करीब एक दशक पहले दक्षिणी अफगानिस्तान के धूसर और बीहड़ पहाड़ों में बनी एक गुफा में मैंने जिस शख्स से हाथ मिलाया था उसके व्यक्तित्व की कोमलता मुझे आज भी याद है. उसके हाथों में वह मुलायमियत थी जो किसी कलाकार के हाथ में होती है. उन्हें देखकर कहना मुश्किल था कि ये एक ऐसे दुर्दांत आतंकवादी के हाथ हैं जो बाद में अपनी कारगुजारियों से पूरी दुनिया को हैरान करने वाला है. यह शख्स था ओसामा बिन लादेन. मुझे उसकी बातचीत का नम्र लहजा ध्यान आता है और यह भी कि कैसे वह थोड़ी-थोड़ी देर के बाद लगातार पानी पी रहा था क्योंकि उसकी दोनों किडनियां जवाब दे चुकी थीं. पश्चिमी देशों में अपनी छवि के विपरीत लादेन विनम्र और सभ्य तरीके से बात करने वाला एक बौद्धिक व्यक्ति दिखता था. उसमें वह उग्र और भड़काऊ लहजा नहीं था जो उसके ज्यादातर अनुयायियों में दिखता है. उसकी शख्सियत में एक तरह का शर्मीलापन भी था जिसके चलते उसने मुझे कई बार अपनी फोटो खींचने से मना किया
ओसामा ने अमेरिका और इजरायल के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए मई, 1998 में इंटरनेशनल इस्लामिक फ्रंट फॉर जिहाद के गठन की घोषणा की थी. इसी अवसर पर मुझे अफगानिस्तान पहुंचने का आमंत्रण मिला. यहां पहली बार ओसामा से मेरा आमना-सामना हुआ. हालांकि तालिबान नये फ्रंट के गठन के विचार से सहमत नहीं था और नाराज भी था. तालिबान नेता मुल्ला मोहम्मद ओमर ने तो गुस्से में यह तक कह दिया था कि अफगानिस्तान में सिर्फ एक ही शासक हो सकता है- ओसामा या फिर वह खुद. ओसामा ने इसके बाद माफी मांगी थी और वह इस बात को लेकर निश्चिंत था कि उसे तालिबान की सहमति मिल जाएगी.
खोस्त में हुई उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में ओसामा ने यहूदियों और मुसलिम विरोधियों के खिलाफ इंटरनेशनल इस्लामिक फ्रंट फॉर जिहाद बनाने की घोषणा की थी. उसने यह आरोप भी लगाया था कि दुनिया भर में मुसलमानों की तकलीफों के पीछे अमेरिका और इजरायल का हाथ है.
अमेरिकी हमले के एक घंटे बाद अयमान अल जवाहिरी ने मुझे बताया कि ओसामा बच गया है, वह उस समय काफी गुस्से में था
अगली बार अगस्त 1998 में मिस्र के जिहादी नेता अयमान अल जवाहिरी ने मुझे बुलाया. वह मौका था जब अमेरिका ने अफ्रीका में अपने दूतावास पर बमबारी के बदले में कार्रवाई की थी. ओसामा उसके करीब ही बैठा था. अल जवाहिरी ने इस बात पर जोर दिया कि वह बम हमले में शामिल नहीं था. अमेरिका के हमले के एक घंटे बाद उसने दोबारा मुझे बुलाकर यह बताया था कि हमले में ओसामा बच गया है. वह गुस्से में था और उसने घोषणा की कि वह युद्ध के लिए तैयार है. जवाहिरी से मेरी चार घंटे तक बात हुई. पूरी रात हम चाय पीते रहे. बातचीत के दौरान वह सावधानी से यह बताता रहा कि अमेरिकी दूतावास पर बम हमले में उसका हाथ नहीं था हालांकि उसे इस बात की खुशी थी. उसने यह भी बताया कि इस तरह हमलों की योजना बनाना और करवाना उसका काम नहीं है बल्कि उसका काम यह है कि वह अमेरिका द्वारा मुसलमानों की प्रति की जा रही नाइंसाफी के खिलाफ लोगों को जागरूक करे और उन्हें अमेरिका के खिलाफ उकसाए. जवाहिरी को इस बात की खुशी थी कि उसका संदेश काम कर रहा है.
