मुनीर-इमरान में छिड़ी जंग पाकिस्तान सरकार पर भी पड़ सकती है भारी
पाकिस्तान में किसी बड़े घटनाक्रम की आहट मिल रही है। अगले वित्त वर्ष के लिए देश के रक्षा बजट में 10 जून को सीधे 15.5 फीसदी की बढ़ोतरी कर इसे 1.8 लाख करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव किया गया, जबकि पाकिस्तान ढेरों आर्थिक संकटों से दो-चार है। देश के रक्षा बजट में यह बढ़ोतरी इन रिपोट्र्स के बीच की गयी है कि पाकिस्तान में सेना पुराने दौर की तरह ताक़तवर हो रही है।
विपक्षी नेता पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को राजनीतिक रूप से ख़त्म करने के लिए सेनाध्यक्ष आसिम मुनीर समर्थक अफ़ीसर जी-जान से जुट गये हैं, जबकि सेना के भीतर अन्य अफ़ीसर इमरान ख़ान का समर्थन कर रहे हैं। प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ी ने आसिम मुनीर को सेना प्रमुख इसलिए बनाया था कि वे उनके ज़रिये इमरान ख़ान को सबक़ सिखा सकेंगे। लेकिन जिस तरह हाल के दिनों में जनरल मुनीर ताक़तवर हुए हैं, उससे अब ख़ुद शहबाज़ शरीफ़ी अपनी सरकार को असुरक्षित महसूस करने लगे हैं।
मुनीर का हाल में दिया यह बयान ग़ौर करने लायक है, जिसमें उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान में सेना से बड़ा कोई नहीं। उनके कहने का मतलब यह भी निकलता है कि शहबाज़ सरकार भी उनके सामने छोटी अर्थात् उनके रहम-ओ-क़रम पर है। लेकिन इसके बावजूद एक सच यह भी है कि सेना के भीतर भी उठापटक है। सेना इमरान ख़ान और आसिम मुनीर समर्थक हिस्सों में बँटी हुई है।
पाकिस्तान के अख़बार ‘द फ्राइडे टाइम्स’ में हाल में यह रिपोर्ट छपी थी कि एक वरिष्ठ पाकिस्तानी पत्रकार सईद इमरान सफ़ाक़त ने ख़ुलासा किया है कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को बताया गया है कि अगले कुछ दिन में पाकिस्तानी सेना के भीतर विद्रोह हो सकता है और सेना के कुछ अधिकारी जनरल असीम मुनीर का ‘कोर्ट मार्शल’ कर सकते हैं।
इससे पहले यह रिपोर्ट आयी थी कि सेना में विद्रोह दबाने के लिए 160 से ज़्यादा अफ़ीसरों-छोटे अधिकारियों को बर्ख़ास्त कर दिया गया है। इसका ख़ुलासा भी पत्रकार सईद इमरान सफ़ाक़त ने ही किया है। पाकिस्तान की सेना में विद्रोह कोई नयी बात नहीं है। वहाँ सेना राजनीतिक बँटी रहती है। यह दशकों से हो रहा है। हालाँकि कहा जा रहा है कि इस बार मामला गंभीर क़िस्म का है। पाकिस्तानी पत्रकार का दावा है कि दो हफ्ते के बीच पाकिस्तानी सेना में ‘कुछ बड़ा’ हो सकता है। भीतरी विद्रोह की स्थिति बनती है, तो मार्शल लॉ लगाए जाने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।
