हरियाणा सरकार पर ख़तरे के बादल

हरियाणा में इन दिनों भाजपा-जननायक जनता पार्टी (जजपा) गठबंधन सरकार में कुछ खटास पैदा हो गयी है। अटकलें गठबंधन टूटने और सरकार को ख़तरे जैसी पेश की जा रही है, पर धरातल पर ऐसा कुछ भी नहीं है। खटास, तकरार, मतभेद और विवाद शुरू से होते रहे हैं; पर यह तूफ़ान भी शान्ति से गुज़र जाएगा। ऐसा पहली बार नहीं हुआ, बल्कि कई मौक़े ऐसे आये, जिसमें लगा गठबंधन सरकार ज़्यादा समय तक नहीं चलेगी। आपसी मतभेदों के बावजूद सरकार बदस्तूर चल रही है और उम्मीद के मुताबिक पाँच साल तक चलेगी।

पिछले दिनों ही प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने स्पष्ट कहा कि गठबंधन सरकार अच्छी तरह से चल रही है और आगे भी चलेगी, कहीं कोई दिक़्क़त नहीं है। गठबंधन टूटने के फ़ायदे और नुक़सान भाजपा और जजपा दोनों के नेता बख़ूबी समझते हैं। यह सही है कि भाजपा बिना जजपा के भी निर्दलीय विधायकों के बूते सरकार चला सकती है; लेकिन वह ऐसा ख़तरा भला क्यों उठाना चाहेगी। समय से पहले गठबंधन टूटने का सबसे ज़्यादा नुक़सान तो भाजपा को ही होगा; क्योंकि जजपा के पास अब खोने को बहुत कुछ नहीं है।

भ्रष्टाचार और बेक़ायदगी के कुछ मामलों के अलावा किसान आन्दोलन के बाद जजपा अपने ही कोर मतदाताओं के निशाने पर है। सरकार में रहने के बावजूद जजपा का ग्राफ गिरा है। इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) से अलग हुई जजपा को परंपरागत मतदाताओं ने अच्छी जीत दिलायी और इसके दस प्रत्याशी जीते, जबकि मूल इनेलो से एक ही प्रत्याशी जीत सका। इसके अलावा जजपा विधायकों में एकजुटता भी नहीं है। भाजपा पर गठबंधन तोडऩे का आरोप लगता है, तो इसका उसे बड़ा नुक़सान होगा।

अहम बात यह कि जजपा कभी भी गठबंधन तोडक़र नहीं जाने वाली। कारण कोई भी हो गठबंधन टूटने का सीधा और बड़ा फ़ायदा कांग्रेस को मिल सकता है। इसलिए गठबंधन मजबूरी में ही सही मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को किसी भी तरह से चलाते ही रहना होगा। उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला तो कोई ऐसा मौक़ा नहीं आने देना चाहेंगे, जिसमें वह गठबंधन को कमज़ोर करते नज़र आएँ। जजपा चाहती है कि आगामी लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन बन जाए ऐसा नहीं, तो कम-से-कम चुनावी समझौता ही क़ायम हो जाए।

भाजपा अपने बूते ही चुनाव मैदान में उतरेगी, क्योंकि उसे पता है कि जजपा के साथ उसे नुक़सान उठाना पड़ सकता है। भाजपा और जजपा दोनों ही 10 लोकसभा और 90 विधानसभा सीटों पर अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे। इसकी तैयारी भी चल रही है, राज्य में ताज़ा विवाद भी इसी के मद्देनज़र हुआ, जब उचाना कलां सीट पर बीरेंद्र सिंह ने पत्नी प्रेमलता के लिए दावेदारी पेश की है। जब दोनों दल चुनाव अलग-अलग लड़ेंगे, तो फिर दावेदारी भाजपा की भी बनती भी है।

राजनीति में कुछ भी सम्भव है। अगर समीकरण बदलते हैं और सीटों पर समझौता होता है, तब देखा जाएगा कि उचाना कलां या अन्य सीटों पर किसकी दावेदारी बनेगी। सन् 2019 के विधानसभा चुनाव दोनों पार्टियों ने अलग-अलग लड़ा था। बहुमत जुटाने के लिए सरकारें लोकतंत्र की मजबूरी होती हैं। पूर्ण बहुमत के अभाव में गठबंधन सरकारें बनती रही हैं और भविष्य में भी बनती रहेंगी।

