नन्हे लेकिन बड़े सितारे

दस साल की जन्नत का आज ब्याह हो गया. एक हट्टे-कट्टे डकैत ने अपना अंगूठा चीरकर खून से उसकी मांग भर दी और ऐलान किया कि दोनों मरते दम तक साथ रहेंगे. बाकी डकैत इस दौरान इस छोटी सी बच्ची के मां-बाप की खोपड़ी पर बंदूक ताने रहे. शॉट खत्म होने के बाद जन्नत आइने की तरफ भागती है. अपना सिंदूर पोंछते हुए वह पास ही बैठे अपने पिता जुबेर रहमानी से शिकायती लहजे में कहती है, ‘पापा, यह दुखता है.’ उसकी बात सुनकर टीवी सीरियल फुलवा की शूटिंग कर रही यूनिट के लोग धीरे से हंसते हैं.

लेकिन इस तरह के नाटकीय दृश्य और कुछ समय की थकान उस स्टारडम के लिए एक बहुत ही छोटी सी कीमत है जो आज जन्नत को हासिल है. जन्नत इस इंडस्ट्री में तब से है जब वह महज तीन साल की थी. आज सात साल बाद वह छोटे परदे को दो चर्चित धारावाहिकों में मुख्य भूमिका निभा रही है. पहला है इमेजिन पर आने वाला काशी और दूसरा कलर्स पर हाल ही में शुरू हुआ फुलवा.
यह वह दुनिया नहीं है जहां छोटी-छोटी बच्चियां सिर्फ जगह भरने लिए काम करती हैं. यहां उनके काम करने का मतलब है कांट्रेक्ट्स, प्रतिस्पर्धा और घंटों तक चलने वाले शूटिंग शेड्यूल.

जन्नत, उल्का और उनके जैसे कई दूसरे बच्चे अपने माता-पिता की अधूरी महत्वाकांक्षाओं का भार भी ढो रहे हैं

छोटे परदे पर बालक्रांति का यह सिलसिला सही मायनों में बालिका वधू से शुरू हुआ. यह दस साल की आनंदी (अविका गौर) की कहानी थी जिसका ब्याह लगभग उस जितनी ही उम्र के जगदीश (अविनाश कपूर) से हो जाता है. सास, बहू और साजिश से भरा यह फॉर्मूला था तो वही पुराना, बस उसे एक अलग रंग इस मायने में दे दिया गया था कि इसका हर एपीसोड एक सामाजिक संदेश के साथ खत्म होता था. मध्य वर्ग ने इसे खूब पसंद किया. इतना कि बालिका वधू ने कलर्स को देखते ही देखते मनोरंजन चैनलों की सबसे ऊपरी पांत में खड़ा कर दिया. 13 साल की चुलबुली अविका रातों-रात स्टार बन गई. दूसरे चैनलों को भी यह समझते ज्यादा देर नहीं लगी कि अब उन्हें भी इसी राह पर चलना है.

जीटीवी पर आने वाले धारावाहिक झांसी की रानी की लेखिका शालू कहती हैं, ‘यह सब बालिका वधू से शुरू हुआ.इसके बाद जब कलर्स ने जब उतरन शुरू किया, जिसमें दो छोटी बच्चियों की कहानी थी, तो साफ हो गया कि केंद्रीय भूमिकाओं में बच्चे भी जान फूंक सकते हैं.’ कलर्स जैसी सफलता दोहराने के लिए दूसरे चैनलों ने भी तेजी से अपना ढर्रा बदला और बच्चों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए. अब बच्चे सिर्फ एक्स्ट्रा या छोटी और हल्की-फुल्की भूमिकाओं में नहीं दिख रहे. अब वे नायक-नायिकाएं हैं जिनके इर्दगिर्द पूरी कहानी घूमती है. इमैजिन के लिए काशी लिख चुके गौतम हेगड़े कहते हैं, ‘ आनंदी ने साबित कर दिया कि बच्चे भी शानदार तरीके से मुख्य भूमिका निभा सकते हैं. बच्चों की आंखों से दुनिया बिल्कुल अलग दिखती है. घिसे-घिसाए प्लॉट भी एक नई तरह से पेश किए जा सकते हैं. बच्चे सुंदर होते हैं और क्योंकि उनका चरित्र वास्तव में दर्शकों की आंखों के सामने ही विकसित होता है इसलिए दर्शकों को भी उनसे ज्यादा जुड़ाव महसूस होता है.’

