उम्मीदों का विराट रूप

28 फरवरी को ऑस्ट्रेलिया के होबार्ट में खेला गया एकदिवसीय मैच क्रिकेट इतिहास के उन चुनिंदा मैचों में शामिल हो चुका है जिनकी स्मृति क्रिकेट प्रेमियों के मन में हमेशा रहेगी. खासकर श्रीलंकाई गेंदबाज लसिथ मलिंगा का वह ओवर तो शायद ही कोई भूल पाए  जिसमें उन्होंने एक छक्के और चार चौकों समेत 24 रन लुटवा दिए थे. रनों की यह बरसात इस मैच के महानायक और टीम के नए नायब कप्तान विराट कोहली के बल्ले से हुई. होबार्ट में उनके विराट रूप ने क्रिकेट के अगले कालखंड का महानायक बनने की सारी संभावनाएं दिखाई हैं. श्ृंखला में बने रहने के विकट दबाव के बीच भीमकाय लक्ष्य का पीछा करते हुए उस दिन कोहली को बल्लेबाजी करते देखना एक अद्भुत अनुभव था. विशेषकर डेथ ओवर्स के सबसे खतरनाक गेंदबाजों में शुमार लसिथ मलिंगा पर उनका आक्रमण हैरतखेज था. उस बुरे दिन में मलिंगा ने सिर्फ 7.4 ओवरों में 96 रन लुटाए जो वन-डे में उनका सबसे बुरा प्रदर्शन है. कोहली के 86 गेंदों में जुटाए गए अजेय 133 रन भारतीय क्रिकेट की निधि बन गए.

असल में 23 साल के विराट कोहली खुद पिछले कुछ समय से भारतीय क्रिकेट का सबसे ज्यादा चमकदार हीरा हैं. उनके अंतरराष्ट्रीय करियर का आगाज 2008 में हुआ था, लेकिन क्रिकेट पंडितों की चर्चा उन्हें दो साल बाद मिली जब उन्होंने कर्नाटक के खिलाफ दिल्ली की तरफ से एक रणजी मैच में बकौल तत्कालीन कोच चेतन चौहान ‘सचमुच की विराट जुझारू पारी’ खेली थी. कोटला मैदान में खेले गए इस मैच के दौरान ही जिस दिन कोहली को अपनी पारी 40 रन से आगे बढ़ाने के लिए मैदान पर उतरना था, तड़के तीन बजे उनके पिता प्रेम कोहली का देहांत हो गया. तब सिर्फ 18 साल के कोहली इस खबर से दो पल के लिए एकदम बिखर-से गए थे. चूंकि वे दिल्ली में ही थे, इसलिए साथी खिलाड़ियों ने उन्हें सहारा देते हुए मैदान पर घर को तरजीह देने की सलाह दी. लेकिन कोहली ने जार-जार रोते हुए मैदान का चुनाव किया क्योंकि उनकी टीम पर हार का खतरा मंडरा रहा था. इसके बाद अपने निजी दुख को एकतरफ करते हुए कोहली एकदम नियत समय पर बल्लेबाजी करने उतरे और अपने जुझारू 90 रनों की बदौलत दिल्ली को हार के खतरे से उबार ले गए. दिल्ली टीम के तत्कालीन कप्तान मिथुन मिन्हास ने कोहली की इस पारी के बारे में कहा था, ‘हमने कोहली से कहा कि इस वक्त उसे घर पर होना चाहिए, ऐसा करने पर पूरी टीम उसके साथ है, लेकिन उसने खेलने का फैसला किया. यह प्रतिबद्धता का चरम था. अंतत: उसकी पारी हमारे लिए बेहद अहम साबित हुई.’

यही वह पारी थी जिसके बाद पहली बार कोहली के टेंपरामेंट को लेकर चर्चा हुई. लेकिन इससे भी ज्यादा गौरतलब बात यह है कि इसी पारी के बाद कोहली की तुलना पहली बार सचिन तेंदुलकर से की गई. सचिन ने भी 1999 के वर्ल्ड कप में पिता की मौत के चंद दिन बाद ही मैदान पर वापसी करते हुए शतक बना कर भारत को जीत दिलाई थी. यहां एक दीगर तथ्य यह भी है कि कोहली की उम्र सिर्फ 18 साल थी और उनके पिता की मौत चंद घंटे पहले ही हुई थी.