अभी विधानसभा चुनाव में डेढ़ साल से ज़्यादा का समय है; लेकिन उचाना कलां सीट पर अपने-अपने दावे शुरू हो गये हैं और विवाद की वजह भी फ़िलहाल यही है। उचाना कलां से मौज़ूदा उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला यहाँ से जजपा के विधायक हैं; लेकिन भाजपा से केंद्रीय मंत्री रहे बीरेद्र सिंह इस सीट पर अभी से अपनी पत्नी प्रेमलता का दावा पेश कर रहे हैं। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में दुष्यंत ने इन्हीं प्रेमलता को लगभग 48,000 मतों से हराया था। बीरेंद्र सिंह ख़ुद उचाना से पाँच बार विधायक रह चुके हैं। काफ़ी समय से बीरेंद्र सिंह और दुष्यंत चौटाला के परिवार में इस सीट को लेकर कमोबेश ठनी हुई है। इसकी शुरुआत बीरेंद्र सिंह और उनकी पत्नी प्रेमलता से होती है। चूँकि प्रदेश में जजपा सरकार में भागीदार है; लेकिन बीरेंद्र सिंह और प्रेमलता अक्सर उचाना कलां में विकास कार्य न होने जैसे आरोप लगाते रहे हैं। यह एक तरह से गठबंधन धर्म के ख़िलाफ़ हैं।

विवाद में दुष्यंत चौटाला के उस बयान ने भी आग में घी का काम किया, जिसमें उन्होंने क्षेत्र की रैली में कहा कि उनकी (दुष्यंत) की जीत से बीरेंद्र सिंह के परिवार के लोगों के पेट में दर्द हो रहा है; लेकिन उनके पास इसका कोई इलाज नहीं है। इसकी प्रतिक्रिया में राज्य के दौरे पर आये त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके पार्टी प्रभारी बिप्लब कुमार देब ने इस बयान को अपने ऊपर ले लिया। देब ने कहा कि उनके पेट में दर्द जैसी कोई बात नहीं है। जजपा ने भाजपा को समर्थन देकर कोई एहसान नहीं किया, बदले में बहुत कुछ मिला है। वह भाजपा के राज्य प्रभारी होने के नाते पार्टी को मज़बूती देने का काम कर रहे हैं। अगर उचाना कलां से बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता की दावेदारी बनती है, तो इसमें किसी को क्या दिक़्क़त हो सकती है।

जजपा ने देब के बयान के बाद स्थिति सँभालने की कोशिश करते हुए कहा कि पेट में दर्द की बात उन्होंने (दुष्यंत) ने बीरेंद्र सिंह के परिवार के संदर्भ में कही थी। जजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय चौटाला ने कहा कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में क्या समीकरण बनेंगे, इसे भाजपा का शीर्ष नेतृत्व तय करेगा। बीरेंद्र सिंह अब भाजपा के सदस्य हैं, इसलिए उन्हें किस सीट पर किसकी दावेदारी होगी? कहना उचित नहीं है। ताज़ा विवाद में गठबंधन में दरार पर अजय चौटाला कहते हैं कि उनकी पार्टी सहयोगी दल है, इसके नाते उनसे जो कुछ भी बनेगा, वह करेंगे और गठबंधन धर्म को पूरी तरह से निभाएँगे।

यह सच है कि गठबधन सरकार में जजपा का प्रदर्शन ज़्यादा अच्छा नहीं रहा है; बावजूद इसके पार्टी ने गठबंधन धर्म को बख़ूबी निभाया है। किसान आंदोलन से लेकर पहलवानों के आंदोलन में पार्टी का रुख़ सरकार के साथ ही रहा। जजपा को पता है कि किसी भी मुद्दे पर सरकार के ख़िलाफ़ जाने का मतलब जान बूझकर मुसीबत मोल लेना है, जबकि बिना सरकार उसका अब ज़्यादा वजूद नहीं रह गया है। चुनाव में अभी क़रीब डेढ़ साल बा$की है, इस दौरान गठबंधन पर कई बार आँच आने वाली है। जैसे-जैसे समय गुज़रता जाएगा, गठबंधन को लेकर विवाद खड़े होते रहेंगे। सब कुछ होने के बावजूद सरकार पाँच साल का कार्यकाल आसानी से पूरा कर लेगी, इसमें ज़्यादा संदेह नज़र नहीं आता।

कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद हरियाणा कांग्रेस में जबरदस्त उत्साह नज़र आ रहा है। गठबंधन में कोई विवाद, तकरार या कोई तल्$खी कांग्रेस के लिए सबसे अच्छी ख़ुराक कही जा सकती है; लेकिन गठबंधन सरकार ऐसा कोई मौक़ा देना नहीं चाहती। भाजपा सन् 2019 के मुक़ाबले अब ज़्यादा अच्छी स्थिति में नहीं है। पार्टी अपने बूते तब पूर्ण बहुमत नहीं जुटा सकी थी, तो आगामी विधानसभा चुनाव में क्या कोई चमत्कार करके दिखाएगी?

जजपा को भाजपा के साथ लाने और सरकार बनाने का सबसे ज़्यादा श्रेय अमित शाह को जाता है। तब उन्होंने कहा था कि हरियाणा में जनादेश किसी एक पार्टी को नहीं मिला है; लेकिन सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते भाजपा जजपा के साथ मिलकर सरकार बनाएगी और यह गठबंधन सरकार पूर पाँच साल तक काम करेगी। हरियाणा भाजपा प्रभारी बिप्लब देब या बीरेंद्र सिंह चाहे कुछ टिप्पणी करे; लेकिन भाजपा का शीर्ष नेतृत्व गठबंधन को जारी रखने के पक्ष में है। यही वजह है कि कई अवसरों पर गम्भीर वैचारिक मतभेदों के बावजूद यह चल रहा है। साढ़े तीन साल तो किसी तरह गुज़र गये; लेकिन अब जैसे-जैसे चुनाव का समय क़रीब आता जाएगा, नये-नये विवाद पैदा होते रहेंगे। मुख्यमंत्री मनोहर लाल और उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला मंच साझा करते रहे हैं और कहीं कोई मतभेद की बात नज़र नहीं आता।

नगर निगम, नगर पालिका और पंचायत स्तर के चुनाव में जजपा-भाजपा के बीच गम्भीर मतभेद पैदा हो गये थे। तब लगने लगा था कि यही मुद्दा गठबंधन को दरकाने के लिए काफ़ी है। लेकिन वह दौर भी किसी तरह गुज़र गया। किसी विधानसभा सीट पर दावेदारी को लेकर गठबंधन टूट जाए, ऐसा सम्भव नहीं जान पड़ता।

“हरियाणा में भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार अच्छा काम कर रही है और सरकार अपने पाँच साल का कार्यकाल अच्छी तरह से पूरा करेगी।“

ओमप्रकाश धनखड़

भाजपा प्रदेशाध्यक्ष

उचाना कलां में उनकी जीत से अगर किसी के पेट में दर्द हो रहा है, तो उनके पास इसका कोई इलाज नहीं है। हलक़े के लोगों ने उन्हें अच्छे-खासे अंतर से जीत दिलायी है। गठबंधन सरकार ने हलक़े में बहुत विकास कार्य कराएँ हैं। उपेक्षा के आरोप बेबुनियाद है।’’

दुष्यंत चौटाला

उप मुख्यमंत्री, हरियाणा

न उनके पेट में दर्द है और न वह कोई डॉक्टर है। जजपा ने भाजपा को समर्थन देकर कोई एहसान नहीं किया, बदले में उसे बहुत कुछ मिला है। प्रभारी होने के नाते वह भाजपा संगठन को मज़बूत कर रहे हैं। अगर किसी सीट पर पार्टी कार्यकर्ता की दावेदारी बनती है, तो कहने में क्या हर्ज है?’’

बिप्लब देब

भाजपा के हरियाणा प्रभारी