इस भूमि की कीमत 26.5 करोड़ रुपये थी जिस पर करीब 1.85 करोड़ रुपये स्टांप ड्यूटी अदा करनी थी. जबकि इस पूरे लेन देन में 28 लाख रुपये की स्टांप ड्यूटी अदा की गई. राज्य सरकार को स्टांप ड्यूटी में करीब 1.58 करोड़ का नुकसान हुआ. इसी प्रकार 26.5 करोड़ पर आयकर विभाग का कैपिटल गेन करीब 6.75 करोड़ रुपये होता है. इस प्रकार केंद्र और राज्य सरकार को एक ही सौदे में करीब नौ करोड़ रुपये का नुकसान हुआ.
लोकायुक्त की जांच में मथुरा के तत्कालीन जिलाधिकारी विशाल चौहान ने स्टांप ड्यूटी में की गई धांधली की पुष्टि की है. जांच के पश्चात स्टांप विभाग के अतिरिक्त पुलिस निदेशक ने भी इस बात की पुष्टि की है कि उक्त भूमि का पहले आवासीय उद्देश्य से इस्तेमाल किया गया, उस पर बहुमंजिला आवासीय योजना विकसित की गई और इसके बाद एक बार फिर से उसका लैंड यूज आवासीय से बदल कर कृषि करने का मकसद सिर्फ स्टांप ड्यूटी की चोरी करना था.
वर्ष 2013-14 के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार को स्टांप और पंजीकरण विभाग द्वारा 10,000 करोड़ रुपये से थोड़ा ज्यादा राजस्व की प्राप्ति हुई थी. इसमें तीन करोड़ से ज्यादा की भूमि और अन्य संपत्तियों की खरीद फरोख्त हुई थी. वर्ष 2014-15 में सरकार ने स्टांप और पंजीकरण विभाग के लिए 12,722 करोड़ रुपये राजस्व की प्राप्ति का लक्ष्य निर्धारित किया है. मौजूदा वित्त वर्ष के लिए उत्तर प्रदेश सरकार का कुल राजस्व आय का लक्ष्य 81,000 करोड़ रुपये है.
लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा बताते हैं, ‘मथुरा मामले की जांच में जो तथ्य सामने आएं हैं, वह तो इस पूरे घोटाले का बहुत छोटा सा हिस्सा है. यह नेटवर्क पूरे प्रदेश में बड़े पैमाने पर काम कर रहा है.’ वे आगे बताते हैं, ‘जहां तक मेरी जानकारी है स्टांप ड्यूटी में चोरी का कारोबार सूबे के पांच बड़े जिलों में धड़ल्ले से चल रहा है. लेकिन मैं इसे रोकने के लिए कुछ नहीं कर सकता क्योंकि मेरे पास इन जिलों से कोई शिकायत नहीं आई है. अगर मैं अपने स्तर पर जिले के प्रशासनिक अधिकारियों को कोई निर्देश जारी भी करता हूं तो कंपनियां हाईकोर्ट में इसे चुनौती देकर इस पर स्टे ले लेंगी.’
लोकायुक्त के मुताबिक स्टांप ड्यूटी में चोरी का कारोबार सूबे के पांच बड़े जिलों में धड़ल्ले से चल रहा है. बिल्डर इसके जरिए सरकार को करोड़ो रुपए का चूना लगे रहे हैं
मथुरा जिले से शिकायत मिलने के बाद लोकायुक्तने दूसरे जिलों के जिलाधिकारियों से भी इस संबंध में रिपोर्ट मांगी है कि क्या वहां भी इस तरह की गड़बड़ी चल रही है. सभी जिलों के जिलाधिकारियों ने अपने यहां राजस्व विभाग के अधिकारियों और रियल इस्टेट कंपनियों की मिलीभगत से स्टांप ड्यूटी की खुलेआम हो रही चोरी की बात स्वीकार की है.
