अगर तुम्हारी भारतमाता में मेरी मां शामिल नहीं तो भारतमाता का ये कॉन्सेप्ट मुझे मंजूर नहीं

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वो तिरंगा झंडा जलाने वाले लोग हैं, वो सावरकर के चेले हैं जिन्होंने अंग्रेजों से माफी मांगी थी. ये वो लोग हैं. हरियाणा के अंदर जो अभी खट्टर सरकार है, इस सरकार ने शहीद भगत सिंह के नाम पर जो एक एयरपोर्ट का नाम रखा गया था, उसको एक संघी के नाम पर रख दिया. कहने का मतलब यह है कि हमको देशभक्ति का सर्टिफिकेट आरएसएस से नहीं चाहिए. हमको नेशनलिस्ट होने का सर्टिफिकेट आरएसएस से नहीं चाहिए. हम हैं इस देश के और इस मिट्टी से प्यार करते हैं. इस देश के अंदर जो 80 फीसदी गरीब अवाम है, हम उसके लिए लड़ते हैं. हमारे लिए यही देशभक्ति है. हमें पूरा भरोसा है बाबा साहेब (आंबेडकर) के ऊपर. हमें पूरा भरोसा है अपने देश के संविधान के ऊपर. और हम इस बात को पूरी मजबूती के साथ कहना चाहते हैं कि इस देश के संविधान पर अगर कोई उंगली उठाएगा.. चाहे वो उंगली संघियों का हो, चाहे वो उंगली किसी का भी हो, उस उंगली को हम बर्दाश्त नहीं करेंगे.

हम संविधान में भरोसा करते हैं. लेकिन जो संविधान झंडेवालान और नागपुर में पढ़ाया जाता है, उस संविधान पर हमको कोई भरोसा नहीं. हमको मनुस्मृति पे कोई भरोसा नहीं है. हमको इस देश के अंदर जो जातिवाद है उसके ऊपर कोई भरोसा नहीं है. और वही संविधान, वही बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर, संविधान में संवैधानिक उपचार की बात करते हैं. वही बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर कैपिटल पनिशमेंट को एबोलिश करने की बात करते हैं. वही बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन की बात करते हैं. और हम कांस्टिट्यूशन को अपहोल्ड करते हुए, जो हमारा बुनियादी अधिकार है, जो हमारा कांस्टिट्यूशनल राइट है, हम उसको अपहोल्ड करता चाहते हैं. लेकिन ये बड़े शर्म की बात है, ये बड़े दुख की बात है कि आज एबीवीपी अपने मीडिया सहयोगियों से पूरे मामले को आॅर्केस्ट्रेटेड (प्रायोजित) कर रहा है, मामले को डायल्यूट कर रहा है.

कल एबीवीपी के जॉइंट सेक्रेटरी ने कहा कि हम फेलोशिप के लिए लड़ते हैं. कितना रिडिकुलस (हास्यास्पद) लगता है ये सुन करके. इनकी सरकार मैडम ‘मनु’स्मृति ईरानी फेलोशिप को खत्म करती हैं और कहते हैं कि हम फेलोशिप के लिए लड़ते हैं. इनकी सरकार हायर एजुकेशन के अंदर 17 प्रतिशत बजट को कट किया है. उससे हमारा हॉस्टल पिछले चार सालों में नहीं बना. उससे हमको वाई-फाई आज तक नहीं मिला. और एक बस दिया भेल ने तो उसमें तेल डालने के लिए प्रशासन के पास पैसा नहीं है.

एबीवीपी के लोग रोलर के सामने जाकर देवानंद की तरह तस्वीर खिंचवा कर कहते हैं कि हम हॉस्टल बनवा रहे हैं. हम वाई-फाई करवा रहे हैं. हम फेलोशिप बढ़वा रहे हैं. इनकी पोलपट्टी खुल जाएगी साथियों, अगर इस देश में बुनियादी सवाल पर चर्चा होगा. और मुझे गर्व है जेएनयूआइट होने पे क्योंकि हम बुनियादी सवाल पर चर्चा करते हैं. हम बुनियादी सवाल उठाते हैं.