छोटे परदे पर बच्चों की इस क्रांति का एक हिस्सा उल्का गुप्ता भी हैं. 14 साल की उल्का को जी टीवी पर आने वाले धारावाहिक झांसी की रानी में मुख्य भूमिका के लिए चुना गया था. जब बालिका वधू मशहूर हुआ तो उस समय उल्का स्टार वन पर आने वाले फैमिली ड्रामा रेशम डंक में अपनी शूटिंग का आखिरी चरण निपटा रही थी. शूटिंग के आखिरी दिन उन्हें झांसी की रानी के लिए ऑडिशन देने के लिए बुलाया गया. उन्हें चुन लिया गया और इसके बाद के दो वर्षों में अपनी अभिनय क्षमता की बदौलत वे घर-घर में जाना-पहचाना चेहरा बन गईं.
अब जब उनका किरदार उम्र की पगडंडी पर आगे बढ़ चुका है तो थोड़ी सी फुर्सत के इस दौर में उल्का अपनी 10वीं की परीक्षा के नतीजे आने का इंतजार कर रही हैं. गर्व से दमकते उनके पिता गगन गुप्ता कहते हैं, ‘मुझे रोज ही चैनलों से फोन आते हैं. लोग पूछते हैं कि क्या वह शोज में आने के लिए एक हफ्ते की छुट्टी ले सकती है.’ उल्का अपने छोटे भाई जानू और बहन जिज्ञासा के साथ सोफे पर बैठी टीवी देख रही है. सोफे के पीछे की दीवार पर उसकी एक तस्वीर टंगी हुई है. उसके हाथ में तलवार है और आंखों में गुस्सा.

कुछ माता-पिता ऐसे भी हैं जिन्हें बच्चों को इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए कुछ ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है

एक तरह से देखा जाए तो जन्नत, उल्का और उनके जैसे कई दूसरे बच्चे अपने माता-पिता की अधूरी महत्वाकांक्षाओं का भार भी ढो रहे हैं. नौ साल पहले बतौर अभिनेता पहचान पाने को जूझ रहे गगन गुप्ता ने अपनी बेटी को ऑडिशंस के लिए ले जाना शुरू किया था. जब उल्का पूरा वाक्य तक नहीं बोल पाती थी तब गुप्ता उसे उच्चारण की बारीकियां सिखाया करते थे. हालांकि एक बार जब उल्का का चयन रेशम डंक के लिए हो गया तो गुप्ता ने उसके साथ जाना बंद कर दिया. वे कहते हैं, ‘मैंने उसके साथ उसकी मां को जाने दिया ताकि उसकी ठीक से देखभाल हो सके. जैसे एक मां ही कर सकती है. मैं खुद भी एक एक्टर हूं. दूसरे एक्टर काम में मसरूफ हों तो उनके सामने खाली बैठा रहना मेरे लिए एक ऐसी स्थिति है जिसे में बर्दाश्त नहीं कर सकता.’

