
100 दिन का जमा हासिल नापने का रिवाज अमेरिका में शुरू हुआ था. हमारे देश में यह परंपरा नई-नई है. यूपीए-2 की सरकार ने पहली बार खुद को सौ-दिनी सांचे में दिखाने का प्रयास किया था. नरेंद्र मोदी ने इस परंपरा को संजीदगी से आगे बढ़ाया है. नई सरकार के लिहाज से यह महत्वपूर्ण था क्योंकि अर्थव्यवस्था से लेकर आम जनता तक का विश्वास पिछली सरकार से बुरी तरह हिला हुआ था. सौ दिनों के कार्यकाल में मोदी सरकार ने कई मोर्चों पर उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल की हैंः अर्थव्यवस्था में सुधार के प्रयास दिख रहे हैं, विदेश नीति के कल-पुर्जे चुस्त-दुरुस्त दिख रहे हैं, न्यायिक सुधार की दिशा में सरकार बढ़ रही है और पर्यावरण के मोर्चे पर भी संवेदनशीलता दिखी है.
इन्ही सौ दिनों में सरकार और सत्ताधारी पार्टी ने कुछ ऐसे कदम भी उठाए हैं जिनसे कुछ तबकों में संशय पैदा हुआ हैः भूमि अधिग्रहण अधिनियम को सरकार बदलना चाहती है, मुजफ्फरनगर दंगों के एक आरोपी विधायक संगीत सोम को जेड प्लस सुरक्षा मुहैया करवाई गई, लव जिहाद जैसा जुमला भाजपा की फोरमों में बहस का हिस्सा बन गया है और इन सबसे ऊपर एक समुदाय के खिलाफ सीधा आग उगलने वाले योगी आदित्यनाथ को पार्टी ने अनपेक्षित रूप से तरजीह देना शुरू कर दिया है. हाल ही में एक ऐसा वीडियो सामने आया जिसमें योगी आदित्यनाथ एक हिंदू बालिका के बदले 100 मुसलिम लड़कियों का धर्मांतरण करवाने की अपील कर रहे हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में होने वाले 11 विधानसभा और एक लोकसभा उपचुनाव के लिए पार्टी ने उन्हें प्रचार प्रमुख नियुक्त कर दिया.
बीते कुछ वर्षों के दौरान योगी आदित्यनाथ की राजनीति एक प्रकार से सुप्तावस्था में थी. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को मिली चमत्कारिक सफलता के बाद वे अचानक बड़ी तेजी से उभरे हैं. इसका पता इस बात से भी चल जाता है कि लोकसभा में पार्टी के वरिष्ठ नेता और गृहमंत्री राजनाथ सिंह की मौजूदगी के बावजूद सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा जैसे संवेदनशील मसले पर बहस की शुरुआत योगी से करवाई. इस दौरान योगी ने जिस भाषा का इस्तेमाल किया उसकी अपेक्षा संविधान की शपथ लेनेवाले किसी व्यक्ति से संसद में नहीं की जाती.
इसके बाद से योगी आदित्यनाथ एक के बाद एक विवादित बयान दिये जा रहे हैं. उनका ताजा जुमला है- ‘मुलायम सिंह यादव को पाकिस्तान जाकर बस जाना चाहिए’. लव जिहाद जैसे कथित मसले पर वे एक समुदाय विशेष को चेतावनी वाली भाषा में सुधर जाने की नसीहत देते हैं. उन्होंने आंकड़ों की बाजीगरी वाला एक ऐसा बयान भी दिया जिसके मुताबिक जहां मुसलिम अधिकता में रहते हैं वहां हिंदुओं का जीना मुहाल हो जाता है.
ऐसे तमाम विवादों के बावजूद पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की तरफ से खुद को योगी के बयानों से अलग करने या उसका खंडन करने की आधी-अधूरी कोशिश भी नहीं दिखी. 13 सितंबर को हुए उपचुनावों से कुछ पहले तहलका से बातचीत में पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई के प्रवक्ता मनोज मिश्रा कहते हैं, ‘वे पांच बार पार्टी के सांसद रहे हैं और समर्पित कार्यकर्ता है. इसलिए पार्टी उन्हें कुछ न कुछ काम तो देगी ही. पार्टी अध्यक्ष ने उनके महत्व और प्रतिष्ठा के अनुकूल काम उन्हें सौंपा है.’
