दो हत्याएं, तीन जांच टीमें, पांच संदिग्ध, दो आरोपित, 39 सरकारी गवाह, दर्जन भर बचाव पक्ष के गवाह, सबूत के तौर पर 247 नमूने, सैकड़ों रिपोर्टें और हजारों दस्तावेज. यही सब आरुषि-हेमराज हत्याकांड में न्यायालय के सामने था. न्यायालय से बाहर की बात करें तो ऑनर किलिंग, बीवियों की अदला-बदली, सौतेली संतान, अवैध शारीरिक संबंध और मृत बच्ची के मां-बाप का असामान्य व्यवहार जैसी बातें भी इस मामले से जुड़ती रही हैं. इन सब बातों ने मिलाकर ही पिछले पांच साल से इस मामले को देश का सबसे चर्चित और जटिल हत्याकांड बना दिया. यही कारण था कि 25 नवंबर को जब सीबीआई की विशेष अदालत में इस मामले का फैसला आना था तो सारे देश की निगाहें इस पर टिकी हुई थीं. हर व्यक्ति इस मामले में न्याय चाहता था, लेकिन हर किसी के लिए न्याय की परिभाषा अलग थी. कई लोगों का मानना था कि डॉक्टर दंपति ने अपनी 14 वर्षीया बेटी और घरेलू नौकर की हत्या की है तो उनके लिए कड़ी से कड़ी सजा भी कम है. लेकिन कई लोगों का यह भी तर्क था कि यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया तो इससे बड़ा अन्याय किसी भी माता-पिता के साथ नहीं हो सकता.
इस मामले को नजदीक से समझने वाले पत्रकारों और न्यायिक जानकारों की मानें तो इस मामले में अभियोजन पक्ष बहुत ही कमजोर था. आम तौर पर यह जिम्मेदारी अभियोजन पक्ष की ही होती है कि वह संदेह से परे आरोपित के दोष को सिद्ध करे. न्याय का सिद्धांत भी यही कहता है कि भले ही सौ दोषी छूट जाएं लेकिन एक भी निर्दोष को सजा न हो. बीती 25 नवंबर को जब न्यायालय का फैसला आया तो सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एस लाल ने अपने 208 पन्नों के फैसले में इसी सिद्धांत पर विस्तार से चर्चा करते हुए आरोपित राजेश और नूपुर तलवार को दोषी करार दिया. उन्होंने दोनों आरोपितों को भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 34 और 201 के अंतर्गत उम्रकैद की सजा सुनाई. साथ ही दोनों आरोपितों पर 15 हजार रुपए का आर्थिक दंड भी लगाया गया. इसके अलावा राजेश तलवार को धारा 203 के अंतर्गत भी दोषी पाया गया और उन्हें एक साल कैद और दो हजार रुपये आर्थिक दंड की अतिरिक्त सजा भी सुनाई गई.
इस फैसले में न्यायालय ने जिस नियम को केंद्र में रखा है वह है भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106. यह धारा इस बात का अपवाद है कि अभियोजन अपना मामला संदेह से परे साबित करे. इस धारा के अनुसार यदि कोई तथ्य ‘विशेषतः’ किसी व्यक्ति के ज्ञान में है, तब उसे साबित करने का भार उसी व्यक्ति पर है.
इसी धारा को केंद्र में रखते हुए न्यायालय ने माना कि आरुषि के घर में हत्या वाली रात सिर्फ चार लोग मौजूद थे. रात को लगभग 9.30 बजे ड्राइवर उमेश ने चारों को घर पर देखा था. इसके बाद किसी भी बाहरी व्यक्ति के उस रात घर में आने का कोई भी साक्ष्य न्यायालय को नहीं मिला. इसके बाद सुबह छह बजे नौकरानी भारती सबसे पहले उस घर में आई. तब तक दोनों हत्याएं हो चुकी थीं और दोनों आरोपित घर में मौजूद थे. इन परिस्थितियों में आरोपितों को संदेह का लाभ नहीं दिया जा सकता. साथ ही न्यायालय द्वारा यह भी कहा गया कि इन परिस्थितियों में अभियोजन से अपेक्षा भी नहीं की जा सकती कि वह संदेह से परे और गणित के सूत्रों की तरह आरोपितों का दोष सिद्ध कर सके.
