देश में एनआरसी और नागरिकता क़ानून के आलावा एनपीआर पर मचे घमासान के बीच गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को साफ़ किया कि एनआरसी का एनपीआर से कुछ लेना देना नहीं है।
एक समाचार एजेंसी को दिए इंटरव्यू में शाह ने कहा – ”एनआरसी और एनपीआर में कोई संबंध नहीं है। मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि दोनों अलग-अलग चीजें हैं। फिलहाल एनआरसी बहस का मुद्दा नहीं है, क्योंकि अभी इसे देशभर में लागू करने पर कोई विचार नहीं किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सही कहा कि इस पर अभी केबिनेट या संसद में कोई बात नहीं हुई है।”
शाह ने कहा कि जनगणना और एनपीआर दोनों साथ चलने वाली प्रक्रियाएं हैं। उन्होंने कहा कि यह दस साल में होती है और २०११ में हुई थी लिहाजा २०२१ में होना जरूरी है। ”एनपीआर हमारे घोषणा पत्र का एजेंडा नहीं है। यह यूपीए सरकार का कानून है और यह अच्छी प्रक्रिया है। इसके लिए लाखों लोगों को ट्रेनिंग दी जानी है। हर राज्य में दफ्तर बनाए जाने हैं। हम अभी नहीं करेंगे तो यह समय से पूरा नहीं होगा। डेढ़ साल की प्रक्रिया है। अभी भी हम थोड़ा लेट हो गए हैं।”
गृह मंत्री ने कहा कि ”एनपीआर जनसंख्या के आधार पर योजनाओं का आकार और आधार बनता है। एनआरसी में लोगों से नागरिकता का सबूत मांगा जाता है। एनपीआर के लिए जो प्रक्रिया चलेगी, वह एनआरसी से संबंधित नहीं है। एनपीआर भाजपा ने नहीं शुरू किया है।”
उन्होंने कहा कि २००४ में यूपीए सरकार ने कानून बनाया था, जिसके तहत यह प्रक्रिया शुरू की गई। साल २०१० में जनगणना के वक्त इस प्रक्रिया को शुरू किया गया। सरकार कुछ नया नहीं लाई है। एनपीआर का कोई डाटा एनआरसी के उपयोग में आ ही नहीं सकता है। एनपीआर में कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा। अगर कोई जानकारी मौजूद नहीं है तो कोई बात नहीं।
शाह ने कहा कि ”कुछ चीजें एनपीआर में नई हैं। इनके आधार पर योजनाओं का खाका बनता है। अगर कोई इसका विरोध करता है तो वह गरीबों का विरोध कर रहा है। गुजरात में ओडिशा, यूपी, बिहार से लोग बस गए हैं। अब इन लोगों के लिए कोई योजना बनानी है तो इसका आधार क्या होगा कि ऐसे कितने लोग हैं।”
गृह मंत्री ने कहा कि २०१५ में इसका अपडेशन किया गया था, लेकिन दस साल में देश में उथल-पुथल मच जाती है। वो करें तो समस्या नहीं, हम करें तो समस्या है।
नागरिकता संशोधन कानून में किसी की नागरिकता लेने का प्रावधान नहीं है, नागरिकता देने का प्रावधान है। देश के मुस्लिमों को डरने की जरूरत नहीं है। एनपीआर का नोटिफिकेशन ३१ जुलाई को भेज दिया था। बहुत सारे राज्यों ने नोटिफाई किया था। सीएए के लिए जनता के मन में भय दूर हो गया है इसलिए कुछ लोग एनपीआर का भय खड़ा करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि बंगाल और केरल के मुख्यमंत्रियों से निवेदन करना चाहता हूं कि एनपीआर का विरोध न करें, ऐसा कदम न उठाएं। गरीब जनता को विकासशील कार्यक्रमों से दूर न रखें, उन्हें जोड़ें। इसका एनआरसी से कोई लेनादेना नहीं है।
शाह ने कहा- राजनीति और कम्युनिकेशन में अंतर है। हमने नोटिफिकेशन निकाला, सभी राज्यों ने उसे नोटिफाई किया। राजनीति यह है कि नया कुछ आ रहा है और इस पर भ्रम फैला दो। लोग नहीं समझते हैं, उन्हें समझाया जाता है।
सीएए पर हो रहे देशव्यापी प्रदर्शनों पर शाह ने कहा कि ”कम्युनिकेशन में कुछ खामी रही होगी। लेकिन, मेरा संसद का भाषण देख लीजिए कि किसी की नागरिकता जाने का प्रावधान ही नहीं है। भाषणों में ही स्पष्ट किया था कि नागरिकता देने का बिल है, लेने का नहीं। लेकिन, लोगों को भड़काया गया। एक के बाद एक जगहों पर हिंसा हुई, लेकिन मानता हूं कि यह अच्छा है कि जनता समझ गई।”