वो तिरंगा झंडा जलाने वाले लोग हैं, वो सावरकर के चेले हैं जिन्होंने अंग्रेजों से माफी मांगी थी. ये वो लोग हैं. हरियाणा के अंदर जो अभी खट्टर सरकार है, इस सरकार ने शहीद भगत सिंह के नाम पर जो एक एयरपोर्ट का नाम रखा गया था, उसको एक संघी के नाम पर रख दिया. कहने का मतलब यह है कि हमको देशभक्ति का सर्टिफिकेट आरएसएस से नहीं चाहिए. हमको नेशनलिस्ट होने का सर्टिफिकेट आरएसएस से नहीं चाहिए. हम हैं इस देश के और इस मिट्टी से प्यार करते हैं. इस देश के अंदर जो 80 फीसदी गरीब अवाम है, हम उसके लिए लड़ते हैं. हमारे लिए यही देशभक्ति है. हमें पूरा भरोसा है बाबा साहेब (आंबेडकर) के ऊपर. हमें पूरा भरोसा है अपने देश के संविधान के ऊपर. और हम इस बात को पूरी मजबूती के साथ कहना चाहते हैं कि इस देश के संविधान पर अगर कोई उंगली उठाएगा.. चाहे वो उंगली संघियों का हो, चाहे वो उंगली किसी का भी हो, उस उंगली को हम बर्दाश्त नहीं करेंगे.
हम संविधान में भरोसा करते हैं. लेकिन जो संविधान झंडेवालान और नागपुर में पढ़ाया जाता है, उस संविधान पर हमको कोई भरोसा नहीं. हमको मनुस्मृति पे कोई भरोसा नहीं है. हमको इस देश के अंदर जो जातिवाद है उसके ऊपर कोई भरोसा नहीं है. और वही संविधान, वही बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर, संविधान में संवैधानिक उपचार की बात करते हैं. वही बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर कैपिटल पनिशमेंट को एबोलिश करने की बात करते हैं. वही बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन की बात करते हैं. और हम कांस्टिट्यूशन को अपहोल्ड करते हुए, जो हमारा बुनियादी अधिकार है, जो हमारा कांस्टिट्यूशनल राइट है, हम उसको अपहोल्ड करता चाहते हैं. लेकिन ये बड़े शर्म की बात है, ये बड़े दुख की बात है कि आज एबीवीपी अपने मीडिया सहयोगियों से पूरे मामले को आॅर्केस्ट्रेटेड (प्रायोजित) कर रहा है, मामले को डायल्यूट कर रहा है.
कल एबीवीपी के जॉइंट सेक्रेटरी ने कहा कि हम फेलोशिप के लिए लड़ते हैं. कितना रिडिकुलस (हास्यास्पद) लगता है ये सुन करके. इनकी सरकार मैडम ‘मनु’स्मृति ईरानी फेलोशिप को खत्म करती हैं और कहते हैं कि हम फेलोशिप के लिए लड़ते हैं. इनकी सरकार हायर एजुकेशन के अंदर 17 प्रतिशत बजट को कट किया है. उससे हमारा हॉस्टल पिछले चार सालों में नहीं बना. उससे हमको वाई-फाई आज तक नहीं मिला. और एक बस दिया भेल ने तो उसमें तेल डालने के लिए प्रशासन के पास पैसा नहीं है.
एबीवीपी के लोग रोलर के सामने जाकर देवानंद की तरह तस्वीर खिंचवा कर कहते हैं कि हम हॉस्टल बनवा रहे हैं. हम वाई-फाई करवा रहे हैं. हम फेलोशिप बढ़वा रहे हैं. इनकी पोलपट्टी खुल जाएगी साथियों, अगर इस देश में बुनियादी सवाल पर चर्चा होगा. और मुझे गर्व है जेएनयूआइट होने पे क्योंकि हम बुनियादी सवाल पर चर्चा करते हैं. हम बुनियादी सवाल उठाते हैं.
इनका एक स्वामी है, स्वामी कहता है कि जेएनयू में जेहादी रहते हैं. जो ये कहता है कि जेएनयू के लोग हिंसा फैलाते हैं. कौन है? मैं जेएनयू से चुनौती देता हूं आरएसएस के विचारकों को. उसे बुलाओ और करो हमारे साथ डिबेट. हम करना चाहते हैं हिंसा के कॉन्सेप्ट पर डिबेट. हम सवाल खड़ा करना चाहते हैं एबीवीपी के उस दावे पर, एबीवीपी के उस स्लोगन पर, जिसमें वो कहता है बेशरम कि खून से तिलक करेंगे, गोलियों से आरती. किसका खून बहाना चाहते हो इस मुल्क में तुम? क्या चाहते हो इस मुल्क में तुम? तुमने गोलियां चलाई हैं. अंग्रेजों के साथ मिलकर इस देश की आजादी के लिए लड़ने वाले लोगों पर गोलियां चलाई हैं.