न्यायाधीश एस लाल ने ‘संदेह से परे सबूत’ के सिद्धांत की उत्पत्ति का जिक्र भी अपने फैसले में किया है. उन्होंने न्यायिक सुधारों के लिए बनाई गई समिति का हवाला देते हुए बताया है, ‘संदेह से परे सबूत के सिद्धांत की उत्पत्ति यूनाइटेड किंगडम के ‘पंच परीक्षण’ के संदर्भ में हुई थी. आरोपित के दोष पर सजा देना पंचों की जिम्मेदारी होती थी. चूंकि वे प्रशिक्षित न्यायाधीश नहीं होते थे, इसलिए आरोपित के अधिकारों का ध्यान रखे बिना ही किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकते थे. इसलिए संदेह से परे सबूत का सिद्धांत अस्तित्व में आया था.’ एस लाल ने यह भी माना कि यदि हर मामले में संदेह से परे सबूत के सिद्धांत को माना जाए तो दोषियों को सजा देना असंभव हो जाएगा. उन्होंने अपने इस फैसले के समर्थन में 1947 से लेकर 2013 तक के सर्वोच्च न्यायालय के अलग-अलग 29 फैसलों का हवाला दिया है.
दोष-सिद्धि के 26 कारण
न्यायाधीश एस लाल ने अपने फैसले में एक-एक कर बचाव पक्ष के हर तर्क को नकारा है और यह माना है कि सिर्फ आरोपित आरुषि और हेमराज के कातिल हैं. इस फैसले पर पहुंचने के उन्होंने 26 कारण बताए हैं जो इस प्रकार हैं:
1. राजेश तलवार के ड्राइवर उमेश शर्मा द्वारा 15-16 मई, 2008 की रात लगभग 9.30 बजे दोनों आरोपितों को ही अंतिम बार मृतकों के साथ देखा गया था.
2. 16 मई, 2008 की सुबह लगभग छह बजे आरुषि अपने कमरे में मृत पाई गई. यह कमरा आरोपितों के कमरे से बिल्कुल लगा हुआ था और बीच में सिर्फ एक दीवार थी.
3. हेमराज का खून से सना हुआ शव 17 मई, 2008 को फ्लैट संख्या 32 की छत पर पड़ा मिला और छत के दरवाजे का ताला भीतर से लगा हुआ था.
4. ‘आरोपितों को अंतिम बार मृतकों के साथ देखे जाने का समय’ और ‘हत्या का समय’ काफी नजदीक है. इतने कम समय में आरोपितों के अलावा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा अपराध की संभावनाएं असंभव हो जाती हैं.
5. आरुषि के कमरे के दरवाजे पर ऑटोमैटिक ताला था. अभियोजन साक्षी नंबर 29 महेश कुमार मिश्रा (तत्कालीन एसपी) द्वारा बताया गया है कि 16 मई की सुबह उन्होंने राजेश तलवार से बात की थी. राजेश ने उन्हें बताया था कि ‘पिछली रात लगभग 11.30 बजे मैं आरुषि के कमरे को बाहर से बंद करने के बाद चाबी लेकर सोने चला गया था.’ दोनों आरोपितों ने माना है कि आरुषि का दरवाजा बाहर से बिना चाबी के नहीं खुल सकता लेकिन अंदर से खोला जा सकता है. आरोपित द्वारा इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि आरुषि के कमरे का दरवाजा कैसे और किसने खोला.
6. घटना वाली रात को इंटरनेट चलता रहा जो यह बताता है कि दोनों में से एक आरोपित तो रात भर उठा हुआ था.
7. यह किसी भी तथ्य से पता नहीं चलता कि घटना वाली रात को 9.30 बजे के बाद कोई भी बाहरी व्यक्ति घर में आया हो.
8. उस रात को एक बार भी बिजली नहीं गई थी.
9. उस रात को घर के नजदीक कोई भी संदिग्ध व्यक्ति घूमते हुए नहीं देखा
गया था.
10. घटना वाली रात को घर में किसी के भी बलपूर्वक घुसने का कोई साक्ष्य
नहीं है.
11. घर में किसी भी तरह की चोरी का कोई साक्ष्य नहीं हैं.
12. 16 मई की सुबह जब कामवाली आई तो नूपुर तलवार द्वारा उससे झूठ कहा गया कि हेमराज द्वारा दरवाजा बाहर से बंद किया गया है, जबकि दरवाजा बंद नहीं था.
13. भारती ने कहीं भी यह बयान नहीं दिया है कि जब वह घर के अंदर आई तो आरोपित रो रहे थे.
