‘अगर ये कल को बेगुनाह साबित होते हैं तो उन दो या तीन सालों का हिसाब कौन देगा जो इन्होंने जेल में बिताए हैं ?’

vrinda

मानेसर मामले की सुनवाई कहां तक पहुंची है? आिखरी फैसला कब तक आने की उम्मीद है?

जुलाई में इस मामले की आिखरी सुनवाई है. हम उसी की तैयारी कर रहे हैं. इस मामले में पुलिस ने कुल 148 मजदूरों को गिरफ्तार किया था. उनमें से 114 जमानत पर रिहा हो चुके हैं. बाकी 34 मजदूर अभी भी जेल में ही हैं. हम उनकी जमानत के लिए भी कोशिश कर रहे हैं. जल्दी ही ये सभी लोग भी बाहर होंगे.

घटना को तीन साल होने वाले हैं. अभी भी 34 मजदूर जेल में हैं. फिलहाल जो लोग जमानत पर बाहर हैं वो भी दो-ढाई साल से जेल में ही थे. जमानत मिलने में इतना वक्त कैसे लग गया?

जेल में कौन हैं? जेल में मजदूर बंद हैं और ऐसा लगता है कि इस देश को मजदूर चाहिए ही नहीं. पिछले कुछ समय से देश में जो माहौल बना है उससे तो ऐसा ही लगता है कि इस देश को केवल पूंजीपति चाहिए और व्यापारी चाहिए. मजदूर किसी को नहीं चाहिए… अगर आप मजदूर हैं. अगर आप मेहनतकश हैं तो आपका इस देश में कोई भला नहीं कर सकता. सरकारें केवल जीडीपी में योगदान देख रही हैं. इन्हें यह नहीं दिखता कि कारखानों में काम कौन करता है? किसकी मेहनत की वजह से जीडीपी में बढ़ोतरी हो रही है? उलटे इस बढ़ोतरी का पूरा श्रेय कंपनी मालिकों और पूंजीपति तबके को मिल जाता है. मजदूर या कहें कि मेहनतकश तबके के बारे में कोई सोच ही नहीं रहा.

लेकिन अदालतों में तो मामला केवल सबूत और गवाहों के आधार पर चलता है. क्या अदालत में मजदूरों का पक्ष कमजोर था या उनके खिलाफ इतने पुख्ता सबूत और गवाह थे कि जमानत मिलने में ही दो-ढाई साल लग गए.

मैं साफ-साफ नहीं बता सकती कि जमानत मिलने में इतना समय क्यों और कैसे लग गया. मैं सर्वोच्च न्यायालय में इस केस की पैरवी कर रही हूं. मैंने इस केस को पूरा पढ़ा है और इस आधार पर मैं कह सकती हूं कि केस में इन मजदूरों के खिलाफ कोई खास सबूत हैं ही नहीं. मैंने पुलिस की चार्जशीट पढ़ी है और उन सबूतों को भी देखा है जो इस मामले में पुलिस द्वारा अदालत के सामने रखे गए हैं. अदालत का फैसला सबूतों के आधार पर ही आता है. सबूतों को देखने-समझने पर साफ-साफ समझ आता है कि जेल में बंद 148 मजदूरों में से 110-112 तो ऐसे हैं जिनके खिलाफ एक भी सबूत नहीं है. किसी गवाह ने इनके खिलाफ एक शब्द तक नहीं कहा है. इन्हें अदालत में किसी ने पहचाना तक नहीं है. इस मामले में पुलिस ने बहुत से निर्दोष मजदूरों को जेल में डाल दिया. मारुति सुजुकी एक बड़ी कंपनी है. सभी राजनीतिक पार्टियों से इनके संबंध अच्छे हैं. संभव है कि जब पुलिस इस मामले की जांच कर रही थी तो उस पर मजदूरों को सबक सिखाने जैसा कोई दवाब रहा हो और इसी वजह से पुलिस ने बोगस गवाहों के आधार पर इतने सारे बेगुनाह मजदूरों को पकड़ कर जेल में ठूस दिया.

‘देश में जो माहौल बना है उससे तो ऐसा ही लगता है कि इस देश को केवल पूंजीपति और व्यापारी चाहिए, मजदूर नहीं’

आप कह रही हैं कि 110-112 मजदूर ऐसे हैं जिनके खिलाफ एक भी सबूत नहीं है. अदालत के सामने किसी ने इनकी पहचान तक नहीं की, लेकिन फिर भी उन्हें कोर्ट ने दो-ढाई साल तक जमानत नहीं दी. आखिर क्यों? अगर पुलिस ने बेगुनाहों को जेल में डाला था तो केस की सुनवाई कर रहे जजों को ये क्यों नहीं दिखा?

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