लगभग दो माह तक अतिक्रमण की आंच में जलने के बाद झारखंड में अब तपिश कुछ ठंडी पड़ गई है. पहले कैबिनेट और फिर राज्यपाल एमओएच फारूख बिल्डिंग बायलॉज संबंधित अध्यादेश को मंजूरी दे चुके हैं. हालांकि अध्यादेश में पेंच-दर-पेंच फंसेंगे, यह तय है. अध्यादेश पारित होने के बाद मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने तुरंत कहा कि यह जनता के हित में है और अब विपक्ष के पास इसे लेकर कोई तर्क नहीं है तो वह अनर्गल बयानबाजी कर रहा है. उधर, प्रतिपक्ष के नेता राजेंद्र सिंह का कहना था कि सरकार के इस अध्यादेश से बिल्डरों को फायदा होगा. प्रतिपक्ष के स्वर सत्ता पक्ष की ओर से भी निकल रहे हैं. झामुमो विधायक साइमन मरांडी कहते हैं, ‘सरकार जमीन घोटालेबाजों को बचाने में लगी है और इस अध्यादेश से गरीबों-आदिवासियों को और हाशिये पर धकेलने की तैयारी हुई है.’ झामुमो के ही दूसरे विधायक नलिन सोरेन कहते हैं, ‘यह अध्यादेश अमीरों के लिए है.’ विधानसभा अध्यक्ष सीपी सिंह भी इस अध्यादेश को अधूरा बता रहे हैं.
यानी अर्जुन मुंडा लगातार घिरते हुए दिख रहे हैं. बहुत हद तक अपनों के घात-प्रतिघात ने ही उनके आसपास भंवरजाल बनाना शुरू कर दिया है. यशवंत सिन्हा, सीपी सिंह, रघुवर दास जैसे नेता पहले ही रांची में धरने से लेकर दिल्ली दरबार में दस्तक के जरिए अपना विरोध जता चुके हैं. बाद के दिनों में भाजपा और अर्जुन मुंडा के सिपहसलार रहे प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता संजय सेठ और पूर्व विधायक चंद्रेश उरांव के बहाने पार्टी में व्याप्त असंतोष और अंतर्कलह भी सामने आया.
इन सबके बीच अतिक्रमण की बिसात पर जो राजनीतिक मोहरे बिछाए गए उसमें हर किसी ने राजनीतिक फसल काटने की कोशिश की. प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड विकास मोर्चा के प्रमुख बाबूलाल मरांडी ने अनशन की राजनीति करके एक साथ कई निशाने साधने की कोशिश की. बाबूलाल राजधानी रांची के मोरहाबादी मैदान में 150 घंटे तक आमरण अनशन पर बैठे रहे और अनशन से ही भाजपा-कांग्रेस सबकी राजनीतिक चालों को साधते दिखे. उसी अनशन स्थल पर भाजपा नेता और विधानसभा अध्यक्ष सीपी सिंह पहुंचे तो पार्टी में बड़ा बवाल मचा, लेकिन सीपी सिंह अब राज्य के वरिष्ठ नेताओं की श्रेणी में आते हैं, इसलिए पार्टी कसमसाकर रह गई. सवाल-जवाब भी न किया जा सका. वहीं भाजपा प्रवक्ता संजय सेठ और पूर्व विधायक चंद्रेश उरांव का राजनीतिक कद सीपी सिंह की तरह बड़ा नहीं था, इसलिए अनशन स्थल पर पहुंचने के एवज में उन्हें बाहर का रास्ता देखना पड़ा. खार खाए संजय को अब भाजपा में तमाम बुराइयां दिखने लगी हैं. वे कहते हैं, ‘सरकार गरीबों पर बुलडोजर चलाने वाली है, इसे कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है.’ सेठ अपनी बात में एक लाइन और जोड़ते हैं, ‘बाबूलाल गरीबों के नेता हैं.’
भाजपा के सहारे राजनीतिक पहचान बनाने वाले संजय सेठ अब उस दल के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी बाबूलाल में मसीहाई छवि तलाश रहे हैं तो इसके राजनीतिक मायने भी कोई कम नहीं हैं. पूर्व विधायक चंद्रेश उरांव तो सेठ से भी दो कदम आगे निकले. भाजपा से हटने के बाद उन्होंने बजाप्ता सिर मुंडवा लिया है और वे कहते हैं कि उन्होंने शुद्धिक