14. भारती के बयान से यह साफ है कि जब वह घर में आई और उसने नूपुर तलवार से बात की तो नूपुर ने उसे अपनी बेटी की हत्या के बारे में नहीं बताया, बल्कि उसने जान-बूझ कर यह कहा कि हेमराज लकड़ी का दरवाजा बाहर से बंद करके शायद दूध लेने गया है. दोषी व्यक्ति का ऐसा व्यवहार भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 8 के अनुरूप है.
15. दोनों आरोपितों के कपड़े खून से सने हुए नहीं मिले. यह अप्राकृतिक है कि आरुषि के मां-बाप उसे मृत पाने पर भी उससे लिपट कर और उसे गले लगा कर रोएंगे नहीं.
16. कोई बाहरी व्यक्ति यह साहस नहीं कर सकता कि गंभीर रूप से घायल हेमराज को छत तक लेकर जाए और फिर ताला ढू़ढ़ कर छत के दरवाजे पर लगाए.
17. यह संभव नहीं है कि कोई भी बाहरी व्यक्ति दो हत्याएं करने के बाद घर में शराब पीने का साहस जुटा पाए जबकि तलवार दंपति बगल वाले कमरे में ही सो रहा हो. बाहरी व्यक्ति की प्राथमिकता होगी कि वह जल्द-से-जल्द हत्या वाली जगह से फरार हो जाए.
18. कोई भी बाहरी व्यक्ति हेमराज के शव को छत पर लेकर जाने की चिंता नहीं करेगा. और एक अकेला व्यक्ति शव को छत तक लेकर जा भी नहीं सकता.
19. घटना से पहले छत के दरवाजे पर कभी भी ताला नहीं होता था, लेकिन 16 मई की सुबह वहां ताला लगा हुआ था और आरोपितों ने उसकी चाबी पुलिस के मांगने के बावजूद नहीं दी.
20. आरोपितों ने खुद ही दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 के अंतर्गत हुए बयानों में यह कहा है कि ‘घटना से लगभग आठ-दस दिन पहले पड़ोस में पुताई का काम चल रहा था. ऐसे में मजदूर घर की छत पर लगी टंकी में से पानी लेने आते थे. इसलिए हेमराज ने ही छत पर ताला लगाना शुरू किया और उस ताले की चाबी हेमराज के पास ही होती थी.’ यदि ऐसा है तो किसी बाहरी व्यक्ति के लिए उस चाबी को ढूंढ़ना आसानी से संभव नहीं है.
21. यदि यह अपराध किसी बाहरी व्यक्ति द्वारा छत पर ताला लगाने के बाद किया गया होता तो घर से बाहर जाने के बाद सबसे बाहर वाला या बीच वाला जाली का दरवाजा निश्चित रूप से बाहर से बंद मिलता.
22. अपराध का उद्देश्य स्थापित हो चुका है.
23. यह संभव नहीं है कि कोई भी बाहरी व्यक्ति अपराध के बाद घटनास्थल की सफाई करे.
24. गोल्फ क्लब नंबर पांच को हत्या करने के बाद परछत्ती पर फेंक दिया गया था और उसे कई महीनों बाद राजेश तलवार द्वारा प्रस्तुत किया गया.
25. दोनों मृतकों के सिर और गले में आई चोटें लगभग समान हैं और यह संभव है कि ये चोटें गोल्फ क्लब और स्कैल्पेल (सर्जिकल ब्लेड) से आई हों.
26. आरोपित राजेश तलवार नोएडा गोल्फ क्लब के सदस्य थे और गोल्फ क्लब उन्हीं के द्वारा सीबीआई को दिए गए थे. और स्कैल्पेल दंत चिकित्सक द्वारा इस्तेमाल किया जाता है. यहां दोनों आरोपित दंत चिकित्सक हैं.
अपवादों का अपवाद
ऊपर लिखे सभी बिंदुओं को न्यायाधीश एस लाल ने सभी गवाहों और सबूतों को देखने के बाद स्थापित पाया है. लेकिन कानून के जानकारों की मानें तो ऊपरी अदालत में यह फैसला पलटा जा सकता है. दरअसल एस लाल ने इस फैसले में एक साथ कई ऐसी बातों को अपराध सिद्ध करने के लिए इस्तेमाल किया है जो अपवादस्वरूप ही देखने को मिलती हैं. जैसे भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 को इस मामले में लागू किया गया है. सिर्फ परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के आधार पर सजा दिया जाना भी कम ही देखने को मिलता है. साथ ही अपराध का स्पष्ट उद्देश्य स्थापित न होने पर, अपराध में इस्तेमाल किया जाने वाला हथियार बरामद न होने पर और जांच में भारी कमियां होने पर सामान्यतः आरोपित को ही फायदा होता है. लेकिन इस मामले में फिर भी आरोपित को दोषी करार दिया गया है.
