इत्ते! उत्ते! कित्ते! से जित्ते! तक

shub-vihah
मनीषा यादव

ये इत्ता दे रहें. वे उत्ता दे रहें. उधर से इत्ता-इत्ता मिल रहा. इधर से उत्ता-उत्ता मिल रहा. उठते-बैठते इत्ता-उत्ता. खाते-पीते इत्ता-उत्ता. ऑफिस में जब आते तो इनके कलीग कहते, देखो भाई ‘इत्ते-उत्ते जी’ चले आ रहे हैं . ‘लड़के के बाप’ का लड़का ऊंचे पद पर है. बाप का कद इसलिए ज्यादा ऊंचा है. लड़का मोटा है. बाप का सीना चौड़ा है. कई रिश्ते देखे, मगर कोई जमा नहीं. जमे कैसे! जमने के लिए लड़के का बाप लड़की के बाप से इत्ता-उत्ता जीमे, तब तो बात जमे.

हाल ही में एक रिश्ता देखा. लड़के ने लड़की को देखा. बाप ने भी लड़की को देखा. लड़के की मां ने भी लड़की को देखा. लड़के की मौसी ने भी लड़की को देखा. लड़के की बुआ ने भी लड़की को देखा. लड़की मिलनसार थी. लड़की खूबसूरत थी. लड़की ‘ये’ भी थी, लड़की ‘वो’ भी थी. कुल मिलाकर लड़के के बाप ने प्रथमद्रष्टा लड़की को पास कर दिया. बेटे ने बाप की आज्ञा को पास कर दिया. मां ने दोनों की पंसद को पास कर दिया. बुआ-मौसी ने भी हां में हां मिलाकर पास कर दिया. परंतु बात ‘वहीं’ पर आकर रुक गई, जहां पहले भी कई बार रुक चुकी थी.

लड़के का बाप बात को ऐसी ही जगह पर लाकर रोकता था. जहां बात-बात में उसके मन की कोई बात निकले. बहरहाल, बात बढ़ते-बढ़ते बात रुक गई. क्योंकि बढ़ते-बढ़ते लड़की के बाप की हिम्मत जवाब दे गई. जहां पर आकर बात रुकी थी, वहां पर लड़के का बाप बोला. ‘वो उत्ता दे रहें थे.’ ‘ये इत्ता दे रहे थे.’ लेकिन लड़की का बाप इत्ते-इत्ते की अपनी विवशता जताता रहा. आखिर बात नहीं बनी. एक बार फिर…

मगर इसी बीच एक अनहोनी बात हो गई. लड़के-लड़की की आपस में चोरी-छुपे बात होने लगी. जमकर होने लगी. अब लड़के का बाप क्या करता? चूंकि उसने दुनिया देखी-समझी थी, फौरन मौके की नजाकत को ताड़ गया. एक प्रयास और किया. होने वाले संबंधी को फोन लगाया. फोन पर बात हुई. लड़के के बाप ने फिर पूछा, ‘कित्ता?’ उधर से जवाब मिला, ‘इत्ता ही.’

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here