उन्होंने गोरखपुर के कई मुहल्लों के नाम जबरन बदलवा दिए. शहर का उर्दू बाजार, हिंदी बाजार बन गया, अली नगर, आर्य नगर और मियां बाजार, माया बाजार हो गया
मिश्रा की बात ठीक हैं. योगी उत्तर प्रदेश की गोरखपुर लोकसभा सीट से लगातार पांचवीं बार जीत दर्ज कर लोकसभा पहुंचे हैं. लेकिन उनकी राजनीति का पहिया विकास के ईंधन से नहीं घूमता. उसे ऊर्जा मिलती है सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से. योगी का जो मौजूदा चेहरा हम आज देख रहे हैं, सियासी गलियारों से लेकर गली-मुहल्लों में जिसकी चर्चा है, वह उनकी राजनीति का जांचा-परखा फार्मूला है. जब से उन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम रखा है उनके समर्थकों का एक ही नारा रहा है- ‘गोरखपुर में रहना है तो, योगी-योगी कहना है’. उनकी अपनी वेबसाइट पर लव जिहाद और मुसलिम समुदाय पर जो राय लिखी गई है वह कुछ यूं है – ‘लव जिहाद क्या है? लव जेहाद एक ऐसी विचित्र अवस्था है, जिसमंे खुशबू में रहनेवाली एक लड़की बदबूदार प्राणी के आकर्षण में पड़ जाती है, एक ऐसी दुनिया जहां एक लड़की अपने सभ्य माता-पिता को छोड़ ऐसे माता- पिताओं के पास पहुंच जाती है जो पूर्व में भाई-बहन भी रहे होंगे. अपने आंगन की चहचहाती चिड़ियों और पूजाघर की घंटियों को छोड़, ऐसे आंगन में पहुंच जाना जहां खाना, पखाना और मुर्गियों का दड़बा एक ही बरांडे में मिलें. अपने पवित्र रिश्तोंवाले भाई-बहनों के सुनहरे संसार को अलविदा कहकर ऐसी दुनिया में चले जाना जहां रिश्तों की कोई कीमत नही और औरत की देह ही साध्य हो. जिस दुनिया में स्त्री को देवी समझ कर पूजा जाता हो उसे त्याग ऐसी दुनिया में चले जाना जहां औरत के लिए हर नौंवें महीने बच्चा जनना बाध्यता हो. जहां लव जिहाद में फंसी लड़की की अपनी कोई धार्मिक स्वतंत्रता नहीं हो. और अगर किसी लड़की को इसके बाद भी आत्मबोध हो जाए और वह बगावत कर दे तो 10-20 लोगों की हवस पूर्ति के बाद किसी कोठे पर बेच दी जाए. यही है लव जेहाद.’
योगी आदित्यनाथ के अब तक के राजनीतिक सफर का एक परिवर्तन बिंदु भी है. यह बिंदु है साल 2007. इससे पहले के योगी और इसके बाद के योगी में जमीन-आसमान का अंतर दिखता है. इस अंतर और इसके जरिए योगी आदित्यनाथ और उनकी राजनीति को समझने के लिए हमें साल 2007 में और उसके आगे-पीछे घटी घटनाओं के बारे में जानना होगा.

1998 में पहली बार लोकसभा पहुंचने से लेकर 2007 के बीच गोरखपुर और इसके आसपास के इलाकों में योगी आदित्यनाथ ने अपना सियासी प्रभाव फैलाना शुरू किया था. इसके लिए उन्होंने हिंदु युवा वाहिनी नाम से अपना एक संगठन गोरखपुर, बस्ती, देवरिया, आजमगढ़, कुशीनगर, गाजीपुर आदि जिलों के गांव-गांव में खड़ा किया. गोरखपुर में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता चतुरानन ओझा कहते हैं, ‘यह संगठन मूलत: बेरोजगार युवाओं और अपराधी किस्म के लोगों का जमघट था. ये लोग योगी की शह पर जगह-जगह मुसलमानों पर हमले करते, छोटी-छोटी बातों को सांप्रदायिक तनाव में बदलने का काम करते थे.’