एस लाल ने अपने फैसले में हर अपवाद को न्यायोचित ठहराने के लिए दर्जनों नजीरें तो पेश की हैं. लेकिन इन नजीरों में अलग-अलग सिर्फ एक या दो अपवाद ही नजर आते हैं. ऐसे में इतने अपवादों को एक साथ मिलाकर दिया गया यह फैसला शायद ही ऊपरी अदालतों में टिक पाए.
उलटफेर के तथ्य
तथ्यों की भी बात करें तो ऐसे तमाम तथ्य हैं जिनके आधार पर ऊपरी अदालतें तलवार दंपति के पक्ष में फैसला दे सकती हैं. इनमें मुख्य हैं:
1. नार्को टेस्ट में नौकरों ने अपराध करना स्वीकार किया.
2. सीबीआई के कई लोगों ने यह बयान दिया था कि नौकरों ने अपने बयानों में भी अपराध स्वीकार किया है.
3. तलवार दंपति के नार्को में कुछ भी ऐसा नहीं पाया गया जिससे उसकी अपराध में संलिप्तता स्थापित होती हो.
4. नौकर कृष्णा के तकिये से हेमराज का खून मिला था (हालांकि सीबीआई द्वारा कहा गया कि यह सिर्फ टाइपिंग की गलती के कारण हुआ है).
5. नार्को में नौकरों ने यह भी बताया कि घटना वाली रात वे सभी हेमराज के कमरे में शराब पी रहे थे और टीवी पर एक नेपाली गाना चल रहा था. इस बात की पुष्टि सीबीआई ने नेपाली चैनल से भी की थी और यह स्थापित हुआ था कि उस रात वही गाना चैनल पर चलाया गया था.
6. सीबीआई टीम द्वारा तलवार के घर पर एक साउंड टेस्ट किया गया था. इसमें पाया गया कि यदि दोनों कमरों में एसी चल रहे हों तो एक कमरे की आवाज दूसरे में नहीं सुनाई पड़ती.
7. आरुषि और हेमराज के पोस्टमार्टम में कुछ भी असामान्य नहीं पाया गया था. लेकिन पोस्टमार्टम करने वाले दोनों डॉक्टरों ने लगभग एक साल बाद नए तथ्य जोड़ते हुए बयान दिए. न्यायाधीश एस लाल ने यह तो माना कि आरुषि का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर दोहरे ने यह भारी चूक की है लेकिन फिर भी उनके बयान को स्वीकार कर लिया.
8. इस बात का कोई भी सबूत नहीं है कि हेमराज की हत्या आरुषि के कमरे में
हुई हो.
9. राजेश और नूपुर तलवार के कपड़ों पर सिर्फ आरुषि का खून मिला. हेमराज का खून उनके कपड़ों पर नहीं था. जबकि उस रात आरुषि द्वारा खींची गई तस्वीरों में आरोपितों ने जो कपड़े पहने हैं वही उन्होंने अगली सुबह भी पहने हुए थे.
10. कई डॉक्टरों के पैनल ने यह बताया था कि हत्या खुखरी से किया जाना संभव है. पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर भी इस पैनल का हिस्सा थे. बाद में पोस्टमार्टम करने वाले दोनों डॉक्टरों ने अपने बयान और राय बदली.
इन तमाम पहलुओं के कारण ही तलवार दंपति इलाहाबाद हाई कोर्ट जाने की तैयारी कर रहा है. एस लाल के फैसले पर उनके वकील तनवीर अहमद मीर कहते हैं, ‘मैंने सीबीआई के केस को पूरी तरह से धराशायी कर दिया. लेकिन मैं एक जज को नहीं हरा सकता जब वो मेरे खिलाफ हो.’
तलवार दंपति के अन्य वकील भी आज यह दावा कर रहे हैं कि यह फैसला ऊपरी अदालतों में एक पल भी नहीं टिक सकता. लेकिन यदि यह मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच कर भी नहीं बदला तो यह एक ऐसी नजीर बन जाएगा जिसके चलते आरोपितों के बच निकलने की संभावनाएं बहुत कम हो जाएंगी. यह भी मुमकिन है कि ऐसा होने पर कुछ निर्दोषों को भी सजा हो जाए.
वैसे भी इस फैसले में न्यायालय ने माना है कि अब वह समय नहीं है जब सौ दोषियों के छूट जाने वाले सिद्धांत पर चला जाए.