अलहदा है नालंदा

पिछले पांच वर्षों में बिहार में पूंजी निवेश के छोटे-बड़े अनेक प्रस्ताव स्वीकृत हुए हैं, लेकिन व्यावहारिक रूप से निवेश की प्रक्रिया विरले ही शुरू हुई है. दूसरी तरफ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पैतृक जिले नालंदा में निवेश और विकास की तेज रफ्तार से लगता है कि नालंदा पर सरकार का ध्यान कुछ ज्यादा ही है. इस असंतुलन पर इर्शादुल हक की रिपोर्ट

नालंदा के कल्याण बिगहा गांव में नीतीश कुमार के खंडहर हो चुके पैतृक घर की देखभाल करने वाले सीताराम एक घटना का उल्लेख कुछ इस तरह करते हैं, ‘2005 में जब साहब बिहार के मुख्यमंत्री बन गए तो मेरी बड़ी इच्छा थी कि मैं पटना में उनके सरकारी आवास को देखूं. एक दिन मेरी यह इच्छा पूरी हो गई. मैं उनके बुलावे पर अण्णे मार्ग के उनके सरकारी आवास पहुंचा. कुछ देर बोलने-बतियाने के बाद मुझसे न रहा गया तो मैंने अपने दिल की बात उनसे कह दी. मैंने कहा, ‘साहब यह तो बड़ी भव्य कोठी है. अब आप अपने गांव के पुराने घर को भी कुछ अच्छा बना दीजिए ताकि जब आप वहां जाएं तो आपका स्वागत करने में हमें अच्छा लगे. इतना सुनते ही साहब थोड़ा मुस्कुराए और फिर कहा- सीताराम, यह पूरा बिहार आप ही का घर है. पहले बिहार को चमका दीजिए तो अपने घर को चमकाइएगा.’

बीते बजट सत्र की बात है. विधान परिषद के सदस्यों ने मांग की कि उनके गांवों को सभी आधारभूत सुविधाओं से जोड़ा जाए. इसके लिए बाकायदा परिषद में प्रस्ताव पेश किया गया. जब यह प्रस्ताव सदन में पढ़ा जाने लगा तो मुख्यमंत्री ने तुरंत हस्तक्षेप किया और कहा कि राज्य के व्यापक हित में किसी सदस्य के क्षेत्र को प्राथमिकता नहीं दी जा सकती. यह राज्य की जनता के धन का मुनासिब उपयोग नहीं है. इसलिए उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया.

इन दोनों घटनाओं के केंद्र में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं. उनकी इन दो बातों से यह स्पष्ट है कि वे निजी हित के सामने राज्य के व्यापक हित को सर्वोपरि मानते हैं. लेकिन दूसरी तरफ देखा जाए तो दूसरे जिलों की तुलना में मुख्यमंत्री का पैतृक जिला नालंदा बड़ी तेजी से विकास के रास्ते पर अग्रसर है. और अगर नालंदा में भी उनके पैतृक गांव कल्याण बिगहा की बात करें तो यह गांव भी जिले के अन्य गांवों को काफी पीछे छोड़ते हुए विकास का एक मॉडल ही बन गया है.

नालंदा में विकास की बयार मुख्यमंत्री की इच्छा से बह रही है या उन्हें खुश करने के लिए उनके अधिकारी, मंत्री या दूसरे राजनेता नालंदा पर विशेष ध्यान देने में लगे हैं, यह बता पाना थोड़ा मुश्किल है. पिछले पांच वर्षों में इस जिले में अनेक इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज, औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान, विश्वस्तरीय होटल, टूरिस्ट पार्क, विद्युत संयंत्र, मल्टी मीडिया म्यूजियम, एथनाल इकाई, सरसों तेल उत्पादन इकाई समेत अनेक क्षेत्रों में या तो निवेश हो चुका है या उसके लिए राज्य निवेश संवर्धन बोर्ड की तरफ से मंजूरी मिल चुकी है. मालूम हो कि ये सारे निवेश 2005 से अब तक हो रहे हैं जो निजी क्षेत्र द्वारा किए जा रहे हैं और इसकी कुल अनुमानित लागत लगभग दो से ढाई हजार करोड़ रु के आसपास है. इसके अलावा नीतीश के मुख्यमंत्री बनने के बाद नालंदा जिले में 1,100 करोड़ रु का बहुचर्चित नालंदा विश्वविद्यालय बनाने के लिए 450 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जा चुका है और उस पर काम जारी है.