इनका एक स्वामी है, स्वामी कहता है कि जेएनयू में जेहादी रहते हैं. जो ये कहता है कि जेएनयू के लोग हिंसा फैलाते हैं. कौन है? मैं जेएनयू से चुनौती देता हूं आरएसएस के विचारकों को. उसे बुलाओ और करो हमारे साथ डिबेट. हम करना चाहते हैं हिंसा के कॉन्सेप्ट पर डिबेट. हम सवाल खड़ा करना चाहते हैं एबीवीपी के उस दावे पर, एबीवीपी के उस स्लोगन पर, जिसमें वो कहता है बेशरम कि खून से तिलक करेंगे, गोलियों से आरती. किसका खून बहाना चाहते हो इस मुल्क में तुम? क्या चाहते हो इस मुल्क में तुम? तुमने गोलियां चलाई हैं. अंग्रेजों के साथ मिलकर इस देश की आजादी के लिए लड़ने वाले लोगों पर गोलियां चलाई हैं.

इस देश के संविधान पर अगर कोई उंगली उठाएगा… चाहे वो उंगली संघियों का हो, चाहे वो उंगली किसी का भी हो, उस उंगली को हम बर्दाश्त नहीं करेंगे. हम संविधान में भरोसा करते हैं. लेकिन जो संविधान झंडेवालान और नागपुर में पढ़ाया जाता है, उस संविधान पर हमको कोई भरोसा नहीं. हमको मनुस्मृति पे कोई भरोसा नहीं है. हमको इस देश के अंदर जो जातिवाद है उसके ऊपर कोई भरोसा नहीं है

इस मुल्क के अंदर गरीब जब अपनी रोटी की बात करता है, जब भुखमरी से मर रहे लोग अपने हक की बात करते हैं तो तुम उन पर गोली चलाते हो. तुमने गोली चलाई है इस मुल्क में मुसलमानों के ऊपर. तुमने गोली चलाई है इस मुल्क में जब महिलाएं अपने अधिकार की बात करती हैं तो तुम कहते हो पांचों उंगली बराबर नहीं हो सकता. महिलाओं को सीता की तरह रहना चाहिए और सीता की तरह अग्निपरीक्षा देना चाहिए.

इस देश में लोकतंत्र है और यह लोकतंत्र सबको बराबरी का हक देता है, चाहे वो विद्यार्थी हो, चाहे वो कर्मचारी हो, चाहे वो गरीब हो, मजदूर हो, किसान हो या अंबानी या अडानी हो, सबके हक की बराबरी की बात करता है. उसमें जब हम महिलाओं के हक की बात करते हैं तो ये कहते है कि आप भारतीय संस्कृति को बरबाद करना चाहते हो. हम बरबाद करना चाहते हैं शोषण की संस्कृति को, जातिवाद की संस्कृति को, मनुवाद और ब्राह्मणवाद की संस्कृति को. आपकी संस्कृति की परिभाषा से हमारी संस्कृति की परिभाषा तय नहीं होगी. इनको दिक्कत कहां आता है, इनको दिक्कत होता है जब इस मुल्क के लोग लोकतंत्र की बात करते हैं, जब लोग लाल सलाम के साथ नीला सलाम लगाते हैं. जब मार्क्स के साथ बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का नाम लेते हैं. जब अशफाक उल्ला का नाम लिया जाता है, तब इनको पेट में दर्द होता है, और इनकी साजिश है, ये अंग्रेजों के चमचे हैं, लगाओं मेरे ऊपर डिफेमेशन का केस, मैं कहता हूं आरएसएस का इतिहास अंग्रेजों के साथ खड़ा होने का इतिहास है. आज ये देश के गद्दार आज देशभक्ति का सर्टिफिकेट बांट रहे हैं.

