कब तक लड़़ते रहेंगे क़ानून के रखवाले?

उत्तर प्रदेश में क़ानून के रखवाले पुलिस वाले एवं क़ानून की लड़ाई लडऩे वाले अधिवक्ता आपस में लड़ रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के क़ानून के काले कोट एवं ख़ाकी वर्दी के बीच छिड़े विवाद को शान्त करने में विफल दिखे, तो इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने संज्ञान लिया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस पुलिस के माध्यम से प्रदेश की क़ानून व्यवस्था को दुरुस्त कराते हैं, उसी पुलिस पर प्रदेश के अधिवक्ता अराजकता एवं अत्याचार फैलाने का आरोप लगा रहे हैं।

स्थिति यह है कि पूरे प्रदेश के अधिवक्ता हड़ताल पर चले गये हैं। अधिवक्ता सुमन का कहना है कि योगी राज में पुलिस इतनी निरंकुश हो चुकी है कि वो अधिवक्ताओं को पीट रही है। वहीं अधिवक्ता महेंद्र सिंह का कहना है कि उत्तर प्रदेश पुलिस को मुख्यमंत्री योगी की सरकार में इतनी छूट मिली हुई है कि पुलिस ही गुण्डों का काम कर रही है। मगर एक पुलिस अधिकारी ने अपने नाम को प्रकाशित न कराने का अनुरोध करते हुए कहा कि अधिवक्ताओं के बार बने हुए हैं, जिनके चलते अधिवक्ता अपने आपको ही न्यायालय समझने की भूल कर रहे हैं। प्रदेश में सबसे अधिक क़ानून की धज्जियाँ अधिवक्ता ही उड़ाते हैं। वे पुलिस से भी नहीं डरते। अधिवक्ताओं ने पहले भी कई बार पुलिस के विरोध में काम किये हैं। हर बार ग़लती पुलिस के ऊपर ही डाल दी जाती है। इस बार हापुड़ में कुछ पुलिसकर्मियों एवं अधिवाक्ताओं के बीच मामूली सी झड़प हो गयी थी, जिसे लेकर इतना हंगामा हो रहा है।

हापुड़ में हुआ विवाद

असल में हापुड़ में एक महिला अधिवक्ता से एक पुलिसकर्मी का विवाद हो गया था। पुलिस का आरोप है कि महिला अधिवक्ता ने छोटी सी सडक़ दुर्घटना को लेकर हुई कहासुनी को लेकर एक पुलिसकर्मी की वर्दी फाड़ दी थी। मगर अधिवक्ताओं का आरोप है कि पुलिसकर्मी ने महिला अधिवक्ता को टक्कर मारी। उसके बाद उसने महिला अधिवक्ता से अभद्रता की, जब अधिवक्ताओं ने इसका विरोध किया, तो अधिवक्ताओं को पुलिसकर्मियों ने पीटना आरम्भ कर दिया।

हापुड़ के एक जानकार पत्रकार ने बताया कि बीते महीने की 25 तारीख़ को महिला अधिवक्ता प्रियंका त्यागी सडक़ मार्ग से अपने चार पहिया वाहन से हापुड़ से ग़ाज़ियाबाद जा रही थीं। उनके साथ उनके पिता एवं दो अन्य लोग थे। गढ़ रोड के निकट एक पुलिसकर्मी की लैपर्ड बाइक वकील की महिला अधिवक्ता की कार से टकरा गयी। इसके बाद दोनों के बीच कहासुनी हो गयी। पुलिसकर्मी कह रहा है कि महिला अधिवक्ता प्रियंका त्यागी ने उसे पीट दिया एवं वर्दी फाड़ दी। पुलिसकर्मी ने कोतवाली में अधिवक्ता प्रियंका त्यागी एवं उसके पिता के विरुद्ध सरकारी काम में बाधा डालने, पुलिसकर्मी को पीटने सहित विभिन्न धाराओं में मुक़दमा दर्ज करा दिया।