नालंदा में निवेश का यह दूसरा दौर है. इस जिले में निवेश का पहला दौर तब ही शुरू हो गया था जब केंद्र में एनडीए की सरकार थी. यानी 1998-99 तक. बतौर रेलमंत्री नीतीश ने खुद अपनी कोशिशों से नालंदा के हरनौत में रेलवे कोच मेंटेनेंस वर्कशॉप पर काम शुरू करवाया था. लगभग 250 करोड़ रु का यह प्रोजेक्ट अपने अंतिम चरण में है. पूर्व मध्य रेलवे के प्रवक्ता दिलीप कुमार के अनुसार यह इकाई अगले जुलाई महीने में काम करना शुरू कर देगी. एनडीए सरकार के कार्यकाल में ही नीतीश और जॉर्ज फर्नांडिस के सम्मिलित प्रयास से नालंदा के राजगीर में 20 हजार करोड़ रु की लागत से आयुध निर्माण इकाई स्थापित करने का काम शुरू हुआ. इसके अलावा बाढ़ संसदीय क्षेत्र, जिसका प्रतिनिधित्व नीतीश कुमार कई वर्षों तक करते रहे हैं, (वैसे तो यह पटना जिले का हिस्सा है पर इसके दो विधानसभा क्षेत्र हरनौत और चंडी 2005 तक नालंदा जिले में पड़ते थे) में भी सुपर थर्मल पावर स्टेशन का काम अपने अंतिम चरण में है. यह इकाई लगभग 20 हजार करोड़ रु की लागत से बन रही है और उम्मीद की जा रही है कि यहां 2013 से ऊर्जा उत्पादन शुरू हो जाएगा.

नालंदा में कुल मिलाकर जिस रफ्तार से निवेश हो रहा है उससे विशेषज्ञों को अनुमान है कि आने वाले चार-पांच वर्षों में वहां लगभग 50 हजार करोड़ रु के प्रत्यक्ष निवेश के अलावा लगभग दस हजार करोड़ रु तक का अतिरिक्त निवेश हो चुका होगा जिससे जिले की अर्थव्यवस्था पर व्यापक असर पड़ने की उम्मीद है. भविष्य की संभावनाओं का अनुमान लगाते हुए अर्थशास्त्री नवलकिशोर चौधरी कहते हैं, ‘इतने बड़े निवेश के बाद जिले में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से एक लाख लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकते हैं जिससे स्वाभाविक तौर पर वहां के लोगों की आर्थिक स्थिति में काफी बदलाव आएगा.’

निवेश के लिए तरसते बिहार में एक तरफ राज्यस्तर पर कोई खास प्रगति नहीं दिख रही और वहीं नालंदा में हो रहा तेज विकास कई लोगों को अचंभे में डालता है. इससे जहां एक तरफ विपक्षी पार्टियों के नेताओं की त्योरियां चढ़ गई हंै वहीं इस पर अर्थशास्त्रियों का एक वर्ग भी खासा नाराज दिख रहा है. इस संबंध में विधानसभा में विपक्ष के नेता अब्दुलबारी सिद्दीकी तो यहां तक कहते हैं, ‘यह तो ऐसा लग रहा है जैसे सरकार बिहार की राजधानी पटना से हटाकर नालंदा ले जाना चाहती है.’ वे आगे कहते हैं, ‘राज्य की जनता सब कुछ समझती है और उसे ज्यादा दिनों तक अंधकार में नहीं रखा जा सकता.’ सिद्दीकी की बात आगे बढ़ाते हुए आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ नवलकिशोर चौधरी इस मुद्दे में आर्थिक पहलू जोड़ते हुए कहते हैं, ‘किसी एक जिले को इस तरह केंद्रित करके विकास की गतिविधियां चलाने से राज्य में आर्थिक असमानता फैलेगी जिससे लोगों में आक्रोश बढ़ेगा. इससे नीतीश सरकार के खिलाफ गलत धारणा बनेगी.’

हालांकि इस पूरे मामले में सत्ताधारी जनता दल यू के वरिष्ठ नेता और पार्टी के प्रवक्ता शिवानंद तिवारी का अपना तर्क है. वे कहते हैं, ‘अगर राज्य में नालंदा विश्वविद्यालय खोलने की बात होगी तो इसे नालंदा से बाहर तो नहीं ही ले जाया जा सकता है. वैसे हमारा मानना है कि विकास या निवेश की कोशिश किसी एक जिले में नहीं बल्कि जहां तक संभव हो रहा है एक समान रूप से हर जगह की जा रही है.’ जब तिवारी से निवेश के आंकड़ों की बात की जाती है तो वे यह कहते हुए इस सवाल को टाल देते हैं कि उन्होंने आंकड़ों पर ध्यान नहीं दिया है.

ऐसे निवेश के अपने फायदे हो सकते हैं. लेकिन बड़ा सवाल यह भी है कि अगर नालंदा में कुछ ही वर्षों में हजारों करोड़ का निवेश लाया जा सकता है तो दूसरे क्षेत्रों में क्यों नहीं. यह महज एक संयोग है या नालंदा के लिए सरकार का पक्षपातपूर्ण रवैया!

