कथा जैसी दिलचस्प

पुस्तक ः उस रहगुजर की तलाश है लेखक ः राजेन्द्र राव मूल्य ः 300 रुपये प्रकाशन ः सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली
पुस्तकः उस रहगुजर की तलाश है लेखक ः राजेन्द्र राव मूल्यः 300 रुपये  प्रकाशन ः सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली
पुस्तक ः उस रहगुजर की तलाश है
लेखक ः राजेन्द्र राव
मूल्य ः 300 रुपये
प्रकाशन ः सामयिक प्रकाशन, नई दिल्ली

क्या कथेतर लेखन भी कहानी या उपन्यास की तरह दिलचस्प और मार्मिक हो सकता है? वरिष्ठ कथाकार राजेंद्र राव के कथेतर लेखन के संग्रह ‘उस रहगुजर की तलाश है’ को पढ़कर लगता है कि ऐसा संभव है. संग्रह में शामिल रिपोर्ताज, संस्मरण और साक्षात्कार खासे दिलचस्प हैं. कोलकाता की यौनकर्मियों के जीवन पर लिखा गया रिपोर्ताज ‘हाटे बाजारे’ किसी उपलब्धि से कम नहीं है. यह लंबा रिपोर्ताज मनोहर श्याम जोशी के आग्रह पर लिखा गया था जिसे उन्होंने ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ में तीन किस्तों में छापा था. यौनकर्मियों के जीवन का इतना जीवंत वर्णन अन्यत्र दुर्लभ है. यह रिपोर्ताज यौनकर्मियों के प्रति करुणा का भाव जागृत करता है. एक जगह लेखक लिखता है, ‘मेरी आंखों के आगे बहुबाजार के वे मकान छा गए, जिनके बाहर बीस-बीस लड़कियां, औरतें और प्रौढ़ाएं सज-धजकर शाम से रात तक बैठी रहती हैं. उनकी आंखंे सड़क पर आने-जाने वालों पर लगी रहती हैं. आखिर कितने खरीदार आ सकते हैं. ज्यादातर बैठे-बैठे जम जाती हैं, उनके शरीर सुन्न पड़ जाते हैं.’ ऐसी पंक्तियां सोचने पर मजबूर करती हैं कि आजादी के इतने वर्षों बाद भी हम ऐसा क्यों देख-सुन रहे हैं?

शिवमूर्ति पर लिखे संस्मरण में लेखक ने उनके व्यक्तित्व के कई गुणों की चर्चा की है. सहजता, फक्कड़पन किसी के मदद के लिए सदैव तत्पर रहना आदि अनेक चीजें शिवमूर्ति को बेहतर लेखक होने के साथ बेहतर मनुष्य भी बनाती हैं. लेकिन राव बताना नहीं भूलते कि साहित्यकारों के फितरती व्यसनों से दूर रहने के बावजूद उनमें कमजोरी भी है और वह है नारी सौंदर्य के प्रति अदम्य आकर्षण. शिवमूर्ति के गांव पर लिखे अपने रिपोर्ताज में लेखक ने उनके जीवन और रचनाओं में शामिल स्त्रियों का आंखों देखा हाल प्रस्तुत किया है. पुस्तक में कथाकार कामतानाथ और दुबई में रह रहे लेखक कृष्ण बिहारी पर भी रोचक संस्मरण है. सुप्रसिद्ध राष्ट्रवादी कवि सोहनलाल द्विवेदी और राजेन्द्र यादव का लेखक द्वारा लिया गया साक्षात्कार खासा जरूरी है. दोनों साक्षात्कारों को संस्मरण की शक्ल में प्रस्तुत किया गया है. लाखों-करोड़ों लोगों को अपनी कविताओं के द्वारा हिंदी से जोड़ने वाले इस अघोषित राष्ट्रकवि को उसके जीवन के अंतिम दिनों में उसके हाल पर उपेक्षित छोड़ दिया गया था. इस कवि का संस्मरणनुमा साक्षात्कार हमारी संवेदना को झकझोरता है. दिलचस्प अंदाज में लिया गया राजेन्द्र यादव का साक्षात्कार भी उनके व्यक्तित्व और चिंतन की कई परतों को उद्घाटित करता है.