‘अफजल की फांसी एक सियासी कत्ल है’

अफजल गुरु की फांसी को आप किस रूप में देखते हैं?
देखिए, जब 2001 में संसद पर हमला हुआ था तो उस समय हमने इसकी कड़े शब्दों में निंदा की थी. जहां तक अफजल गुरु का संबंध है तो वो उस हमले में शामिल नहीं थे. उनके खिलाफ हमले की साजिश में शामिल होने का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं था. ट्रायल कोर्ट में जब यह मामला गया तो उनको न तो कोई वकील मिला और न ही अफजल को अपनी सफाई पेश करने का कोई मौका दिया गया. बिना अपना पक्ष रखने का मौका दिए एक व्यक्ति को फांसी पर लटका दिया गया.

लेकिन अफजल का केस सभी न्यायिक चरणों से गुजरा है. सभी कानूनी विकल्प समाप्त हो चुके थे. 
ये अलग बात है. लेकिन ये पूरी तरह सच है कि ट्रायल कोर्ट में उसको अपनी सफाई पेश करने का मौका नहीं दिया गया. ऐसे में जब अफजल के मामले की शुरुआत ही अन्याय से हुई तो फिर उसके बाद सेशन कोर्ट या हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ इसका कोई मतलब नहीं रह जाता. फिर जब उसको फांसी दे दी गई तो फांसी से पहले उसका हक बनता था कि उसको अपने परिवारवाले, अपनी बीवी, अपने बच्चे से मिलने का मौका दिया जाता. सरकार ने फांसी की सूचना वाली जो चिट्ठी अफजल के परिवारवालों को भेजी वो फांसी लगने के दो दिन बाद उन्हें मिली.

क्या आपको लगता है कि अफजल को अभी फांसी देने का फैसला राजनीति से प्रेरित था?
बिल्कुल.अफजल को फांसी देने के लिए बीजेपी की तरफ से लगातार दबाव बना हुआ था. ये लोग कांग्रेस और उसकी सरकार पर लगातार हमला करते हुए कहते कि आप अफजल गुरु को बचा रहे हो. बीजेपी का दबाव एक बड़ा कारण है जिसकी वजह से यह फैसला हुआ. कांग्रेस ने बीजेपी के हाथ से अफजल का मुद्दा छीनने के उद्देश्य से अफजल को फांसी दी. ये सब 2014 लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए किया गया. इस तरह से अफजल की फांसी एक सियासी कत्ल भी है. पहले ये ज्यूडिशियल मर्डर बनता है क्योंकि उनको अपनी सफाई पेश करने का मौका नहीं दिया गया. दूसरा ये सियासी मर्डर भी इसलिए बनता है क्योंकि यह राजनीतिक लाभ को ध्यान में रखकर किया गया.

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि गिलानी समेत अन्य पृथकतावादी नेता जो फांसी पर आज घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं उन्होंने अफजल के जीते जी उसकी मदद क्यों नहीं की. अगर उसे ट्रायल कोर्ट में वकील नहीं मिला तोइन्होंने अपनी तरफ से वकील की व्यवस्था क्यों नहीं कराई?
उमर अब्दुल्ला की बातें छोड़ दीजिए. वो तो इक्तेदार (सत्ता) के पुजारी लोग हैं. इन लोगों को पावर और अपनी कुर्सियों से मतलब हैं. इन्हें जम्मू-कश्मीर के लोगों से कोई हमदर्दी नहीं है. उनकी बात रद्देअमल (प्रतिक्रिया) के लायक नहीं है. ये लोग इक्तेदारपरस्त रहे हैं हमेशा से. इनके पिता को देखा, इनके दादा को भी देखा है और अब इन्हें भी देख रहा हूं. मैं इन्हें अच्छी तरह से जानता हूं.

लेकिन फिर भी ये प्रश्न तो है ही कि अगर आप लोगों को लगता था कि अफजल को वकील नहीं मिल रहा है, न्याय नहीं मिल रहा, तो आपलोगों ने उसके लिए क्या किया.
जो कुछ हो सकता था वो सब हमने अफजल के लिए किया.   

आपके हिसाब से अफजल गुरु की फांसी का जम्मू-कश्मीर पर क्या असर पड़ेगा?
देखिए, वहां के लोगों का अब तक जो ये ख्याल रहा है कि हम भारत सरकार के कब्जे में है, जो हमारे ऊपर बंदूक के दम पर शासन कर रही हैं. अफजल की फांसी के बाद यह ख्याल और भावना और गहरी तथा मजबूत होगी. अलगाव की भावना और भारत के प्रति नफरत और बढेगी. इसकी झलक आपको दिखाई दे रही है. घाटी में कर्फ्यू लगने के बाद से अब तक चार जवानों को शहीद कर दिया गया है. 50 के करीब लोग जख्मी हो चुके हैं.    

अफजल गुरु के परिवारवालों से क्या आपकी कभी कोई मुलाकात हुई है?
हां, हम उनसे मिलते रहे हैं. वो तो हमारे हमसाया है. 

जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के सह-संस्थापक मकबूल भट की फांसी से अफजल की फांसी की तुलना की जा रही है. क्या घाटी में अब भी वो हालात हैं जिससे भट के समय की अराजकता दोबारा पैदा हो सके?
पूरी घाटी में 9 फरवरी से ही कर्फ्यू लगा हुआ है. इससे ज्यादा हालात की खराबी का और क्या सूचक हो सकता है? लोगों को बुनियादी जरूरतों से वंचित रख जा रहा है. उन्हें घरों से बाहर नहीं आने दिया जा रहा. कश्मीरियों के मन में मकबूल भट के समय से भी ज्यादा आज गुस्सा है. बहुत ज्यादा नफरत है. भारत के साम्राज्यवाद के खिलाफ लोगों के अंदर सालों से गुस्सा जमा होता जा रहा है. ऐसे माहौल में वहां के लोगों की तरफ से मैं आपसे एक बात कहना चाहता हूं. आपकी हुकूमत आपकी लीडरशीप, आपका मीडिया जम्मू-कश्मीर के लोगों को इंसान नहीं मानता.