‘मैंने पार्टी का घोषणापत्र नहीं पढ़ा था’

आम आदमी पार्टी से बाहर निकाले गए विधायक विनोद कुमार बिन्नी
आम आदमी पार्टी से बाहर निकाले गए विधायक विनोद कुमार बिन्नी. फोटो: विकास कुमार

बड़े शोर-शराबे के साथ आपने अरविंद केजरीवाल की सरकार के खिलाफ भूख हड़ताल शुरू की थी. तीन घंटे में खत्म कैसे कर दी?

देखिए, मैंने भूख हड़ताल शुरू नहीं की थी. शुरू करने वाला था. लेकिन तब तक मेरे पास गवर्नर साहब, जो मुझे अपना छोटा भाई मानते हैं और अन्ना जी का मैसेज आया. दोनों ने मुझसे कहा कि मुझे सरकार को 10 दिन की मोहलत देनी चाहिए. मैंने उनकी बात मान ली.

आप अब 10 दिन की मोहलत देने की बात कर रहे हैं. लेकिन सरकार के खिलाफ आप पिछले 15 दिन से मोर्चा खोले हुए हैं…
मैंने 16 तारीख को पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. इन लोगों ने अन्ना जी वाला जनलोकपाल पास करने का वादा पूरी दिल्ली और देश से किया था. इन्होंने खुद कहा था कि जैसे ही हम सरकार में आएंगे वैसे ही 15 दिनों के अंदर अन्ना जी वाला लोकपाल पास करेंगे. इस हिसाब से 28 (दिसंबर) को सरकार बनी तो 13 (जनवरी) तक लोकपाल बन जाना चाहिए था. इसके साथ इन्होंने दो वादे जो किए उसमें इन्होंने पूरी दिल्ली की जनता को धोखा दिया. इन्होंने सरकार में आने के बाद हर घर को 700 लीटर पानी फ्री देने की बात की थी. लेकिन इन्होंने धोखे से इसमें शर्त डाल दी थी, जिसके मुताबिक 700 लीटर से 701 होने पर 701 लीटर तक के पूरे पैसे देने होंगे. साथ में सरचार्ज अलग. इन्होंने मेनिफेस्टो में बहुत चतुराई से इस शर्त को डाल दिया था.

दूसरा बड़ा धोखा इन्होंने बिजली के मामले में किया. बिजली की कीमत में 50 फीसदी कमी करने की बात की. इसके लिए इन्होंने तीन महीने का समय रखा था. अगर ऐसा था तो इन्होंने दूसरे दिन ही घोषणा क्यों की? और इसके तहत इन्होंने सिर्फ पांच फीसदी लोगों को फायदा क्यों पहुंचाया? 95 फीसदी लोगों को इससे बाहर क्यों रखा?

आपने इस प्रश्न को तब क्यों नहीं उठाया जब घोषणापत्र तैयार हो रहा था?
मैं मनिफेस्टो कमेटी में नहीं था.

लेकिन आपकी जानकारी में तो होगा.
नहीं, मैं अपना चुनाव लड़ने में मस्त था. मुझे इन लोगों ने नहीं बताया.

आपने पार्टी का घोषणापत्र नहीं पढ़ा था?
पूरी दिल्ली में कितने लोग हैं जो घोषणापत्र पढ़ते हैं? मैंने घोषणापत्र नहीं पढ़ा था.