पाकिस्तान सेना में जनरल आसिफ़ी मुनीर के नेतृत्व वाले अफ़ीसर इमरान ख़ान की पार्टी पीटीआई को ख़त्म करने में जुट गये हैं। पाकिस्तान में 9 मई को जब पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की गिरफ़्तारी हुई थी, तो पूरे देश में उनके समर्थकों में $गुस्सा फैल गया। बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन और सेना और सरकार की अन्य इमारतों में तोड़-फोड़ हुई। बेशक सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इमरान को रिहा कर दिया गया; लेकिन उसके बाद की घटनाओं से ज़ाहिर होता है कि सेना ने ठान लिया है कि वह इमरान ख़ान को राजनीतिक रूप से कमज़ोर कर देगी। इमरान ख़ान नाम लेकर सेना के बड़े अफ़ीसरों पर लगातार निशाना साध रहे हैं।
इमरान ख़ान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ी (पीटीआई) पार्टी बहुत कुछ इमरान ख़ान के करिश्मे पर निर्भर है। उनकी लोकप्रियता भी हाल के महीनों में चरम पर दिखी है। इमरान लगातार सेना के कुछ अधिकारियों को उन्हें सत्ता से बेदख़ल करने का आरोप लगाते रहे हैं। कई जानकारों कहना है कि बेशक इमरान सेना के एक मज़बूत गुट पर हमले कर रहे हों, वह फ़िलहाल बैकफुट पर जाने को मजबूर किये गये हैं। इसके लिए विरोधियों, जिनमें सत्तारूढ़ शरीफ़ी सरकार और सेना दोनों शामिल हैं, उनके नेताओं को उनसे तोडक़र पीटीआई छोडऩे के लिए मजबूर कर रहे हैं। हाल में उनके बेहद नज़दीकी नेताओं, जिनमें उनके सबसे चहेते फ़ीवाद चौधरी भी शामिल हैं; सहित क़रीब 80 बड़े नेता इमरान ख़ान की पार्टी को छोड़ चुके हैं।
अमेरिका स्थित मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट से जुड़े आरिफ़ी र$फीक़ ने हाल में कहा था कि जब साल 2018 में इमरान ख़ान को सत्ता से बाहर होना पड़ा था, जनता के लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ी थी। यह सिलसिला हाल के महीनों तक जारी रहा। लेकिन अब सना ने जो रुख़ अ$िख्तयार किया है, उससे इमरान मुश्किल स्थिति में दिखते हैं। उनके मुताबिक, जिस तेज़ी से इमरान ख़ान के साथी नेता उन्हें छोडक़र जा रहे हैं, उससे साफ़ी है कि उनकी पार्टी को नेस्तनाबूद करने की कोशिश है। आरिफ़ी भी मानते हैं कि ऐसी स्थिति देश को $फौजी हुकूमत की तरफ़ी ले जा सकती है।
इमरान ख़ान और उनके लोगों, जिन पर 9 मई की हिंसा में शामिल होने के इल्ज़ाम हैं; के ख़िलाफ़ी मिलिट्री कोर्ट में केस चलने की बात सेना कह चुकी है। इमरान पर सार्वजनिक सभाएँ करने की पाबन्दी लगा दी गयी है। पाकिस्तान की राजनीति पर नज़र रखने वालों का मानना है कि अब इमरान ख़ान की पार्टी पीटीआई के ख़िलाफ़ी और उसे बदनाम करने के लिए ऐसे कट्टरपंथी और आतंकी धड़ों को रैलियाँ करने के लिए आगे किया जा सकता है, जो सेना के समर्थक हैं। बीच में पाकिस्तान का जो मीडिया एस्टैब्लिशमेंट (सेना) और शरीफ़ी सरकार के ख़िलाफ़ी थोड़ा बहुत बोल भी लेता था, वह भी डरकर चुप बैठ गया है।
हमलों के पीछे कौन?