लेकिन सभी माता-पिता खुद पर इतना काबू नहीं रख पाते. कास्टिंग डायरेक्टर जैनेट इलिस कहती हैं, ‘बाल अभिनेताओं में से ज्यादातर के माता-पिता की अपनी भी महत्वाकांक्षाएं होती हैं. बच्चे को एक बार रोल मिल जाए तो वे ऐसा बर्ताव करने लगते हैं जैसे वे ही असली टैलेंट हों. कभी वे अपने मनपसंद खाने की जिद करेंगे, कभी स्क्रिप्ट में बदलाव की और कभी वैनिटी वैन की. हालांकि इसका सकारात्मक पहलू यह है कि उन्हें यह अहसास होता है कि उनके बच्चे उनकी हसरतों की जिंदगी का टिकट हैं और इसलिए वे उन्हें निखारने पर खूब ध्यान देते हैं.’

डिंपल पेंडकलकर का बेटा राहुल चार साल का हुआ तो वे उसका पोर्टफोलियो एक एजेंट के पास ले गईं जिसने एक मोटी फीस लेकर इस बच्चे की सिफारिश कास्टिंग डायरेक्टरों से करनी शुरू की. आज राहुल 10 साल का है और अब तक 11 टीवी सीरियलों, 11 फीचर फिल्मों और 76 विज्ञापनों में काम कर चुका है. एक सेट पर उसकी हर दिन की औसतन फीस 40 हजार रु है. आय पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है तो राहुल के पिता ने भी कुछ समय के लिए अपनी वकालत छोड़कर स्क्रिप्टराइटिंग और डायरेक्शन सीखना शुरू कर दिया है. शूटिंग के दौरान टेक के बाद भी डिंपल मॉनीटर से चिपकी रहती हैं ताकि वे देख सकें कि राहुल शॉट में है या नहीं. दूसरे बच्चों के माता-पिता इस दौरान एयरकंडीशंड वैनिटी वैन में बैठकर उन्हें उनके हिस्से की लाइनें रटवाते हैं. उनकी फरमाइशें धैर्य से सुनते हैं और वे थकान की शिकायत करें तो उनके कंधों की मालिश भी कर देते हैं.

कुछ माता-पिता ऐसे भी हैं जिन्हें अपने बच्चों को इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए इससे कुछ ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है. सात साल की अशनूर कौर का ही मामला लें जिसकी मां अवनीत कौर ने मुंबई स्थित रेयान इंटरनेशनल स्कूल की अपनी नौकरी छोड़ दी ताकि वे अपनी बेटी के करियर पर ध्यान दे सकें. जी टीवी पर जल्द आने वाले धारावाहिक जय सोमनाथ में मुख्य भूमिका निभाने वाली अशनूर को अपनी शूटिंग के पहले दिन तब बहुत दिक्कत हुई जब एक सीन में उन्हें लाल मिर्च पीसनी थी. तपती दोपहर में जब यह शॉट पूरा हुआ तो तब तक उनकी आंखों और हाथों में इतनी तेज जलन होने लगी थी कि डॉक्टर की मदद लेनी पड़ी. अवनीत कौर मुस्कराते हुए बताती हैं, ‘वह बहादुर लड़की है. कभी-कभी उसे नींद आ रही होती है और वह रोती है. क्योंकि उसका किरदार कुछ ऐसा है कि उसे रिश्तेदारों द्वारा सताया जाता है, इसलिए जब उसका मूड ऐसा होता है तो भी मैं शूटिंग के लिए कहती हूं ताकि सीन वास्तविक लगे.’

अशनूर का परिवार अब मलाड के अपने साधारण घर से मुंबई के पॉश इलाके मीरा रोड पर स्थित एक फ्लैट में शिफ्ट हो गया है. मुंबई जैसे शहर में जहां खुद का आशियाना एक बड़ा सपना हो, यह एक बड़ी उपलब्धि है. शायद इसलिए माता-पिता को भी ऐसे बच्चों के करियर के लिए अपने करियर की कुर्बानी नहीं खलती.

