उत्तर के पैंतरे में दक्षिण का टोका

अपनी-अपनी रणनीति: बिहार में राजनीति की नई इबारत लिखने काे तैयार नीतीश-लालू
अपनी-अपनी रणनीति:बिहार में राजनीति की नई इबारत लिखने काे तैयार नीतीश-लालू

जनता परिवार में शामिल होने वाले छह दलों में कर्नाटक की जद (एस) दक्षिण भारत से अकेली पार्टी है और फिलहाल कर्नाटक में बहुत मतबूत स्थिति में नहीं है. कांग्रेस शासित कर्नाटक में भाजपा विपक्ष है और जद (एस) तीसरे स्थान पर, इसलिए अपनी मौजूदा राजनीतिक हैसियत के साथ जद (एस), जनता परिवार के मार्फत राष्ट्रीय राजनीति और कर्नाटक में क्या हासिल कर पाएगी ये आनेवाले समय में पता चलेगा. लेकिन इतिहास में जाएं तो पता चलता है कि तीसरे मोर्चे की राजनीति में जनता पार्टी और जनता दल की बहुत अहम भूमिका रही है. कर्नाटक में जद (एस) और लोकशक्ति पार्टी बाद में इसी से आस्तित्व में आई हैं. जनता पार्टी की विरासत रामकृष्ण हेगड़े जैसे लोकप्रिय जननेता के दौर से शुरू होती है, 1983 में यहां हेगड़े के नेतृत्व में जनता पार्टी ने बाहर से भाजपा के समर्थन के साथ पहली गैरकांग्रेसी सरकार बनाई थी. इसलिए ये दिलचस्प है कि हमेशा कांग्रेेस के खिलाफ एक होनेवाली जनता पार्टी इस बार भाजपा के विरोध में एक हो रही है.

दूसरी ओर आज भले जद (एस) या देवगौड़ा जनता पार्टी की परंपरा और विरासत की बात कर रहे हों लेकिन वो भी इसे खंडित करनेवालों में से रहे हैं. गौरतलब है कि उनके प्रधानमंत्रित्व काल में उनके निर्देश पर ही तत्कालीन जनतादल अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने रामकृष्ण हेगड़े को जनतादल से निष्कासित कर दिया था. बाद में हेगड़े ने लोकशक्ति पार्टी बना ली और 1999 लोकसभा चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़े तब राज्य में इसी गठबंधन को अधिकतम लोकसभा सीटें हासिल हुई थीं. ये बात भी दिलचस्प है कि जनतादल का गठन 1988 में बंगलुरु में ही जनता पार्टी और कुछ छोटी विपक्षी पार्टियों के मेल से हुआ था और 1994 में देवगौड़ा ने कर्नाटक में जनता दल की सरकार बनाई थी. 1996 में इसी जनता दल के नेता के तौर पर एचडी देवगौड़ा संयुक्त मोर्चे की सरकार में प्रधांनमंत्री बने थे. लेकिन 1999 आते आते जनता दल बिखर गया, जद (एस) और जदयू दोनों इसी टूट से निकली पार्टियां हैं. हालांकि देवगौड़ा शुरू से धर्मनिरपेक्ष राजनीति की हिमायत करते आए हैं, 1999 में भाजपा के नेतृत्ववाली एनडीए सरकार को समर्थन देने के मसले पर ही कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री जेएच पटेल और देवगौड़ा में अलगाव हुआ था, जेएच पटेल जेडीयू के साथ गए और देवगौड़ा ने जनता दल सेक्यूलर या जद (एस)  का गठन कर लिया. लेकिन इसी जद (एस) ने बाद में कर्नाटक में कांग्रेस के साथ भी गठबंधन किया और 2004 में भाजपा के साथ मिलकर सरकार भी बनाई, जिसमें 20 महीने तक एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री  रहे.

1983 में हेगड़े के नेतृत्व में जनता पार्टी ने बाहर से भाजपा के समर्थन के साथ पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनाई थी

दरअसल, 1999 के बाद  धर्मनिरपेक्ष राजनीति का सैद्धांतिक दावा करने के बावजूद जद (एस) की पहचान एक अवसरवादी दल की बनी है खासतौर पर देवगौड़ा के प्रधानमंत्री बनने और पार्टी की कमान कुमारस्वामी के हाथ में आ जाने के बाद. वरिष्ठ पत्रकार और राजीतिक विश्लेषक अरविंद मोहन की राय में भी कुमारस्वामी को हल्के में नहीं लिया जा सकता, क्योंकि वो पैसेवाले हैं, मेहनती हैं और वोक्कालिंगा वोटबैंक पर उनकी मजबूत पकड़ है. कर्नाटक में जाति विमर्श हमेशा से धर्मनिरपेक्ष राजनीति को काटता रहा है, उत्तर भारत के जाट वोटबैंक की तरह वोक्कालिंगा जाति कर्नाटक के एक खास भौगोलिक क्षेत्र में केंद्रित है, जो जद (एस) का मजबूत आधार है. दूसरी ओर राष्ट्रीय राजनीति में भले जद (एस) को बहुत बड़ी भूमिका नहीं मिले लेकिन शक्ति संतुलन के खेल में ये पार्टी निर्णायक हो सकती है. वैसे देवगौड़ा बहुत सधे हुए राजनीतिज्ञ हैं, पिछली बार भी अचानक उनका नाम प््रधानमंत्री के लिए लिया गया तब कोई विरोध नहीं कर पाया था, आगे भी समय आने पर बहुत होशियारी से वो अपना कोई पत्ता फेंक सकते हैं.

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