पोंटी चड्ढा की चमत्कारिक सफलता को लेकर लोगों में जितनी उत्सुकता थी उनकी मौत पर उससे कहीं ज्यादा संशय छाया हुआ है. जो बातें सामने आ रही हैं उसके मुताबिक 17 नवंबर की दोपहर को पोंटी और उनके एनआरआई भाई हरदीप सिंह के बीच परिवार के फार्महाउस पर हुई गोलीबारी में दोनों भाइयों की मौत हो गई. यह फार्महाउस दिल्ली के चुनिंदा लोगों की स्थली छतरपुर में स्थित है. दुर्घटना के समय पोंटी के साथ उनके साथी और उत्तराखंड अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष सुखदेव सिंह नामधारी अपने अंगरक्षक के साथ मौजूद थे. पुलिस द्वारा दी गई शुरुआती जानकारी के मुताबिक पहले हरदीप ने पोंटी पर गोली चलाई जिसके जवाब में नामधारी के अंगरक्षक ने हरदीप पर गोली चलाई. इसके बाद कहानी में कई मोड़ आ चुके हैं. पुलिस की ताजा अपडेट के मुताबिक हरदीप सिंह पर गोली स्वयं नामधारी ने चलाई थी और जिस हथियार से गोली चली उसे पुलिस ने बरामद कर लिया है. इससे भी ताजा स्थिति यह है कि मामले की जांच दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंप दी गई है.
शराब किंग और उनके भाई की मौत को लेकर कयासों की बाढ़-सी आ गई है. एक कहानी के मुताबिक दोनों भाइयों के बीच छतरपुर के फार्महाउस को लेकर झगड़ा था जिसके नतीजे में दोनों मौतें हुई हैं. लेकिन परिवार के एक करीबी बताते हैं, ‘जिसके पास हजारों करोड़ की संपत्ति है वह 13 एकड़ के फार्महाउस के लिए क्यों लड़ेगा. लोग गलत बातें फैला रहे हैं.’ कहा जा रहा है कि 15 नवंबर को दोनों भाइयों ने दो साल से चले आ रहे झगड़े को निपटा लिया था. हरदीप काफी समय से पोंटी से अलग होने की मांग कर रहे थे. जिन शर्तों पर दोनों भाइयों के बीच समझौता हुआ था (इसके मुताबिक करीब 1,000 करोड़ की संपत्ति हरदीप के हिस्से में आनी थी), बाद में हरदीप उनसे मुकर गए. उनके नजदीकियों ने उन्हें यह कहकर भड़का दिया था कि उनके हिस्से में काफी कम संपत्ति आई है. हरदीप के इस कदम से पोंटी भी तिलमिला गए थे. इसी गुस्से के चलते वे 17 तारीख को छतरपुर फार्महाउस और बिजवासन फार्ममहाउस (पश्चिमी दिल्ली) से हरदीप के लोगों को बाहर निकालने के लिए पहुंचे थे. उनका साथ उनके लठैत और पंजाब पुलिस द्वारा उन्हें दिए सुरक्षाकर्मी दे रहे थे. इसकी जानकारी मिलने पर हरदीप भी गुस्से से तमतमाए हुए फार्महाउस जा पहुंचे. दोनों भाइयों का आमना-सामना हो गया. गुस्से में कहासुनी हुई और बाद की घटना के बारे में यकीन से कोई कुछ नहीं बता पा रहा है.
पोंटी के करीबी और उन्हें जानने वालों के मुताबिक हरदीप बेहद महत्वाकांक्षी हो गए थे. समूचा वेव समूह (जिसकी कुल कीमत 6,500 करोड़ से 30,000 करोड़ रुपये के बीच कुछ भी हो सकती है) पोंटी की उद्यमिता और चतुराई की नींव पर खड़ा हुआ है. चखने के मामूली ठेले से इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा करने के बीच पोंटी ने तमाम उतार-चढ़ाव देखे हैं. अधिकारियों से लेकर सरकारों के बीच उनकी धाक थी. शराब से बढ़कर उन्होंने अपना व्यवसाय रियल एस्टेट, शुगर मिल, पेपर मिल और खनन तक फैलाया था.
