बिहार : शराबबंदी की सनक?

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‘मैं बर्बाद हो जाऊंगा मगर शराबबंदी से समझौता नहीं करूंगा. विपक्ष कहता है कि मैं शराबबंदी के नशे में हूं. हां, मुझ पर शराबबंदी का नशा है. जो पिए बिना नहीं रह सकते, वे कहीं और चले जाएं. क्योंकि अब बिहार में शराब पीने की गुंजाइश नहीं है. जिन्हें जितना मजाक उड़ाना है, उड़ा ले, हम पीछे हटने वाले नहीं हैं. हमेें मालूम है कि हमने बिरनी के छत्ते में हाथ डाला है. ताकतवर लाॅबी है शराब की, उसको उकसाया है लेकिन हमें परवाह नहीं है कुछ. हम जिस रास्ते चल पड़ते हैं फिर पीछे मुड़कर नहीं देखते. आरएसएस और पीएम नरेंद्र मोदी शराबबंदी पर अपना पक्ष बताएं. भाजपा हिंदुत्व की बात करती है तो बताए कि किस ग्रंथ में शराब पीने की बात कही गई है. भाजपा शराबबंदी की मुहिम को ध्वस्त करना चाहती है लेकिन हम ऐसा नहीं होने देंगे. विधेयक को लेकर भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं. भाजपा वाले असहयोग कर रहे हैं. हमने विधेयक बदला है. विधेयक में दंड के प्रावधान को कम किया है. किसी के घर से शराब मिलती है तो सिर्फ दोषी को ही दंड मिलेगा लेकिन घर में शराब है और घर में किसी को पता नहीं हो, ऐसा होता है क्या? तय होना चाहिए कि दोषी कौन है. घरवालों को बताना होगा कि शराब आखिर आई कहां से. यह हम पता करेंगे तो इसमें गलत क्या है? क्या किसी के घर में शराब है तो उसे कानून तोड़ने की छूट दे दी जाए?’

इसी महीने की एक तारीख को बिहार विधानसभा में बिहार मद्य निषेध एवं उत्पाद विधेयक, 2016 पर बहस के बाद नीतीश कुमार जब जवाब दे रहे थे तो न जाने ऐसी कितनी बातें एक सुर में बोलते चले गए.  नीतीश कहते हैं, ‘जाइए, जाकर गांवों में देखिए. केवल कहते मत रहिए कि शराब की होम डिलीवरी हो रही है. हो रही है तो कहां हो रही है, बताइए. नहीं बताइएगा तो समझेंगे कि आप भी इसमें शामिल हैं. आप लोग बात कर रहे हैं कि बेजा किसी को परेशान किया जाएगा. बेजा परेशान किया जाएगा तो उसके लिए कड़ा कानून बनाया गया है. जुर्माना-जेल दोनों होगा. जाइए गांवों में जाकर देखिए. वहां शांति है. संज्ञेय अपराध में 12.7 प्रतिशत की कमी आई है. महिलाएं खुश हैं. 1.19 करोड़ बच्चों के जरिए अभिभावकांे ने शराबबंदी का संकल्प लिया है. क्या यह सब बदलाव नहीं है. देखिएगा तब न!’

नीतीश कुमार उस दिन और भी बातें कहना चाहते थे लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेता नंदकिशोर यादव ने ब्रेक लगा दिया और फिर बात ही बदल गई. नंदकिशोर यादव ने कहा, ‘आप हमारी पार्टी के साथ सत्ता में रहे हैं. हम लोग साथ-साथ सरकार चला चुके हैं. आपने कहा था कि थाना स्तर पर नियंत्रण करना सरकार के बस की बात नहीं है, वहां भ्रष्टाचार रोकना सरकार के बस की बात नहीं है तो बताइए कि यह जो नया वाला कानून है, उसको तो थाना स्तर से ही लागू करवाया जाना है और आप कह रहे कि उस स्तर पर नियंत्रण हो ही नहीं सकता तो फिर क्या होगा? फिर तो सब कुछ थाना ही तय करेगा न! और जब थाना तय करेगा तो समझ ही रहे हैं कि क्या होगा.’

