संजय बारू ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का पक्ष लेते हुए पार्टी के मामलों में उनकी सक्रियता लगातार बनाए रखने की मांग की. वहीं, कुछ ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि सोनिया गांधी पहले ही पार्टी में एक लंबी पारी खेल चुकी हैं और अब पार्टी को नए नेता की जरूरत है. एक सूत्र ने बताया, ‘छंटनी की प्रक्रिया के बाद एकमात्र शख्स राहुल गांधी ही बचते हैं.’ यह तर्क दिया गया है कि पार्टी को नए सिरे से संगठित करने की जरूरत है और समय-समय पर राहुल इसकी नैतिक जिम्मेदारी लें. पहली और आखिरी बार नए सिरे से पार्टी में बदलाव संजय गांधी के समय में किया गया था. उस दौरान संजय गांधी ने पार्टी में युवा नेताओं की पौध तैयार की थी, जो पार्टी की अब तक सेवा कर रहे हैं. इनमें कमल नाथ, अहमद पटेल, अशोक गहलोत और पीसी चाको शामिल थे, जिन्होंने संजय गांधी के समय पर अपनी महत्वाकांक्षाओं को सीमित रखा.
बनी हुई है चुनौती
इसलिए अगर राहुल भविष्य में पार्टी का नेतृत्व करना चाहते हैं तो कैसे आगे बढ़ें इस पर सोचना चाहिए. इस पर लोगों के बहुत से मत हैं. इमेज गुुुरु दिलीप चेरियन के मुताबिक, ‘एक नेता की तीन खूबियां होनी चाहिए- िनरंतरता, ब्रांड वैल्यू और अपने कार्यों से खुद की भूमिका साबित करना.’ चेरियन ने बताया, ‘राहुल ने अपनी स्थिरता से खिलवाड़ किया. कुछ समय के लिए वह एंग्री यंगमैन होते हैं तो कुछ समय के लिए राजनीति से गायब हो जाते हैं तो कभी बेअसर युवा की भूमिका में होते हैं. दुर्भाग्यवश जब वह खुद को चित्रित करते हैं तो लोगों को पता नहीं होता कि उनसे क्या अपेक्षा की जाए.’ चेरियन ने उम्मीद जताई कि कांग्रेसी अगर राहुल गांधी पर विश्वास जताएं तो उन पर इस बात का दबाव बनेगा कि वह निरंतर बने रहें, उपलब्ध रहें और अचानक गायब न हों. जब युवा गांधी ने गरीब समर्थक, दलित समर्थक और किसान समर्थक रवैया अख्तियार कर लिया है, तो उन्हें भाजपा के इस खाली गढ़ पर हमला बोलना चाहिए, इसके खिलाफ वंचित अल्पसंख्यकों को साथ लेना चाहिए जो भाजपा पर सवाल खड़े कर रहे हैं. तार्किक रूप से यह उनके लिए बड़ा कैनवास बन सकता है. चेरियन की सलाह है कि राहुल गांधी जल्द ही सोशल मीडिया पर आ जाएं.
जब युवा गांधी ने गरीब समर्थक, दलित समर्थक, और किसान समर्थक रवैया अख्तियार कर लिया है, तो उन्हें अल्पसंख्यकों को साथ लेना चाहिए जो भाजपा पर सवाल खड़े कर रहे हैं
‘टाइमलेस लीडरशिपः 18 लीडरशिप सूत्राज फ्रॉम भगवद गीता’ किताब के लेखक और आईआईएम लखनऊ के प्रोफेसर देवाशीष चटर्जी ने बताया, ‘राजनीतिक नेतृत्व, संगठनात्मक नेतृत्व से कहीं ज्यादा कठिन है. राहुल को किसी तरह स्थिर और निरंतर रहना होगा. उन्हें आगे बढ़नेवाली टीम को रखना होगा, जिसमें पूरक क्षमताओंवाले लोग शामिल हों. उन्होंने सतर्क करते हुए कहा कि अधिक गरीब समर्थक होना, कॉर्पोरेट विरोधी होना नहीं होता, इसमें बहुत बारीक फर्क होता है.
विचारणीय बिंदु
बॉब डिलन मुश्किल से 21 साल के थे जब उन्होंने ये यादगार पंकि्तयां लिखीं, ‘हाऊ मैनी रोड्स मस्ट अ मैन वॉक डाउन, बिफोर यू कॉल हिम अ मैन’. यह गीत लिखने के तकरीबन 53 साल बाद 16 अप्रैल को राहुल एक नई शुरुआत करने के लिए अपने घर लौटे. अपने भाषण में उन्होंने काफी तंज कसा है लेकिन क्या इस समय में वे इसी तरह बने रहेंगे?
