उम्मीद की तरंगें

हरियाणा के नूह कस्बे में सड़क किनारे बीएसएनएल  का एक विशाल टावर आसानी से नजर आ जाता है. जिस पर निगाह आसानी से नहीं पड़ती, वह एक छोटा -सा टावर है जो मेवात विकास प्राधिकरण की बिल्डिंग  पर लगा है. 2010 में जब यह लगा था तो इसने मोहम्मद आरिफ का ध्यान खींचा था. फरीदाबाद के एक स्थानीय अखबार में क्राइम रिपोर्टर के रूप में काम कर चुके मोहम्मद आरिफ ने जल्द ही पता लगा लिया कि इस टावर को सामुदायिक यानी कम्युनिटी रेडियो स्टेशन के लिए लगाया गया है. इसके बाद 27 साल के आरिफ ने रेडियो मेवात के लिए काम करना शुरू किया. कृषि पर अपनी हर रिपोर्ट के बाद वे कहते, ‘आपकी बात, मेरी बात, सुनिए रेडियो मेवात.’ वह रेडियो मेवात जिस पर वित्त मंत्री से देश के आर्थिक मुद्दों पर नहीं बल्कि एक स्थानीय बैंक अधिकारी का बचत योजनाओं पर इंटरव्यू लिया जाता है.जिस पर विजय माल्या की किंगफिशर एयरलाइंस के लिए बेलआउट पैकेज पर घंटों लंबी बहस नहीं होती बल्कि ग्रामीण योजनाओं के लिए दिया गया पैसा सरपंच तक न पहुंच पाने जैसे मुद्दों पर सवाल उठाए जाते हैं. जिस पर हिन्दी फिल्मों के गाने नहीं सुनाई देते बल्कि स्थानीय मिरासी समुदाय द्वारा खास तौर पर तैयार किया गया संगीत बजता है. इस सबका नतीजा यह है कि मेवात के इस अनोखे रेडियो स्टेशन की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है.  कार्यक्रमों के दौरान अब महिला श्रोता भी फोन करती हैं. मेवात जैसे इलाके में यह एक उपलब्धि ही है. मुसलिम बहुल और रुढि़वादी माने जाने वाले इस इलाके की साक्षरता दर महज 44 फीसदी है. जब योजना आयोग की सदस्य सईदा हामिद जैसी हस्तियां इसके 15 मिनट के रेडियो शो ‘आज की मेहमान’ में शरीक होती हैं तो इलाके में इसकी चर्चा होती है. 

सामुदायिक यानी कम्युनिटी रेडियो जमीन पर आकार लेने वाला एक ऐसा नया आंदोलन है जिसे लेकर सरकार भी उत्साहित है. इसकी सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश भर में 130 रेडियो स्टेशन चल रहे हैं  और 233 प्रस्तावित हैं. इस साल फरवरी में जब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय पहली बार कम्युनिटी रेडियो के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार लेकर सामने आया तो इसकी चर्चा मीडिया में भी सुनाई दी. राष्ट्रीय पुरस्कार की रेस में रेडियो मेवात सबसे चहेता रहा और सस्टेनेबिलिटी मॉडल वर्ग में अवार्ड जीतने वाला वह अकेला स्टेशन रहा जबकि अन्य चार वर्गों में से प्रत्येक में तीन-तीन विजेता रहे. रेडियो मेवात की संस्थापक अर्चना कपूर कहती हैं, ‘इस पुरस्कार ने तो कमाल ही कर दिया. हमें  पुदुचेरी  स्थित औरूविले से फोन आया है जिसमें हमारे रेडियो स्टेशन के बारे में जानकारी मांगी गई है.’ 

ऐसा नहीं कि कम्युनिटी रेडियो की यह बयार मेवात में ही बह रही हो. पिछले दो वर्षों में देश भर में ऐसे स्टेशनों की संख्या 64 से बढ़कर 130 हो गई है