मेरा मोबाइल चेक करो साथियों, मेरी मां और बहन को भद्दी-भद्दी गालियां दी जा रही हैं. कौन सी भारत माता की बात करते हो? अगर तुम्हारी भारतमाता में मेरी मां शामिल नहीं है तो मुझे मंजूर नहीं है ये भारत माता का कॉन्सेप्ट. इस देश की महिलाएं जो गरीब हैं, मजदूर हैं, मेरी मां आंगनबाड़ी सेविका है, 3000 से हमारा घर चलता है. और ये उसके खिलाफ गालियां दे रहा है. मुझे शर्म है इस देश पर. इस देश के अंदर जो गरीब, मजदूर, दलित किसान हैं उनकी माताएं भारत माताएं नहीं हैं. मैं कहूंगा जय, भारत की माताओं की जय, पिताओं की जय, माताओं, बहनों की जय, किसानों, मजदूरों, दलितों आदिवासियों की जय. मैं कहूंगा, तुम में हिम्मत है तो बोलो इंकलाब जिंदाबाद, बोला भगत सिंह जिंदाबाद, बोलो सुखदेव जिंदाबाद, बोलो अशफाक उल्ला खां जिंदाबाद, बोलो बाबा साहेब जिंदाबाद, तब हम मानेंगे तुम इस देश पे भरोसा करते हो. और तुम बाबा साहेब का 125वीं जयंती मनाने का नाटक कर रहे हो, है तुम में हिम्मत तो सवाल उठाओ जो बाबा भीमराव साहेब ने उठाया कि इस देश के अंदर जातिवाद सबसे बड़ी समस्या है. बोलो जातिवाद के ऊपर, लाओ रिजर्वेशन, प्राइवेट सेक्टर में रिजर्वेशन लाओ, तमाम जगह रिजर्वेशन को लागू करो, तब हम मानेंगे कि तुमको इस देश पर भरोसा है. ये देश तुम्हारा कभी नहीं था और कभी नहीं हो सकता. कोई देश अगर बनता है तो वहां के लोगों से बनता है. अगर देश की अवधारणा में भूखे लोगों के लिए जगह नहीं है, गरीब मजदूरों के लिए जगह नहीं है तो वह देश नहीं है. कल मैं टीवी डिबेट में यह बात बोल रहा था दीपक चौरसिया जी को कि चौरसिया जी, ये गंभीर समय है इस बात को याद रखिएगा. अगर मुल्क में फासीवाद जिस तरीके से आ रहा है, मीडिया भी सुरक्षित नहीं रहने वाला है. उसके भी स्क्रिप्ट लिखकर आएंगे संघ के ऑफिस से और उसके भी स्क्रिप्ट लिख कर आते थे कभी इंदिरा गांधी के समय में कांग्रेस के ऑफिस से, इस बात को याद रखिएगा. और अगर आप सच में इस देश में देशभक्ति दिखाना चाहते हैं, कुछ मीडिया के साथी कह रहे थे कि हमारे टैक्स के पैसे से, सब्सिडी के पैसे से जेएनयू चलता है, हां सच है, सच है कि टैक्स के पैसे से चलता है, सच है कि सब्सिडी के पैसे से चलता है, लेकिन ये सवाल खडा करना चाहते हैं कि यूनिवर्सिटी होता किसलिए है?

यूनिवर्सिटी होता है समाज के अंदर जो कॉमन कन्साइंस है, कोट एंड कोट उसका क्रिटिकल एनालिसिस किया जाए. अगर यूनिवर्सिटी इस काम में फेल है तो कोई देश नहीं बनेगा, इस देश में कोई लोग शामिल नहीं होंगे, देश होगा तो सिर्फ और सिर्फ पूंजीपतियों के लिए चारागाह होगा, सिर्फ और सिर्फ लूट और शोषण का चारागाह बन करके रह जाएगा. अगर देश के अंदर लोगों की जो संस्कृति है, लोगों की जो मान्यताएं हैं, लोगों का जो अधिकार है हम उसे शामिल नहीं करेंगे तो देश नहीं बनेगा. हम देश के साथ पूरी तरीके से खडे़ हैं और उस सपने के साथ खडे़ हैं जिसको भगत सिंह और बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने देखा. हम उस सपने के साथ खडे़ हैं जिसमें सबको बराबरी का हक दिया जाए, हम उस सपने के साथ खडे़ हैं सबको जीने का हक हो, सबको खाने पीने रहने का हक हो, हम उस सपने के साथ खडे़ हैं. और उस सपने के साथ खड़ा होने के लिए रोहित ने अपना जान गंवाया है. लेकिन मैं कहना चाहता हूं इन संघियों को कि लानत है तुम्हारी सरकार पर, चुनौती है मुझे केंद्र सरकार को कि आपने रोहित (वेमुला) के मामले में जो किया है, वो जेएनयू में हम नहीं होने देंगे. कोई रोहित अपनी जान नहीं गंवाएगा. रोहित ने जो अपनी कुर्बानी दी है, उस कुर्बानी को हम याद रखेंगे. हम फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन के पक्ष में खड़े होंगे. और छोड़ दो पाकिस्तान की बात और बांग्लादेश की बात. हम कहते हैं दुनिया के गरीबों एक हो. दुनिया के मजदूरों एक हो. दुनिया की मानवता जिंदाबाद. भारत की मानवता जिंदाबाद. जो इस मानवता के खिलाफ खड़ा है, हम उसको आज आइडेंटिफाई कर चुके हैं.