पार्टी निश्चित रूप से आशा करती है लेकिन राहुल खुद ही पहले कह चुके हैं, ‘एक व्यक्ति जो घोड़े पर सवार होकर आता है उसके पीछे सूरज अस्त हो रहा है और करोड़ो लोग उसका इंतजार कर रहे होते हैं’ क्या खुद वह कांग्रेस में सब कुछ समय पर ठीक कर सकेंगे.
मगर क्या राहुल में मोदी को चुनौती देने की क्षमता है ?
क्या वाकई राहुल मोदी को चुनौती देने की क्षमता रखते हैं? इस संबंध में कुछ ने ये तर्क दिया कि लोगों में गलत धारणा है कि नेतृत्व क्या था और इसके अंदर क्या समाहित है. अभी आम धारणा बनी है कि जो भी चुनाव में जीत दिलवाता है, वही नेता है. इसका मतलब यह है कि चुनाव में हारनेवाले को नेता के तौर पर नहीं देखा जाता. पार्टी का वह धड़ा जो कि राहुल के साथ था, उसे विश्वास था कि कांग्रेस को उनके नेतृत्व की जरूरत है और साथ मिलकर काम किया जाए.
तो चिदंबरम की उस टिप्पणी को कैसे देखा जाए जो उन्होंने अक्टूबर 2014 में एनडीटीवी पर कहा था, ‘गांधी परिवार के बाहर का भी कोई शख्स पार्टी का अध्यक्ष बनाया जा सकता है? (क्या गैर-गांधी परिवार से कोई अध्यक्ष बन सकता है? चिदंबरम से ये सवाल पूछा गया था. तब उन्होंने जवाब दिया था, ‘हां, किसी दिन, मैं ऐसा सोचता हूं.’) नेतृत्व को लेकर पार्टी की दुविधा का पता संजय बारू की किताब से भी चलता है, जिसमें उन्होंने लिखा कि पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने भी यह विश्वास जताया था कि एक राजनीतिक संगठन जो कि एक सदी पुराना है, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन में भी हिस्सा लिया है, उसे नैतिक रूप से खुद भी नेहरू-गांधी के अलावा अपने बारे में सोचना चाहिए.
हालांकि बारू ने कम्युनिस्ट नेता स्वर्गीय मोहित सेन का जिक्र करते हुए बताया, ‘उन्होंने कहा था कि शीर्ष पर नेहरू-गांधी परिवार के किसी सदस्य के बिना कांग्रेस टूट जाएगी, बिखर जाएगी.
संयोग से 1996 में कांग्रेस के संसदीय चुनाव हारने के बाद पार्टी के कुछ नेताओं ने मांग की थी कि राव को पार्टी अध्यक्ष पद से हटाया जाना चाहिए. उनमें से एक कमल नाथ ने कहा था, ‘जब टीम हार रही है तो उसके कप्तान को इस्तीफा दे देना चाहिए. हालांकि 2014 के आम चुनावों के बाद पार्टी के किसी नेता ने इस तरह की कोई मांग नहीं की. इसके बाद सोनिया और राहुल ने इस्तीफा देने की पेशकश की थी लेकिन कांग्रेस कार्य समिति ने ताबड़तोड़ एक प्रस्ताव पासकर दोनों की नेतृत्व क्षमता पर पूरा विश्वास प्रकट किया था.
बहरहाल आगे बढ़ते हुए राहुल गांधी से उम्मीद की जाती है कि वह राजनीति में माहिर बनें, न सिर्फ सरकार पर सवाल उठाएं बल्कि समान विचारधारावाले दलों के साथ अच्छे संबंध बनाएं. सीमित न रहें और गठबंधन के नए रास्ते खोजें. तभी मोदी को जोरदार चुनौती दी जा सकती है. हाल ही में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव बनाए गए सीताराम येचुरी अपने पूर्ववर्ती प्रकाश से कहीं ज्यादा उदार और सुलभ हो सकते हैं. ऐसे में राहुल गांधी और येचुरी को मिलकर एक समान रणनीति बनानी चाहिए ताकि केंद्र सरकार को चुनौती दी जा सके.