कोहली अपनी कप्तानी में अंडर-19 वर्ल्ड-कप पहले ही जितवा चुके हैं, इसलिए कप्तानी का जिक्र आने पर उन्हें सिरे से खारिज किया भी नहीं जा सकता

जल्द ही कोहली एक बार फिर चर्चा में थे जब उन्होंने अपनी उम्दा कप्तानी और बल्लेबाजी की बदौलत भारत की अंडर-19 टीम को विश्वविजेता बनाया और उसके बाद राष्ट्रीय टीम में जगह पक्की की. अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत के बाद उपलब्धियां और सचिन से तुलना दोनों कोहली के खाते में सिलसिलेवार आती रहीं. हाल में खत्म हुई सीबी सीरीज के बाद भी उन्हें सचिन के सामने रखकर देखा गया. गौरतलब है कि ऑस्ट्रेलिया दौरे पर कोहली भारत की तरफ से सबसे ज्यादा रन बनाने वाले और टीम के इकलौते शतकवीर खिलाड़ी थे.

सचिन तेंदुलकर से कोहली की तुलना के बारे में कोई भी निष्कर्ष निकालने से पहले इसके धरातल को जान लेना जरूरी है. असल में कोहली ने अपने चार साल के छोटे-से करियर में रिकार्ड्स का जो अकूत सरमाया जमा किया है,  तुलना की धारा वहां से निकलती है. करियर की शुरूआती पारियों को पैमाना बनाने पर कोहली रिकाॅर्डों के सबसे बड़े सरमायादार नज़र आते हैं. सीधे तौर पर सचिन से भी बड़े. सीबी सीरीज के खत्म होने तक कोहली ने भारत की तरफ से 82 मैचों की 79 पारियों में 47.54 की उम्दा औसत और 84.88 के धमाकेदार स्ट्राइक रेट के साथ 3233 रन बनाए हैं जिनमें नौ शतक और 20 अर्धशतक शामिल हैं. वहीं सचिन तेंदुलकर ने भी अपने करियर के शुरुआती 82 मैचों में 79 पारियां खेली थीं जिनमें उन्होंने 32.41 के साधारण औसत और 78.48 के कमतर स्ट्राइक रेट की मदद से सिर्फ 2236 रन बनाए थे. इसमें सिर्फ एक शतक और 17 अर्धशतक शामिल थे. सचिन को अपना पहला शतक बनाने में 79 एकदिवसीय मैच खेलने पड़े थे, जबकि इतने ही मैचों में कोहली के पास आठ वन-डे शतक हो चुके थे.

