शैलेंद्र कुमार ‘इंसान’
दिल्ली में प्रदूषण पर अध्ययन करके इससे निपटने के उपाय बताने के लिए बनी समिति पर रोक लग गयी है। इस रोक का आरोप प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के अध्यक्ष अश्विनी कुमार पर है। दिल्ली मंत्रिमंडल ने जुलाई, 2021 में प्रदूषण अध्ययन के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी थी। इसकी अनुमानित लागत 12 करोड़ रुपये से अधिक थी। अक्टूबर, 2022 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), कानपुर के साथ एक समझौता हुआ था। दिल्ली सरकार ने आवश्यक उपकरण ख़रीदने, डेटा संग्रह करने और एक केंद्रीकृत कार्यालय स्थापित करने के लिए आईआईटी, कानपुर को 10 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान कर दिया था।
बहरहाल दुनिया भर में आज प्रदूषण एक भीषण समस्या बनी हुई है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, विश्व में वायु प्रदूषण से प्रतिवर्ष अनुमानित 35,00,000 लोगों की मौतें हो जाती हैं, जिसमें पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की 2,37,000 से अधिक मौतें शामिल हैं। भारत में वायु प्रदूषण के कारण हुई कुल 16.7 लाख लोगों की मौत हुई, जिसमें 9.8 लाख लोगों की मौतें पीएम-2.5 प्रदूषण की वजह से हुई हैं। दुनिया भर में 15 साल से कम उम्र के 93 फ़ीसदी बच्चे प्रदूषित हवा में साँस ले रहे हैं, जिसकी वजह से उन्हें कई गम्भीर स्वास्थ्य समस्याएँ घेर रही हैं।
वायु प्रदूषण से हर साल क़रीब 3.5 लाख बच्चे अस्थमा का शिकार बन रहे हैं। जिस तरह से विकास के नाम पर पेड़ काटे जा रहे उससे धरती पर रहने वाले जीवों के लिए ख़तरे की घंटी बज चुकी है। एक तरफ़ अंधाधुंध पेड़ों की कटाई से घटते वन क्षेत्र, तो वहीं दूसरी तरफ़ विश्व में चल रही सत्ता की लड़ाई में इस्तेमाल किये जा रहे गोले, बारूद सहित ख़तरनाक हथियारों से न सिर्फ़ मानवीय त्रासदी, अपितु इससे पर्यावरण को भी बहुत आघात पहुँच रहा है। दुनिया भर में किये गये मिसाइल, परमाणु परीक्षणों और सेटेलाइट अभियानों से पर्यावरण को भारी नुक़सान पहुँचा है और यह क्रम लगातार जारी है। जल, जंगल, ज़मीन पर जिस तरह से तबाही का आलम उससे आने वाले समय में विनाश तय माना जा रहा है। विकास की होड़ हो या परंपरा के नाम पर चली आ रही कुप्रवृत्तियाँ अगर ऐसे ही चलती रहीं, तो देश और समाज को एक-न-एक दिन नष्ट कर ही डालेंगी।
भारत जैसे देश में धार्मिक कर्मकांड से अतिरिक्त कचरे से भी पर्यावरण को काफ़ी नुक़सान पहुँच रहा है। लोग भारी मात्रा में नदियों, तालाबों, झीलों और समुद्र में कूड़ा-करकट और उपयोग किया गया ख़राब सामान डालते हैं। केमिकल बहाते हैं, जिससे और प्रदूषण बढ़ रहा है। दिल्ली जैसे शहर में पढ़े-लिखे लोग भी सरकार की चेतावनी को दरकिनार करते हुए पूजा सामग्रियों को यमुना में फेंकते हैं। इस प्रकार देखा जाए, तो पूरे भारत में सैकड़ों टन इस्तेमाल कचरा हर रोज़ निकलता है, जिसे ज़मीन पर डाल दिया जाता है और पानी में बहा दिया जाता है। दुनिया में, विशेषतौर पर भारत में कई त्योहार भी प्रदूषण बढ़ाने का ज़रिया बन रहे हैं। नया साल, क्रिसमिस-डे, दीपावली, क्रिकेट में जीत के जश्न और ख़ुशियों के दौरान लोग अनाप-शनाप पटाखे फोड़ते हैं; आतिशबाज़ी करते हैं। यह सब प्रदूषणजनित इन चीज़ों पर रोक के बावजूद होता है। जब लोग पटाखे फोड़ते हैं; आतिशबाज़ी करते हैं; तब हवा में साँस लेना भी मुश्किल हो जाता है। यानी सिर्फ़ वाहनों, कल-कारख़ानों और पराली जलाने से ही प्रदूषण नहीं बढ़ रहा, बल्कि ख़ुशियों के अवसर भी प्रदूषण की समस्या को और भी ज़्यादा गम्भीर बना रहे हैं। किसने सोचा था कि एक दिन धार्मिक स्थलों में ताला लगाना पड़ेगा? लेकिन हमने कोरोना-काल में यह सब देख लिया। प्रदूषण से हो रही मौतों से पता चलता है कि यह कोरोना से भी ज़्यादा ख़तरनाक है।