इस संगठन के जरिए योगी ने अपना प्रभाव गोरखपुर की सीमा से बाहर फैलाना शुरू कर दिया. इस दौरान होता यह था कि लगभग हर छोटी-मोटी बात पर योगी अपने लावलश्कर के साथ खुद ही घटनास्थल पर पहुंच जाते थे और शासन-प्रशासन की हालत बंधक जैसी हो जाती. उनकी इस अतिवादी राजनीति के चक्कर में इन नौ सालों के दौरान गोरखपुर में छह-सात बार जिलाधिकारी और पुलिस प्रमुखों के तबादले हुए. इन्हीं अधिकारियों में से एक तहलका के साथ बातचीत में कहते हैं, ‘हिंदु युवा वाहिनी असल में छोटे-मोटे अपराधियों की शरणगाह बन गया था. कुछ राजनीतिक महत्वाकांक्षावाले लोग भी जुड़े थे जो समय के साथ धीरे-धीरे उनसे दूर हो गए. योगी खुद ही हर जगह पहुंचकर अधिकारियों से गालीगलौज करते थे और अपने मनमुताबिक कार्रवाई करने का दबाव डालते थे.’
योगी के तौर-तरीकों का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उन्होंने गोरखपुर के कई ऐतिहासिक मुहल्लों के नाम जबरन बदलवा दिए. शहर का उर्दू बाजार, हिंदी बाजार बन गया, अली नगर, आर्य नगर हो गया, मियां बाजार, माया बाजार हो गया. योगी का तर्क है कि देश की पहचान हिंदी और हिंदू से है. बकरीद के पहले गांव-गांव से युवा वाहिनी के लोग मुर्गों और बकरों को उठा ले जाते थे ताकि कुर्बानियां न हो सकें. इन नौ सालों में गोरखपुर और आसपास के जिलों में 30-40 छोटी-मोटी सांप्रदायिक वारदातें हुईं. मजे की बात यह है कि उनके इन कारनामों से भाजपा अक्सर दूर ही रहती थी, खुद योगी भी भाजपा के समानांतर अपनी हिंदु युवा वाहिनी खड़ी कर चुके थे लिहाजा वे भी भाजपा को अपने इन आक्रामक अभियानों से दूर ही रखते थे.
गोरखपुर समेत देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रतिरोध का सिनेमा नाम से फिल्म महोत्सव आयोजत करने वाले मनोज कुमार सिंह बताते हैं, ‘पार्टी से इनका रिश्ता खट्टा-मीठा रहता था. शुरुआत में तो ये भाजपा को भाव भी नहीं देते थे. 2007 के विधानसभा चुनाव में इन्होंने हिंदू युवा वाहिनी के बैनर तले अपने लोगों को चुनाव तक लड़ा दिया था. यही स्थिति पार्टी की भी थी. वह इन्हें अपने मन मुताबिक इस्तेमाल करती फिर वापस बिठा देती.’ शुरुआती दिनों में योगी की कार्यशैली खुद को बाल ठाकरे की तर्ज पर एक इलाकाई मसीहा और आजाद शख्सियत के तौर पर स्थापित करने की थी. 2002 में गुजरात के दंगों के बाद योगी की यह इच्छा और भी बलवती हो गई थी. उनके समर्थकों का तब सबसे प्रिय नारा हुआ करता था, ‘यूपी भी गुजरात बनेगा, गोरखपुर शुरुआत करेगा.’
