जोगी थे सो मिट गए, अब योगी का ही राज…

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गोरखपुर, यानी एक ऐसा शहर, जिसे बचपन से ही जाना. गीताप्रेस के जरिए. गोरखनाथ मंदिर के जरिए. थोड़ा बड़े होने पर फिराक गोरखपुरी का अपना शहर होने की वजह से. चौरा-चौरी के क्रांतिकारियों की वजह से. क्रांतिकारी कवि और गीतकार गोरख पांडेय की वजह से भी. बलेस्सर के बिरहा के जरिए गोरखपुर को सबसे ज्यादा जाना. निक लागे टिकुलिया गोरखपुर के… जैसे गीत. हालिया वर्षों में गोरखपुर के साथियों द्वारा फिल्म फेस्टिवल की जो शुरुआत हुई है,  उस वजह से भी उस शहर से एक स्वाभाविक लगाव हुआ. गोरखपुर से ही सटे औरंगाबाद गांव के टेराकोटा आर्ट के शिल्पियों की कहानी भी सुनता रहा हूं. रहस्यमयी होकर बच्चों को कीड़े-मकोड़े की तरह मार देनेवाली बीमारी इंसेफलाइटिस की राजधानी के रूप में विकसित हुए गोरखपुर को भी जाना. वर्षों तक तिवारी और शाही के बीच चली मुठभेड़ के बहाने सवर्णों के दो गुटों के वर्चस्व की लड़ाई के जरिए भी गोरखपुर को जाना-समझा था. बाद में बाहुबली और चर्चित शूटर श्रीप्रकाश शुक्ला के कारण भी. लेकिन गोरखपुर इलाके से सबसे ज्यादा अनुराग वहां के जोगियों की वजह से था. उन्हें बचपन में अपने गांव में सारंगी लिए आते देखता और घंटो उनके गीतों को सुनते रहता था. अबकी बरस बहुरी नहीं अवना से लेकर केहू ना चिन्ही, माई ना चिन्ही, भाई ना चिन्ही… जैसे गीत. वैरागी मन से जीवन के मायने बतानेवाले जोगी गीत. उन जोगियों के गीत सुनते हुए मानस में गोरखपुर एक अलग तरीके से रचा-बसा रहा. हमेशा यही लगता रहा कि उस इलाके की आबोहवा का ही तो असर रहा होगा कि वहां से सिद्ध होकर या वहां सिद्ध होने की कतार में लगे जोगी जीवन के ऐसे गीत गाते हैं. उन जोगियों की वजह से बचपन से ही गोरखपुर की एक ऐसी तगड़ी पहचान रची-बसी मन में कि हालिया वर्षों में बार-बार वहां के एक दूसरे योगी की बात बार-बार आने पर भी लगता रहा कि यह नए योगी एक क्षणिक प्रवृत्ति की तरह हैं, गोरखपुर की प्रकृति के अनुकूल नहीं. नए योगी यानी गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ, जो आए दिन सुर्खियों में रहते हैं. योगी का हालिया बयान, जो चर्चा में है और उसके पहले भी सुने गये बयानों के बावजूद लगता है कि यह महज एक व्यक्ति के खुराफाती मगज की उपज है.  शहर के बारे में इन बातों से धारणा बदलना ठीक नहीं. लेकिन तीन सितंबर को प्रेस क्लब एसोसिएशन के शपथ ग्रहण समारोह के बहाने पहली दफा गोरखपुर जाने पर धारणा बदली.

योगी और उनकी हिंदू वाहिनी सेना के लोग हर रोज इंतजार करते रहते हैं कि कहीं भी हिंदू-मुस्लिम विवाद के नाम पर कोई मसला आए तो वे तुरंत जाकर वहां अपनी उपस्थिति दर्ज करवा दें

गुरू गोरखनाथ की परंपरा के अनुयायी और निकट भविष्य में गोरखनाथ मंदिर के प्रमुख बन जाने को तैयार और साथ ही भाजपा के बहुचर्चित सांसद आदित्यनाथ के बारे में जानकर तो धारणा बदली ही, उनके कृत्यों और कारनामों पर शहर की चुप्पी पर भी.

जिस दिन गोरखपुर पहुंचे, उस दिन वहां के सभी अखबारों में योगी आदित्यनाथ की बड़ी-बड़ी तसवीरें छपी थीं. बिजली को लेकर सड़क पर प्रदर्शन करते हुए. मालूम हुआ कि योगी आदित्यनाथ को बस यही और एक दूसरा काम करना आता है. बात-बेबात धरना-प्रदर्शन और जरा-सी बात पर जहरीले बयान देकर एक खौफ का माहौल बना देना. आदित्यनाथ के बारे में जानकारी लेने की कोशिश करते रहे, गोरखनाथ मंदिर के राजनीतिक वर्चस्व के बारे में पता चला. मालूम हुआ कि आजादी के बाद से चार-पांच मौके छोड़ दें तो ज्यादातर समय वहीं की संसदीय राजनीति में गोरखनाथ मंदिर का ही कब्जा रहा है. कभी हिंदू महासभा के जरिए तो बाद में भाजपा के जरिए. गोरखपुर में साथियों से पूछा कि जब आदित्यनाथ बोलते हैं तो देश भर में बवाल मचता है, गोरखपुर में क्या होता है! जवाब मिला- कुछ नहीं होता! होगा क्या? एक बड़ा खेमा है जो खुश हो लेता है कि उसका सांसद ऐसा है, जिसकी चर्चा देश भर में होती है और एक खेमा है जो आपस में ही बतकही कर के अपना दायित्व पूरा कर लेता है. गोरखपुर में हर कोई जानता है कि योगी आदित्यनाथ कभी भी, कुछ भी बोल सकते हैं. इसे ऐसे भी कह सकते हैं पिछले तीन बार से वे बोलकर ही सांसद बनते रहे हैं. सिर्फ एक बार को छोड़ दें तो उन्हें कभी तगड़ी चुनौती नहीं मिली. गोरखपुर में ही मालूम हुआ कि यहां जरा-जरा सी बात पर यदि हिंदू-मुसलमानों के बीच कुछ हो जाए तो मुसलमानों को धमकाया जाता है. घुड़की यही होती है कि हमारी बात नहीं मानोगे तो जाते हैं कल योगी जी के दरबार में. शहर के आम लोग बताते हैं कि योगी और उनकी हिंदू वाहिनी सेना के लोग, जिसका गठन योगी ने एक बार चुनाव में क़ड़ी चुनौती मिलने के बाद किया था, हर रोज इंतजार करते रहते हैं कि कहीं भी हिंदू-मुस्लिम विवाद के नाम पर कोई मसला आए तो वे तुरंत जाकर वहां अपनी उपस्थिति दर्ज करवा दें.