वहीं अधिवक्ता प्रियंका त्यागी ने पुलिसकर्मी पर उन्हें अश्लीलता से घूरने, अश्लील हरकतें करने एवं लगातार पीछा करते हुए उनकी कार में टक्कर मारने के आरोप लगाते हुए मुक़दमा दर्ज करा दिया। अधिवक्ता प्रियंका त्यागी ने पुलिसकर्मी पर उनके विरुद्ध झूठा मुक़दमा दर्ज कराने का आरोप लगाया। पीछा करने के आरोप को लेकर पुलिसकर्मी का कहना है कि वो जल्दी में था एवं उसने आगे निकलने के लिए हार्न भी बजाया था। कोतवाली पुलिस ने अधिवक्ता प्रियंका त्यागी एवं उनके पिता को वहीं बैठा लिया। अधिवक्ता प्रियंका त्यागी ने अन्य अधिवक्ताओं को घटना की सूचना मोबाइल फोन से दे दी, जिसके चलते बीसियों अधिवक्ता कोतवाली में आ जुटे। पुलिस ने अधिवक्ता प्रियंका एंव उनके पिता को रिहा कर दिया।

बाद में अधिवक्ता क्रोधित हो उठे एवं इस प्रकरण को लेकर प्रदर्शन करने लगे। अधिवक्ताओं ने सीओ सिटी को ज्ञापन देकर माँग की कि महिला अधिवक्ता के विरुद्ध दर्ज एफआईआर रद्द की जाए। इसके अलावा 29 अगस्त को हापुड़ बार एसोसिएशन के सैकड़ों सदस्य नेशनल हाईवे-9 पर इकट्ठे होकर जाम लगाकर प्रदर्शन करने लगे। यह सूचना पुलिस को मिली। पुलिस ने घटना स्थल पर पहुँची, जिसमें कई पुलिस अधिकारी भी थे। कहा तो यह जा रहा है कि पुलिस अधिकारियों ने अधिवक्ताओं को समझाने का प्रयास किया, मगर अधिवक्ताओं का आरोप है कि पुलिस ने उन पर सीधे लाठियाँ भाँज दीं। पुलिस यह कह रही है कि समझाने के बीच एक अधिवक्ता ने एक महिला पुलिसकर्मी की नेम प्लेट नोच ली थी, जिसके बाद विवाद हुआ। पुलिस का यह भी कहना है कि अधिवक्ता राहगीरों से भी अभद्रता करने लगे, तब मजबूरन पुलिस को हल्का बल प्रयोग करना पड़ा। इस प्रकरण के बाद पुलिस ने 17 नामज़द लोगों समेत लगभग 250 अज्ञात लोगों के विरुद्ध हंगामा करने, सरकारी कार्य में बाधा डालने एवं पुलिस से हाथापाई करने, लोगों को तंग करने समेत कई धाराओं में एफआईआर दर्ज की है। हापुड़ में अधिवक्ताओं पर लाठीचार्ज के उपरांत ग़ाज़ियाबाद में एक अधिवक्ता की हत्या हो गयी।

सरकार का विरोध

इन दो घटनाओं से क्रोधित उत्तर प्रदेश की सभी बार एसोसिएशनों ने उत्तर प्रदेश पुलिस के साथ-साथ प्रदेश सरकार के विरोध में मोर्चा खोल दिया है। पूरे प्रदेश के अधिवक्ता कोतवाली थाने के सभी आरोपी पुलिसकर्मियों एवं अधिवक्ता प्रियंका त्यागी से भिडऩे वाले पुलिसकर्मी के विरुद्ध कार्रवाई की माँग कर रहे हैं। अधिवक्ताओं ने पूरे प्रदेश में हड़ताल कर दी है। इस हड़ताल के चलते मुक़दमों का निपटान नहीं हो पा रहा है। पुलिस प्रशासन ने सभी पुलिसकर्मियों को सभी प्रकार के न्यायालयों के द्वार के अंदर प्रवेश करने से मना कर दिया है।

सभी जनपदों में अधिवक्ता लगातार पुलिस का विरोध करते हुए प्रदर्शन कर रहे हैं। न्यायिक कार्यों का बहिष्कार कर रहे हैं। इस तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए शान्ति बहाली के उत्तर प्रदेश सरकार ने मेरठ कमिश्नर की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय एसआईटी का गठन किया है। सरकार ने एसआईटी को घटना के सभी पहलुओं की सघन जाँच करके उसकी रिपोर्ट सरकार को सौंपने के निर्देश दिये हैं। तनाव बढऩे की आशंका को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार ने हर नुक्कड़, हर चौराहे पर पुलिसकर्मियों को तैनात कर दिया है। क़ानून की राजधानी प्रयागराज में प्रदेश भर की बार काउंसलिंग के अधिवक्ता जुटे हुए हैं। पुलिस के विरुद्ध नारे लगा रहे हैं।