2007 के बाद उनकी उग्रता कम हो गई है. वे समझदार भी हुए हैं. पहले वे अधिकारियों से गाली-गलौज करते थे पर अब ऐसा नहीं करते हैंे
अंतत: 2007 में योगी की सालों से चल रही धर्म की राजनीति अपने वीभत्स अंजाम तक पहुंच गई. शहर और उसके आसपास के इलाकों में हिंदू-मुसलिम दंगे हो गए. इसमंे दो लोगों की जान चली गई. सैंकड़ों मकान और दुकान फूंक दिए गए. कई दिनों तक गोरखपुर में कर्फ्यू लगा रहा. तत्कालीन डीएम डॉ हरिओम ने योगी को गिरफ्तार कर लिया. एक बार फिर से जिले के डीएम और एसपी का तबादला कर दिया गया. मनोज सिंह के मुताबिक अक्सर योगी खुद स्थितियों को इस हालात तक पहुंचा देते थे कि तनाव बढ़ जाता था और उसे घटाने के लिए सरकार को स्थानीय अधिकारियों का तबादला करना पड़ता था. योगी अधिकारियों के तबादले का इस्तेमाल अपनी छवि और प्रतिष्ठा चमकाने के लिए करते थे. उनके समर्थकों के बीच यह संदेश आसानी से चला जाता था कि शासन और प्रशासन उनके आगे हमेशा झुकता है. इसके चलते योगी की प्रतिष्ठा अपने इलाके में रॉबिनहुड सरीखी हो गई थी. इलाके के गरीब-गुरबा उनके ओसारे में फरियाद करने पहुंचते, हर दिन वहां दरबार लगता, कुछ की मुश्किलें हल होती, कुछ को सांत्वना मिल जाती.
प्रशासन पर योगी के लगातार बढ़ते दबाव और इसके खतरों को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने अपना रुख कड़ा कर लिया. दंगों के बाद सरकार ने जगमोहन सिंह यादव जैसे तेज-तर्रार अधिकारी को गोरखपुर मंडल का डीआईजी बनाकर भेजा. उनके नेतृत्व में बड़े पैमाने पर योगी का कद छांटने की कवायद शुरू की गई. सबसे पहली चोट उनकी ताकत बन चुकी युवा वाहिनी पर की गई. गांव-गांव में पुलिस दस्ते बनाकर युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को उठाया गया, उनके अपराधों के अनुपात में उनके ऊपर मुकदमे कायम किए गए और कइयों को पुलिसिया लाठी से ही सीधे रास्ते लाने का काम किया गया. लगभग सालभर के भीतर युवा वाहिनी का पूरा संगठन तितर-बितर हो गया.
Hindus of India have been ruled by Mughal empire for 1000 years and by british empire for 300 years. 80% of the hindus are living in below standard conditions.
So, as muslims and Christians are demanding religion based reservation in the ratio of population, hindus should be provided 80% reservation in India.
anpadh 80 per cent ko reservation pehle se hi mila hua hai
Yogi aditynath baba ki jay ho baba mai aapke sath hu Hindu dharm ko aage badao par kisi jati ya dharm ko pareshan bhi mat karo
इसी लिए मैं तहलका बढता हूँ। क्यों कि यह बेबाक लिखता है।
जिसे आप हिंदू युवा वाहिनी कह रहे हैं उसे वास्तव में ठाकुर युवा वाहिनी कहना ठीक होगा. वे यहां पर जमकर ठाकुरवादी राजनीति करते हैं. ऊपर से लेकर नीचे तक वाहिनी के पदाधिकारियों में ठाकुरों का बोलबाला है.’
jai ho baba mahant yogi adit nath ki esi parkar aap aag ugalti raho aap ki aag si sari muslim ek din bhasm ho jayigi aur aap Pahli U.P.ki C.M fer Modi ji Ki bad INDIA ki P.M banjao ge
हिंदु युवा वाहिनी असल में छोटे-मोटे अपराधियों की शरणगाह बन गया था.योगी वास्तव में डरपोक किस्म के आदमी हैं जो भीड़ के भरोसे हिंसा फैलाते हैं
कौन लड़ेगा किसमे दम है
योगी बाबा एटम बम है
चाहे कुछ भी लिख लो तुम तहलका के दलाल, योगी को समर्थन मिलता रहेगा।।
योगी आदित्यनाथ का उदय भाजपा की अंदरूनी धुरियों के बीच मची खींचतान का भी नतीजा है.