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की 9 मई को गिरफ़्तारी और उसके बाद हुए उपद्रव और सेना और सरकारी भवनों पर हुए हमलों के लिए अभी तक इमरान की पार्टी के लोगों को ज़िम्मेदार माना जाता रहा है। लेकिन रिपोट्र्स के मुताबिक, सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को एक रिपोर्ट सौंपी गयी है, जिसमें इन हमलों में शरीफ़ी सरकार के इशारे पर देश के ख़ुफ़िया ब्यूरो ने रोल अदा किया था। यह रिपोर्ट किसी और नहीं, मिलिट्री इंटेलिजेंस (एमआई) ने तैयारी की। इससे शरीफ़ी सरकार के लिए मुसीबत पैदा हो सकती है। हालाँकि यह भी हो सकता है कि सरकार और जनरल मुनीर की सेना ने मिलकर यह करवाया हो।
रिपोर्ट में इमरान की गिरफ़्तारी के बाद कुछ सैन्य ठिकानों पर हमले सरकार के इशारे पर करने की बात कही गयी है। रिपोर्ट के मुताबिक, गृह मंत्रालय के निर्देश पर सेना की सम्पत्ति को नुक़सान पहुँचाने के लिए ख़ुफ़िया ब्यूरो ने सरकार समर्थकों को उकसाया था। रिपोर्ट के दावे को सही माना जाए, तो निष्कर्ष यह निकलता है कि ऐसा करके सरकार इमरान की पार्टी को सीधे सेना के सामने खड़ा कर देना चाहती थी। इमरान के ख़िलाफ़ी पाकिस्तान में 150 से ज़्यादा केस दर्ज हो चुके हैं। यह माना जाता है कि शरीफ़ी सरकार की नीति ज़्यादातर लन्दन में बैठे पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ी के इशारे पर तय होती है। शरीफ़ी को इमरान ख़ान का कट्टर विरोधी माना जाता है। वह चाहते हैं कि इमरान ख़ान पर पाबंदी लग जाए। पाकिस्तान के जानकारों के मुताबिक, इमरान ख़ान को सत्ता से बाहर करने के पीछे भी नवाज़ शरीफ़ी की रणनीति थी। अब वह इमरान ख़ान पर पाबंदी का अवसर तलाश रहे हैं। हाल में राष्ट्रीय सुरक्षा समिति (एनएससी) की बैठक में भी इमरान की पार्टी पीटीआई पर पाबंदी के लिए सहमति की कोशिश की आयी थी; लेकिन सरकार में ही गठबन्धन सहयोगी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता बिलावल भुट्टो ने इसका विरोध कर नवाज़ की योजना पर पानी फेर दिया था। नवाज़ शरीफ़ी के क़रीबी गृह मंत्री राणा सनाउल्ला तो यह तक कह चुके हैं कि ‘इमरान देश की सियासत को आज ऐसे मोड़ पर ले आये हैं, जहाँ हममें से केवल एक ही अस्तित्व में रह सकता है। अगर बात हमारे अस्तित्व पर आयी, तो ऐसा कोई भी क़दम उठाने से नहीं चूकेंगे, जो चाहे लोकतांत्रिक हो या न हो।’
समझा जा सकता है कि नवाज़ और इमरान के बीच राजनीतिक कटुता किस हद तक पहुँच चुकी है। इमरान तमाम दि$क्क़तों में फँसे होने के बावजूद देश में जल्द चुनाव कराने पर ज़ोर दे रहे हैं। फ़िलहाल तो शरीफ़ी बंधु सेना को इमरान ख़ान ख़िलाफ़ी खड़ा करने में सफल रहे हैं, जिसके जनरल आशिम मुनीर ख़ुद इमरान ख़ान को सख्त नापसन्द करते हैं।
“मैंने सेना प्रमुख से मुझसे बात करने के लिए कहा; लेकिन वो बात करना ही नहीं चाहते। मुझे लग रहा है कि मेरा कोर्ट मार्शल कराने की तैयारी हैं। मुझे 9 मई की हिंसा का मास्टरमाइंड और योजनाकार बताकर मिलिट्री कोर्ट में पेश किया जाएगा। मैंने हत्या के दो प्रयास झेले हैं और अब मेरे लिए मिलिट्री कोर्ट बनायी जा रही हैं। मैं अपने मुल्क के लिए लड़ रहा हूँ और आगे भी लड़ता रहूँगा।’’
इमरान ख़ान
पूर्व प्रधानमंत्री, पाकिस्तान
मुनीर की चुनौतियाँ
सेना प्रमुख आसिम मुनीर भी जानते हैं कि उनके लिए इमरान ख़ान को किनारे लगाना उतना आसान नहीं है। सेना में काफी लोग मुनीर के ख़िलाफ़ी हैं। इनमें से एक लेफ्टिनेंट जनरल गनी हैं, जिन्हें जनरल मुनीर ने हाल में अनधिकृत रूप से बर्ख़ास्त कर दिया था। गनी अब मुनीर के ख़िलाफ़ी आवाज़ उठा रहे हैं और माना जाता है कि मिलिटरी एस्टेब्लिशमेंट में उन्हें कई अफ़ीसरों का समर्थन हासिल है। ऐसे में इमरान को संकट में डालने के बावजूद पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख के लिए सेना के भीतर ही चुनौती है।