भाजपा का राष्ट्रीय आधार ऊंची जातियां हैं, जो कभी कांग्रेस का आधार हुआ करती थीं. इतिहास देखें तो भाजपा का आधार बनिया हुआ करते थे. हालांकि बिहार में भाजपा अब पिछड़ी जातियों से समर्थन मांगते हुए नजर आ रही है. उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो भाजपा ने सम्राट अशोक को कोईरी जाति का घोषित करते हुए उनके नाम पर डाक टिकट जारी किया है. भाजपा इससे पहले जातिगत रैलियों का आयोजन भी करती रही है पर फिर भी वे यही कहते हैं कि वे जातिवादी नहीं हैं. इसलिए चुनाव में जाति एक महत्वपूर्ण घटक है.
महादलित समुदाय के बारे में आपका क्या कहना है? जीतनराम मांझी खुद को एकमात्र महादलित नेता कहते हैं, इसे आप क्या कहेंगे?
भाजपा यहां हाशिये पर पड़ी जातियों से समर्थन पाने के लिए काम कर रही है. मांझी को साथ लेने का उद्देश्य महादलित वोटरों को अपनी तरफ करना है. वैसे मांझी भाजपा के साथ इसलिए हुए क्योंकि नीतीश परिस्थितियों को सही तरह से संभाल नहीं पाए. व्यावहारिक तौर पर नीतीश ने ही मांझी को भाजपा के खेमे तक पहुंचाया.
भाजपा के उन आरोपों पर आपका क्या कहना है, जिसमें वह कह रही है कि अगर लालू-नीतीश सत्ता में वापसी करते हैं तो बिहार में जंगलराज वापस आ जाएगा?
1991 में जब लालू सत्ता में थे, पिछड़ी जाति और सामाजिक न्याय व्यवस्था पर आधारित यह तब का सबसे बड़ा गठबंधन था. तब बिहार अविभाजित था, उन्हें 54 सीटों में से 53 मिल सकती थीं, लेकिन चारा घोटाले में लालू के खिलाफ कोर्ट केस हुआ जिसके बाद उनका आधार सिर्फ यादव जाति तक ही सीमित रह गया. हालांकि राज्य में लालू के शासन के समय ही लोकतांत्रिकरण की शुरुआत हुई, उसके बावजूद बिहार पतन की ओर ही बढ़ता चला गया. राज्य में कई स्तरों पर भारी अव्यवस्थाओं और कानून व्यवस्था की कमी के चलते ऊंची जातियों ने ‘बड़े’ अपराध करने शुरू किए, वहीं यादव ‘छोटे’ अपराधों में लिप्त हो गए. उस दौर में जनता के एक बड़े वर्ग की सामान्य सोच यही थी. इसलिए अब इस बात का डर है कि अगर लालू यादव सत्ता में वापस आते हैं तो यादव फिर से शक्तिशाली हो जाएंगे.