हम गोरखपुर में बार-बार पूछते रहे कि इतनी बार सांसद रहे आदित्यनाथ, उसके पहले उनके गुरू भी सांसद रहे,  तो ऐसा कोई निर्माणकार्य है जो इनके कार्यकाल में हुआ हो! कोई जवाब नहीं दे पाता. यह जरूर पता चलता है कि हर साल योगी आदित्यनाथ की सांसद निधि का एक बड़ा हिस्सा उपयोग न होने की वजह से लैप्स हो जाता है. सुनने में आया है कि फिलहाल उनका जो अपना आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज है, वे उसे मेडिकल कॉलेज में बदलने की तैयारी में है. कहने के लिए योगी इसे जरूर भविष्य में अपनी एक बड़ी उपलब्धि बता सकते हैं. बाकी जो काम गोरखपुर में दिखता है, वह वीर बहादुर सिंह  ने किया था. ऐसा है तो आखिर आदित्यनाथ हमेशा चुनाव कैसे जीत जाते हैं?  जवाब मिलता है, ‘ सभी दल के लोग मिलकर सहयोग करते हैं और आदित्यनाथ नाथ भी जानते हैं कि दलों के साथ जनता को मिलकर सहयोग करना ही होगा, नहीं तो वे कहीं के नहीं रहेंगे! ‘ इसका बड़ा सीधा सा गणित है. आदित्यनाथ और उनकी हिंदू ब्रिगेड, हिंदू वाहिनी सेना ने पूरे इलाके में हिंदू-मुसलमानों के बीच सामाजिक-सांस्कृतिक स्तर पर इतनी दूरी बढ़ा दी है कि अब सबको यह लगता है कि एक बार भी योगी आदित्यनाथ नहीं रहे तो इतने वर्षों का बदला उनसे लिया जा सकता है. जबकि यह आदित्यनाथ के लोगों द्वारा फैलाए गए भ्रम के अलावा कुछ भी नहीं है. लेकिन इस भ्रम का असर ऐसा हुआ है कि गोरखपुर के जो असल जोगी होते थे,  सारंगी लेकर चलने वाले, उनकी नई पीढ़ी ने उनकी सारंगियों को तोड़ दिया है कि तुम मुसलमान हो तो हिन्दू फकीरी क्यूं करोगे!

हम बार-बार पूछते हैं लोगों से कि यह शहर इंसेफलाइटिस की बीमारी का गढ़ है, हर साल बच्चे मरते हैं, आदित्यनाथ की ओर से क्या किया गया उसे लेकर. बताया गया कि योगी जी ने एक फॉर्मूला तय कर लिया है. हर साल एक पैदल मार्च निकालते हैं इंसेफलाइटिस के खिलाफ, अखबारों में बड़ी-बड़ी सुर्खियां और तस्वीरें आती हैं और फिर संसद में कुछ सवाल उठाते हैं, कुछ दिनों बाद उनकी बुकलेट तैयार होकर बांट दी जाती है कि देखिए सांसद जी ने कितने सवाल उठाए गोरखपुर वालों के लिए. यहां के लोगों की बात से मालूम हो जाता है कि आदित्यनाथ की असली ताकत गोरखपुर का विकास या गोरखपुर को आगे ले जाने की रणनीति वाली राजनीति नहीं बल्कि मानसिक तौर पर और पीछे, और पीछे बनाकर ही खुद को आगे बढ़ाने की रणनीति रही है. देशभर में आदित्यनाथ के बयानों पर विरोध होता है लेकिन गोरखपुर में ऐसा क्यों नहीं है. इसका जवाब कोई नहीं देता. सब कहते हैं कि विरोध करनेवाली संस्थाएं सिमट गई हैं. व्यक्ति भी सिमट गए हैं. नाटक की सौ से ज्यादा मंडलियां यहां थीं, सबकी गतिविधियां थमी हुई हैं. कई सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन थे, जो विरोध के स्वर निकालते थे. सब अपने अपने काम में लगे हुए हैं. दूसरे दल के नेता भी गोरखपुर तभी आना चाहते हैं या गोरखपुर पर तभी बात करना चाहते हैं, जब उन्हें चुनाव का टिकट मिल जाए. बाकी समय योगी को वॉकओवर मिला रहता है, मनमर्जी की राजनीति करने का और कुछ भी काम नहीं कर के सिर्फ इलाके का दौरा कर नेता बने रहने का.

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