तो क्या यह मान लिया जाए कि कोहली सचिन से बेहतर हैं. एक धुर रिकॉर्डपूजक व्यक्ति भी कम से कम सचिन को लेकर कोहली के संदर्भ में ऐसी सपाट राय व्यक्त करने से बचेगा क्योंकि क्रिकेट को जानने-समझने वाले ज्यादातर लोग इस बात पर एक राय होंगे कि मौजूदा दौर में रिकॉर्डों का अगर कोई बादशाह है तो वह सचिन तेंदुलकर ही हैं. सचिन ने 23 साल मैदान पर गुजारे हैं जितनी कोहली की कुल उम्र है. 460 वनडे और 188 टेस्ट मैच खेले हैं और इसके बाद भी दोनो प्रारूपों में बेहद उम्दा माने जाने वाले औसत से कुल 99 शतक, 150 से ज्यादा अर्धशतक  और 33 हजार से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय रन बनाए हैं. ये भीमकाय रिकॉर्ड क्रिकेट प्रेमी जन-मानस में इस तरह रचे-बसे हैं कि इनका जिक्र करना जरूरी नहीं. लेकिन यह बात समझना जरूरी है कि कोहली को अभी बहुत क्रिकेट खेलना है, जिसमें उन पर अपनी शुरुआती चमक कायम रखने का दबाव होगा. इसके साथ ही उन्हें टेस्ट मैच यानी क्रिकेट के असल संस्करण में भी खुद को साबित करना बाकी है. यहां एक बात समझना जरूरी है कि सचिन जितने बड़े अपने रिकॉर्डों में नजर आते हैं रिकॉर्डों से बाहर उससे कहीं ज्यादा बड़े हैं. अगर तर्कों के आधार पर वे भगवान न भी हों फिर भी सालों तक वे टीम इंडिया की वन मैन आर्मी रहे हैं और करोड़ों उम्मीदों का बोझ अकेले अपने कंधे पर ढोते रहे हैं. सचिन युवा क्रिकेटरों की उस पूरी पीढ़ी की प्रेरणा हैं जिससे कोहली जैसे प्रतिभावान खिलाड़ी निकले हैं. उनसे क्रिकेट तो सीखा जा ही सकता है, शालीनता का सबक भी लिया जा सकता है ताकि भविष्य में युवा खिलाड़ियों को मिडल फिंगर दिखाने का अभद्र कारनामा न करना पड़े. खेल-पत्रकार हेमंत सिंह विराट कोहली की सचिन से तुलना को सिरे से खारिज करते हुए कहते हैं, ‘वास्तव में करियर के अंतिम दौर में खड़े सचिन की किसी भी युवा खिलाड़ी से तुलना करना ही बेमानी है. ये कोहली के साथ भी होगा. उनके सामने पूरा आसमान है. उन्हें फिलहाल बेफिक्री से उड़ने दिया जाना चाहिए.’

एक दूसरी बहस कोहली को उपकप्तान बनाए जाने को लेकर भी शुरू हो गई है. क्रिकेट पंडित इसे लेकर भी दो खेमों में बंटे नजर आ रहे हैं. वसीम अकरम के मुताबिक इससे गंभीर और सहवाग खुश नहीं होंगे और टीम में तनाव उत्पन्न हो सकता है वहीं सौरव गांगुली का मानना है कि टेस्ट कप्तानी में कोहली निश्चित तौर पर धोनी का सही विकल्प हो सकते हैं. असल में यहां कुछ बातें समझ लेना जरूरी है. उपकप्तानी कोहली को ऑस्ट्रेलिया में उनके अच्छे प्रदर्शन के इनाम के बतौर मिली है, जो कोहली सहित अन्य युवा खिलाड़ियों को अच्छे प्रदर्शन के लिए प्रेरित कर सकती है. दूसरी अहम बात यह है कि उपकप्तान बनने का ये मतलब बिल्कुल नहीं है कि आपका कप्तान बनना तय है. रैना का उदाहरण हमारे सामने है जो कि उपकप्तान, कप्तान जैसी जिम्मेदारियां पाने के बाद आज इन सबकी दौड़ में तो पिछड़ ही चुके हैं टीम में जगह पक्की रखने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं. वनडे में और टी-ट्वेंटी में धोनी आज भी उम्दा प्रदर्शनकारी और बेहतरीन कप्तान हैं, इसलिए उपकप्तान के कप्तान बनने की हाल-फिलहाल संभावना नजर नहीं आती. हालांकि कोहली को उपकप्तान बनाए जाने से वे अपनी भविष्य की भूमिका के लिए अंडर ट्रेनिंग तो हो ही गए. 2015 वर्ल्ड-कप में और इसके बाद में अनुभवी युवा टीम तैयार करने की रणनीति के लिहाज से यह सही कदम ही है, कोहली अपनी कप्तानी में अन्डर-19 वर्ल्ड कप पहले ही जितवा चुके हैं, इसलिए कप्तानी का जिक्र आने पर उन्हें सिरे से खारिज किया भी नहीं जा सकता.

फिलहाल देश विराट कोहली की कप्तानी देखने से ज्यादा लालायित उनकी अच्छी बल्लेबाजी देखने को लेकर है.