आज यही हमारे सामने सबसे गंभीर सवाल है कि उस आइडेंटिफिकेशन को हमको बनाकर रखना है. वो जो चेहरा है जातिवाद का, वो जो चेहरा है मनुवाद का, वो जो चेहरा है ब्राह्मणवाद का और पूंजीवाद के गठजोड़ का, उस चेहरे को हमको एक्सपोज करना है और सचमुच का लोकतंत्र, सचमुच की आजादी, सबकी आजादी इस देश में हमको स्थापित करनी है. और वो आजादी आएगी और संविधान से आएगी, पार्लियामेंट से आएगी, लोकतंत्र से आएगी और संसद से आएगी, यह हम कहना चाहते हैं. और इसलिए मैं आप सब तमाम साथियों से अपील है, कि तमाम तरह का डिफरेंसेज रखते हुए जो हमारा फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन है, जो हमारा कांस्टिट्यूशन है, जो हमारा मुल्क है उसकी एकता के लिए हम लोग एकजुट रहेंगे. एकमुश्त रहेंगे और ये जो देश तोड़ने वाली ताकतें हैं, आतंकियों को पनाह देने वाले लोग हैं.

वो जो चेहरा है जातिवाद का, वो जो चेहरा है मनुवाद का, वो जो चेहरा है ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद के गठजोड़ का, उस चेहरे को हमको एक्सपोज करना है और सचमुच का लोकतंत्र, सचमुच की आजादी, सबकी आजादी इस देश में हमको स्थापित करनी है. और वो आजादी आएगी और संविधान से आएगी, पार्लियामेंट से आएगी, लोकतंत्र से आएगी और संसद से आएगी. जो हमारा मुल्क है उसकी एकता के लिए हम लोग एकजुट रहेंगे

एक सवाल अंतिम सवाल पूछकर मैं अपनी बात को खत्म करूंगा. कौन है कसाब, कौन है अफजल गुरु, कौन हैं ये लोग जो आज इस स्थिति में हैं कि अपने शरीर में बम बांधकर हत्या करने को तैयार हैं. अगर ये सवाल यूनिवर्सिटी में नहीं उठेगा तो फिर मुझे नहीं लगता कि यूनिवर्सिटी होने का कोई मतलब है. अगर हम जस्टिस को डिफाइन नहीं करेंगे, अगर हम वॉयलेंस को डिफाइन नहीं करेंगे, कैसे हम वॉयलेंस को देखते हैं? वॉयलेंस सिर्फ ये नहीं होता है कि हम सिर्फ बंदूक लेकर किसी को मार दें, वॉयलेंस यह भी होता है कि संविधान में जो दलितों को अधिकार दिया गया है वो अधिकार जेएनयू प्रशासन देने से मना करता है. ये इंस्टिट्यूशनल वॉयलेंस है, इसके ऊपर कौन बात करेगा. जस्टिस की बात करते हैं, कौन तय करेगा कि जस्टिस क्या है? जब ब्राह्मणवादी व्यवस्था थी तो दलितों को मंदिर में नहीं घुसने दिया जाता था, यही जस्टिस है. जब अंग्रेज थे तो कुत्तों को और भारतीयों को रेस्टोरेंट में नहीं जाने दिया जाता था, यही जस्टिस था. इस जस्टिस को हमने चैलेंज किया और हम आज भी एबीवीपी और आरएसएस के जस्टिस को चैलेंज करते हैं कि तुम्हारा जस्टिस हमारे जस्टिस को एकोमोडेट नहीं कर करता है. अगर तुम्हारा जस्टिस हमारे जस्टिस को एकोमोडेट नहीं कर करता है तो हम नहीं मानेंगे तुम्हारे जस्टिस को और नहीं मानेंगे तुम्हारी आजादी को. हम मानेंगे उस दिन आजादी को जब दिन हर इंसान को उसका कांस्टिट्यूशनल राइट मिलेगा. जिस दिन हर इंसान को उसका संवैधानिक अधिकार देते हुए इस मुल्क के अंदर बराबरी का दर्जा दिया जाएगा. उस दिन हम जस्टिस को मानेंगे. दोस्तों, बहुत गंभीर परिस्थिति है. किसी भी तौर पर जेएनयूएसयू किसी भी हिंसा का, किसी भी आतंकवादी का, किसी भी आतंवादी घटना का, किसी भी देशविरोधी एक्टिविटी का समर्थन नहीं करता. कड़े शब्दों में एकबार फिर से. जो कुछ लोग, अनआइडेंटिफाई लोग जो पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए हैं, जेएनयूएसयू उसकी कड़े शब्दों में भर्त्सना करता है. साथ ही साथ एक सवाल जो है उसको आप सब लोगों को शेयर करते हुए. ये सवाल है जेएनयू एडमिनिस्ट्रेशन और एबीवीपी के लिए, इस कैंपस में हजार तरह की चीजें होती हैं. अभी आप ध्यान से एबीवीपी का स्लोगन सुनिए ये कहते हैं कम्यूनिस्ट कुत्तेे… कहते हैं अफजल गुरु के पिल्ले… ये कहते हैं जिहादियों के बच्चे… आपको नहीं लगता कि अगर इस संविधान ने हमको नागरिक होने का अधिकार दिया है तो मेरे बाप को कुत्ता कहना ये मेरे संविधानिक अधिकारों का हनन है कि नहीं? ये सवाल मैं एबीवीपी से पूछना चाहता हूं. ये सवाल पूछना चाहते हैं जेएनयू एडमिनिस्ट्रेशन से कि आप किसके लिए काम करते हैं? किसके साथ काम करते हैं और किसके आधार पर काम करते हैं? ये बात आज बिल्कुल स्पष्ट हो चुकी है कि जेएनयू प्रशासन पहले परमिशन देता है, फिर नागपुर से फोन आने के बाद परमिशन लेता है.

