव युद्ध की 200 वीं वर्षगांठ समारोह के दौरान दलित समूहों और दाएं विंग हिंदू संगठनों के समर्थकों के बीच कहा सुनी में कल एक आदमी की मृत्यु हो गयी थी और कई लोग घायल हो गए थे। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हादसे की न्यायिक जांच का आदेश दिया और लोगों से शांति बनाये रखने की अपील की।
फडनवीस ने बताया कि मृतक के परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा और हादसे की सीआईडी की जांच की जाएगी। उन्होंने हिंसा के पीछे एक साजिश की आशंका जताई।
डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के पोते और एक्टिविस्ट प्रकाश आंबेडकर सहित आठ संगठनों ने बुधवार को महाराष्ट्र बंद का आह्वान किया है। प्रकाश आंबेडकर ने कहा कि फडणवीस ने न्यायिक जांच के जो आदेश दिए गए हैं वो उन्हें मंजूर नहीं हैं।
पुलिस के अनुसार 100 से अधिक प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले लिया गया है। 160 से अधिक बसें क्षतिग्रस्त हुईं।
हिंसक घटनाओं को देखते हुए औरंगाबाद में धारा-144 लागू कर दी गई है। डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय की सभी परीक्षाएं रद्द कर दी गई हैं। नासिक में दलित संगठनों ने सड़कें जाम कीं और मुंबई में रेल रोको आंदोलन किया।
औरंगाबाद और अहमदनगर के लिए बस सेवा निरस्त कर दी गई जबकि कई लोकल ट्रेनों की सर्विस भी प्रभावित हुई। वैसे पुलिस ने इस हंगामें से निपटने की पूरी चाक चौबंद व्यवस्था की है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भीम-कोरेगांव शौर्य समारोह को आरएसएस-बीजेपी के “फासीवादी दृष्टिकोण” के विरोध के एक “शक्तिशाली प्रतीक” माना।
उन्होंने ट्वीट के जरिए कहा कि भारत के लिए आरएसएस और भाजपा के फासीवादी सोच है और वो भारतीय समाज में दलितों को उठने नहीं देना चाहते हैं। उन्होंने ऊना मामला, रोहित वेमुला और भीम कोरेगांव को याद किया और उनके प्रतिरोध को दलितों की आवाज बताया।
200 साल पहले 1818 में पेशवा को अंग्रेजों ने दलितों के साथ मिलकर हराया था। 1 जनवरी को भीमा कोरेगांव युद्ध के 200 साल पूरे होने पर लाखों की संख्या में दलित शौर्य दिवस मनाने इकट्ठा हुए थे। माना जाता है कि महार समुदाय से लोग – जिन्हें तब अस्पृश्य माना जाता था – ईस्ट इंडिया कंपनी की सेनाओं का हिस्सा थे।