इन बच्चों में वह मासूमियत नहीं दिखती जो आमतौर पर इस उम्र के बच्चों में पाई जाती है. कम उम्र में ही बड़े हो गए इन बच्चों का बचपन आत्मकेंद्रित हो गया है

हालांक किसी रोल के लिए चुन लिया जाना सिर्फ आधा मैदान मारने जैसा है. इसके बाद भी बच्चों को काफी पापड़ बेलने पड़ते हैं.  गर्मियों की छुट्टियों में जहां उल्का के दोस्त मस्ती कर रहे थे वहीं उल्का हर सुबह वरसोवा बीच पर घुड़सवारी और तलवारबाजी का पांच घंटे लंबा कठिन प्रशिक्षण ले रही थी. वह बताती है, ‘मैं घंटों तक बिना खाए-पिए ट्रेनिंग लेती थी. शुरुआत में चैनल इस भूमिका के लिए किसी दूसरी लड़की को लेना चाहता था. उन्होंने उसे ट्रेनिंग देना भी शुरू कर दिया था. जब भी मैं घोड़े से गिरती ट्रेनर कहता कि पहले वाली ज्यादा अच्छी थी. यह सुनकर मैं फिर से घोड़े पर सवार हो जाती.’ इस ट्रेनिंग के बाद उच्चारण और संस्कृत श्लोक दोहराने का प्रशिक्षण शुरू होता. सीरियल में अपनी भूमिका खत्म होने तक उल्का ने सारे स्टंट खुद किए. इस दौरान वह चार बार घोड़े से गिरी.

जिस दूसरी लड़की का जिक्र उल्का ने किया उसका नाम आयशा कादस्कर है. आयशा को जब यह बताया गया कि अब यह रोल वह नहीं करेगी तो वह नर्वस ब्रेकडाउन का शिकार हो गई.  इस बारे में बात करने पर उल्का कहती है, ‘इंडस्ट्री में टिकना बड़ा मुश्किल है. मेरी बहन दो आडिशनों में रिजेक्ट हुई है. जब कोई टेक अच्छा नहीं हुआ और लोग चिल्लाए तो मैं भी सेट पर कई बार रोई. लेकिन मैंने और भी ज्यादा मेहनत की.’

इन बच्चों में वह मासूमियत नहीं दिखती जो आमतौर पर इस उम्र के बच्चों में पाई जाती है. कम उम्र में ही बड़े हो गये इन बच्चों के बारे में चिंताजनक बात यह भी है कि उनका बचपन आत्मकेंद्रित हो गया है. क्योंकि वे चौबीसों घंटे बहुत ही आकर्षक बच्चों की भूमिका निभा रहे हैं. फुलवा में जन्नत के पिता की भूमिका निभाने वाले सुशील बौंठियाल कहते हैं, ‘बच्चे सब समझते हैं? उन्हें पता है कि उनकी मासूमियत एक बिकाऊ माल है. चैनल उनके साथ दूसरे कलाकारों की तरह का ही बर्ताव करते हैं. उनसे उम्मीद की जाती है कि वे बाकी लोगों की तरह समय पर आएं और अपना काम पूरा करें. इसलिए स्वाभाविक ही है कि उनमें औरों से ज्यादा पैसा कमाने की होड़ पैदा हो जाती है.’ फुलवा की मां की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री नूपुर अलंकार कहती हैं, ‘इस तरह की इंडस्ट्री में मासूमियत की बलि चढ़ना तो लाजमी ही है. मैं अपने बच्चों से कभी अभिनय नहीं करवाऊंगी.’