अर्चना स्मार्ट नामक गैरसरकारी संस्था से जुड़ी हैं जो रेडियो मेवात का संचालन करती है. इस साल मेवात में तीन और रेडियो स्टेशन स्थापित करने का प्रस्ताव है जिनमें से एक अलफाज-ए-मेवात की टेस्टिंग भी शुरू हो गई है. ऐसा नहीं कि कम्युनिटी रेडियो की यह बयार बस मेवात में ही बह रही हो. पिछले दो वर्षों में देश भर में ऐसे रेडियो स्टेशनों की संख्या 64 से बढ़कर 130 हो गई है. हालांकि कम्युनिटी रेडियो का क्षेत्र 2006 से ही पंजीकृत गैरलाभकारी संस्थाओं के लिए खोल दिया गया था, लेकिन सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इस मुहिम में अपनी तरफ से सक्रियता पिछले दो वर्षों के दौरान ही दिखाई. उदाहरण के तौर पर मंत्रालय की ओर से तरह-तरह के पुरस्कार दूसरे राष्ट्रीय सामुदायिक रेडियो सम्मेलन के मौके पर, घोषित किए गए, यह आयोजन इसलिए किया जाता है ताकि देश भर के कम्युनिटी रेडियो स्टेशनों को एक-दूसरे के साथ-साथ मंत्रालय से भी घुलने-मिलने और आपसी समझ बढ़ाने का मौका मिल सके. फरवरी में हुए इस सम्मेलन में ब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका के रेडियो प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की संयुक्त सचिव सुप्रिया साहू कहती हैं, ‘विकसित देशों में कम्युनिटी रेडियो अच्छा काम कर रहा है. हम उनसे सीखना चाहते हैं.’

सुप्रिया साहू बताती हैं, ‘एक बात जो हमने विदेशी जानकारों से सीखी है वह यह कि वहां एक शुरुआती फंड मुहैय्या कराया जाता है. यहां के हिसाब से यह फंड 10 से 15 लाख रु का होता है. इस फंड की महत्ता हम अब जान पाए हैं.’ शैक्षणिक संस्थान 80 कम्युनिटी रेडियो स्टेशन चलाते हैं, स्वयंसेवी संगठन 40 स्टेशन चलाते हैं जबकि 10 स्टेशन लोगों के व्यक्तिगत समूहों द्वारा चलाए जाते हैं. यही वजह है कि मंत्रालय का उद्देश्य है कि इस आंकड़े को और बढ़ाया जाए. ‘गुड़गांव की आवाज’ नाम के एक रेडियो स्टेशन मंे प्रोग्राम मैनेजर अनुरागिनी नागर बताती हैं, ‘लोग कम्युनिटी रेडियो स्टेशन सुनने के लिए अपने मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं. आजकल हर किसी के मोबाइल फोन में एफएम होता है. अभी बस बच्चों का आयुवर्ग ही है जिसे हम कवर नहीं करते. लेकिन बच्चों के साथ संवाद करना भी एक बड़ा अवसर होगा.  आंकड़ों की बात करें तो रेडियो मेवात स्टेशन में बैठा आरजे पांच लाख लोगों तक अपनी पहुंच रखता है.’

एक आंदोलन के तौर पर कम्युनिटी रेडियो स्टेशन की सफलता इस बात से भी ज़ाहिर होती है कि अलग-अलग संस्थाएं  कम्युनिटी रेडियो के साथ काम करने की कोशिशों में जुटी हैं. जैसे ग्राम वाणी जो रेडियो ऑटोमेशन जैसी तकनीकी सहायता  देती है जिससे संचालक रहित किसी भी स्टेशन से कार्यक्रम प्रसारित करने में आसानी होती है. साथ ही इससे फोन पर भी समाचार प्राप्त किए जा सकते हैं जिससे नागरिक भी पत्रकार बन सकते हैं. एक दुनिया एक आवाज़ एक वेब आधारित सेवा है जिससे रेडियो स्टेशन के कार्यक्रम इंटरनेट पर अपलोड किए जा सकते हैं. 

हालांकि सब कुछ अच्छा ही अच्छा भी नहीं है. उत्तराखंड के टिहरी जिले में स्थित हेंवलवाणी रेडियो स्टेशन के राजेन्द्र नेगी अपनी मुश्किलें गिनाते हुए कहते हैं, ‘सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से इजाज़त मिलने के बाद टेलीकॉम मंत्रालय से वायरलेस ऑपरेटर लाइसेंस लेना पड़ता है. बताया जाता है कि इस काम में अमूमन 30 दिन लगेंगे. लेकिन हकीकत में यह काम कराने में छह से आठ महीने लग जाते हैं.’ सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की संयुक्त सचिव सुप्रिया साहू भी मानती हैं कि खामी है. वे कहती हैं, ‘इस प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए हर महीने मंत्रालयों के बीच मीटिंग होती है.’नक्शे में कम्युनिटी रेडियो स्टेशन का कवरेज क्षेत्र दिखाते हुए साहू कहती हैं, ‘पूर्वोत्तर अभी अनछुआ है. हम इस क्षेत्र में भी कुछ प्रगति देखना चाहते हैं. इसके लिए वहां अलग-अलग जगहों पर वर्कशॉप आयोजित होंगी.’कुल मिलाकर इस नई बयार का भविष्य उम्मीदों भरा दिखता है.