पोंटी चड्ढा लोगों की निगाह में तब चढ़े जब उत्तर प्रदेश की पिछली मायावती सरकार ने राज्य की आबकारी नीति में बड़ा फेरबदल करते हुए उन्हें राज्य के शराब कारोबार (देसी और अंग्रेजी दोनों) की पूरी लगाम ही पकड़ा दी. मेरठ, आगरा, सहारनपुर, मुरादाबाद और बरेली जोन के अंतर्गत कुल 45 जिलों के शराब कारोबार का थोक और फुटकर कारोबार पोंटी के हवाले हो गया. इसके अलावा पूरे राज्य में थोक शराब का कारोबार भी पोंटी चड्ढा के हवाले कर दिया गया. उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य के 80 फीसदी से ज्यादा शराब के कारोबार पर कब्जा जमाने के बाद पोंटी रुके नहीं. बहनजी की कृपा उन पर बरस रही थी. राज्य सरकार के स्वामित्व वाली चीनी मिलों को औने-पौने दामों पर मायावती सरकार ने चड्ढा के हवाले कर दिया. राज्य लोकायुक्त की रिपोर्ट में पोंटी को बेची गई चीनी मिलों से सरकारी राजस्व को 124 करोड़ रुपये हानि की बात सामने आई. मेरठ जोन के एक पुराने शराब व्यवसायी जो पोंटी के एकाधिकार के चलते आजकल बेरोजगारी के आलम में हैं, कहते हैं, ‘शराब के धंधे की एक चेन है. गन्ना, चीनी मिल, गन्ने से चीनी, चीनी से शीरा और शीरे से शराब. जो आदमी लोगों को शराब पिलाने का काम करता था, वह अब खेत में गन्ना पैदा करने से लेकर शराब पिलाने तक के पूरे कारोबार पर कब्जा कर चुका है. ऐसे में आगे अगर राज्य की आबकारी नीति बदलती भी है तो भी इस पूरी चेन पर पोंटी का जिस तरह से कब्जा हो गया है उसमें दूसरे लोगों को पैर जमाना असंभव होगा.’
सिर्फ मायावती ही पोंटी के उपर मेहरबान रही हों ऐसा नहीं है. राजनीतिक जमात में पोंटी के मुरीद पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली के राजनीतिक गलियारों तक फैले हुए हैं. यूपी में पोंटी के उत्कर्ष की कहानी नब्बे के दशक के पूर्वार्ध से शुरू होती है. उस समय पोंटी मुरादाबाद में शराब के ठेके चलाते थे. इस काम में उनके एक साझेदार थे जोगिंदर अनेजा. 1992-93 में जब प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार बनी तब अनेजा समाजवादी पार्टी से एमएलए बने. सपा के साथ पोंटी के जुड़ाव की यह औपचारिक शुरुआत थी. रिश्ते बनाने में माहिर पोंटी के बारे में माना जाता है कि अनेजा के जरिए वे पहली बार मुलायम सिंह के संपर्क में आए. मेरठ जोन के एक अन्य पूर्व शराब व्यवसायी कहते हैं, ‘मायावती ने भले ही पोंटी को तीस हजार करोड़ का आदमी बनाया हो लेकिन उन्हें शून्य से पांच सौ करोड़ तक ले जाने में मुलायम सिंह की भूमिका सबसे बड़ी है.’
2003 से 2007 के बीच मुलायम सिंह एक बार फिर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. इस दौरान उन्होंने दो महत्वपूर्ण नीतियां बनाई. हाईटेक सिटी पॉलिसी और मल्टीप्लेक्स पॉलिसी. हाईटेक सिटी नीति के जरिए निजी बिल्डरों को टाउनशिप बनाने के लिए आसानी से भूमि उपलब्ध कराने और दूसरी छोटी-मोटी अड़चनें दूर करने का काम सरकार ने अपने हाथ में ले लिया. इसके नतीजे में प्राइवेट बिल्डर खूब फले-फूले. इसी तरह से मल्टीप्लेक्स नीति के कारण लखनऊ में बने पहले मल्टीप्लेक्स वेव का उद्घाटन करने 2003 में मुलायम सिंह यादव स्वयं पहुंचे थे. इन दोनों नीतियों के सबसे बड़े लाभार्थी पोंटी रहे. आज प्रदेश में पोंटी की कंपनी वेव के पास सबसे ज्यादा मल्टीप्लेक्सों का स्वामित्व है और राज्य में रियल एस्टेट के क्षेत्र में भी उन्हीं की कंपनी की तूती बोलती है.
2007 से 2012 के बीच उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार रही. इस दौरान पोंटी मायावती के बेहद नजदीक पहुंच गए थे. 2012 में सत्ता परिवर्तन हो गया. मुलायम सिंह के पुत्र अखिलेश यादव सत्ता में आ गए. पोंटी पर मायावती की मेहरबानियों को देखते हुए राज्य के कई अखबारों ने उनका सूरज अस्त होने की घोषणा कर दी. पर सब के सब तब बगलें झांकने लगे जब 15 अप्रैल को हुए शपथ ग्रहण समारोह में पोंटी चड्ढा की सीट रिजर्व थी. जानकार बताते हैं कि अखिलेश यादव से निजी मुलाकात के लिए पोंटी लखनऊ में पूरे आठ दिन तक डेरा डाले रहे और अंतत: उनसे मिलकर ही वापस लौटे थे. कह सकते हैं कि मकसद कैसा भी रहा हो पोंटी उसके लिए खासे जुनूनी थे.
