कनीमोरी के साथ सौतेला व्यवहार

यह करुणानिधि की दूसरी पत्नी दयालु अम्मल की भाषाई अयोग्यता है या फिर दिल्ली और तमिलनाडु के राजनीतिक पारे को बर्दाश्त से बाहर ले जाने की उनकी क्षमता, जिसके चलते दिल्ली की विशेष अदालत में पेश की गई पूरक चार्जशीट से उनका नाम नदारद है?

पूर्व टेलीकॉम मंत्री ए राजा की तरह ही राज्यसभा सांसद एमके कनीमोरी की बलि भी दयालु अम्मल को बचाने के लिए की जा रही जोड़-तोड़ के चलते दी गई हो सकती है. दयालु तमिलनाडु के उपमुख्यमंत्री एमके स्टालिन और केंद्रीय रसायन व उर्वरक मंत्री एमके अलागिरी की मां हैं. जबकि कनीमोरी रजति अम्मल की बेटी हैं जिन्हें तमिलनाडु में करुणानिधि की संगिनी कहा जाता है. चार्जशीट में दयालु अम्मल का नाम आने का मतलब था जबर्दस्त पारिवारिक उठापटक और डीएमके व कांग्रेस के रिश्तों में स्थायी दरार पड़ जाना.

सीबीआई चार्जशीट के अनुसार ‘कलैनार टीवी में कनीमोरी का 20 प्रतिशत हिस्सा था और उसके संचालन में उनकी सक्रिय भागीदारी थी. उन्होंने 2009 में राजा को फिर से टेलीकॉम मंत्री बनवाने के लिए डीएमके मुख्यालय और मध्यस्थों के बीच सक्रिय भूमिका निभाई.

ऐसा लगता है कि सीबीआई ने अपनी पूरक चार्जशीट के जरिए इसी संतुलन को साधने की कोशिश की है. चूंकि दयालु अम्मल की कलैनार टीवी में 60 प्रतिशत की हिस्सेदारी है, इसलिए उन्हें आरोपित बनाया जाना चाहिए था. लेकिन कहानी को एक अजीबोगरीब मोड़ देते हुए सीबीआई ने उन्हें सिर्फ गवाह बनाया है. सीबीआई चार्जशीट में कहा गया है,  ‘27 जुलाई, 2007 को हुई बोर्ड की मीटिंग में उन्होंने साफ-साफ कहा था कि अपनी बढ़ती हुई उम्र, बिगड़ते स्वास्थ्य और तमिल के अलावा कोई और भाषा न समझ पाने के चलते उनसे यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि वे कंपनी के काम-काज पर ध्यान दे पाएंगी. वे सिर्फ कानूनी जरूरतों को पूरा करने के लिए मीटिंग में मौजूद रहा करेंगी.’

लेकिन कनीमोरी के मामले में ऐसी रियायतें नहीं दिखाई पड़तीं. सीबीआई चार्जशीट के अनुसार ‘कलैनार टीवी में कनीमोरी का 20 प्रतिशत हिस्सा था और उसके संचालन में उनकी सक्रिय भागीदारी थी. उन्होंने 2009 में राजा को फिर से टेलीकॉम मंत्री बनवाने के लिए डीएमके मुख्यालय और मध्यस्थों के बीच सक्रिय भूमिका निभाई. इससे राजा और कनीमोरी के बीच गहरे संबंधों का पता चलता है.’ चार्जशीट में आगे कहा गया है कि जांच से साबित हो जाता है कि एक आपराधिक साजिश के तहत आरोपित राजा, शरद कुमार और कनीमोरी को डीबी ग्रुप की कंपनियों के खातों से अवैध रूप से शहिद बलवा और विनोद गोयनका द्वारा 200 करोड़ रुपये दिए गए. इसके बदले में राजा ने स्वान टेलीकॉम को कई तरह से लाभ पहुंचाया.
कयास लगाए जा रहे थे कि यदि दयालु अम्मल और कनीमोरी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई तो डीएमके केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर का रुख कर सकता है. विपक्षी पार्टियों ने इस गड़बड़झाले पर निशाना साधा है. भाजपा प्रवक्ता निर्मला सीतारमन का कहना है, ‘हमें पता है कि इस पूरे मामले की निगरानी सुप्रीम कोर्ट कर रहा है, लेकिन इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि 2जी घोटाले से लाभ लेने वाली कंपनी में 60 फीसदी हिस्सा रखने वालों को बाहर रखा गया है और 20 प्रतिशत हिस्सा रखने वालों पर आरोप लगाया गया है. सक्रिय और निष्क्रिय हिस्सेदारी में कानून कोई अंतर नहीं करता. किसी को तो बताना चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा है.’ माकपा के तमिलनाडु राज्य सचिव टी पांडियन कहते हैं, ‘यह सबको पता है कि 2जी घोटाले से मुख्य रूप से करुणानिधि के परिवार ने लाभ उठाया है. यह किसी एक या दो की बात नहीं, पूरा परिवार इसमें शामिल है.’

इस बीच डीएमके कनीमोरी को आरोपित बनाए जाने के मामले को बहुत तूल नहीं दे रही है. पार्टी नेता टीकेएस एलांगोवन के मुताबिक, ‘आरोप साबित ही नहीं किए जा सकते क्योंकि कलैनार टीवी द्वारा लिया गया पैसा कर्ज के तौर पर था. चैनल ने यह कर्ज ब्याज सहित चुकता कर दिया था. डीएमके को पूरा विश्वास है कि जांच पूूरी होने पर राजा और कनीमोरी दोनों बेदाग निकलेंगें.’

कनीमोरी पर आपराधिक षड्यंत्र का आरोप है, इसलिए जांचकर्ताओं के करीबी सूत्र 6 मई को उनकी गिरफ्तारी की संभावना से इनकार नहीं कर रहे हैं. अगर ट्रायल कोर्ट कनीमोरी की जमानत याचिका रद्द कर देती है ताे राजधानी दिल्ली का राजनीतिक पारा कुछ और  डिग्री चढ़ने वाला है.