मोदी जी की अपनी एक कार्यशैली है. इसका अंदाजा लोगों को आसानी से नहीं लगता.’ उत्तर प्रदेश की ठाकुर राजनीति में लंबे समय से राजनाथ सिंह का एकाधिकार रहा है. अपने इलाके में योगी भी ठाकुरवादी राजनीति करते हैं. जानकारों की मानें तो योगी और दूसरे नेताओं को ऊपर उठाकर धीरे-धीरे पार्टी उस एकाधिकार को समाप्त करने की दिशा में बढ़ रही है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में संगीत सोम को दी जा रही तरजीह भी इसी रणनीति का हिस्सा है.
उनका समर्थन असल में व्यक्ति को नहीं बल्कि मठ और उसके प्रति श्रद्धा को जाता है. प्रारंभ से ही जिस धारा का सूत्रपात इस मठ ने किया था उसके चलते समाज का पिछड़ा और दलित तबका उससे बहुत लगाव महसूस करता था. आज भी इलाके की सबसे बड़ी दलित जाति निषाद, मठ को आंख मूंदकर समर्थन देती है.
1998 में पहली बार लोकसभा पहुंचने से लेकर 2007 के बीच गोरखपुर और इसके आसपास के इलाकों में योगी आदित्यनाथ ने अपना सियासी प्रभाव फैलाना शुरू किया था. इसके लिए उन्होंने हिंदु युवा वाहिनी नाम से अपना एक संगठन गोरखपुर, बस्ती, देवरिया, आजमगढ़, कुशीनगर, गाजीपुर आदि जिलों के गांव-गांव में खड़ा किया. गोरखपुर में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता चतुरानन ओझा कहते हैं, ‘यह संगठन मूलत: बेरोजगार युवाओं और अपराधी किस्म के लोगों का जमघट था. ये लोग योगी की शह पर जगह-जगह मुसलमानों पर हमले करते, छोटी-छोटी बातों को सांप्रदायिक तनाव में बदलने का काम करते थे.’
Baba ka kewal. Upyog. Hoga. Logo. Ko. Bharkane. Me. Vote. Baink. Majbut. Hoga. Bjp. Ka. Es se. She. Na. Hindu. Ko. Fayda. Hoga. Na. Bharat. Ko
plzzzz hindus brother & sister, open ur mind we all r “Indian”
Q cast ki politics khelte ho ap log insaniyat or vikas ki politics khelo plzzz
Very good riport
aajam khaan aur akbaruddin ovaisi tak pahunchne me tahlka waalo ki fatti hal kya. un par bhi kuchh likho.
1997 में वीरेंद्र प्रताप शाही एक अन्य उभरते ब्राह्मण माफिया श्रीप्रकाश शुक्ला की गोलियों का निशाना बन गए. इस घटना से इलाके में ठाकुर वर्चस्व का दायरा पूरी तरह खाली हो गया. जाति से ठाकुर योगी ने इस खालीपन को तेजी से भरा. हालांकि इस काम में उनकी अपनी प्रतिभा से ज्यादा योगदान तात्कालिक परिस्थितियों, मठ की प्रतिष्ठा और उसकी आर्थिक संपन्नता का भी था. गोरखपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष अशोक चौधरी कहते हैं, ‘कोई बहुत प्रभावशाली व्यक्तित्व नहीं है योगी का. शहर की मेयर डॉ. सत्या पांडेय इनकी घनघोर विरोधी हैं. योगी जी के तमाम विरोध के बावजूद वे भाजपा से मेयर हैं. शहर के विधायक भी योगी के तमाम िवरोध के बावजूद जीते हैं. जिसे आप हिंदू युवा वाहिनी कह रहे हैं उसे वास्तव में ठाकुर युवा वाहिनी कहना ठीक होगा. वे यहां पर जमकर ठाकुरवादी राजनीति करते हैं. ऊपर से लेकर नीचे तक वाहिनी के पदाधिकारियों में ठाकुरों का बोलबाला है.’
ghatiya report. Yogi Ji aagey badhte rahiye, hum sab saath hai.