उसने मुझे यह भी बताया कि वह सऊदी अरब में अमेरिकी फौज की मौजूदगी से नाराज है. उसे लगता था कि अमेरिकी मक्का के बिलकुल नजदीक हैं और यह पूरे मुसलिम जगत को उकसाने के लिए की जा रही कार्रवाई है. जवाहिरी का मानना था कि इजरायल अमेरिकी पैसों और हथियारों के जरिए फििलस्तीनी जनता को सजा दे रहा है.
उसी साल दिसंबर में दूसरी बार उसने मुझे बुलाया. तब उसने लड़ाई में शहादत की अपनी इच्छा जाहिर की थी. उसका यह भी कहना था कि वह अपने पकड़े जाने तक अमेरिका के खिलाफ लड़ेगा और जेहाद के लिए जान दे देगा.
ओसामा से मेरी तीसरी मुलाकात और इंटरव्यू बेहद नाटकीय परिस्थितियों में हुआ. मैं अपने ऑफिस में बैठा हुआ था और मुझे अफगानिस्तान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित कंधार पहुंचने का संदेश मिला. यहां छह घंटे के इंतजार के बाद मेरा जिम्मा कुछ अरबी लोगों के एक समूह ने संभाला. इससे पहले मैं पहले सड़क के रास्ते पेशावर से इस्लामाबाद और फिर संयुक्त राष्ट्र के एक विमान से जलालाबाद व हेरात होते हुए कंधार पहुंचा था. यह बड़ी लंबी फ्लाइट थी और इस दौरान मैं पूरी रात नहीं सो पाया था. जब मैं कंधार पहुंचा तो दोपहर हो रही थी. उन दिनों रमजान चल रहा था और मेरे रोजे थे. काफी थका हुआ होने की वजह से मैंने इच्छा जाहिर की कि ओसामा का इंटरव्यू सुबह तक के लिए टल जाए ताकि मैं कुछ देर सो सकूं.
ओसामा के साथ इंटरव्यू की इजाजत मुझे मुल्ला उमर से मिली थी क्योंकि अलकायदा प्रमुख तक उसी की पहुंच थी. अरबी लोगों का जो समूह हमारे साथ था उसमें अल जवाहिरी और मिस्र का एक पुलिस अधिकारी शेख तासीर अब्दुल्ला भी था. 26 मई, 1998 को ओसामा ने अफगानिस्तान के खोस्त सूबे स्थित झावर के अल बद्र कैंप में जो प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी उसमें उसने अब्दुल्ला का परिचय अपने दाहिने हाथ के रूप में करवाया था. उसे मोहम्मद अतेफ और अबु हफ्स के नाम से भी जाना जाता था (बाद में अमेरिकी हमले में अब्दुल्ला की मौत के बाद जवाहिरी ने उसकी जगह ले ली). जवाहिरी चूंकि अच्छी अंग्रेजी जानता था इसलिए वह मेरे और ओसामा के बीच दुभाषिए का काम करने वाला था.
कंधार-हेरात रोड पर दो घंटे दौड़ने के बाद हमारी लैंडक्रूजर एक धूल भरे कच्चे रास्ते पर उतर गई. गाड़ी अब्दुल्ला चला रहा था. ऐसा लग रहा था कि हम शायद हेलमंद सूबे में हैं. रास्ते में अब्दुल्ला और अल जवाहिरी की मुझसे बात होती रही. उनका दावा था कि वे न तो मौत से डरते हैं न ही अमेरिका से. उनका कहना था कि यदि अमेरिका िफिलस्तीन पर इजरायल के कब्जे को समर्थन देना और इस्लामी देशों में हस्तक्षेप बंद कर दे तो उसे मुसलमानों के विरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा.
कुछ देर बाद हमें दूर कुछ धुंधलाती रोशनी दिखाई दी. काफी थके होने के चलते यह मेरे लिए राहत की बात थी क्योंकि हम अपनी मंजिल के करीब थे. रेगिस्तान में तीन बड़े तंबू लगे हुए थे और उनके आसपास अलाव जल रहे थे जिन पर रात के खाने के लिए कुछ पक रहा था. ओसामा के तंबू के बाहर एक जेनरेटर चल रहा था.
