जनसंघ के प्रति मुस्लिम इसलिए पूर्वाग्रहग्रस्त हैं क्योंकि वह अखंड भारत की बात करता है

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रविवार 23 मार्च, 2014 को मैं संसद के सेंट्रल हॉल में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और समाजवादी आंदोलन के प्रमुख सेनानी डॉ. राम मनोहर लोहिया को पुष्पांजलि अर्पित करने गया था. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वे कम से कम 25 बार जेल गए थे.
1970 में राज्यसभा सदस्य के रूप में मैंने संसद में प्रवेश किया. डॉ. लोहिया का तीन वर्ष पूर्व यानी 1967 में 57 वर्ष की आयु में निधन हो गया था. डॉ. लोहिया से मेरी निकटता और मुलाकात तब से शुरू हुई थी जब मैंने ऑर्गनाइजर में पत्रकार के रूप में काम करना शुरू किया था. उन्होंने ही मुझे बताया था कि मुस्लिम आम तौर पर जनसंघ के प्रति इसलिए पूर्वाग्रहग्रस्त हैं कि आप अखंड भारत की बात करते हो. मेरा उत्तर था, ‘मेरी इच्छा है कि आप दीनदयाल उपाध्याय से मिले होते और उनसे अखंड भारत संबंधी जनसंघ की अवधारणा जानते.’
बाद में इन दोनों नेताओं की मुलाकात हुई, यह मुलाकात हमारी पार्टी के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना बन गई और दोनों महान नेताओं ने एक ऐतिहासिक वक्तव्य जारी किया कि जनसंघ अखंड भारत के बारे में क्या सोचता है. यह संयुक्त वक्तव्य दोनों नेताओं ने 12 अप्रैल, 1964 को जारी किया, जिसमें दोनों नेताओं ने यह संभावना व्यक्त की कि पाकिस्तान को एक न एक दिन यह एहसास होगा कि विभाजन भारत और पाकिस्तान के न तो हिंदुओं और न ही मुस्लिमों के लिए अच्छा रहा और परिणाम के तौर पर दोनों देश एक भारत-पाक महासंघ के लिए मानसिक तौर पर तैयार हो रहे हैं.
यदि मैं दिल्ली में हूं तो संसद के सेंट्रल हॉल में होने वाले पुष्पांजलि कार्यक्रमों में सदैव जाता रहा हूं. कभी-कभी ऐसा मौका आया कि एकमात्र सांसद मैं ही मौजूद था. एक बार नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर ऐसा ही हुआ.
मुझे स्मरण आता है कि तीन वर्ष पूर्व डॉ. लोहिया के जयंती कार्यक्रम पर डॉ. मनमोहन सिंह भी उपस्थित थे. प्रधानमंत्री ने सरसरी तौर पर मुझसे पूछा, ‘आप डॉ. लोहिया को कितना जानते हो?’ मैंने जवाब दिया, ‘अच्छी तरह से लेकिन तब मैं पत्रकार था.’ तब मैंने उन्हें दीनदयाल जी के साथ उनकी मुलाकात के बारे में बताया और कैसे दोनों ने भारत-पाक महासंघ की संभावना के बारे में संयुक्त वक्तव्य जारी किया.
उन्होंने इस मुलाकात के बारे में मेरे वर्णन को ध्यान से सुना और पूछा, ‘क्या आपको लगता है कि यह अभी भी संभव है?’ मेरा दृढ़ उत्तर था, ‘बिल्कुल नहीं, यदि हम पाकिस्तान की आतंकवादी तिकड़मों के प्रति नरम बने रहे तो.’

(आडवाणी के ब्लॉग से साभार, 25 मार्च 2014 को प्रकाशित)