थोड़ा-सा पीछे जाएं तो हम पाते हैं कि जितना फायदा उन्हें सपा-बसपा ने पहुंचाया उतना ही उनके काम भाजपा भी आई. 2000 से 2002 के बीच राजनाथ सिंह सूबे के मुख्यमंत्री थे और सूर्य प्रताप शाही आबकारी मंत्री. इस दौरान भी राज्य की आबकारी नीति में एक बड़ा फेरबदल हुआ था जिसका सीधा लाभ चड्ढा की कंपनी को हुआ था. इस समय तक खुदरा ठेकों की बड़ी संख्या पर पोंटी का कब्जा हो चुका था. राजनाथ सरकार ने नई नीति बनाई जिसे मॉडल शॉप के नाम से जाना जाता है. इस नीति में शराब के खुदरा ठेकों के साथ ही शराब पीने के लिए रेस्टोरेंट जैसी सुविधा देने का प्रस्ताव था. इस नीति के लागू होने के बाद शराब के ठेकों पर दिनों-दिन भीड़ बढ़ने लगी.
इन सालों के दौरान दुनिया उनके कारोबार को सिर्फ पोंटी के नाम से पहचानती रही है. कहीं भी उनके भाइयों का नाम या काम सामने नहीं आता. पोंटी को करीब से जानने वाले एक पत्रकार के मुताबिक, ‘अपने दम पर खड़े किए गए व्यापारिक साम्राज्य का पोंटी किसी भी कीमत पर बंटवारा नहीं करना चाहते थे. बड़ी मुश्किल से परिवार और रिश्तेदारों के दबाव में वे इसके लिए तैयार हुए थे.’ पिछले कुछ सालों से उनके बेटे मनप्रीत सिंह उर्फ मोंटी का नाम वेव के रियल एस्टेट के धंधे में जरूर सामने आने लगा था. जिस दौरान दोनों भाइयों के बीच जानलेवा गोलीबारी हुई, उस समय मोंटी हिंदुस्तान टाइम्स अखबार के सालाना कार्यक्रम लीडरशिप समिट में हिस्सा ले रहे थे.
इस घटना के बाद दोनों परिवारों ने असाधारण एकजुटता दिखाई है. केंद्रीय दिल्ली के रकाबगंज गुरुद्वारे में आयोजित प्रार्थना सभा के दौरान दोनों भाइयों की विधवाएं एक साथ दिखीं. और तो और, जिस सुखदेव सिंह नामधारी पर हरदीप की हत्या का आरोप है वह भी उस प्रार्थना सभा में शिरकत करने पहुंचा. ये सारी स्थितियां मिलकर मामले की जटिलता को बढ़ा रही हैं. इतने बड़े व्यापारिक साम्राज्य को संभालने और आगे बढ़ाने की मजबूरी भी इस एकता की बड़ी वजह मानी जा रही है. समझौते का मौजूदा फॉर्मूला यह है कि पोंटी के मंझले भाई रजिंदर सिंह वेव इंक के मैनेजिंग डायरेक्टर होंगे जबकि पोंटी के बेटे मोंटी ज्वाइंट मैनेजिंग डायरेक्टर होंगे. हरदीप सिंह के परिजनों की इस पूरी व्यवस्था में क्या स्थिति रहेगी इस बारे में अभी कुछ साफ नहीं हो पाया है.
अपनी मृत्यु से एक पखवारे पहले पोंटी चड्ढा दिल्ली के पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार से मिलकर आए थे. उन्होंने अपने ऊपर जानलेवा हमले का खतरा जताया था और अतिरिक्त सुरक्षा की मांग की थी. हालांकि उनके साथ पंजाब पुलिस के जवानों का सुरक्षा घेरा रहता था. जवाब में पुलिस प्रमुख ने उनसे एक लिखित आवेदन जमा करने के लिए कहा था और साथ ही उन संभावित लोगों के नाम भी बताने को कहा था जिनसे उन्हें जान का खतरा हो सकता था. मगर पोंटी इसके लिए कभी समय नहीं निकाल पाए.
पोंटी के एक करीबी हमें बताते हैं कि पोंटी बचपन में जब पंतग उड़ाते थे तो अक्सर अपनी पतंग कटने से खीज जाते थे. यह बात उन्हें पसंद नहीं थी. एक दिन उन्होंने एक तरीका निकाला, पतंग के साथ वे धातु का एक पतला तार जोड़कर अपनी पतंग उड़ाने लगे. यह तार बिजली के हाई टेंशन तार में उलझ गई. यह रोमांच और जिद उनके ऊपर भारी पड़ी, उनकी जान जाते-जाते बची मगर एक हाथ और दूसरे हाथ की तीन उंगलियां जाती रहीं. इसके बावजूद जिद और रोमांच के खतरे को पोंटी भांप नहीं पाए, इसका नतीजा आज हमारे सामने है.
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