‘शराब के संग ताड़ी पर भी बैन लगा देने से इसे बनाने वाले समुदाय के लोगों के सामने रोजगार का संकट आ गया है. इस पर प्रतिबंध लगाना ठीक नहीं’ 

नंदकिशोर यादव की बातों का जवाब नीतीश कुमार और सत्ताधारी दल के विधायकों के पास था, लेकिन नंदकिशोर यादव की बात में एक लाइन ऐसी थी जिससे बात बदल गई. नंदकिशोर ने कह दिया था, ‘हम भेद खोल दें क्या?’ वह क्या भेद खोलना चाहते थे, यह बात उन्हीं तक रह गई. कोई जान नहीं सका. कोई जान भी नहीं पाएगा  क्योंकि अब नंदकिशोर यादव उस पर बात भी नहीं कर रहे हैं. वे दूसरी बातों पर ज्यादा जोर देते हैं. कहते हैं, ‘मैंने दो संशोधन के प्रस्ताव रखे थे लेकिन दोनों ही पास नहीं हो सके. जब राज्य में शराबबंदी है तो शराब बनाने वाले कारखानों के रिन्यूअल की बात क्यों है? और दूसरा यह कि घर में शराब मिलने पर सभी बालिगों को क्यों दोषी ठहराया जाएगा?’ जिस तरह से नीतीश कुमार शराबबंदी के नए कानून के पक्ष में देर तक प्रवाह में बोलते हैं वैसे ही नंदकिशोर यादव भी सदन में राज खोलने वाली बात छोड़कर बाकी ढेर सारी बातों को घंटों बताते हैं. नंदकिशोर यादव कहते हैं, ‘नीतीश कुमार डंडे के बल पर शराबबंदी करवाना चाह रहे हैं. पहले तो दस सालों तक लत लगवाए और अब उसे एक झटके में छुड़वाना चाह रहे हैं. घर में दारू मिलने पर बुजुर्ग भी जेल जाएंगे. बताइए ये कैसा कानून है. ये तो जंगलराज है. जमानत का भी प्रावधान नहीं किया गया है. जो भ्रष्टाचारी हैं वे सड़क पर घूमेंगे और जो निर्दोष होगा वह शराब के बहाने जेल में होगा. ये कैसा कानून है?’

शराबबंदी के लिए बिहार में महिलाओं ने एक लंबा आंदोलन चलाया था. शराबबंदी का फैसला आने के बाद बाद महिला संगठनों ने खुशी जताई  है.
शराबबंदी के लिए बिहार में महिलाओं ने एक लंबा आंदोलन चलाया था. शराबबंदी का फैसला आने के बाद बाद महिला संगठनों ने खुशी जताई है.

इसके इतर जिस दिन से बिहार में नया शराबबंदी कानून पेश हुआ और पारित हुआ, उस दिन से बिहार के तमाम विपक्ष के नेता सरकार को घेरने मंे लगे हुए हैं. पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी कहते हैं, ‘शराब के संग नीतीश कुमार ने तो ताड़ी पर भी बैन लगा दिया है. ताड़ी वाले समुदाय के लोगों के सामने रोजगार का संकट आ गया है. ताड़ी औषधि की तरह होता है. इस पर प्रतिबंध लगाना ठीक नहीं.’ राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के नेता ललन पासवान कहते हैं, ‘अगर किसी के घर  में शराब मिलने से किसी अभिभावक को भी सजा मिलनी है फिर तो विधानसभा परिसर में कोई भी शराब फेंककर चला जाएगा और विधानसभा अध्यक्ष और सचिव को सजा देनी होगी.’

ऐसे ही तर्क कई नेता रखते हैं. सभी विपक्षी नेताओं के पास अपने तर्क हैं, सभी सत्ताधारी दल के नेताओं के पास अपने तर्क. इन तर्कों के टकराव का अंजाम क्या होगा यह हर कोई बिहार में जान रहा है. बिहार में सरकार शराबबंदी का कानून ला चुकी है. कानून को लेकर सरकार सतर्क है और सख्त भी, यह दिखाने की लगातार कोशिश करेगी. सरकार ऐसा कर भी रही है. अब तक राज्य में 11 थानेदार इस आधार पर निलंबित हो चुके हैं कि वे अपने इलाके में पूर्ण शराबबंदी नहीं करवा सके हैं. हालांकि अभी उस पर किचकिच चल रही है. विरोध हो रहा है कि अगर शराबबंदी के आधार पर ही थाना प्रभारियों को निलंबित करना था तो फिर 11 को ही क्यों किया गया, अब तक तो 150 थानेदारों को निलंबित हो जाना चाहिए था, क्योंकि इतने इलाकों से शराब पकड़ी जा चुकी है.

दूसरी ओर, पुलिस एसोसिएशन का भी विरोध जारी है और एक सूचना के अनुसार 130 दारोगाओं और इंस्पेक्टरों ने एसोसिएशन में गुहार लगाई है कि उन्हें थानेदारी या इंस्पेक्टरी नहीं चाहिए, कहीं शंटिंग में पोस्टिंग दे दी जाए. शराबबंदी कानून का असर हो रहा है, यह दिखाने के लिए शासन के स्तर पर और भी कई तरह की कार्रवाइयां चल रही हैं. नालंदा में तो एक पूरे गांव पर ही जुर्माना लगा दिया गया है. उस गांव का नाम कैलाशपुर है, जो 50 घरों की बस्ती है और जुर्माने के तौर पर हर घर को पांच हजार रुपये देने को कहा गया है. बिहार शरीफ जिले के डीएम डाॅ. त्याग राजन कहते हैं, ‘गांव में पांच बार छापेमारी की गई, बार-बार चेतावनी दी गई लेकिन हर बार शराब बनाने के उपकरण बरामद होते रहे इसलिए आखिर में पूरे गांव पर जुुर्माना लगाने का निर्णय लिया गया.’