पिछले साल दिल्ली हाईकोर्ट में दायर एक हलफ़नामे के मुताबिक, विकास कार्यों के लिए 2019, 2020 और 2021 में 77,420 पेड़ों को काटने की मंज़ूरी दी गयी। राजधानी में क़रीब 77,420 पेड़ काटे गये यानी तीन साल में हर घंटे तीन पेड़ काटे गये। इन पेड़ों को काटने के लिए बाक़ायदा वन विभाग की मंज़ूरी ली गयी थी। चोरी छिपे कितने पेड़ काटे गये? इसकी कोई पुख़्ता जानकारी नहीं है। 22 अक्टूबर, 2023 को दिल्ली एक प्रतिष्ठित अख़बार में पुराने क़िले में अवैध रूप से दज़र्नों पेड़ों के काटे जाने की ख़बर को प्रमुखता से छापा था। शिकायतकर्ता सेंट्रल जियोलॉजिकल अथॉरिटी (सीजेडए) के मेंबर सेक्रेटरी रहे चिड़ियाघर के पूर्व डायरेक्टर डी.एन. सिंह ने दिल्ली सरकार के फॉरेस्ट एंड वाइल्ड लाइफ विभाग से इस सम्बन्ध में 18 सितंबर को शिकायत की थी। शिकायत में उन्होंने दो दज़र्न काटे गये पेड़ों की तस्वीरें भी भेजी थी।
डी.एन. सिंह के मुताबिक, क़िले के अंदर नहर के किनारे मथुरा रोड की तरफ़ काफ़ी घना जंगल था, जो अब ख़ाली मैदान में तब्दील हो गया है। उन्होंने सन् 2018 की एक तस्वीर भी दिखायी, जिसमें काफ़ी बड़ी संख्या में पेड़ दिखायी दे रहे। इसी तरह भैरो मार्ग की तरफ़ भी पेड़ और टहनियाँ काटी गयी। इस तरह पुराने क़िले जैसे भीड़भाड़ वाले जगह से पेड़ काट दिये गये; लेकिन किसी को कोई ख़बर तक नहीं लगी।
ऐसे में यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किस तरह कुछ लोग पेड़ काट रहे हैं और बा$की लोग चुप्पी साधे हुए हैं। वन विभाग के अधिकारी दफ़्तरों में क्या काम करते हैं? यह समझ से परे है। जबकि दिल्ली में बढ़ते गम्भीर प्रदूषण के बावजूद भारी संख्या में पेड़ काटे गये। गली-मोहल्लों में लोग पेड़ों को लगाने के बजाय पेड़ों को काटने में सबसे आगे रहते हैं। लोग गाड़ियाँ को पार्क करने के लिए के लिए पेड़ों को ही कटवा डालते हैं। हरि नगर आश्रम में रेलवे ट्रैक के किनारे लगे कई पेड़ों को लोगों ने इसलिए कटवा दिया, जिससे आँधी में पेड़ों की डालियाँ उनकी गाड़ी पर न गिरें। दिल्ली में इस तरह चोरी छिपे हर साल केयर टेकर को पैसे देकर कटाई-छँटाई के नाम पर हज़ारों पेड़ काट दिये जाते हैं, जिसकी कोई सुध लेने वाला नहीं है।
विकास की अंधी दौड़ में हर साल जिस तरह से पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है, उससे काफ़ी कम अनुपात में पेड़ लगाये जा रहे हैं। जो पेड़ लगाये भी जा रहे, वो देखभाल के अभाव में सूख जाते हैं। मेट्रो विस्तार के लिए हज़ारों पेड़ काटे गये और हज़ारों पेड़ों को प्रत्यारोपित किया गया; लेकिन उचित देखभाल न होने की वजह से मात्र एक-तिहाई पेड़ ही बचे हैं। सरकार ने लाल क़िले के सामने ग्रीन कॉरिडोर बनाने के लिए पौधे लगाये; लेकिन पानी के अभाव में पौधे सूख गये। इसके बाद दोबारा पौधे लगाये गये। ऐसे में पौधों को ज़मीन या गमलों में लगा देना ही काफ़ी नहीं, बल्कि उनकी देखभाल भी बहुत ज़रूरी है।
