अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग

पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों में जीत के प्रयास में लगी पार्टियाँ अपना रहीं हर पैंतरा

देश में अठारहवीं लोकसभा चुनाव से पूर्व पाँच राज्यों के चुनावों को लेकर सभी पार्टियों के नेता मुफ़्त घोषणाओं एवं वादों की झड़ी लगा रहे हैं। मुफ़्त घोषणाओं एवं वादों की झड़ी लगाने के अतिरिक्त धर्म, जातिवाद एवं धमकियों का भी प्रयोग किया जा रहा है। अब चुनाव केवल आरोप एवं प्रत्यारोप के आधार पर नहीं हो रहे हैं। धीरे-धीरे चुनावों में मुफ़्त घोषणाओं एवं वादों के अतिरिक्त जातिवाद, धर्म एवं अपनी-अपनी प्रशंसा दूसरी पार्टी की बुराई करने का चलन बढ़ रहा है।

विदित हो कि नवंबर में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम एवं तेलंगाना राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। 03 दिसंबर को इन सभी पाँच राज्यों के चुनाव परिणाम आएँगे। ऐसे में सभी पार्टियों के नेता चुनाव प्रचार में पूरी तन्मयता से लगे हुए हैं। सभी पार्टियों के नेता दूसरी पार्टियों एवं उनके नेताओं की कमियाँ गिनाने के अतिरिक्त अपने अपने कार्यों को जनता के बीच गिना-गिनाकर अपनी-अपनी प्रशंसा कर रहे हैं। मुफ़्त घोषणाओं की सूची इतनी लम्बी है कि अगर जीतने वाली पार्टी सरकार में आने पर उन घोषणाओं को पूरा कर दे, तो जनता का भला भी होगा एवं विकास भी होगा। मगर चुनावी घोषणा-पत्रों में की जाने वाली मुफ़्त घोषणाएँ एवं वादों को चुनावों में हर मंच से दोहराने वाले नेता चुनाव जीतते ही अपने ही वादों एवं घोषणाओं को भूलकर स्वयं की तिजोरियाँ भरने में लग जाते हैं।

भाजपा की नीति

यह कोई उलाहना नहीं है, वरन् सच्चाई है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता सदैव दूसरी पार्टियों की सरकारों की मुफ़्त की सुविधाओं का विरोध करते हैं; मगर स्वयं पाँच किलो राशन की प्रशंसा करते नहीं थकते हैं। मुफ़्त उज्ज्वला योजना के तहत घर-घर रसोई गैस सिलेंडर देने का दावा, घर-घर पानी पहुँचाने का दावा, हर भारतीय को घर देने का दावा, समस्त किसानों को हर माह 500 रुपये देने का दावा, सभी सरकारों से अधिक रोज़गार देने का दावा, करोड़ों लोगों को मुफ़्त बिजली देने का दावा एवं किसानों की आय दोगुनी करने का दावा भी भाजपा ही करती है।

मगर याद रखना होगा कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पूर्व मुरादाबाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही आम लोगों को मुफ़्त सुविधाएँ देने के रेवड़ी कल्चर कहते हुए जनता से अपील की थी कि वो इसमें न फँसे इससे देश को हानि होगी, जिससे विकास कार्यों में बाधा पड़ेगी। मगर आज भाजपा ही मुफ़्त घोषणाओं एवं वादों की झड़ी लगाने लगी है।

भाजपा ने विधानसभा चुनाव वाले पाँचों राज्यों में मुफ़्त घोषणाएँ एवं वादे करने आरंभ कर दिये हैं। दूसरी पार्टियाँ भी मुफ़्त घोषणाएँ एवं वादे करने में पीछे नहीं हैं। यह अलग बात है कि भाजपा के अतिरिक्त कांग्रेस एवं आम आदमी पार्टी इस मामले में आगे हैं, तो दूसरी क्षेत्रीय छोटी पार्टियाँ इसमें थोड़ी-सी पीछे; मगर सबके चुनावी घोषणा-पत्र जनता को आकर्षित करने में कम नहीं हैं।

