कहीं दबाव का प्रयोग तो नहीं कोरोना-टीका!

केंद्र सरकार ने दावा किया है कि जनवरी, 2021 में किसी भी दिन कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए इसका टीका लगाने का अभियान शुरू हो जाएगा। इससे लोगों को ज़रूर राहत मिलेगी। लेकिन इसके पीछे बाज़ारवाद की तस्वीर भी साफ दिख रही है। क्योंकि इन दिनों वैक्सीन को लेकर बाज़ार गर्म है। दवा कम्पनियों के एजेंटों का जमावड़ा दवा बाज़ारों में साफ देखा जा सकता है। जानकारों का कहना है कि कोरोना वैक्सीन को लेकर सरकार न जाने क्यों इतनी जल्दीबाज़ी दिखा रही है। ऐसा लग रहा है कि ये कोरोना-टीके से ज़्यादा बाज़ारवाद के दबाव का प्रयोग है। क्योंकि एक ज़माना वो था जब कोई बीमारी आती थी, तो उससे निजात पाने के लिए बिना हो-हल्ला किये दवा कम्पनियाँ, चिकित्सक और वैज्ञानिक शोध में लग जाते थे और खामोशी से टीका तैयार कर लेते थे। तब न कोई होड़ होती थी, न कोई दिखावा। लेकिन अब कोरोना-टीके को लेकर जो हाहाकार मचा हुआ है और इस पर जिस तरह सियासत हो रही है, उससे साफ ज़ाहिर होता है कि लोगों को जागरूक कम किया जा रहा है, डराया ज़्यादा जा रहा है।

लोगों में इस महामारी से छुटकारा पाने के लिए टीके का बेसब्री से इंतज़ार है। उन्हें अभी यह भी ठीक से पता नहीं कि उन्हें टीका कब, कैसे मिलेगा? मिलेगा भी या नहीं मिलेगा? टीके के लिए क्या करना होगा?  रजिस्ट्रेशन करवाना होगा या नहीं?

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के प्रमुख संयुक्त सचिव डॉ. नरेश चावला का कहना है कि टीका आने से कोरोना पीडि़तों को राहत मिलने के साथ-साथ लोगों में महामारी का भय तो कम होगा, लेकिन अगर कोरोना-टीका बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए भी मिले, तो सही मायने में कोरोना वायरस पर जल्द काबू पाया जा सकता है। डॉ. चावला का कहना है कि नयी महामारी कोरोना वायरस से निपटने की हड़बड़ी में नये तरीके से शोध हो रहे हैं। क्योंकि अभी तक दुनिया में जितने भी शोध हुए, उनमें सबसे पहले बच्चों के टीकों के ईजाद किये गये, फिर अन्य लोगों के लिए टीके तैयार किये गये। कोरोना-काल ने सब कुछ उलट-पुलट कर दिया। अब बच्चों के लिए टीका बाद में आयेगा। इसी तरह पहले टीके के शोध में तीन-चार साल लग जाते थे। लेकिन कोरोना के टीके तो साल भर के भीतर बनकर तैयार हो रहे हैं। इससे यह डर सता रहा है कि यह टीका कहीं मुसीबत में न डाल दे। क्योंकि जिस तरीके से लोगों को टीका लगाने और उसे बाज़ार में लाने की रूपरेखा तैयार की जा रही है, उससे संदेह बढ़ रहा है। इसके अलावा नये टीके के क्या साइड इफेक्ट होंगे? इसका कोई पता नहीं है। इससे बचाव के लिए डॉक्टरों के पास अभी कोई गाइड लाइन तक नहीं है; जो सबसे अहम है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन का कहना है कि भारत में जनवरी, 2021 में कोरोना का टीकाकरण सम्भव है। जब भारतीय नागरिकों को कोरोना-टीके की पहली खुराक देने की स्थिति होगी, तब टीके के आपातकाल उपयोग की मंज़ूरी के लिए कम्पनियों के आवेदन पर गम्भीरता से विचार किया जाएगा। दिल्ली के लाजपत नगर, भागीरथ पैलेस के अलावा अन्य स्थानों के दवा व्यापारियों का कहना है कि टीके  को लेकर अभी बहुत असमंजस की स्थिति है। क्योंकि जब तक देश में पूरी तरह से कोरोना-टीका अस्पतालों और बाज़ारों में नहीं आ जाता है, तब तक उसको लेकर सियासी अटकलें बनी रहेंगी।

राजीव गाँधी कैंसर संस्थान के कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. अभिषेक बंसल का कहना है कि कोरोना की रोकथाम में इसका टीका एक आशा की किरण है। लेकिन जब तक शहरों से लेकर गाँवों तक यह लोगों को मुहैया नहीं होगा, तब तक कोरोना खत्म नहीं हो सकता। क्योंकि कोरोना ने गाँवों में भी पाँव पसार लिये हैं, फर्क इतना है कि गाँव वालों की इम्युनिटी पॉवर अच्छी है और कोरोना वहाँ बहुत कुछ नहीं बिगाड़ पाया है। लेकिन ज़रूरी है कि गाँवों में भी टीका पहुँचे।

दिल्ली के दवा व्यापारी सुरेश कुमार चहल और किशोर गुप्ता ने बताया कि दवा बाज़ार तो लोगों को कोरोना की दवा और टीका उपलब्ध कराने के लिए ही है। लेकिन अभी तक यही स्पष्ट नहीं है कि बाज़ार में भारत निर्मित टीका पहले उपलब्ध होगा या फिर फाइज़र या मॉडेर्ना कम्पनी के टीके? जो विदेशी हैं। उनका कहना है कि फिलहाल तो टीके को लेकर सिर्फ और सिर्फ अफवाहें ही हैं। क्योंकि अभी तो परीक्षण की ही खबरें ही आ रही हैं। ऐसे में कैसे कहा जा सकता है कि कब और कैसे बाज़ार में टीका आयेगा?

एम्स के डॉक्टरों ने टीके की सफलता और असफलता को सम्भावनाओं भरा बताया है। उनका कहना है कि जब तक टीका आ नहीं जाता है, तब तक कैसे कह सकते हैं कि वह सफल साबित होगा या असफल! एम्स के डॉ. अंजन त्रिखा तथा बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. आलोक कुमार का कहना है कि जबसे कोरोना वायरस फैला है, तबसे तमाम तरह की दवाएँ कोरोना-संक्रमितों को दी गयी हैं; जो फेल भी हुई हैं। डॉ. आलोक कुमार का कहना है कि यह गनीमत है कि कोरोना वायरस ने अभी तक बच्चों को अपनी चपेट में नहीं लिया है। लेकिन इसकी सम्भावनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता। क्योंकि अगर इसके प्रकोप में अगर बच्चे आते हैं, तो उनके लिए टीके की ज़रूरत पड़ेगी। भारत में भारत बायोटेक, जायडस कैडिला, जेनोवा बायोफार्मास्युटिकल्स और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया जैसी नामी-गिरामी कम्पनियाँ शोध करके टीके को विकसित करने में लगी हैं। सभी के परीक्षण जारी हैं। उम्मीद है कि सफलता भी मिलेगी। लेकिन अगर वयस्कों के साथ-साथ बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए भी टीका तैयार हो जाता, तो हम कोरोना वायरस जैसी महामारी से हर स्थिति में निपट सकते थे।