एक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021-22 के अनुसार, दिल्ली का वनक्षेत्र सात प्रमुख बड़े शहरों में सबसे ज़्यादा 194.02 वर्ग क़िलोमीटर है, जबकि प्रदूषण के मामले में यह नंबर वन है। वहीं 110.77 वर्ग क़िलोमीटर के साथ मुंबई दूसरे स्थान पर है और 89.02 वर्ग क़िलोमीटर के साथ साथ बेंगलूरु तीसरे स्थान पर है। हालाँकि सन् 1997 के बाद राजधानी दिल्ली के वन क्षेत्र में निरंतर वृद्धि दर्ज की गयी है। सन् 2021 में वन क्षेत्र बढ़कर 342 वर्ग क़िलोमीटर हो गया। इससे कुल भौगोलिक क्षेत्र में वनों का हिस्सा भले ही बढ़कर 23.07 फ़ीसदी हो गया। लेकिन जिस तरह से दिल्ली में प्रदूषण छाया रहता है, उससे तो यह ऊँट के मुँह में जीरा के समान है।
पेड़ों की संख्या बढ़ाने को लेकर सरकारें उतनी चिन्तित नहीं हैं, जितना होना चाहिए, और न ही आम जनता चिन्तित है। यही कारण है कि प्रदूषण की अति गम्भीरता को देखते हुए अदालत को आगे आना पड़ा। उच्च न्यायालय ने दिल्ली में वन क्षेत्र बढ़ाने के लिए दिल्ली सरकार के अधिकारियों से 750 एकड़ ज़मीन आवंटित करने के लिए कहा था। 10 अक्टूबर, 2023 को इस मामले की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने अधिकारियों को फटकार लगायी, जिसमें जंगल विकसित करने के लिए महज़ 0.23 एकड़ भूमि आवंटित करने के प्रस्ताव के बारे में कोर्ट को जानकारी दी गयी थी। अदालत ने इसे एक मज़ाक़ बताया और अधिकारियों को इसके लिए खरी-खोटी सुनायी। दिल्ली हाईकोर्ट ने वैकल्पिक वन क्षेत्र विकसित करने के लिए दिल्ली प्रशासन से 750 हेक्टेयर ज़मीन आवंटित करने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि भावी पीढ़ियों और राष्ट्रीय राजधानी में योजनाबद्ध तरीक़े से विकसित करने के लिए यह बेहद ज़रूरी है। हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम आने वाली पीढ़ियों को अच्छी और गुणवत्ता वाली हवा दें।
इसी तरह न्यायालय द्वारा दिये एक अन्य फ़ैसले में चिपको आन्दोलन जैसे पेड़ों को सुरक्षा मिली, जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय ने बेहद सख़्त क़दम उठाया। हाईकोर्ट ने 15 जून, 2023 को दिल्ली में पेड़ों की कटाई और छँटाई पर पूरी तरह से रोक लगा दी। हाईकोर्ट ने यह फ़ैसला प्रोफेसर संजय बगई के द्वारा दायर याचिका पर सुनाया। प्रोफेसर बगई ने याचिका के ज़रिये हाईकोर्ट को बताया था कि वसंत विहार में 800 पेड़ों को बिना उचित प्रक्रिया और दिशा-निर्देश के छँटाई की गयी थी। अदालत ने कहा कि डीपीटी अधिनियम के तहत एक पेड़ की शाखा को 15.7 सेमी परिधि तक काटने की मंज़ूरी नहीं दी गयी है। कोर्ट ने इसे अनिवार्य वैधानिक आवश्यकताओं के ख़िलाफ़ बताया। इससे पहले कटाई-छँटाई पर कोई रोक नहीं थी, जिसकी आड़ में हर साल हज़ारों पेड़ों को कहीं से भी काटकर उन्हे पंगु बना दिया जाता था।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन अश्विनी कुमार ने प्रदूषण को नियंत्रित करने की मुहिम पर एकतरफ़ा मनमाने तरीक़े से रोक लगा दी है। उन्होंने अपने फ़ैसले के बारे में मंत्रिमंडल को सूचित भी नहीं किया। उनका यह रुख़ कार्य आवंटन नियमावली का उल्लंघन है। अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया, जब दिल्ली को प्रदूषण सम्बन्धी समस्या के समाधान के लिए वैज्ञानिक आँकड़ों की तत्काल आवश्यकता है। इस मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को पत्र भेजा है। हमने माँग की है कि अश्विनी कुमार को तत्काल निलंबित किया जाए और अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।’’
गोपाल राय
पर्यावरण मंत्री, दिल्ली