‘कृपया हमारे भरोसे ही न बैठे रहें’

चिकित्सा विज्ञान में नित नयी खोजों की चर्चा मीडिया में भी डटकर होती है. जब से कॉरपोरेट अस्पतालों ने देश के सुदूर कस्बों तक कैंपों, एजेंटों तथा ‘एग्रेसिव मार्केटिंग’ के जरिए अपनी उपस्थिति दर्ज की है, तबसे बहुतों को यह भ्रम हो गया है कि अब चिकित्सा विज्ञान के पास हर बीमारी का इलाज आ गया है और उसके हाथ अमृतघट लग गया है. लोग सोचते हैं कि वे दिन हवा हुए जब मौत के सामने अमीर तथा गरीब बराबर हुआ करते थे – अब वे सुनहरे दिन आ गए हैं जब चिकित्सा विज्ञान के ‘महामृत्युंजय जाप के विशेषज्ञ’ पुजारियों को पैसा चढ़ाकर अमृत प्रसाद खरीदा जा सकता है. चिकित्सा विज्ञान का क्षेत्र एंजियोप्लास्टी, बाइपास सर्जरी, गामा नाइफ, अंग प्रत्यारोपण, बोनमैरो ट्रांसप्लांटेशन, इम्यूनोग्लोबिन्स ऑटोइम्यूनिटी की दवाइयां, स्टेम सेल थिरेपी, जीन थिरेपी से लेकर नित नयी, और-और महंगी एंटीबायटिक्स की ऐसी चकाचौंध में लिपटा है कि सामान्य जन की आंखें चौंधिया गई हैं. वह सारे परिदृश्य पर मात्र इस कारण भरोसा कर रहा है कि इतनी रोशनी में कुछ भी छिपा थोड़े ही है… 

पर याद रहे कि चकाचौंध का भी अपना अंधेरा होता है और ज्यादा रोशनी भी अंधा बना सकती है. यह जान लें कि इतनी खोजों के बाद भी चिकित्सा की स्थिति आइंस्टीन की भांति ही है जो मानते थे कि वे सागर के अन्वेषण में निकले तो हैं पर अभी सागर तट की रेत की सीपियों-शंखों को ही समझने में लगे हैं. मानव शरीर को जानने का किस्सा अभी अंधों द्वारा हाथी को टटोलने के किस्से की तरह न भी चल रहा हो, पर है उसके आसपास का ही. हम इस भ्रम में न पड़ें कि अब हर चीज का इलाज डॉक्टरों के पास है. इसी भ्रम के कारण हम अस्सी-नब्बे वर्ष के बूढ़े की मौत पर भी अस्पताल में हंगामा मचा देते हैं, एंजियोप्लास्टी के बाद भी हार्ट-अटैक हो जाने पर डॉक्टरों को गालियां देते हैं तथा यह संवाद बोलते रहते हैं कि डाक्टर साहब, आप पैसे की चिंता मत करो, बस ठीक कर दो.

चिकित्सा विज्ञान के गणित में दो जमा दो चार से लेकर जीरो तक कुछ भी हो सकता है.

