एक रैंक-एक पेंशन विवाद

क्या है वन रैंक-वन पेंशन का मामला?   

सेवानिवृत्त सैनिकों को मिलने वाली पेंशन में असमानता के चलते देश भर के लाखों पूर्व सैनिक प्रभावित हो रहे हैं. इन्हीं असमानताओं के विरोध में पूर्व सैनिक पिछले 30 साल से ‘वन रैंक-वन पेंशन’ की मांग कर रहे हैं. ‘वन रैंक-वन पेंशन’ का तात्पर्य है कि समान वर्ष तक सेवा प्रदान करने वाले और एक ही पद से सेवानिवृत हुए सैनिकों को (चाहे उनके सेवानिवृत्त होने की तिथि कोई भी हो) समान पेंशन दी जाए जिसमें सभी वृद्धियां शामिल हों. वर्तमान में 2006 से पहले और उसके बाद सेवानिवृत्त हुए सैनिकों की पेंशन में यह अंतर सबसे ज्यादा है. पूर्व सैनिकों की मांग है कि उनकी पेंशन समान की जाए.

क्या है सरकार का रुख? 

पेंशन के इस अंतर को कम करने हेतु केंद्र सरकार द्वारा पहले भी दो बार पूर्व सैनिकों की पेंशन में वृद्धि की जा चुकी है. इसके बाद भी जब ‘वन रैंक-वन पेंशन’ का मुद्दा नहीं सुलझाया जा सका तब प्रधानमंत्री ने कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय जांच समिति का गठन किया. समिति के निर्देशानुसार 24 सितंबर को सैनिकों की पेंशन में वृद्धि हेतु 2,300 करोड़ रूपये स्वीकृत किए गए. इस स्वीकृति के साथ ही यह घोषणा भी की गई कि ‘वन रैंक-वन पेंशन’ का मुद्दा सुलझाया जा चुका है. 

इस घोषणा के बाद भी पूर्व सैनिक क्यों नाराज हैं?   

 2,300 करोड़ रुपये स्वीकृत करके सरकार पेंशन के इस अंतर को कम करने का दावा कर रही है, मगर पूर्व सैनिकों की मांग है कि इस अंतर को कम नहीं बल्कि पूर्ण रूप से खत्म किया जाए. पेंशन में इससे थोड़ी वृद्धि हुई है, मगर अब भी 2006 से पहले और उसके बाद एक ही पद से सेवानिवृत्त हुए सैनिकों की पेंशन में भी अंतर मौजूद है. पूर्व सैनिकों के अनुसार ‘वन रैंक-वन पेंशन’ का उद्देश्य यह भी है कि किसी भी अवस्था में किसी सीनियर को अपने जूनियर से कम पेंशन ना मिले. इस घोषणा के बाद भी यह उद्देश्य अधूरा है.

-राहुल कोटियाल