भाजपा तो इतने विश्वास से दसियों मुफ़्त घोषणाओं एवं बीसियों वादों का घोषणा-पत्र जनता के सामने लेकर आ रही है, मानो जनता की भलाई करने वाली सबसे बड़ी जनहित वाली पार्टी ही देश में एक यही है। पाँच किलो प्रति माह राशन देने एवं तमाम पूरे एवं अधूरे कार्यों की प्रशंसा अपने मुँह से जिस प्रकार भाजपा के नेता चुनावी राज्यों में कर रहे हैं, उससे हैरानी होती है कि इस सबसे बड़ी पार्टी के नेताओं को तनिक संकोच एवं गिलानी भी नहीं होती कि वो अपनी बुराइयों को छिपाते हुए जनता के बीच झूठ भी बोल ही देते हैं। दूसरी पार्टियों की निंदा करने के लिए दुष्प्रचार करने से भी पीछे नहीं रहते। पार्टी नेताओं की कौन कहे, स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इससे अछूते नहीं हैं।  

कांग्रेस का बढ़ता विश्वास

यह सत्य है कि कांग्रेस नेता राहुल गाँधी अत्यधिक सक्रिय हो चुके हैं एवं वह जनता के बीच जा-जाकर लोगों की समस्याएँ सुनने लगे हैं। राहुल गाँधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अतिरिक्त भाजपा के बड़े बड़े नेताओं की बुराई करने की जगह उनसे प्रश्न पूछते हैं। इससे जनता उनसे प्रसन्न होती है; क्योंकि ये प्रश्न जनता के भी हैं। कांग्रेस को विश्वास है कि इन पाँचों विधानसभाओं में उसकी जीत सुनिश्चित है। कुछ दिन पूर्व विश्लेषकों की अनुमानित सर्वे रिपोर्ट में भी कांग्रेस के कम-से-कम चार राज्यों में जीतने के दावे किये जा रहे हैं।

राजनीति विश्लेषक एवं सेवानिवृत्त अध्यापक यशवंत सिंह कहते हैं कि कांग्रेस को इस बार अच्छी बढ़त मिलने के आसार हैं। मगर कांग्रेस नेताओं को इससे अधिक प्रसन्न होने की आवश्यकता नहीं है, वरन् अभी कड़े परिश्रम एवं मतदान से लेकर मतों की गिनती तक चौकन्ना रहने की भी आवश्यकता है। अगर कांग्रेस नेताओं ने इसमें चूक की, तो जीती हुई बाज़ी भी हार में बदल सकती है। कांग्रेस को ईवीएम परीक्षण से इसे समझ लेना चाहिए। मध्य प्रदेश में हुए ईवीएम परीक्षण में यह बात सामने आ चुकी है, जिसमें हर पार्टी के चुनाव चिह्न वाला बटन दबाया गया; मगर पर्ची भाजपा की ही निकली। कांग्रेस के अतिरिक्त दूसरी पार्टियों के नेताओं को भी इसे गंभीरता से लेना चाहिए एवं मतदान के दौरान चौकसी बरतनी चाहिए।

जनता का रुझान

देखने में आ रहा है कि 2014 से 2022 के बीच जिस जनता का विकट रुझान भाजपा की ओर था, उसी जनता का मोह अब इस बड़ी एवं समृद्ध पार्टी से भंग होता जा रहा है। पहले अधिकतर लोग हर जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपा की सरकारों की प्रशंसा के पुल बाँधा करते थे; मगर अब बुराई करते दिखते हैं। भाजपा एवं स्वयं प्रधानमंत्री के प्रशंसक जितनी तीव्रता से घटे हैं, उससे पार्टी नेताओं के बीच इतनी उथल-पुथल है कि कई नेता तो कांग्रेस में कूद चुके हैं एवं कई कूदने को तैयार बैठे हैं।