क्या आपको नहीं लगा कि सरकार को काम करने के लिए कुछ और समय दिया जाना चाहिए था?
हम समय दे तो रहे हैं. पहले 15 दिन दिया. फिर 10 दिन दे रहे हैं. अब जो जनता हमारा सर फोड़ने को तैयार है उससे किया वादा तो आपको पूरा करना होगा. मार्च में जब पार्टी की तरफ से दिल्ली में बिजली-पानी आंदोलन चलाया गया था उस समय 10 लाख 52 हजार लोगों ने पार्टी को समर्थन पत्र दिया था. उनसे वादा किया गया था कि जैसे ही सरकार बनेगी उनके बिजली-पानी के बिल माफ कर दिए जाएंगे. लेकिन सत्ता में आने के बाद पार्टी उन्हें भूल गई. आज इन लोगों के लाखों रुपये बिल हो गए हैं. पार्टी और सरकार अब उन लोगों को भूल चुकी है. वादा करने वाले लोग अब सत्ता में बैठ गए. मुसीबत हो गई हम जैसे लोगों की जो लोगों के बीच में रहते हैं. जनता हमसे पूछती है.

इन्होंने चुनाव से पहले ये भी वादा किया था कि भ्रष्टाचारियों की जांच करके उन्हें तुरंत जेल में भेजा जाएगा. लेकिन आज तक न कोई जांच हुई और न कोई जेल गया. शीला दीक्षित के खिलाफ भ्रष्टाचार का ये सबूत है, वो सबूत है कहते थे. सरकार बनाने के बाद सारे सबूत गायब हो गए. यानी चुनाव में आप झूठे वादे और दावे करते थे.

पार्टी का आरोप है कि बिन्नी पहले मंत्री पद चाहते थे. उसके बाद लोकसभा चुनाव का टिकट मांग रहे थे. जब उनकी मांग नहीं मानी गई तो पार्टी और सरकार पर अनर्गल आरोप लगाने लगे.
देखिए, मैं दोनों बातें मान लेता हूं. लेकिन मैंने जो प्रश्न उठाए हैं क्या उसका इन लोगों ने आज तक जवाब दिया? दूसरी बात ये कि क्या लोकसभा का कोई टिकट आज तक किसी को दिया गया है. किसी को टिकट की घोषणा की गई है? ये लोग झूठ बोल रहे हैं. आप 24 तारीख का अरविंद केजरीवाल का बयान देखिए.

उसमें उन्होंने कहा था कि बिन्नी मेरे घर पर आए थे. उन्होंने स्वयं मना किया है कि मुझे मंत्री पद नहीं चाहिए. उन्हें किसी पद का लालच नहीं है. वो सिर्फ पार्टी के लिए काम करना चाहते हैं.

अरविंद खुद ही चुनावों से पहले मुझे आदर्श व्यक्ति बताते थे. उन्होंने कहा था कि अगर बिन्नी चुनाव नहीं लड़ेगा तो मैं किसी भी सीट पर चुनाव प्रचार करने नहीं जाऊंगा. आज मैं बुरा हो गया.

30 तारीख को संजय सिंह ने खुद मुझे फोन करके कहा था कि अरविंद भाई ने कहा है कि आप पूर्वी दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए आवेदन कर दें. एक जनवरी की सुबह मैं अरविंद केजरीवाल के यहां गया था. मैंने उनसे कहा कि अरविंद भाई, मेरे पास संजय भाई का फोन आया था. आप बताएं मुझे क्या करना है. आवेदन देना है या नहीं. उन्होंने कहा लोकसभा टिकट के लिए आवेदन कर दीजिए. इससे पहले मेरी उनसे कभी टिकट को लेकर कभी बात नहीं हुई.

यानी टिकट का प्रस्ताव पार्टी की तरफ से आया था?
हां. यहां तक कि लक्ष्मीनगर सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ने से भी मैंने मना कर दिया था. मैंने कहा था कि आप मुझे छोड़कर किसी वॉलेंटियर को वहां से टिकट दे दो. मेरी ये सोच थी कि अगर मैं चुनाव लड़ा तो सिर्फ अपनी सीट तक ही सीमित हो जाऊंगा. ऐसे में बाकी सीटों पर काम नहीं कर पाऊंगा. मैं पार्टी के लिए पूरी दिल्ली में काम करना चाहता था. उस समय भी उन्होंने मुझे जबरदस्ती चुनाव लड़ाया था और उसी तरह लोकसभा भी मुझे लड़ाना चाहते थे. ये लोग आज जो चाहे कहें लेकिन ये जानते हैं कि मैं पार्टी से तब जुड़ा था जब दूर-दूर तक उसका कोई नाम लेने वाला भी नहीं था.

