‘दो दिन पहले ही जेल से घर आया हूं. बहुत अच्छा लग रहा है. बिना किसी गलती के, बिना किसी अपराध के, ढाई साल जेल काटकर आया हूं. इन दो-ढाई सालों में पूरा परिवार तबाह हो गया. बड़े बुरे दिन थे. मैं उस वक्त को याद नहीं करना चाहता हूं’
इतना कहते-कहते 26 वर्षीय कमल सिंह की आंखों में आंसू भर आए. वो चुप हो गए. कमरे में चुप्पी पसर गई. वे उठे, पानी से चेहरा धोया. थोड़ी देर चुप रहने के बाद कहा, ‘जब मुझे मारुति में नौकरी मिली तो पूरा परिवार खुश हुआ. किसी को नहीं मालूम था कि इसी कंपनी की वजह से एक दिन मेरा पूरा परिवार तबाह हो जाएगा और मैं जेल चला जाऊंगा. आज मेरे पास न नौकरी है, न ही पैसा. पूरी तरह अपने पापा की कमाई पर आश्रित हूं. अकेले रहता तो और बात होती लेकिन मेरी पत्नी भी है और एक फूल-सी बच्ची भी है.’ मारुति के
मानेसर प्लांट में हुए झगड़े के एक महीने बाद 17 अगस्त 2012 की सुबह सादी वर्दी में कुछ लोग उनके घर आए और कमल को अपने साथ ले गए. लगभग 34 महीने जेल में रहने के बाद 15 अप्रैल 2015 को कमल जमानत पर रिहा हुए हैं.
2012 की अगस्त की उस सुबह को याद करते हुए कमल कहते हैं, ‘मैं अपने कमरे में सोया था. सुबह लगभग पांच-साढ़े पांच बजे पिताजी ने आवाज लगाई. मैंने दरवाजा खोला. मेरे सामने सादे लिबास में कुछ लोग थे. मैं पूरी तरह नींद से जगा नहीं निकला था. थोड़ी देर तक कुछ समझ ही नहीं आया कि हो क्या रहा है? ये लोग कौन हैं? मुझे कहां ले जाना चाहते हैं? मां लगातार रो रही थी. पिताजी बदहवासी में लगातार कह रहे थे कि मेरे लड़के का उस झगड़े से कोई लेना-देना नहीं है, साहेब. आपलोगों को जरूर कोई गलतफहमी हुई है…’
कमल आगे बताते हैं, ‘अब तक मुझे भी समझ में आ गया था कि ये लोग पुलिस वाले हैं और मुझे जुलाई के उस झगड़े के मामले में गिरफ्तार कर रहे हैं. वो मेरी मां से कह रहे थे कि बस पूछताछ के लिए ले जा रहे हैं. पूछताछ पूरी होते ही वापस भेज देंगे. लेकिन मुझे यह लग गया था कि ये लोग मुझे गिरफ्तार कर रहे हैं. उन्होंने न तो मुझे गिरफ्तारी का वारंट दिखाया और न ही स्थानीय पुलिस चौकी को सूचित किया.’
कमल की मां अपने लड़के के िसर पर हाथ फेरते हुए कहती हैं, ‘भइया… किसी के साथ वैसा न हो जो मेरे साथ हुआ. लड़के की नई-नई शादी हुई थी. बहू एक महीने की गर्भवती थी… दुख का पहाड़ टूट पड़ा. आज-कल, आज-कल करते सालों निकल गए.’
मां को शुगर है. बेटे की गिरफ्तारी के बाद वह पहले से ज्यादा बीमार रहने लगीं. अस्पताल में कई बार भर्ती करवाना पड़ा. तबीयत के बारे में पूछा तो कहती हैं कि बेटा आ गया, अब तबीयत की कोई फिक्र नहीं…