ये जो परमिशन लेने देने की प्रक्रिया है, ये उसी तरह से तेज हो गई है इस मुल्क में, जैसे फेलोशिप को लेने और देने की प्रक्रिया है. पहले आपको फेलोशिप बढ़ाने के घोषणा होगी फिर कहा जाएगा कि फेलोशिप बंद हो गई है.ये संघी पैटर्न है, ये आरएसएस और एबीवीपी का पैटर्न है. जिस पैटर्न से वो मुल्क को चलाना चाहते हैं. और इसी पैटर्न से वो जेएनयू एडमिनिस्ट्रेशन को चलाना चाहते हैं.

हमारा सवाल है जेएनयू के वाइस चांसलर से कि पोस्टर लगा था जेएनयू में बाकायदा. पर्चे आए थे मेस में. अगर दिक्कत था तो जेएनयू एडमिनिस्ट्रेशन पहले परमिशन नहीं देता. अगर परमिशन दिया तो किसके कहने से परमिशन कैंसिल किया? ये बात जेएनयू एडमिनिस्ट्रेशन क्लियर करे. ये सवाल आज हम इनसे पूछना चाहते हैं. साथ ही साथ. ये जो लोग हैं, इनकी सच्चाई जान लीजिए. इनसे नफरत मत कीजिएगा क्योंकि हम लोग नफरत कर नहीं सकते. इनसे मुझे बड़ी ही दया भाव है इनके प्रति. ये इतने उछल रहे हैं, क्यों? इनको लगता है जैसे गजेंद्र चौहान को बिठाया है, वैसे हर जगह चौहान, दीवान, फरमान ये जारी कर देंगे. चौहान, दीवान और फरमान की बदौलत ये हर जगह नौकरी पाते रहेंगे.

इसीलिए ये जब जोर से ‘भारत माता की जय’ चिल्लाएं तो समझ लीजिए परसों इनका इंटरव्यू डीयू में होने वाला है. नौकरी लगेगी, देशभक्ति पीछे छूट जाएगी. नौकरी लगेगी, फिर भारत माता का कोई ख्याल नहीं. नौकरी लगेगी, तिरंगा को तो इन्होंने कभी माना ही नहीं, भगवा झंडा भी नहीं फहराएंगे. मैं सवाल करना चाहता हूं कि कैसी देशभक्ति है? अगर एक मालिक अपने नौकर से सही बर्ताव नहीं करता, अगर किसान अपने मजदूर से सही बर्ताव नहीं करता, अगर पूंजीपति अपने एम्लाई से सही बर्ताव नहीं करता. और ये जो अलग अलग चैनल के लोग हैं जो पत्रकार काम करते हैं 15-15 हजार रुपये में. इनके जो सीईओ हैं, वो इनसे ठीक से बर्ताव नहीं करते हैं. कैसी देशभक्ति है?

