राजनीति का अजातशत्रु!

शिवराज सिंह चौहान

उम्र-54,

मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश

2010 की बात है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और नेता प्रतिपक्ष जमुना देवी की मृत्यु के बाद भोपाल स्थित कांग्रेस भवन में प्रार्थना सभा का आयोजन था. अचानक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान वहां पहुंच गए. कांग्रेसियों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. इसलिए कि भाजपा के किसी नेता के कांग्रेस मुख्यालय आने की यह पहली घटना थी और इसलिए भी कि चौहान बिना बुलाए ही वहां पहुंच गए थे. और तो और तब तक कांग्रेस का भी कोई वरिष्ठ नेता वहां नहीं पहुंचा था.

अब इसे एक परिपक्व राजनेता का गुण कहें या संवेदनशीलता या फिर मैदान मार लेने की कला, विरोधियों को भी अपना बना लेने का शिवराज सिंह चौहान का यही गुण उन्हें पांत से अलग खड़ा करता है. यहां तक कि जिन उमा भारती के निशाने पर वे कई बार रहे उनके खिलाफ भी शायद ही उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कोई टिप्पणी की हो. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान उमा भारती के लिए चुनाव प्रचार करने वे चरखारी भी गए.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर शिवराज पिछले सात साल से काबिज हैं. शासन और व्यक्तित्व की तमाम सीमाओं के बाद भी इस अवधि के दौरान वे ऐसे राजनेता के रूप में उभरे हैं जो उम्मीद जगाता है. जानकार मानते हैं कि विकास और सुशासन के फ्रंट पर तमाम सीमाओं के बाद भी अपने राजनीतिक संवाद के कौशल तथा व्यक्तित्व की सादगी से शिवराज ने राज्य की आम जनता से एक बेहद आत्मीय संबंध स्थापित कर लिया है. जानकारों के मुताबिक उनकी जो विशेषता उन्हें अपनी पार्टी के दूसरे मुख्यमंत्रियों और नेताओं से बहुत आगे लाकर खड़ा करती है, वह है अल्पसंख्यकों के प्रति उनका नजरिया. भले ही मध्य प्रदेश की राजनीति में अल्पसंख्यकों का राजनीतिक प्रभाव बेहद कम हो उसके बावजूद शिवराज ने कभी उनको हाशिये पर नहीं रखा.

जहां एक तरफ मोदी खुलेआम कहते दिखाई दिए कि उन्हें अल्पसंख्यकों के वोट की जरूरत नहीं है वहीं शिवराज जिनके मानसिक कल-पुर्जों का निर्माण भी मोदी की तरह संघ की वैचारिक फैक्टरी में ही हुआ है, इस मामले में एक नई लकीर खींचते हुए दिखाई देते हैं. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई कहते हैं, ‘शिवराज सिंह ने राज्य में फिरकापरस्ती को बढ़ावा नहीं दिया. भले ही प्रदेश में सुशासन नहीं आया हो लेकिन दंगे और दबंगई भी नहीं होने दी. जैसे पहले इंदौर में खूब दंगे हुआ करते थे लेकिन शिवराज सिंह के कार्यकाल में उन पर रोक लगी.’ क्रिसमस के अवसर पर शिवराज ईसाई समाज को अपने आवास पर दावत देते हैं. हर साल जब मुसलमान हज के लिए जाते हैं तो वे यात्रियों को एयरपोर्ट छोड़ने जाते हैं. 

राजनीतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर कहते हैं, ‘यह बिल्कुल संभव है कि 2014 का चुनाव वे ही लीड करें. उनकी स्वीकार्यता है. आरएसएस का होकर भी उनमें कट्टरता नहीं है. आज बीजेपी को ऐसे ही नेता की जरूरत है.’ रशीद भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि अगर 2013 में बीजेपी ने विधानसभा चुनाव जीतने की हैट्रिक पूरी कर ली, जिसकी पूरी संभावना नजर आ रही है तो फिर ऐसी स्थिति में शिवराज भी पीएम के दावेदारों में होंगे. 

गिरिजाशंकर बताते हैं कि राज्य सरकार की तमाम योजनाओं में राज्य में रहने वाले सभी वर्गों को शिवराज ने बेहतर तरीके से शामिल किया है. विशेष रूप से महिलाओं और अल्पसंख्यकों को. रशीद की मानें तो शिवराज ने कभी भेदभाव की राजनीति नहीं की. यही कारण है कि वे एक उम्मीद पैदा करते हैं.  पार्टी के एक नेता कहते हैं, ‘भले ही शिवराज 3डी में नहीं दिखें लेकिन जब आप धरातल पर देखेंगे तो वे सबसे आगे आपको दिखेंगे.’ गिरिजाशंकर कहते हैं, ‘शिवराज की एक और विशेषता है कि वे टकराव की राजनीति से हमेशा दूर रहते हैं. इस कारण से राज्य में सकारात्मक राजनीतिक माहौल नजर आता है.’

जानकार बताते हैं कि एक तरफ जहां शिवराज की अपनी पार्टी में स्वीकार्यता है वहीं दूसरी तरफ विपक्ष भी उन्हें एक भले व्यक्ति के तौर पर देखता है. स्थिति यह है कि विपक्ष भले गाहे बगाहे राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा करता रहता हो लेकिन उसके निशाने पर मुख्यमंत्री शायद ही कभी होते हैं. शिवराज के सकारात्मक पहलुओं की जब बात होती है तो उसमें इस बात को भी शामिल किया जाता है कि वे उन गिने-चुने मुख्यमंत्रियों में से हैं जिनका अपने प्रदेश की आम जनता से एक बेहद भावनात्मक संबंध है. गिरिजाशंकर कहते हैं, ‘शिवराज फाइव स्टार संस्कृति से दूर रहते हैं. उनकी दुनिया चमक-धमक की दुनिया नहीं है. राज्य की नब्ज पर शिवराज की मजबूत पकड़ है. प्रदेश का शायद ही कोई गांव बचा हो जहां शिवराज नहीं गए हों.’

किदवई बताते हैं, ‘खुद को लड़कियों का मामा कहने और लाडली लक्ष्मी योजना तथा कन्यादान जैसी योजनाएं शुरू करने तथा महिलाओं के खिलाफ अपराध के दोषी लोगों को ड्राइविंग लाइसेंस और पासपोर्ट नहीं मिलेगा, जैसी घोषणाओं के चलते शिवराज राज्य की आधी आबादी की नजरों में भी काफी ऊपर आ गए हैं.’ उनकी सरकार की कई योजनाओं से प्रभावित होकर दूसरे राज्यों ने वैसी योजनाएं अपने यहां भी लागू की हैं.  

-बृजेश सिंह