इस क्षेत्र में कैसे आना हुआ?
पढ़ाई के दिनों की बात है. एक दिन कहीं जा रही थी तो रास्ते में गांव की कुछ महिलाएं मिल गईं. ये झारखंड जंगल बचाओ नामक एक आंदोलन की बैठक में शामिल होने जा रही थीं. उन्होंने मुझसे भी साथ चलने को कहा. उत्सुकतावश मैं चल दी. बैठक खूंटी में ही थी. वहां पर अपने जल, जंगल और जमीन जैसी चीजों को बचाने के प्रति लोगों का जुनून मेरे दिल को छू गया. यहीं से मैं इस अभियान के साथ जुड़ गई. फिर एक दिन पता चला कि इंडिया अनहर्ड नामक एक संस्था के लिए पूरे भारत से वीडियो स्वयंसेवक मांगे गए हैं. मैंने आवेदन भेजा जो स्वीकार हो गया. उसके बाद थोड़ी-सी ट्रेनिंग हुई, एक कैमरा मिला और काम शुरू हो गया.
इसके बाद क्या बदलाव महसूस हुआ?
सशक्तीकरण महसूस किया है मैंने. एक उदाहरण बताती हूं. हमारे यहां निर्दोष गांववालों को नक्सली करार देकर उन्हें हिरासत में लेने की घटनाएं होती रहती हैं. कुछ समय पहले थाने से पुलिस आई और हमारे गांव के दो लोगों को नक्सली बताकर ले गई. मैं अपने कैमरे के साथ थाने पहुंची. पुलिस से बात करने की कोशिश की. पुलिसकर्मियों ने बात तो नहीं की, लेकिन इतना जरूर हुआ कि उन ग्रामीणों को छोड़ दिया गया. मुझे लगता है कि मैं उपेक्षितों की आवाज बन गई हूं.
-विकास बहुगुणा