वो सारी देशभक्ति भारत-पाकिस्तान के मैच पर खत्म कर देते हैं. इसीलिए जब रोड पर निकलते हैं तो केले वाले के साथ बदतमीजी से बात करते हैं. केला वाला कहता है- साहब, 40 रुपये दर्जन. कहते हैं- भाग. तुम लोग लूट रहे हो. 30 का दे दो. केला वाला जिस दिन पलट कर बोला देगा कि तुम सबसे बड़े लुटेरे हो, करोड़ों लूट रहे हो तो कह देंगे कि ये देशद्रोही है. इनकी परिभाषा अमीरी और सुविधा से शुरू होती है और अमीरी और सुविधा पर खत्म हो जाती है. मैं बहुत सारे एबीवीपी के दोस्तों को जानता हूं, मैं उनसे पूछता हूं कि क्या सच में तुम्हारे अंदर देशभक्ति की भावना पनपती है? तो कहता है भइया क्या करें, पांच साल की सरकार है, दो साल खत्म हो गया है, तीन साल का टॉकटाइम बचा है, जो करना है इसी में कर डालना है. तो हम बोले ठीक है जो करना है कर लो, पर ये बताओ जेएनयू के बारे में झूठ बोलोगो तो कल को तुम्हारा कॉलर भी कोई पकड़ लेगा और तुम्हारा ही साथी पकड़ लेगा जो आजकल ट्रेन में बीफ चेक करता है, पकड़ कर तुमको लिंचिंग करेगा और कहेगा तुम देशभक्त नहीं हो क्योंकि तुम जेएनयूआइट हो. इसका खतरा समझते हो, इसका तो समझते हैं भइया इसलिए तो हम जेएनयू शटडाउन का जो हैशटैग है, उसका विरोध कर रहे है. हमने कहा बहुत बढि़या है भाई साहब, पहले जेएनयू हैशटैग के लिए माहौल बनाओ फिर उसका विरोध करो, क्योंकि रहना तो जेएनयू में ही है ना.

इसलिए मैं आप तमाम जेएनयू के लोगों से कहना चाहता हूं कि अभी चुनाव होगा मार्च में और एबीवीपी के लोग ओम का झंडा लगाकर आपके पास आएंगे. उनसे पूछिएगा कि हम देशद्रोही हैं. हम जेहादी आतंकवादी हैं. हमारा वोट लेकर तुम भी देशद्रोही हो जाओगे. ये उनसे जरूर पूछिएगा. तब ये कहेंगे- नहीं, नहीं आप लोग नहीं हैं. वो कुछ लोग थे. तब हम कहेंगे कि वो कुछ लोग थे, ये बात तो तुमने मीडिया में नहीं कही. तुम्हारा वाइस चांसलर नहीं बोला और तुम्हारा रजिस्ट्रार भी नहीं बोल रहा है. और वो कुछ लोग भी तो कह रहे हैं कि हमने पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा नहीं लगाया. वो कुछ लोग भी तो कह रहे हैं कि हम आतंकवाद के पक्ष में नहीं हैं. वो कुछ लोग भी तो कह रहे हैं कि हमें परमिशन देकर हमारा परमिशन कैंसिल कर दिया. ये हमारे डेमोक्रेटिक राइट के ऊपर अटैक है. वो कुछ लोग हैं जो ये कह रहे हैं कि अगर इस देश के अंदर कहीं लड़ाई लड़ी जा रही है तो उसके समर्थन में हम खड़ा होंगे. इतनी बात इनके पल्ले पड़ने वाली नहीं है. लेकिन मुझे पूरा भरोसा है कि यहां जो इतने लोग इतने शॉर्ट नोटिस पर आए हैं, उनके उनके पल्ले पड़ रहा है. और वो लोग इस कैंपस में एक-एक छात्र के पास जाएंगे और बताएंगे कि एबीवीपी ना सिर्फ इस देश को तोड़ रहा है, बल्कि जेएनयू को तोड़ रहा है. हम जेएनयू को टूटने नहीं देंगे. जेएनयू  जिंदाबाद था. जेएनयू जिंदाबाद रहेगा. इस देश के अंदर जितने भी संघर्ष हो रहे हैं, उन संघर्षों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेगा और इस देश के अंदर लोकतंत्र की आवाज को मजबूत करते हुए, आजादी की आवाज को मजबूत करते हुए फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन की आवाज को मजबूत करते हुए इस संघर्ष को आगे बढ़ाएगा, संघर्ष करेंगे, जीतेंगे और देश के गद्दारों को परास्त करेंगे, इन्हीं शब्दों के साथ आप तमाम लोगों से एकता की अपील करते हुए अपनी बात को खत्म करूंगा. शुक्रिया. इंकलाब जिंदाबाद. जय भीम, लाल सलाम.