नालंदा के कैलाशपुर गांव पर ही जुर्माना लगा दिया गया है. यह 50 घरों की बस्ती है और जुर्माने के तौर पर हर घर को पांच हजार रुपये देने को कहा गया है

नालंदा से लेकर दूसरे जिले तक तरह-तरह की कार्रवाइयां चल रही हैं और उसे सरकारी स्तर पर प्रचारित-प्रसारित भी किया जा रहा है. दूसरी ओर, विपक्ष रोज-ब-रोज शराबबंदी को लेकर तमाम तरह के तर्क और तथ्य जुटाने में लगा हुआ है, जिससे सरकार को घेरा जा सके. पक्ष-विपक्ष की इस लड़ाई के बीच आश्चर्यजनक रूप से सत्ताधारी गठबंधन में शामिल लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद और कांग्रेस मुखर नहीं हैं. कुछ पूछे जाने पर दोनों ही पार्टी के नेता नीतीश कुमार के फैसले में ‘हां’ में ‘हां’ तो मिला रहे हैं लेकिन अपनी ओर से अलग से बिहार सरकार के इस सबसे महत्वाकांक्षी और प्रसिद्ध अभियान के लिए ऊर्जा नहीं लगा रहे. नाम न बताने की शर्त पर राजद के एक नेता कहते हैं, ‘शराबबंदी कानून को लेकर हम लोग लालू प्रसाद यादव के पास गए थे तो उन्होंने कहा है सब कुछ देखते रहो. ये भाजपा और जदयू का फ्रेंडली मैच है, नीतीश राष्ट्रीय राजनीति में जाने के लिए सियासी पासा खेल रहे हैं. शांत होकर देखते रहो. पहले भाजपा और नीतीश कुमार ने मिलकर दस साल में शराब को घर-घर पहुंचाया है और अब एक ही रात में सब बंद करवाना चाह रहे हैं. नीतीश से ऐसा नहीं होगा. देखना वे खुद अपने ही जाल में फंस जाएंगे.’

कार्रवाई बिहार में शराबबंदी को लेकर सख्त नजर आ रही सरकार की ओर से शराब की दुकानों को सील करने का सिलसिला लगातार जारी है.
कार्रवाई बिहार में शराबबंदी को लेकर सख्त नजर आ रही सरकार की ओर से शराब की दुकानों को सील करने का सिलसिला लगातार जारी है.

राजद के ये नेता यह बताते हुए  लालू का हवाला देते हैं और कहते हैं कि लालू ने उन्हें ऐसा कहा है और अभी शांत रहकर मौन व्रत धारण करने को कहा है. इसलिए वे चुप हैं. यह तो नहीं मालूम कि लालू ने अपने दल के नेताओं को ऐसी नसीहती घुट्टी पिलाई है या नहीं और ऐसा कहा है या नहीं कि नीतीश कुमार खुद इस जाल में फंस जाएंगे लेकिन लालू न भी कहें तो भी पूरे राज्य में ऐसा मानने वालों की संख्या खूब है जो यह कह रहे हैं कि बिहार में शराबबंदी का यह कानून न सिर्फ नए तरीके से भ्रष्टाचार और अपराध को बढ़ाएगा बल्कि सरकार के मूल एजेंडे सामाजिक न्याय को भी तार-तार करेगा.

राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सुमन कहते हैं, ‘यह पाॅपुलर एजेंडा है, जिसमें नीतीश कुमार उलझ गए हैं और उसे रोज-ब-रोज दोहरा रहे हैं. शराबबंदी का माॅडल पूरे देश में पेश करना चाहते हैं लेकिन यह चल नहीं पाएगा. यह कानून एक तरीके से सामाजिक न्याय को धक्का भी पहुंचाएगा.’ सुमन जो बातें को कहते हैं उनका विस्तार बिहार के अलग-अलग इलाकों में घूमते हुए महसूस किया जा सकता है. बिहार के एक बड़े हिस्से से उत्तर प्रदेश की सीमा लगती है, जो छपरा, सीवान, कैमूर, मोतिहारी, बेतिया जैसे इलाकों को छूती है. बिहार के कुछ इलाके सीधे नेपाल से लगे हुए हैं. बिहार का एक बड़ा इलाका झारखंड से भी लगा हुआ है तो कुछ हिस्से बंगाल को भी छूते हैं. बिहार में शराबबंदी है लेकिन बिहार के पड़ोसी राज्यों में शराबबंदी नहीं है. मुश्किल यह है कि राजनीतिक एजेंडे के तहत नीतीश कुमार लगातार आरएसएस और प्रधानमंत्री से जवाब मांग रहे हैं कि शराबबंदी पर क्या नीति है, बताइए. भाजपा शासित राज्यों में शराब बंद कीजिए लेकिन बिहार के सीमाई इलाके में झारखंड ही है, जहां भाजपा का शासन है, बाकी बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार है, उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार है. नीतीश कुमार शराबबंदी अभियान के तहत झारखंड सरकार को ही बार-बार टारगेट पर रखते भी हैं. वे उत्तर प्रदेश की सरकार या बंगाल की सरकार पर ज्यादा कुछ नहीं बोलते. नीतीश कुमार का यह रवैया उनके इस सबसे बडे़ और महत्वाकांक्षी राजनीतिक और शासकीय अभियान को हल्का बना देता है. इससे एक साधारण व्यक्ति भी समझ जाता है कि शराब का खेल पूरी तरह से सियासत के पाले में जा चुका है. खैर यह तो फिर भी एक बात हुई. दूसरी और असल बात यह है कि शराबबंदी अभियान का पूरा दारोमदार पुलिसवालों पर आ गया है. पुलिसवाले बॉर्डर वाले इलाके से लेकर राज्य के अंदर तक रोज छापेमारी कर रहे हैं. इन इलाके में शराब की खपत बढ़ गई है. नई दुकानें तो खुली ही हैं, साथ ही वहां से बिहार में शराब लाने का स्थायी जुगाड़ भी विकसित होने लगा है. बताया जा रहा है कि बड़े लोगों के लिए यह एक नया धंधा विकसित हो रहा है. वे शराब को बाॅर्डर से लगे दूसरे राज्याें से बिहार में लाने के लिए एक नया चेन विकसित कर रहे हैं और इसकी शुरुआत भी हो चुकी है.

बिहार के प्रायः हर शहर में शराब महंगी कीमत पर उपलब्ध है. सीमाई क्षेत्रों में पुलिस और माफिया की मिलीभगत से एक चेन विकसित हो रही है

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बिहार के प्रायः हर शहर में शराब महंगी कीमत पर उपलब्ध है. पुलिस और माफिया की मिलीभगत से यह चेन विकसित हो रहा है. यूपी बाॅर्डर, झारखंड बाॅर्डर से लेकर नेपाल बाॅर्डर तक इस धंधे की आहट सुनाई पड़ सकती है. हालांकि अभी चूंकि कानून नया है इसलिए सतर्कता बरती जा रही है. दूसरी ओर, जब से कानून में इस बात का प्रावधान हुआ है कि किसी के घर में शराब मिलने पर उस घर के सभी बालिगों को भी दोषी माना जाएगा और आरंभिक स्तर पर पूछताछ की जाएगी तब से कई लोग एक-दूसरे से दुश्मनी निकालने की योजना बना रहे हैं. बिहार में आपसी रंजिश में एक-दूसरे के घर में हथियार रखवा देने का इतिहास लोग जानते हैं. दो दशक पहले तक हथियार को एक-दूसरे के घर में रखकर लोग अपनी दुश्मनी साधते थे. शराब हथियार से ज्यादा आसान चीज है. राज्य के ताकतवर लोगों के लिए शराब आसानी से उपलब्ध है. कमजोर लोगों के लिए भी मेहनत करने पर शराब उपलब्ध है. चूंकि शराबबंदी का यह कानून पुलिसवालों पर निर्भर है, इसलिए यह मानकर चला जा रहा है कि आखिरकार ताकतवरों की ही चलेगी. अब किसी भी कमजोर को फंसाने के लिए उसके घर, अहाते में शराब रखवाने या फेंकने का काम चलेगा. शराब रखवाना और फिर पुलिस को इत्तला करके उन्हें फंसा देने का काम आसान हो जाएगा. जो बड़े लोग होंगे वे पुलिस को मैनेज करेंगे, जो कमजोर होंगे वे बड़े लोगों के गुलाम होंगे, क्योंकि अब पुलिस का इस्तेमाल करके किसी कमजोर को फंसाना पहले की तरह मुश्किल भी नहीं होगा. शराबबंदी का कानून कड़ा है. अब तक यह देखा भी जा रहा है कि शराबबंदी के फेर में जो भी पुलिस के हत्थे चढ़ रहे हैं वे गरीब और आर्थिक तौर पर कमजोर लोग ही हैं या वंचित समूह के लोग हैं. अभी यह आलम है तो ट्रायल फेज के बाद जब यह कानून थोड़ा पुराना हो जाएगा तो फिर इस प्रवृत्ति का और विस्तार ही होगा.