‘लैंड यूज में फेरबदल करके स्टांप ड्यूटी में चोरी करना कोई नई बात नहीं है,’ स्टांप एवं रजिस्ट्रेशन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं. ‘यह धांधली पिछले एक दशक से जारी है, लेकिन सरकार इस गड़बड़ी से निपटने का कोई पुख्ता तरीका आज तक नहीं खोज सकी है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि स्टांप एवं पंजीकरण विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से यह काम हो रहा है लेकिन वे तब तक अकेले इस काम को अंजाम नहीं दे सकते जब तक कि इसमें राजस्व विभाग के लोग शामिल नहीं हों. क्योंकि अंतत: वे ही भूमि के रिकॉर्ड में फेरबदल करने का काम करते हैं.’
‘भूमि की जांच रेवेन्यु रिकॉर्ड कीपर और राजस्व अधीक्षक द्वारा की जाती है. वे ही किसी भूमि को कृषि अथवा आवासीय होने का प्रमाणपत्र देते हैं. इसी रिपोर्ट के आधार पर भूमि का रजिस्ट्रेशन होता है. जो घोटाला मथुरा में सामने आया है वह तो कुछ भी नहीं है. यहां एक भारी-भरकम नेटवर्क है जो पूरे राज्य में संगठित तरीके से काम कर रहा है. सिर्फ एक साल के भीतर यह नेटवर्क सैंकड़ों करोड़ रुपये का चूना केंद्र और राज्य सरकार को लगा रहा है.’
2007-08 से अब तक सिर्फ मथुरा में ही इस तरह के 32 मामले सामने आ चुके हैं जिसमें लैंड यूज को पहले कृषि से आवासीय में बदला गया और बाद में उसे फिर से कृषि में तब्दील कर दिया गया. अगर जिले के संबंधित अधिकारियों ने यूपीजेडएएलआर की धारा 144 के तहत ये बदलाव नहीं किए होते तो राज्य सरकार के खाते में चार करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व आया होता. अब तक राज्य सरकार ने इन 32 मामलों में कोई भी कर्रवाई नहीं की है. लोकायुक्त भी खुद को इस मामले में अक्षम पाते हैं क्योंकि न तो किसी ने उनके पास शिकायत दर्ज करवाई है न ही राज्य सरकार ने इस मामले की जांच उनके सुपुर्द की है.
एक अध्ययन के मकसद से लोकायुक्त ने पिछले दो सालों के दौरान गौतम बुद्ध नगर, लखनऊ, आगरा, कानपुर, बाराबंकी और गाजियाबाद के जिलाधिकारियों से पिछले दो सालों के दौरान लैंड यूज में किए गए बदलावों की सूचना मांगी थी.
- गाजियाबाद के जिलाधिकारी ने स्वीकार किया कि लैंड यूज में बदलाव के जरिए स्टांप ड्यूटी में 7.15 करोड़ रुपये का नुकसान राज्य सरकार को हुआ है.
- कानपुर में लैंड यूज में बदलाव के कुल 32 मामले सामने आए हैं. इस बदलाव से सूबे को करीब तीन करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है.
- आगरा के जिलाधिकारी ने बताया कि पिछले दो सालों के दौरान लैंड यूज में बदलाव के कुल छह मामले सामने आए हैं. इससे राजस्व को करीब 4 लाख रुपये का घाटा हुआ है.
- बीते दो सालों के दौरान बाराबंकी जिले में लैंड यूज में बदलाव के कुल 17 मामले सामने आए. इसमें राज्य सरकार को करीब 75 लाख रुपये के राजस्व का नुकसान बताया गया.
राज्य सरकार को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में लोकायुक्त ने पिछले पांच सालों के दौरान हुए इस तरह के सभी भूमि सौदों की जांच की सिफारिश की है. अपनी जांच में उन्होंने कहा है कि इस जांच की जिम्मेदारी राजस्व बोर्ड के चेयरमैन या उसके किसी सदस्य को सौंपी जानी चाहिए. साथ ही रिपोर्ट उन अधिकारियों के लिए कठोर दंड की मांग भी करती हैं जिन्होंने लैंड यूज बदल कर राजकोष को नुकसान पहुंचाया है.