अधिवक्ताओं की प्रदेश व्यापी हड़ताल एवं विरोध प्रदर्शन को देखते हुए स्वत: संज्ञान लेते हुए प्रयागराज उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर एवं न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी की पीठ मामले की सुनवाई कर रही है। जब तक एसआईटी की जाँच सामने आएगी तब तक किसी भी पक्ष के विरुद्ध कार्रवाई नहीं हो सकेगी। हालाँकि मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर दो-टूक कह चुके हैं कि न्यायालयों के कार्य को इस प्रकार प्रभावित नहीं किया जा सकता, अत: न्यायिक कार्य होंगे। प्रयागराज उच्च न्यायलय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक कुमार सिंह की अध्यक्षता में आपात बैठक में बार एसोसिएशन के महासचिव नितिन शर्मा ने न्यायिक कार्यों का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। अधिवक्ता पुलिस के अतिरिक्त प्रदेश सरकार के विरुद्ध भी लामबंद हो रहे हैं।

पहले भी हुए हैं झगड़े

अधिवक्ताओं एवं पुलिसकर्मियों के बीच विवाद कोई नयी बात नहीं है। इससे चार माह पूर्व इसी वर्ष कानपुर में पुलिस लाइन स्थित कमिश्नरी न्यायालय में पेशी के समय पुलिसकर्मियों एवं अधिवक्ताओं के बीच धक्कामुक्की एवं मारपीट हुई थी। इस प्रकरण में पुलिसकर्मियों ने 10 अधिवक्ताओं के विरुद्ध कोतवाली में बलवा करने की धारा-147, जानबूझकर अपमान करने की धारा-504, मारपीट की धारा-323, लोकसेवकों को चोट पहुँचाने, कार्य में वाधा डालने की धारा-332 एवं धारा-353 के तहत एफआईआर दर्ज करायी थी। 20 अक्टूबर, 2022 को ड्यूटी पर तैनात होमगार्ड एवं ट्रैफिक पुलिसकर्मी को अधिवक्ताओं ने पीट दिया था। इस प्रकरण में भी तीन अधिवक्ताओं के विरुद्ध नामज़द एवं अन्य चार अज्ञात के विरुद्ध एफआईआर दर्ज की गयी। यह विवाद अधिवक्ताओं द्वारा सडक़ किनारे गाड़ी खड़ी करने को लेकर हुआ था। इससे पूर्व में आगरा में पुलिसकर्मियों एवं अधिवक्ताओं के बीच मारपीट हुई थी। इस प्रकरण में भी छ: अधिवक्ताओं के विरुद्ध एफआईआर दर्ज हुई थी। मेरठ में भी पुलिसकर्मियों एवं अधिवक्ताओं के बीच झड़प हो चुकी है।

कैसे हो शान्ति?

मास्टर नंदराम कहते हैं कि समस्या यह है कि अधिवक्ता एवं पुलिसकर्मी दोनों ही क़ानून के रक्षक हैं, मगर दोनों ही क़ानून को अपनी जेब में रखकर घूमते हैं। न तो पुलिसकर्मी किसी को कुछ समझते हैं एवं न ही अधिवक्ता किसी को कुछ समझते हैं। इसके चलते जहाँ पर भी दोनों का अहम टकराता है, वहीं पर झगड़ा हो जाता है। अगर इस झगड़े को मिटाना है, तो पुलिसकर्मियों एवं अधिवक्ताओं को अपने अपने कर्तव्यों का निर्वहन पूरी निष्ठा एवं ईमानदारी से करना होगा।

दोनों को ही अकड़ एवं घमंड दिमाग़ से निकालना होगा एवं जनसेवा के विचार से अपना कार्य करना होगा। यदि कहीं किसी में कोई कमी हो अथवा उसकी ग़लती हो, तो उसे अपनी कमी को मानते हुए क्षमा माँगनी चाहिए। उन्हें उस समय यह घमंड नहीं पालना चाहिए कि उन्हें क़ानून के आधार पर लोगों की सुरक्षा के लिए कुछ अधिकार मिले हुए हैं, तो वे उनका दुरुपयोग कर सकते हैं।