इस देश के संविधान पर अगर कोई उंगली उठाएगा… चाहे वो उंगली संघियों का हो, चाहे वो उंगली किसी का भी हो, उस उंगली को हम बर्दाश्त नहीं करेंगे. हम संविधान में भरोसा करते हैं. लेकिन जो संविधान झंडेवालान और नागपुर में पढ़ाया जाता है, उस संविधान पर हमको कोई भरोसा नहीं. हमको मनुस्मृति पे कोई भरोसा नहीं है. हमको इस देश के अंदर जो जातिवाद है उसके ऊपर कोई भरोसा नहीं है
इस मुल्क के अंदर गरीब जब अपनी रोटी की बात करता है, जब भुखमरी से मर रहे लोग अपने हक की बात करते हैं तो तुम उन पर गोली चलाते हो. तुमने गोली चलाई है इस मुल्क में मुसलमानों के ऊपर. तुमने गोली चलाई है इस मुल्क में जब महिलाएं अपने अधिकार की बात करती हैं तो तुम कहते हो पांचों उंगली बराबर नहीं हो सकता. महिलाओं को सीता की तरह रहना चाहिए और सीता की तरह अग्निपरीक्षा देना चाहिए.
इस देश में लोकतंत्र है और यह लोकतंत्र सबको बराबरी का हक देता है, चाहे वो विद्यार्थी हो, चाहे वो कर्मचारी हो, चाहे वो गरीब हो, मजदूर हो, किसान हो या अंबानी या अडानी हो, सबके हक की बराबरी की बात करता है. उसमें जब हम महिलाओं के हक की बात करते हैं तो ये कहते है कि आप भारतीय संस्कृति को बरबाद करना चाहते हो. हम बरबाद करना चाहते हैं शोषण की संस्कृति को, जातिवाद की संस्कृति को, मनुवाद और ब्राह्मणवाद की संस्कृति को. आपकी संस्कृति की परिभाषा से हमारी संस्कृति की परिभाषा तय नहीं होगी. इनको दिक्कत कहां आता है, इनको दिक्कत होता है जब इस मुल्क के लोग लोकतंत्र की बात करते हैं, जब लोग लाल सलाम के साथ नीला सलाम लगाते हैं. जब मार्क्स के साथ बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का नाम लेते हैं. जब अशफाक उल्ला का नाम लिया जाता है, तब इनको पेट में दर्द होता है, और इनकी साजिश है, ये अंग्रेजों के चमचे हैं, लगाओं मेरे ऊपर डिफेमेशन का केस, मैं कहता हूं आरएसएस का इतिहास अंग्रेजों के साथ खड़ा होने का इतिहास है. आज ये देश के गद्दार आज देशभक्ति का सर्टिफिकेट बांट रहे हैं.
मेरा मोबाइल चेक करो साथियों, मेरी मां और बहन को भद्दी-भद्दी गालियां दी जा रही हैं. कौन सी भारत माता की बात करते हो? अगर तुम्हारी भारतमाता में मेरी मां शामिल नहीं है तो मुझे मंजूर नहीं है ये भारत माता का कॉन्सेप्ट. इस देश की महिलाएं जो गरीब हैं, मजदूर हैं, मेरी मां आंगनबाड़ी सेविका है, 3000 से हमारा घर चलता है. और ये उसके खिलाफ गालियां दे रहा है. मुझे शर्म है इस देश पर. इस देश के अंदर जो गरीब, मजदूर, दलित किसान हैं उनकी माताएं भारत माताएं नहीं हैं. मैं कहूंगा जय, भारत की माताओं की जय, पिताओं की जय, माताओं, बहनों की जय, किसानों, मजदूरों, दलितों आदिवासियों की जय. मैं कहूंगा, तुम में हिम्मत है तो बोलो इंकलाब जिंदाबाद, बोला भगत सिंह जिंदाबाद, बोलो सुखदेव जिंदाबाद, बोलो अशफाक उल्ला खां जिंदाबाद, बोलो बाबा साहेब जिंदाबाद, तब हम मानेंगे तुम इस देश पे भरोसा करते हो. और तुम बाबा साहेब का 125वीं जयंती मनाने का नाटक कर रहे हो, है तुम में हिम्मत तो सवाल उठाओ जो बाबा भीमराव साहेब ने उठाया कि इस देश के अंदर जातिवाद सबसे बड़ी समस्या है. बोलो जातिवाद के ऊपर, लाओ रिजर्वेशन, प्राइवेट सेक्टर में रिजर्वेशन लाओ, तमाम जगह रिजर्वेशन को लागू करो, तब हम मानेंगे कि तुमको इस देश पर भरोसा है. ये देश तुम्हारा कभी नहीं था और कभी नहीं हो सकता. कोई देश अगर बनता है तो वहां के लोगों से बनता है. अगर देश की अवधारणा में भूखे लोगों के लिए जगह नहीं है, गरीब मजदूरों के लिए जगह नहीं है तो वह देश नहीं है. कल मैं टीवी डिबेट में यह बात बोल रहा था दीपक चौरसिया जी को कि चौरसिया जी, ये गंभीर समय है इस बात को याद रखिएगा. अगर मुल्क में फासीवाद जिस तरीके से आ रहा है, मीडिया भी सुरक्षित नहीं रहने वाला है. उसके भी स्क्रिप्ट लिखकर आएंगे संघ के ऑफिस से और उसके भी स्क्रिप्ट लिख कर आते थे कभी इंदिरा गांधी के समय में कांग्रेस के ऑफिस से, इस बात को याद रखिएगा. और अगर आप सच में इस देश में देशभक्ति दिखाना चाहते हैं, कुछ मीडिया के साथी कह रहे थे कि हमारे टैक्स के पैसे से, सब्सिडी के पैसे से जेएनयू चलता है, हां सच है, सच है कि टैक्स के पैसे से चलता है, सच है कि सब्सिडी के पैसे से चलता है, लेकिन ये सवाल खडा करना चाहते हैं कि यूनिवर्सिटी होता किसलिए है?