आपके ऊपर बीजेपी का एजेंट होने का आरोप लग रहा है. बीजेपी भी आपको शहीद बता रही है.
वास्तविकता से सब लोगों का हमेशा प्रेम होता है. हो सकता है मेरा समर्थन करने में बीजेपी का अपना स्वार्थ हो. लेकिन जंतर-मंतर पर मैंने उस दिन गीता पर हाथ रखकर ये कसम खाई थी कि आज मैं जो कुछ भी बोल रहा हूं वो मेरी अंतरात्मा की आवाज है. न इसमें भाजपा का कोई रोल है, न कांग्रेस का. भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ तो मैं पूर्व में दो बार चुनाव लड़ चुका हूं. मेरी दोनों में से किसी से दोस्ती नहीं है. कांग्रेस या बीजेपी अगर हमारा फायदा उठा रही है तो इसमें मेरी क्या गलती है?

क्या बीजेपी या दूसरी पार्टियों ने आपसे इस बीच संपर्क किया है?
नहीं.

सरकार ने एक माह का कार्यकाल पूरा किया है. बीते 30 दिन में क्या सरकार ने कोई भी अच्छा काम किया है?
एक महीने में सरकार ने दिल्ली और देश की जनता को सिर्फ गुमराह करने का काम किया है. धोखा देने का काम किया है.

क्या पार्टी के अन्य कार्यकर्ता और विधायक आपके साथ हैं?
मेरा उद्देश्य पार्टी तोड़ना नहीं है, ना पार्टी को नुकसान पहुंचाना है. लेकिन दिल्ली की जनता को ये धोखा देंगे तो मैं इसे कतई बर्दाश्त नहीं करुंगा. दिल्ली की जनता के हित में ये लोग जब भी फैसला करेगें मैं इनका समर्थन करूंगा. मैं इन्हें इनकी जिम्मेदारियों से भागने नहीं दूंगा. इन्हें याद दिलाता रहूंगा. मेरी पार्टी के किसी विधायक से कोई बात नहीं हुई. मैं बस ये जानता हूं कि अगर उनके अंदर का जमीर जिंदा होगा तो वो मेरा साथ देंगे.

आपके हिसाब से पार्टी में होने वाली गड़बड़ियों के लिए जिम्मेदार कौन है?
पार्टी में पारदर्शिता बिल्कुल नहीं है. चार-पांच लोग हैं, जो पार्टी चला रहे हैं. वो बंद कमरे में फैसले लेते हैं. इसमें अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव शामिल हैं. सारे फैसले ये लोग बंद कमरे में खुद करते हैं और फिर पूरे देश के सामने दिखावा करते हैं कि ये फैसला पूरी पार्टी का है. इनमें से कुछ एक-दूसरे के पुराने और बचपन के दोस्त हैं. जैसे कुमार विश्वास और मनीष सिसोदिया बचपन के दोस्त हैं. अरविंद और मनीष एनजीओ के जमाने से एक-दूसरे के साथ हैं. चार दोस्त हैं जो मिलकर पूरे देश को गुमराह कर रहे हैं.

क्या भविष्य में पार्टी के टूटने की आपको कोई संभावना दिखाई देती है?
पार्टी बंट गई है. योगेंद्र यादव जी ने कहा कि उन्हें मेरे पार्टी से निकाले जाने का बहुत दुख है. इससे पता चलता है कि अंदर कुछ तो गड़बड़ चल रही है. लेकिन तानाशाह लोग किसकी सुनते हैं. उन्होंने मुझे पार्टी से बाहर करने का फैसला सुना दिया.

कौन है ये तानाशाह?
सबसे बड़े तानाशाह तो अरविंद केजरीवाल हैं.