कुछ बातें याद रखें. ज्यादातर बीमारियों में जो इलाज उपलब्ध हैं वे क्योर या जड़ से बीमारी हटाने वाले नहीं हैं बल्कि तकलीफ से निजात देने वाले ही हैं. मैं कुछ बेहद पॉपुलर इलाजों का उदाहरण दूंगा. एंजियोप्लास्टी को लें. इसकी सीमाएं हैं जो प्रायः समझाई नहीं जातीं. ‘बाइपास सर्जरी’ का उदाहरण भी वही है. ज्यादातर हार्ट अटैक के मरीजों या उनके रिश्तेदारों को यह लगता है कि एंजियोप्लास्टी या बाईपास कराने से हार्ट अटैक ठीक हो गया. उनकी इस गलतफहमी को कोई दूर भी नहीं करता. कोई भी यह यह नहीं बता रहा कि एंजियोप्लास्टी तथा बाइपास केवल तात्कालिक समाधान हैं. एंजियोप्लास्टी या बाईपास के बाद भी हार्ट अटैक से जुड़ी चीजें तो आपके साथ ही रहती हैं. आपका शरीर वही रहता है. आपका मन वही रहता है. जेनेटिक्स वही रहती है. इसीलिए एंजियोप्लास्टी भी बाद में बंद हो सकती है. बाइपास के ग्राफ्ट ऑपरेशन के तुरंत बाद भी बंद हो सकते हैं. अभी भी हार्ट अटैक का इलाज उससे बचाव में ही है. खान-पान, व्यायाम, मानसिक शांति, कोलेस्ट्राल कम करने वाली दवाइयां- इनसे ही आपकी आयु बढ़ेगी. आज तक चिकित्सा विज्ञान ने कभी यह नहीं कहा है कि बाइपास सर्जरी या एंजियोप्लास्टी से आयु बढ़ जाएगी. यह बात डॉक्टर इसलिए नहीं बता पाता कि वह अपने ही पेट में लात कैसे मार सकता है?

एंटीबायटिक्स को लेकर तो बहुत बड़ा कार्निवाल या उत्सव-सा चल रहा है चिकित्सा विज्ञान मेंे. डब्ल्यूएचओ ने इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए इस वर्ष की थीम ही यही रखी है कि एंटीबायटिक्स को एहतियात से नहीं बरतोगे तो ये काम करना बंद कर देंगी. अभी लोगों को यह खुशफहमी है कि हमारे पास हर इन्फेक्शन से लड़ने के लिये कारगर औषधियां हैं. मेडिकल साइंस से ऐसी गलत उम्मीदें न पाली जाएं. एक जमाने में प्लेग या हैजा की महामारी आती थी और हजारों मर जाते थे. टीबी लाइलाज  थी और लाखों मरते थे. बाद में उनकी दवाएं (एंटीबायटिक्स) आ गईं तो ये बीमारियां लगभग बच्चों का खेल हो गईं. परंतु धीरे धीरे हम पुनः उसी तरफ जा रहे हैं जहां दवाइयां काम नहीं करेंगी क्योंकि जीवाणु उनके अत्यधिक प्रयोग के कारण रेसिस्टेंट हो रहे हैं. तब? ये महामारियां पुनः आकर हजारों को साफ कर सकती हैं. और अकेली एंटीबायटिक तो वैसे भी असर नहीं करती. बूढ़े, कमजोर, कुपोषित, अन्य बीमारियों से ग्रसित आदमी के इन्फेक्शन में ये दवायें काम नहीं कर पातीं. ये अंततः आपके शरीर को रोग से लड़ने में सहायता भर करती हैं. हथियार हैं यह. चलाना शरीर को है. एंटीबायटिक्स को लेकर कोई खुशफहमी न पालें. लगभग यही हाल उन सारी खोजों का है जो चिकित्सा विज्ञान ने की हैं. सभी बेहद महंगी हैं. सभी में बहुत खर्चीली जांचें, दवाइयां लगती हैं. प्रायः सभी में सौ प्रतिशत की क्या पचास प्रतिशत की भी गारंटी नहीं होती.

तो क्या हम यह मानें कि चिकित्सा विज्ञान में जो हो रहा है, वह फालतू का तमाशा है? नहीं, नहीं. मेरे लेख का यह संदेश कतई न लें. मैं कहने की कोशिश कर रहा हूं कि बहुत बड़ी तथा गलत आशाएं पालकर डॉक्टर के पास न जाएं. हर इलाज की सीमा है. चिकित्सा विज्ञान के गणित में दो में दो जोड़ो तो उत्तर चार से लेकर जीरो तक कुछ भी हो सकता है. संदेश यह है कि अपना शरीर संभालकर रखें. अपने बुजुर्गों की सीख की तरफ लौटें. खान-पान, व्यायाम आदि का खयाल करें. बचाव ही इलाज है.