कोरोना से भले ही मानव जीवन को तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा हो, लेकिन देश की उन स्वास्थ्य संस्थाओं ने मरीजों से जमकर पैसा लूटा है। जो कोरोना काल में अन्य बीमारियों से पीड़ित रहे है।
तहलका संवाददाता को दिल्ली के सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों व स्वास्थ्य जागरूकता से जुड़े समाजसेवी राकेश कुमार ने बताया कि सरकारी अस्पतालों में जो कोरोना बार्ड बनाये गये थे। वे हेल्थ सेक्टर से जुड़े बड़े खिलाडियों के इशारे पर बनाये गये थे। ताकि उनके अस्पतालों का कारोबार खूब फल -फूल से सकें।राकेश ने बताया कि गजब की स्थिति-परिस्थिति पैदा कर ऐसा माहौल बनाया गया था। कि सरकारी अस्पतालों में कोरोना के अलावा अन्य मरीजों को नहीं देखा जा सकता है। न ही ओपीडी शुरू की गई।
जबकि निजी अस्पतालों में कोरोना के साथ अन्य बीमारियों से पीड़ित मरीजों का बड़े ही आराम से इलाज हो रहा था। यानी कि पैसा वालो का इलाज होता रहा है। जबकि गरीब व लाचार मरीजों का इलाज पैसा के अभाव में नहीं हो सका और सरकारी अस्पताल में कोरोना के अलावा दूसरे रोग का इलाज नहीं हो सका है। सरकारी अस्पतालों का दावा है कि कोरोना एक संक्रमित बीमारी है। कोरोना अभी गया नही है और न ही आसानी से जाना वाला है।
ऐसे में सरकार को अब चाहिये कि कोरोना के नाम पर अलग से वार्ड तो बनाये न कि ओपीडी सहित अन्य बीमारियों का इलाज रोके और न ही ओपीडी सेवा बंद करें। उन्होंने सरकार से अपील की है कि मौजूदा समय में आरटीपीआर की जांच के नाम पर गरीबों तक से 300 रूपये वसूले जा रहे है। जबकि ये जांच निशुल्क होनी चाहिये। क्योंकि जब कोरोना का वैक्सीनेशन निशुल्क हो सकता है। तो आरटीपीसीआर जांच क्यों निशुल्क नहीं हो सकती है।