कोलकाता में ममता बनर्जी की रैली

कहा, कोई नहीं भेजा जायेगा बंगाल से बाहर

नागरिकता क़ानून और एनआरसी के देश भर में जबरदस्त विरोध के बीच मंगलवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपना विरोध तेज करते हुए शपथ ली कि राज्य में किसी भी सूरत में एनआरसी और नागरिकता क़ानून लागू नहीं किया जाएगा और बंगाल से किसी को बाहर नहीं भेजा जाएगा। उन्होंने कहा – ”जाना पड़ेगा तो हम सब जायेंगे।”

बड़ी संख्या में जुटे लोगों के साथ ममता ने मंगलवार को कोलकाता में नागरिकता कानून के खिलाफ पैदल मार्च निकाला। ममता ने तृणमूल समर्थकों के साथ रैली निकाली जो स्वामी विवेकानंद के घर से गांधी भवन तक गई। इस मौके पर अपने भाषण में ममता बनर्जी ने शपथ लेते हुए कहा – ”हम एनआरसी, सीएए को लागू नहीं करेंगे।  नो एनआरसी, नो सीएए। कोइ बंगाल नहीं छोड़ेगा। एनआरसी नहीं चलेगा, सीएए  नहीं चलेगा। कैब, एनआरसी वापस लो। काईन एनआरसी शर्म करो, शर्म करो।  बीजेपी शर्म करो। हम कौन हैं? नागरिक।”

उधर चेन्नई में सोमवार को नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ रैली करने के लिए डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन सहित आठ हजार लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। इन लोगों पर आरोप है कि पुलिस की अनुमति के बिना रैली निकाली।

इस बीच कर्नाटक के हुबली में नागरिकता कानून और एनआरसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ है।

गौरतलब है कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को भी कहा था कि केन्द्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार से भारत में लोकतंत्र खतरे में है। बनर्जी ने विपक्षी पार्टियों के मुख्यमंत्रियों और वरिष्ठ नेताओं को पत्र लिखकर उनसे एकजुट रहने और ‘‘देश बचाने” के लिए योजना बनाने का अनुरोध किया था। उन्होंने संशोधित नागरिकता कानून और प्रस्तावित एनआरसी के खिलाफ देश में प्रदर्शनों के बाद उपजी मौजूदा स्थिति को ‘‘गंभीर” बताया और सभी गैर-भाजपा दलों से एक साथ आने और केन्द्र सरकार के ‘‘दमनकारी शासन’ के खिलाफ खड़े होने का आग्रह किया था।

पता चला है कि बनर्जी की तरफ से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला समेत कई विपक्षी नेताओं को भेजे गये हैं। पत्र में कहा गया है – ”आज, मैं अपने मन में गंभीर चिंताओं के साथ आपको यह पत्र लिख रही हूं। देश के नागरिक जाति और पंथ की परवाह किए बिना, विशेषकर महिला और बच्चे, किसान, श्रमिक और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों के सदस्य संशोधित नागरिकता कानून और प्रस्तावित राष्ट्रव्यापी एनआरसी  को लेकर भय और दहशत की चपेट में हैं।  स्थिति बहुत गंभीर है। आज, पहले से कहीं ज्यादा, हमें एकजुट तरीके से इस दमनकारी शासन के खिलाफ खड़े होने की जरूरत है।”