सामाजिक संगठन और राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग इस बात पर जोर देते हैं कि बाल अभिनेताओं को स्कूल नहीं छोड़ना चाहिए. लेकिन इन बच्चों की जीवनशैली देखकर यह बहुत मुश्किल काम लगता है. जन्नत के पिता जुबेर भले ही यह दावा करते हैं कि उसे स्कूल के काम में कोई समस्या नहीं है लेकिन यूनिट के लोग दबी जबान में बताते हैं कि वह पिछले चार महीनों से वह स्कूल गई ही नहीं है. राहुल बहुत खुश होकर बताता है कि उसकी  टीचर होमवर्क न करने पर प्यार से उसके गाल खींचती हैं क्योंकि वे उसके सीरियल को पसंद करती हैं. झांसी की रानी की शूटिंग के समय जब उल्का को परीक्षा देनी थी तो वह सेट पर ही जागती थी. स्कूल ड्रेस पहनकर वह हवाई जहाज से जयपुर से मुंबई जाती, परीक्षा देती, एक घंटे सोती और फिर रात भर शूटिंग के लिए वापस जयपुर पहुंच जाती. माता-पिता बहुत गर्व से बताते हैं कि उनके बच्चे पढ़ाई पर कम ध्यान दे पाने के बावजूद पास हो गए. यह बताते हुए वे भूल जाते हैं कि ये बच्चे जिंदगी के उन पाठों से महरूम रह जाते हैं जो हमउम्रों के साथ सीखे जाते हैं.

उल्का से बात करते हुए लगातार यह एहसास बना रहता है कि आप किसी 20 साल की उम्र की लड़की के साथ हैं. बीच में कुछ जीवंतता के भी क्षण होते हैं, जब उसका भाई दौड़कर उसके बाल खींचने चला आता है, या जब उसकी छोटी बहन अपना रबर खोजते हुए उससे झगड़ा करने लगती है. लेकिन यह बात एकदम साफ दिखाई पड़ती है कि उसे नियमित आमदनी वाली अकेली सदस्य होने का एहसास है. उसने सीरियल में 4000 रु प्रतिदिन की फीस पर काम शुरू किया था, जो आगे चलकर 40,000 रु प्रतिदिन हो गई क्योंकि उसके पिता को मुख्य भूमिका निभाने की कीमत समझ में आ गयी थी. फ्लैशबैक सीक्वेंस के लिए उल्का अब भी कभी-कभी झांसी की रानी के सेट पर बुलाई जाती है. इसके अलावा मोटी फीस के एवज में वह अलग-अलग आयोजनों में झांसी की रानी के रूप में तलवार लेकर घोड़े पर बैठकर भी जाती है. जब एक म्यूजिक वीडियो में  रोमांटिक भूमिका के लिए उल्का 20000 रु. के ऑफर को ठुकरा देती है, तो इसका मतलब यह नहीं कि वह शर्मीली है, बल्कि उसे पता है कि यह अभी ठीक नहीं लगेगा. जब राहुल पेंडकलकर की मां उसे हैप्पी मील के लिए मैक्डोनाल्ड में ले जाती हैं, तो वह मुस्कुराता नहीं. वह वह उन लाइनों और भंगिमाओं को दोहराता है, जो उसने मैक्डाेनाल्ड के विज्ञापन में की थीं. जब जन्नत को एक मेकअप मैन सांत्वना देने की कोशिश करता है कि उसे अपने माथे पर लगे सिंदूर को होली का रंग भर समझना चाहिए और रोना नहीं चाहिए तो वह जवाब देती है, ‘मैं रो नहीं रही दादा, यह तो ग्लिसरीन की वजह से निकले आंसू हैं.’
इसमें कतई अजीब लगने वाली बात नहीं है कि अश्नूर हमारे चलने के पहले हमें अपना डांस दिखाना चाहती है. इसमें भी कतई आश्चर्य की बात नहीं कि वह नाचने के लिए शीला की जवानी वाला गाना चुनती है और अपने छोटे से शरीर के साथ कैटरीना कैफ की हर भाव-भंगिमा की ठीक-ठीक नकल करती है.

ये ऐसे बच्चे हैं जो जानते हैं कि उनके बचपन की बाजार में क्या कीमत है और उन्हें खुद को इस बाजार में कैसे पेश करना है. यह बड़ों के लिए भी बच्चों का खेल नहीं. l