कल्याण बिगहा का कल्याण

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नालंदा स्थित पैतृक गांव कल्याण बिगहा के निवासी शैलेंद्र सिंह अपनी हथेली पर रखी खैनी पर ताल ठोकते हुए कहते हैं, ‘बीते पांच वर्ष में जो कोई भी यहां पहली बार आता है वह विश्वास नहीं कर पाता कि हमारे गांव का इतनी जल्दी ऐसा कायापलट हो सकता है.’ शैलेंद्र नीतीश के बचपन के दोस्त हैं. वे कहते हैं, ‘नीतीश बाबू बचपन से ही अपने उद्देश्यों के प्रति जिद्दी रहे हैं. आज उनकी जिद विकास करने की है तो कर रहे हैं.’

कल्याण बिगहा सचमुच बिहार के लिए विकास का एक अद्भुत नमूना बन गया है. दस मई को सुबह के आठ बजे जैसे ही हम गांव में दाखिल होते हैं, हमारी नजर शूटिंग का प्रशिक्षण ले रही लगभग दो दर्जन लड़कियों पर ठहर जाती है. ये बच्चियां उत्तर प्रदेश के चर्चित शूटिंग प्रशिक्षक राजपाल सिंह की देखरेख में निशाना साध रही हैं. सहप्रशिक्षक नागेंद्र तोमर बताते हैं, ‘हम नीतीश जी के विशेष आग्रह पर उनके गांव में प्रशिक्षण दे रहे हैं. उनकी इच्छा है कि यहां की लड़कियां भी बागपत की लड़कियों की तरह राष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम रौशन करें.’ नगेंद्र हमसे बात करते हुए हमें पास के उस भवन में ले जाते हैं जिसमें वातनुकूलित इंडोर शूटिंग रेंज बनाई गई है. बिहार में शायद ही ऐसी कोई दूसरी शूटिंग रेंज हो.

खैर, हम यहां से निकलकर गांव के अंदर प्रवेश करते हैं तो एक विशाल पानी टंकी दिखती है जो कल्याण बिगहा के सभी 250 घरों के लोगों के लिए स्वच्छ जल की आपूर्ति करती है. टंकी के परिसर का पिछला हिस्सा जहां खत्म होता है उसी के साथ लगे भवन में स्टेट बैंक आॅफ इंडिया है जिसका उद्घाटन हाल ही में हुअा है. जैसा कि बैंक के प्रबंधक परमेश्वर पासवान बताते हैं, ‘18 मार्च, 2011 को ही इस शाखा का उद्घाटन हुआ है.’ बैंक से गुजरने वाले रास्ते से हम आगे की तरफ बढ़ते जाते हैं और कोई तीन मिनट के फासले पर हम पैदल इस छोटे-से गांव के दूसरे छोर पर पहुंच जाते हैं जहां अवधेश कुमार का मकान है. अवधेश बताते हैं कि जल्द ही यहां का स्वास्थ्य केंद्र एक अस्पताल का रूप ले लेगा जिसका भवन गांव में प्रवेश करने वाली सड़क के किनारे बन रहा है. भवन अपने निर्माण के अंतिम चरण में है. अवधेश नीतीश कुमार के साथ तब से हैं जब पहली बार उन्होंने विधानसभा का चुनाव लड़ा था. बातचीत के दौरान अवधेश बताते हैं कि गांव के पिछले छोर पर बना बांध भी नीतीश ने ही बनवाया है. अवधेश कहते हैं, ‘मुख्यमंत्री बनने के बाद पहला काम भैया (नीतीश) ने जो किया था वह यही था. इसे हम जमीनदारी बांध के नाम से जानते हैं. यह करोड़ों की परियोजना थी. इसकेे बनने के बाद हमारे खेत अब पानी में नहीं डूबते.’ वे आगे कहते हैं, ‘गांव की यह सड़क प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना से नहीं बनी, बल्कि इसे लोक निर्माण विभाग ने बनाया है.’

गांव के बाहर पॉलिटेकनिक कॉलेज, पावर सबस्टेशन, इंटर काॅलेज तो बना ही है, मिली जानकारी के अनुसार अब कल्याण बिगहा टाल क्षेत्र में हवाई अड्डे का निर्माण भी जल्द शुरू होगा.

लेकिन वहीं बगल के गांव बराही के निवासी रामाशीष की शिकायत है कि नीतीश को बस अपने गांव से मतलब है. इस बाबत कल्याण बिगहा के लोग कहते हैं कि हर गांव में विकास हुआ है, फिर भी अगर कोई कुछ सवाल उठाता है तो यह सौतिया डाह है.

गांव की सड़क के किनारे नीम के पौधों पर ट्रैक्टर में लगी ट्राली से पानी पटाते मजदूरों को देखते हुए याद आता है कि राजधानी पटना के पॉश इलाके में बेली रोड के डिवाइडर पर लगी फूल-पत्तियों की सिंचाई भी ऐसे ही होती है.