जिस तंबू के भीतर मेरी ओसामा से मुलाकात होनी थी वह काफी बड़ा था और आरामदेह भी क्योंकि उसमें घुसते ही मुझे बाहर की चिलचिलाती ठंड से राहत महसूस हुई. थोड़ी ही देर बाद कुछ हलचल हुई और ओसामा दाखिल हुआ. वहां मौजूद सभी लोग उसके सम्मान में खड़े हो गए. वह एक छड़ी के सहारे चल रहा था. यह देखकर मुझे याद आया कि खोस्त में हुई पिछली कॉन्फ्रेंस में उसके सहयोगियों ने उसके पीठ दर्द के बारे में बताया था जिसकी वजह से उसे छड़ी लेकर चलना पड़ता है.
तालिबान विदेश मंत्रालय के दो अधिकारी, जो कंधार से ही हमारे साथ चले थे, के अलावा ओसामा के एक दर्जन साथी और उसका बेटा मोहम्मद पूरे इंटरव्यू के दौरान ओसामा की बात बड़े ध्यान से सुनते रहे (बॉक्स देखें). ओसामा मुझसे दोबारा मिलकर खुश था. उसे इस बात की भी खुशी थी कि उसका इंटरव्यू टाइम मैगजीन, एबीसी न्यूज, बीबीसी और द न्यूज जैसी जगहों पर प्रकाशित होगा. साफ है कि वह चाहता था कि उसकी बात ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे और इसीलिए उसने मुझे चुना था.
इंटरव्यू के दौरान तीन घंटे ओसामा लगातार ग्रीन टी की चुस्कियां लेता रहा. वह हर सवाल का जवाब बेहद आराम से दे रहा था. उसका हर वाक्य अल्लाह और पैगंबर मोहम्मद की तारीफ से शुरू होता.
रात ढलने से थोड़ी ही देर पहले हम अपनी वापसी की यात्रा पर रवाना हो गए. अलजवाहिरी ने बताया कि उसने इंटरव्यू रात में इसलिए करवाया ताकि ओसामा पानी और चाय पीता रहे क्योंकि दिन में वह रोजे के कारण यह नहीं कर सकता था. मैं चाहता था कि इंटरव्यू दिन में हो और ओसामा की अच्छी फोटो खींच पाऊं. हालांकि मेरी समस्या का समाधान वहां एक व्यक्ति ने कर दिया था. उसने दो वैन की हेडलाइटें जला दीं जिससे मुझे फोटो खींचने में आसानी हो गई.
उस इंटरव्यू में ओसामा पहली बार अप्रत्यक्ष रूप से नैरोबी और दार-ए-सलाम (कीनिया की राजधानी में हुए इस हमले में 212 लोग मारे गए थे और तंजानिया के बम धमाके में 11 लोगों की मौत हुई थी) में हुए हमलों की जिम्मेदारी लेता दिखा. उसका कहना था कि यहूदियों और मुसलिम विरोधियों के खिलाफ बने उसके इंटरनेशनल इस्लामिक फ्रंट फॉर जिहाद ने एक फतवा जारी किया है. इसमें उम्मा (मुसलिम जगत) से मुसलिम देशों, जिनमें फिलिस्तीन की पवित्र भूमि भी शामिल है, को आजाद करवाने के लिए जिहाद करने का आह्वान किया गया था. उसने यह भी दावा किया कि पूरी दुनिया के मुसलमानों ने उसके फ्रंट के प्रति उत्साह दिखाया है.
ओसामा का कहना था, ‘यदि अल अक्सा मस्जिद और काबा को यहूदियों और अमेरिकियों के कब्जे से छुड़ाना जुर्म है तो ठीक है, इतिहास की नजरों में मुझे मुजरिम होने में कोई अफसोस नहीं है.’
हालांकि इस पूरी बातचीत का एक अहम पहलू यह भी था कि ओसामा ने अमेरिका में मौजूद स्वतंत्रता, अधिकार और संपन्नता के बारे में कुछ भी नहीं कहा. उसके हिसाब से अमेरिका की विदेश नीति इस्लाम की सबसे बड़ी दुश्मन थी. अपने हित साधने के लिए इस्लामी देशों की तानाशाही सरकारों को समर्थन देने के पश्चिमी रवैये की उसने जरूर आलोचना की थी.
आतंकवाद
31 मई 2011