मध्य प्रदेश के एक परिचित पत्रकार ने बताया कि मध्य प्रदेश में तो भाजपा का इतना बुरा हाल है कि इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जनता के नाम नाम चिट्ठी लिखकर यह कहना पड़ा कि मध्य प्रदेश के दिल में मोदी हैं एवं मोदी के दिल में मध्य प्रदेश है। शिवराज सिंह चौहान को जिस प्रकार किनारे लगाया गया है, उससे स्पष्ट है कि अब अगर किसी तरह भाजपा की सरकार यहाँ आ भी गयी, तो उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाएगा।

छत्तीसगढ़ से आ रही सूचनाओं की मानें, तो भाजपा के पास वहाँ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को हराने वाला प्रत्याशी ही नहीं है। मिजोरम में एनडीए में फूट पड़ चुकी है। वहाँ के मुख्यमंत्री स्पष्ट कह चुके हैं कि वह प्रधानमंत्री के साथ मंच साझा नहीं करेंगे। राजस्थान में भी भाजपा के पास मुख्यमंत्री के नाम पर कोई चेहरा नहीं है। वसुंधरा को छिटककर पार्टी ने जनता का बचा हुआ विश्वास भी बहुत हद तक खोया है। तेलंगाना में केसीआर के आगे दाल गलना आसान नहीं है।

लोकसभा चुनावों की तैयारी भी

जनता के बीच नवंबर में होने वाले पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों से अधिक चर्चा अगले साल लोकसभा चुनाव को लेकर है। अधिकतर लोग मानकर चल रहे हैं कि इस चुनाव में केंद्र की सत्ता से भाजपा की विदाई तय है। मगर यह इतना आसान नहीं है। लोकसभा चुनाव जीतने के लिए भाजपा बड़े स्तर पर तैयारी कर चुकी है। इसके अतिरिक्त विपक्षी पार्टियों के गठबंधन इंडिया में सीटों के बँटवारे को लेकर फूट पड़ने की संभावनाएँ हवा में तैर रही हैं।

उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी से रूठे हुए एक नेता ने नाम प्रकाशित न करने की विनती करते हुए कहा कि भाजपा देश की सेवा में जिस उद्देश्य से पिछले 50 वर्षों से कार्य कर रही है उससे पार्टी के कुछ लालची नेता भटक चुके हैं। ये नेता सत्ता के नशे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अवधारणाओं वाली देशभक्त भाजपा के उसूलों से भटक चुके हैं। इनको घमंड हो गया है कि पार्टी इन्हीं के दम पर चल रही है, जिसके चलते ये लोग अपनी ही पार्टी के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं का निरादर करने में लगे हैं। जब सम्मान ही नहीं मिलेगा, तो इनके लिए जनता से भीख कौन माँगेगा? हम संघ की विचारधारा पर चलने वाले देशभक्त लोग हैं, हमें लालच नहीं है; मगर निरादर भी नहीं सहेंगे। यह किसी एक नेता अथवा कार्यकर्ता का दु:ख नहीं है, बल्कि कइयों का है। आगामी चुनावों में इसका असर आपको दिख जाएगा।

लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस भी अपनी ज़मीन तैयार कर रही है; मगर उसके हालिया गठबंधन इंडिया में सीटों के बँटवारे को लेकर फूट की संभावनाएँ प्रबल मानी जा रही हैं। मध्य प्रदेश में इसका नमूना देखने को मिल चुका है। मगर लोग कांग्रेस की ओर अब आशा भरी दृष्टि से देख रहे हैं। जो भी हो मगर यह तय है कि आगामी लोकसभा चुनाव जातिवाद, धर्म के अतिरिक्त वादों, मुफ़्त घोषणाओं पर लड़ा जाएगा। कांग्रेस इसमें जनता के मुद्दों को तड़का लगाने में सफल रही, तो सम्भव है कि देश की सत्ता उसकी झोली में आ जाए।