गांधी एक सोच, एक विचार.

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निराला

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आज 30 जनवरी है. आज ही के दिन 1948 में गांधी का शरीर दुनिया से विदा हुआ था. आज ही के दिन कुछ लोगों ने गांधी को मारकर खुद को शूरवीरों की श्रेणी में शामिल करवाने की कोशिश की थी और एक गलतफहमी की पराकाष्ठा पर पहुंचे थे कि अगर वे गांधी को मार देंगे तो उनके विचारों का असर भी खत्म हो जाएगा. लेकिन समय ने उनकी सोच को गलत साबित किया. गांधी देश की परिधि लांघ दुनिया के कई दूसरे मुल्कों के लिए भी अंधेरे समय से पार पाने के लिए एक रोशनी, एक उम्मीद का मॉडल बनते गए. दुनिया में गांधी के तेजी से फैले प्रभाव का एक असर इस साल देखने को मिल रहा है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने अब गांधी की शहादत दिवस को हर साल मनाने का फैसला किया है. संयुक्त राष्ट्र संघ के स्थायी देश भारत को वह भाव देने को तैयार नहीं लेकिन गांधी से वे प्रभावित हैं. क्यों! यह एक सवाल है, जवाब किसी ग्रंथ, पुस्तकों में तलाशने की जरूरत नहीं. अपने आस-पास नजर दौड़ाइए, रोजाना जवाब मिलेगा. एक ओर दुनिया गांधी के सिद्धांतों में मुश्किलों से पार पाने की राह खोज रही है, दूसरी ओर गांधी का खुद का देश भारत उन्हें जयंती-पुण्यतिथि में समेटने की कोशिश में लगा हुआ है. बहरहाल, यह सवाल पेंच भरा है, इसके फेरे में पड़े बगैर इस बार गांधी की शहादत दिवस पर उन्हें हम परंपरानुसार याद नहीं करना चाहते.

परंपरानुसार किसी चीज को याद करना धीरे-धीरे उसे जड़ बना देता है और फिर एक बार जो चीज जड़ हो जाए उसे गतिशील बनाना इतना आसान नहीं होता. हम यह नहीं बताना चाहते कि गांधी कौन थे, उनका जन्म कब-कहां हुआ था, वे बैरिस्टरी की पढ़ाई करने के बाद राष्ट्रसेवी कैसे बन गए, उनका नाम महात्मा कैसे पड़ा, किसने उन्हें नंगा फकीर कहा, उन्होंने किन-किन आंदोलनों का नेतृत्व किया, उनकी जान किसने ली, क्यों ली… आदि-आदि. आज गांधी को हम दूसरे रूप में याद करने की कोशिश कर रहे हैं. उनके लिखे दो पत्रों के जरिए निजी जीवन के गांधी को देखने की कोशिश कर रहे हैं कि अपनी पत्नी कस्तूरबा के गांधी कैसे थे. वे बा को कितना प्रेम करते थे और उनके प्रेम का स्तर और स्वरूप क्या था, यह एक पत्र से पता चलेगा, जिसे यहां प्रकाशित कर रहे हैं. और अपने बेटे मणिलाल के गांधी कैसे थे, यह प्रिटोरिया जेल से बेटे को लिखे पत्र से पता चलता है.

गांधी सिर्फ दुनिया को ही उपदेश नहीं देते थे, अपने घर में भी वे महात्मा की तरह ही थे. मनु बहन, जो उनके साथ हमेशा रहा करती थीं और गांधी जिनके लिए मां के समान थे, उनके एक संस्मरणात्मक लेख को पढ़ते हुए हम जानेंगे कि गांधी रोजमर्रा की जिंदगी में बारीकियों को बरतकर ही महात्मा या राष्ट्रपिता बने थे. गांधी देश की राजनीतिक व्यवस्था में एक आखिरी उम्मीद की तरह थे और उनके सामने कोई कुछ भी कह सकता था, यह महान समाजवादी नेता सूर्यनारायण सिंह के एक पत्र से साफ जाहिर होता है, जिसे हम प्रकाशित कर रहे हैं. और इन सबके साथ मशहूर पर्यावरणविद अनुपम मिश्र का एक सदाबहार आलेख, जो दो साल पहले तहलका के लिए लिखा गया था लेकिन आज भी उसकी ताजगी और प्रासंगिकता उसी तरह बनी हुई है. 

गांधी की पुण्यतिथि पर तहलका के इस खास संपादकीय आयोजन का एकमात्र मकसद है कि भटकाव के इस दौर में गांधी को अधिक से अधिक रूपों में जानने की कोशिश करना. पूंजीवाद का क्रूर रूप देखने के बाद गांधी का आर्थिक फॉर्मूला उम्मीद दिखा रहा है. प्रेम और रिश्तों का भी तकनीकीकरण होने के इस युग में गांधी के प्रेम को जानना सुकून देता है. असहमति के लिए घटते स्पेस के दौर में गांधी का विराट व्यक्तित्व उम्मीद जगाता है कि सहमति के विवेक के साथ समाज में असहमति का साहस जरूर होना चाहिए. अब भी गांधी ही देश में एकमात्र प्रतीक हैं, जिनके नाम पर देश राख से भी चिंगारी की तरह उठ खड़ा होता है. अन्ना के आंदोलन को पूरे देश ने देखा. वर्षों बाद अन्ना ने राह दिखाई तो अब गांधीवादी तरीके से आंदोलनों की गति तेज हो रही है. इस मायने में यह सुकून देने वाला दौर भी है.

आलेख

अनुपम मिश्र:सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा

चौधरी मोहम्मद नईम:दहशत के चंद घंटों के बीच…

पत्र

कस्तूरबा गांधी के नाम महात्मा गांधी का पत्र 

पुत्र मणिलाल गांधी के नाम महात्मा गांधी का पत्र

जेल से एक समाजवादी नेता का महात्मा गांधी को पत्र

किताब से अंश

“सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा” से

“बापू-मेरी मां” से

रिपोर्ट

गांधी के आदि अनुयायी